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राजस्थानी साहित्य

👉राजस्थानी साहित्य-
➯राजस्थानी साहित्य को मुख्यतः 5 भागों में विभाजित किया जा सकता है। जैसे-
1. चारण साहित्य
2. जैन साहित्य
3. संत साहित्य
4. लोक साहित्य
5. ब्राह्मण साहित्य

1. चारण साहित्य-
➯चारण साहित्य चारण कवियों के द्वारा लिखे गये है।
➯चारण साहित्य राजस्थानी भाषा का सबसे महत्वपूर्ण साहित्य माना जाता है।
➯चारण साहित्य मुख्यतः वीर रसात्मक होता है।
➯चारण साहित्य में भक्ति रस, शांत रस भी होता है।
➯चारण साहित्य मुख्यतः पद्य में रचे गये है।
➯राव जैतसी रो छंद, अचलदास खींची री वचनिका, पृथ्वीराज रासौ, सूरज प्रकाश, वंश भास्कर आदि चारण साहित्य के उदाहरण है।

2. जैन साहित्य-
➯जैन साहित्य जैन मुनियों के द्वारा लिखे गये है।
➯राजस्थानी साहित्य का प्रथम ग्रंथ वज्रसेन सूरी द्वारा भरतेश्वर बाहुबली घोर 1168 ई. में लिखा गया था। जो की जैन शैली का साहित्य है।

3. संत साहित्य-
➯राजस्थान के संत कवियों के द्वारा लिखे गये ग्रंथ संत साहित्य है।
➯संत साहित्य दादूदयाल, सुंदरदास, रज्जब जी आदि द्वारा लिखे गये है।

4. लोक साहित्य-
➯लोक साहित्य में लोकगीत, लोकगाथा, प्रेमाख्यान, पहेली व कहावते प्रसिद्ध है।

5. ब्राह्मण साहित्य-
➯पण्डितों, विद्वानों, ब्राह्मण कवियों के द्वारा रचित साहित्य ब्राह्मण साहित्य कहलाते है।

👉राजस्थानी साहित्यों के रूप-
1. डिंगल
2. पिंगल

1. डिंगल-
➯डिंगल पश्चिमी राजस्थान (मारवाड़ी) का साहित्यिक रूप है।
➯डिंगल भाषा अधिकांश साहित्य चारण कवियों के द्वारा लिखे गये।
➯डिंगल वीर रसात्मक साहित्य है।
➯विकास गुर्जर अपभ्रंश से हुआ है।
➯डिंगल रूप में डिंगल भाषा के ग्रंथ लिखे गये है।

2. पिंगल-
➯पिंगल ब्रज भाषा एवं पूर्वी राजस्थान का साहित्यिक रूप है।
➯पिंगल भाषा के अधिकांश साहित्य भाट जाति के कवियों द्वारा लिखे गये है।
➯पिंगल श्रृंगार साहित्य है।
➯पिंगल का विकास शौरसेनी अपभ्रंश से हुआ है।
➯पिंगल रूप में पिंगल भाषा के ग्रंथ लिखे गये है।

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