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राजस्थान की प्राचीन सभ्यताएँ

✍ राजस्थान मे मानव कि उत्पति के सर्वप्रथम प्रमाण बनास व उसकी सहायक नदियो के किनारे मिले है।
✍ विश्व मे मानव कि उत्पति के सर्वप्रथम प्रमाण दक्षिणी अफ्रिका से मिले है।
👉 निम्नपुरा पाषाण काल- इसके अवशेष नागोर जिले लूणी बेसिन , जायल ( डिडवाना ) मे मिले है।
👉 मध्य पाषाण काल- यहा से बागोर ( भिलवाड़ा ) से पशुपालन के साक्ष्य मिले है।

1. कालिबंगा सभ्यता-
✍ यह सभ्यता हनुमानगढ़ मे स्थित है।
✍ यह सभ्यता प्राचीन सरस्वती नदि / नट नदि / मृत नदि / वर्तमान घग्घर नदि के किनारे मिलि है।
✍ यह सभ्यता आधे एतिहासित श्रेणी मे है।
✍ इस सभ्यता के उतखन्न मे सर्वाधिक काले रंग कि चुड़िया मिलने के कारण इस सभ्यता का नाम कालिबंगा रखा गया।
✍ इस सभ्यता कि खोज अमलानन्द घोष ( A. घोष ) के द्वारा सन् 1951-52 मे कि गई थी।
✍ इस सभ्यता का उत्खन्न कार्य ब्रजवासि लाल ( B.V. लाल ) तथा बाल कृष्णन थापर ( B.K. थापर ) के द्वारा किया गया था।
✍ इस सभ्यता का उत्खन्न कार्य सन् 1961-67 के मध्य किया गया था।
✍ कालिबंगा स्वतंत्र भारत का प्रथम स्थल है जिसकी खुदाई सबसे पहले कि गई थी।
✍ डाँ. दशरत शर्मा ने कालिबंगा को सिंधु घाटी सभ्यता कि तीसरी राजधानी कहा है। ( पहलि- मोहन जोदड़ो व दुसरी- हड़प्पा है। )

👉 कालिबंगा सभ्यता कि विशेषताएँ
✍ विश्व मे सर्वप्रथम जुते हुए खेत के प्रमाण व हल द्वारा व्यवस्थित खेती के प्रमाण कालिबंगा सभ्यता से हि मिले है।
✍ राजस्थान मे सर्वप्रथम खेती के प्रमाण आहड़ कि सभ्यता से मिले है।
✍ कालिबंगा सभ्यता से युग्ल समाधियो के अवशेष भी मिले है।
✍ कालिबंगा सभ्यता से यज्ञ/हवन/अग्नि वेदिकाओ के साक्ष्य मिले है।
✍ कालिबंगा सभ्यता से यव ( जौ ) के साक्ष्य भी मिले है।
✍ सर्वप्रथम भुकंप के साक्ष्य भी कालिबंगा सभ्यता से ही प्राप्त हुए है।

✍ कालिबंगा सभ्यता से ऊॅंट के साक्ष्य भी मिले है।
✍ कालिबंगा से सर्वप्रथम कुॅंऔ के साक्ष्य मिले है।
✍ कालिबंगा से खोपड़ी के शेल्य चिकित्सा के प्रमाण मिले है।
✍ कालिबंगा से तदुरी चुल्हो के साक्ष्य मिले है।
✍ कालिबंगा सभ्यता के लोग व्यापार जल व थल दोनो माध्यम से करते थे।
✍ कालिबंगा सभ्यता के लोग व्यापार मिश्र, मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान, ईरान और खुरान से करते थे।
✍ कालिबंगा सभ्यता कि मुद्राए व मोहरे शेलखड़ी/जिप्सम/चर्ट पत्थर से बनायी जाती थी।
✍ कालिबंगा सभ्यता कि लिपि सैन्धव लिपि थी।
✍ सैन्धव लिपि वर्तमान तक पढ़ी नही गई परन्तु वेडन महोदय ने इसे पढ़ने का दावा किया गया है।
✍ कालिबंगा से सर्वप्रथम ताम्बे कि वृषल ( बैल ) कि मुर्ति मिलि है।
✍ कालिबंगा सभ्यता मे अलंकृत इटो का प्रयोग किया जाता था जो कि सुर्योतपी इटे थी।
✍ कालिबंगा सभ्यता एक नगरीय सभ्यता थी।
✍ रेडियो कार्बन विधि के अनुसार कालिबंगा सभ्यता का काल 2350 ई.पू. से 1750 ई.पू. है।
✍ कालिबंगा कि सडके समकोण पर काटती थी।
✍ कालिबंगा सभ्यता के लोग घोड़े अोर लोहे से अप्रिचित थे।
✍ कालिबंगा मे पश्चिमी टिला दुर्ग टिला कहलाता था जबकि पूर्वि टिला नगर टिला कहलाता था।
✍ पश्चिमी टिले को सिटडल दुर्ग कहा जाता था।

2. आहड़ सभ्यता-
✍ आहड़ सभ्यता उदयपुर मे आयड़ नदि/ बेड़च नदि के किनारे स्थित थी।
✍ आयड़ नदि बनास कि सहायक नदि थी।
✍ आहड़ / बनास सस्कृति 4000 ई.पू. कि सभ्यता है।
✍ आहड़ सभ्यता से ताम्र युगिन सभ्यता के प्रमाण 1800 ई.पू. से 1200 ई.पू. के मध्य के है।
✍ आहड़ का प्राचिन नाम ताम्रवृति था।
✍ आहड़ सभ्यता से ताम्बे के उपकरम अत्यधिक मात्रा मे मिलने के कारण इसे ताम्रवृति सभ्यता कहा जाता था।
✍ आहड़ सभ्यता को अघाटपुर सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है।

✍ आहड़ सभ्यता को स्थानिय भाषा मे स्थानिय लोगो द्वारा धुलकोट कहा जाता है।
✍ आहड़ सभ्यता कि खोज  अक्षय कीर्ती व्यास के द्वारा कि गई है।
✍ आहड़ सभ्यता का उत्खनन का कार्य सन् 1956 मे R.C अग्रवाल ( रामचन्द्र अग्रवाल ) के द्वारा किया गया था इनके बाद मे सन् 1961-62 मे V.N मिश्रा तथा H.D साकलिया ने भी उत्खनन कार्य किया था।

👉 आहड़ सभ्यता के प्रमुख उधौग धन्धे-
✍ ताम्बा गलाना व उसके उपकरम बनाना।
✍ इस सभ्यता से ताम्बे गलाने कि भट्टिया मिली है।
✍ इस सभ्यता से काले व लाल रग के मृदभाण्ड मिले है। ( मृदभाण्ड- मिट्टी के बर्तन )
✍ इस सभ्यता से मातृदेवी व मरण मुर्तिया भी मिली है।
✍ इस सभ्यता से एक साथ 6 चुल्हो के प्रमाण मिले है जो सयुक्त परिवार प्रथा का प्रतिक माना जाता है।
✍ इस सभ्यता से राजस्थान मे सर्वप्रथम खेती के प्रमाण मिले है।
✍ इस सभ्यता से 6 ताम्बे कि मुद्राएँ भी मिली है।
✍ इस सभ्यता कि मुद्रा पर एक तरफ स्थानिय देवता व दुसरी तरफ युनानि देवता अपोलो कि मुर्ति अंकित है।
✍ यहा कि मुद्राओ पर युनानि भाषा के लेख उल्लेखित मिलते है।
✍ आहड़ सभ्यता से अनाज रखने के मृदभाण्ड मिले है जिन्हे स्थानिय भाषा मे गोरे व कोट कहा जाता था।
✍ आहड़ वासि शव को आभुषणो सहित जमीन मे गाडते थे जिनका सिर उतर कि ओर होता था।
✍ आहड़ सभ्यता से दीपक द्वारा पुजा के प्रमाण मिले है।
✍ आहड़ सभ्यता का ईरान कि सभ्यता से सम्बंध माना जाता है।

3. बैराठ कि सभयता-
✍ यह सभ्यता बाणगंगा नदि के पास जयपुर मे मिली थी।
✍ प्राचीन विराट नगर हि वर्तमान मे बैराठ कहलाता है और यह विराट नगर बाणगंगा नदि के किनारे स्थित था जिसकी प्राचीन राजधानी मत्स्य जनपद थी।
✍ यहा बिजक की पहाड़ी, भीम जी कि डुंगरी, महादेव जी कि डुंगरी, आदि स्थानो पर पहली बार उत्खनन का कार्य दयाराम सहानि द्वारा सन् 1936-37 मे किया गया।
✍ इस सभ्यता से महाभारत काल के अवशेष मिले है।

👉 भाब्रु अभिलेख-
✍ सन् 1837 मे केपटेन बर्ट द्वारा बिजक कि डुंगरी पर मौर्य सम्राट अशोक का एक अभिलेख ( भाब्रु अभिलेख ) खोजा गया और यह अभिलेख सम्राट अशोक कि बौध धर्म मे आस्था को प्रकट करता है।
✍ भाब्रु अभिलेख वर्तमान मे कोलक्ता संग्रालय मे स्थित है।

✍ सन् 1990 मे बिजक कि पहाड़ी से गोल बौध मंदिर के साक्ष्य मिले है।
✍ भारत मे सर्वप्रथम मंदिरो के साक्ष्य बैराठ कि सभ्यता से हि प्राप्त हुए।
✍ इस सभ्यता के मंदिरो मे पत्थर का उपयोग नही किया गया और यह मंदिर बौध धर्म से सम्बंधित है।
✍ बैराठ सभ्यता कि लिपि शंख लिपि थी।
✍ बैराठ कि सभ्यता से शैलचित्र के भी प्रमाण मिले है इसलिए इस सभ्यता को इतिहास मे चित्रशाला कहा जाता है।
✍ 640 ई. मे चीनी यात्री हवेंसाग ने बैराठ कि यात्रा कि तथा बौध धर्म के 8 मठो का उल्लेख किया।
✍ बैराठ कि सभ्यता मे बिजक कि पहाड़ी के अासपास पाण्डुओ ने अपना अज्ञातवास बिताया था।
✍ इस सभ्यता से एक स्वर्ण मन्जुसा ( संदुक ) प्राप्त हुई है जिसमे भगवान शिव कि अस्तियो के अवशेष प्राप्त हुए है।
✍ भीम जी कि डुगरी बैराठ कि सभ्यता मे एक पानी का गढ़ा मिला है जिसे भीमताल कहा जाता है।
✍ यहा से पाषाण हत्थियारो के निर्माण का एक कारखाना मिला है।
✍ बैराठ कि सभ्यता से युनानि शासक मिनेंडर कि 16 मुद्राए मिलि है।
✍ बैराठ कि सभ्यता से 36 चाँदी कि मद्राए मिलि है जिनमे 8 पंचमारक व 28 इण्डोग्रिक ( हिंद युनानि ) मुद्राए मिलि है।


4. गणेश्वर कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता सीकर जिले के निमकाथाना मे काटली नदि के किनारे स्थित है।
✍ इस सभ्यता कि खोज व उत्खनन सन् 1972 मे R.C अग्रवाल ( रतन चन्द्र अग्रवाल ) ने किया था।
✍ यह सभ्यता पुर्व हड़प्पा कालीन सभ्यता का भाग है।
✍ इस सभ्यता को ताम्रयुगिन सभ्यता / ताम्रकालिन सभ्यता कि जननी कहा जाता है।
✍ ताम्र उपकरण कि अधिकता के कारण इसे ताम्र संचयी संस्कृति कहा जाता है।
✍ इस सभ्यता के उत्खनन मे राजस्थान विश्व विधालय के पुरातत्व विभाग द्वारा सहयोग किया गया।
✍ यहा से तीर, सुई, कुल्हाड़ी अादि के साक्ष्य प्राप्त हुए है।
✍ इस सभ्यता मे पहलि बार विष से लेप युक्त तीर के अवशेष मिले है।
✍ इस सभ्यता मे ताम्र उपकरण मे 99% ताम्बा मिलता है।
✍ गणेश्वर के समीप स्थित खेतड़ी मे ताम्बे प्राप्त करने के उपकरम बनाये जाते थे और यहा के ताम्बे का निर्यात पाकिस्तान और अफगानिस्तान मे होता था।
✍ गणेश्वर सभ्यता को पुरातत्व का पुष्कर कहा जाता है।

5. जौधपुर कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता जयपुर मे स्थित है।
✍ इस सभ्यता से सर्वप्रथम लौहे के उपकरम बनाने कि भट्टि मिलि है।

6. सुनारी सभ्यता-
✍ यह लौहे युगिन सभ्यता थी।
✍ यह सभ्यता झुन्झुनू जिले खेतड़ी जगह से मिलि है।
✍ यहा से लौहे कि प्राचीन्तम भट्टिया प्राप्त हुई है।
✍ यहा से सर्वप्रथम लौहे का कटोरा भी प्राप्त हुअा है।

7. रंगमहल कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता हनुमानगढ़ जिले मे घग्घर/ प्राचीन सरस्वती/ नट/ मृत नदि के किनारे स्थित है।
✍ यह ताम्रयुगिन सभ्यता थी।
✍ उत्खनन के समय लाल रंग के पात्रो पर काले रंग कि डिजाइन होने के कारण इसे रंगमहल कि सभ्यता कहा गया।
✍ इस सभ्यता का उत्खनन डाँ. हन्नारिड के निर्देशन मे स्वीडश दल द्वारा किया गया था।
✍ यहा से उत्खनन के दौरान गुरु और शिष्य कि मुर्तिया भी मिली है।

8. नोह कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता भरतपुर जिले मे रुपारेल नदि के किनारे स्थित है।
✍ यहा से पहली बार पक्षी चित्रित ईंटे मिली है।
✍ इस सभ्यता से महाभारत काल के अवशेष मिले है।

9. गिलुण्ड सभ्यता-
✍ यह ताम्रयुगिन सभ्यता थी।
✍ यहा से घरो कि दिवारो पर हिरण के चित्र मिले है।

10. बागौर कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता भीलवाड़ा जिले मे कोठारी नदि के किनारे स्थित है।
✍ यह सभ्यता मध्य पाषाण काल कि सभ्यता है।
✍ यहा से पशुपालन के प्राचीन्तम साक्ष्य मिले है।
✍ यहा से राख के ठेर मिले है जिन्हे महासतीयो का टिला कहा जाता है।
✍ यहा से सिकार करने व चमड़े को सिलने के औजार भी मिले है।

11. नगरी सभ्यता-
✍ यह सभ्यता चितोड़गढ़ जिले मे स्थित है।
✍ नगरी सभ्यता का प्राचीन नाम मध्यमिका था।
✍ इस सभ्यता से शिवि जनपद के सिक्के प्राप्त हुए है।

12. रेढ़ कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता टोंक जिले के निवाई तहसिल मे स्थित है।
✍ यहा से लौहे गलाने कि भट्टिया तथा एशिया का सबसे बड़ा लौहे कि सामग्री का भण्डार मिला है।
✍ इसे प्राचीन भारत का टाटा नगर कहा जाता था।

13. सौंथी सभ्यता-
✍ यह सभ्यता बीकानेर मे स्थित है।
✍ इसे पुर्व कालिबंगा भी कहा जाता है।
✍ इस सभ्यता कि खोज A.घोष ( अमलानंद घोष ) के द्वारा कि गई है।
✍ इस सभ्यता को कालिबंगा कि जननी भी कहा जाता है।

14. गरदड़ा कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता बुंदी से मिली है।
✍ इस सभ्यता से बर्ड राइडर राॅक पेंटिग के अवशेष मिले है।

15. कुराड़ा कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता नागौर से मिली है।
✍ यहा से सर्वप्रथम लौहे कि सामग्री सर्वाधिक मात्रा मे प्राप्त हुई है।

16. गुरारा कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता सीकर से मिली है।
✍ यहा से चाँदी के बने 2744 पंचमार्क सिक्के मिले है।

17. बालाथल कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता उदयपुर से मिली है।
✍ यहा से कपड़े के प्रमाण मिले है।
✍ इस सभ्यता मे ताम्बे कि मुद्रा पर हाथी और चन्द्रमा अंकित है।

18. बांका कि सभ्यता-
✍ यह सभ्यता भीलवाड़ा से मिली है।
✍ यहा से चित्रित/अलंकृत गुफा के अवशेष मिले है।

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