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राजस्थान में 1857 ई. की क्रांति (Revolt of 1857 AD in Rajasthan)

राजस्थान में 1857 ई. की क्रांति (Revolt of 1857 A.D. in Rajasthan)-

  • 1857 ई. की क्रांति के दौरान जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स (George Patrick Lawrence) राजस्थान का A.G.G.था।
  • 1857 ई. की क्रांति के दौरान राजस्थान में अंग्रेजों की 6 सैनिक छावनियां (Cantonments) थी। जैसे-
  • 1. नसीराबाद छावनी (Naseerabad Cantonment)- अजमेर
  • 2. नीमच छावनी (Neemuch Cantonment)- मध्य प्रदेश
  • 3. देवली छावनी (Deoli Cantonment)- टोंक
  • 4. एरिनपुरा छावनी (Erinpura Cantonment)- पाली
  • 5. ब्यावर छावनी (Beawar Cantonment)- अजमेर
  • 6. खैरवाडा छावनी (Khriwara Cantonment)- उदयपुर
  • ब्यावर तथा खैरवाडा छावनी के सैनिकों ने 1857 ई. की क्रांति में भाग नहीं लिया था।


1. नसीराबाद छावनी (Naseerabad Cantonment)-

  • स्थित- अजमेर जिला, राजस्थान
  • 28 मई 1857 को 15वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री (15th Bengal Native Infantry) के सैनिकों ने 1857 ई. की क्रांति की शुरुआत की थी।
  • नसीराबाद छावनी में क्रांति के दौरान दो अंग्रेज अधिकारी मार दिए गये थे। जैसे-
    • (I) कर्नल न्यूबेरी (Colonel Newberry)
    • (II) कैप्टन स्पोसीवुड (Captain Spotiswood)
  • कर्नल पेनी (Colonel Penny) की हृदय घात से मृत्यु हो गई थी।
  • दो अंग्रेज अधिकारी घायल हो गये थे। जैसे-
    • (I) लेफ्टिनेंट लोक (Lieutenant Lock)
    • (II) कैप्टन हार्डी (Captain Hardy)
  • 30वीं नेटिव इन्फेंट्री (30th Native Infantry) के सैनिक भी 1857 ई. की क्रांति में शामिल हो गये तथा सभी विद्रोही दिल्ली की तरफ चले गये।


2. नीमच छावनी (Neemuch Cantonment)-

  • स्थित- मध्य प्रदेश
  • मोहम्मद अली बेग (Mohammad Ali Beg) नामक सैनिक ने कर्नल एबॉट (Colonel Abott) के सामने अंग्रेजों के प्रति वफादारी की प्रतिज्ञा करने से मना कर दिया था।
  • 3 जून 1857 ई. को नीमच छावनी में हीरासिंह के नेतृत्व में सैनिकों ने क्रांति कर दी।
  • शाहपुर रियासत (भीलवाड़ा) के राजा लक्ष्मण सिंह ने विद्रोहियों (सैनिकों) का समर्थन किया।
  • देवली छावनि के महीदपुर बटालियन (Battalion) के सैनिक क्रांति में शामिल हो गये तथा सभी विद्रोही दिल्ली की तरफ चले गये।
  • 40 अंग्रेज नीमच छावनी के भाग गए थे।
  • डूंगला (Doongala) नामक गाँव में रूघाराम (Rugharam) नामक किसान ने इन 40 अंग्रेजों को शरण दी।
  • डूंगला गाँव राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित है।
  • मेवाड़ का पॉलिटिकल एजेंट (Political Agent) शॉवर्स (Shawers) इन 40 अंग्रेजों को उदयपुर लेकर आया। जहाँ महाराणा स्वरूप सिंह (Swaroop Singh) ने इन 40 अंग्रेजों को जगमंदिर महल में रखा।


3. देवली छावनी (Deoli Cantonment)-

  • स्थित- टोंक जिला, राजस्थान

  • देवली छावनी के महिदपुर बटालियन (Mahidpur Battalion) के सैनिक 1857 ई. की क्रांति में शामिल हो गये तथा सभी विद्रोही दिल्ली की तरफ चले गये।


4. एरिनपुरा छावनी (Erinpura Cantonment)-

  • स्थित- पाली जिला, राजस्थान (पाली सिरोही सीमा पर)
  • 21 अगस्त 1857 ई. को पूर्बिया (Purbiya) सैनिकों ने आबू में क्रांति कर दी।
  • पूर्बिया सैनिकों ने अंग्रेज अधिकारी हॉल (Hall) के घर पर हमला कर दिया था।
  • पूर्बिया सैनिकों ने एरिनपुरा से अपने बाकी साथियों को लिया तथा दिल्ली की तरफ जाने का प्रयास किया।
  • खैरवा (Khairawa) नामक स्थान पर विद्रौहियों की मुलाकात आउवा के सामंत कुशाल सिंह चाम्पावत (Kushal Singh Champawat) से हुई तथा कुशाल सिंह ने इन्हें नेतृत्व प्रदान किया।
  • आउव मारवाड़ रियासत में प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
  • इस समय मारवाड़ रियासत का राजा तख्त सिंह था।
  • खैरवा नामक स्थान राजस्थान के पाली जिले में स्थित है।
  • आउवा नामक स्थान राजस्थान के पाली जिले में स्थित है।


बिठौडा का युद्ध (Battle of Bithaura)- 8 सितम्बर 1857 ई.

  • स्थान- बिठौड़ा, पाली जिला, राजस्थान
  • दिन- 8 सितम्बर 1857 ई.
  • मध्य- कैप्टन हीथकोट + कुशलराज सिंघवी (❌) Vs कुशाल सिंह चाम्पावत (✅)
  • बिठौडा के युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से कैप्टन हीथकोट (Capt. Hithcoat) ने भाग लिया था।
  • बिठौडा के युद्ध में जोधपुर की तरफ से कुशलराज सिंघवी (Kushalraj Singhavi) ने भाग लिया था।
  • बिठौड़ा के युद्ध में कुशाल सिंह चाम्पावत (Kushal Singh Champawat) की जीत हुई।
  • बिठौड़ा के युद्ध में कुशाल सिंह चाम्पावत एरिनपुरा छावनी के सैनिकों को लेकर लड़ता है।
  • बिठौड़ा के युद्ध में जोधपुर का सैनापति ओनाड सिंह पंवार (Onar Singh Panwar) लड़ता हुआ मारा गया था।


चेलावास का युद्ध (Battle of Chelavas)- 18 सितम्बर 1857 ई.

  • स्थान- चेलावास, पाली जिला, राजस्थान
  • दिन- 18 सितम्बर 1857 ई.
  • मध्य- जॉर्ज पैट्रिक लॉरेन्स (A.G.G) + मैकमेसन (पॉलिटिकल एजेंट)  (❌) Vs कुशाल सिंह चाम्पावत  (✅)
  • चेलावास के युद्ध में कुशाल सिंह चाम्पावत एरिनपुरा छावनी के सैनिकों को लेकर लड़ रहा था।
  • चेलावास के युद्ध को काले गोरो के बीच का युद्ध कहा जाता है। या काले गोरो का युद्ध भी कहते हैं।
  • चेलावास के युद्ध में भी कुशाल सिंह चाम्पावत की जीत हुई।
  • चेलावास युद्ध में मैकमेसन को मार दिया गया था।
  • राजस्थान के पाली जिले के चेलावास नामक स्थान पर मैकमेसन की समाधी स्थित है।
  • चेलावास के युद्ध के बाद एरिनपुरा छावनी के सैनिक दिल्ली चले गए थे।


आउवा का युद्ध (Battle of Auwa)- 20 जनवरी 1858 ई.

  • स्थान- आउवा, पाली जिला, राजस्थान
  • दिन- 20 जनवरी 1858 ई.
  • मध्य- कर्नल होम्स + हंसराज जोशी Vs कुशाल सिंह चाम्पावत
  • आउवा के युद्ध में एरिनपुरा छावनी के सैनिक कुशाल सिंह के साथ नहीं थे अर्थात् सैनिक दिल्ली चले गये थे।
  • सहायता प्राप्त करने के लिए कुशाल सिंह चाम्पावत मेवाड़ चले गये अतः पृथ्वी सिंह लाम्बिया (Prithvi Singh Lambiya) ने युद्ध का नेतृत्व किया।
  • पृथ्वी सिंह लाम्बिया कुशाल सिंह चाम्पावत का छोटा भाई था।
  • 24 जनवरी 1858 ई. को अंग्रेजों ने आउवा पर अधिकार कर लिया तथा सुगाली माता (Sugali Mata) की मूर्ति उठाकर ले गये।
  • पृथ्वी सिंह लाम्बिया (Lambiya) के सामंत थे।
  • लाम्बिया ठिकाना राजस्थान के पाली जिले में आउवा के पास स्थित है।
  • आउवा के युद्ध में अंग्रेजों की तरफ से कर्नल होम्स ने भाग लिया।
  • आउवा के युद्ध में जोधपुर की तरफ से हंसराज जोशी ने भाग लिया।
  • सुगाली माता की मूर्ति एक काले संगमरमर की मूर्ति है जिसमें सुगाली माता के 10 सिर व 54 हाथ है।
  • अंग्रेजों ने सुगाली माता की मूर्ति को अजमेर के राजपूताना म्यूजियम (Rajputana Museum) में रखा था। लेकिन कालांतर में सुगाली माता की मूर्ति को पाली के बांगड म्यूजियम में भेज दिया गया था।
  • राजपूताना म्यूजियम राजस्थान के अजमेर जिले में अंग्रेजों के द्वारा बनवाया गया था।
  • मेवाड़ में सलूम्बर के सामंत केसरी सिंह तथा कोठारिया के सामंत जोध सिंह (Jodh Singh) ने कुशाल सिंह चाम्पावत को शरण दी।
  • सलूम्बर ठिकाना राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
  • कोठारिया ठिकाना राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है।
  • कोठारिया ठिकाना मेंवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी का ठिकाना था।
  • 8 अगस्त 1860 ई. को नीमच में कुशाल सिंह ने आत्मसमर्पण कर दिया था।
  • कुशाल सिंह का जाँच के लिए अंग्रेजों ने टेलर समिति (Taylor Commission) का गठन किया।
  • कुशाल सिंह ने अपना अंतिम समय उदयपुर में बिताया था।
  • 1864 ई. में उदयपुर में ही कुशाल सिंह की मृत्यु हो गई थी।
  • मारवाड़ के अन्य सामंतों ने भी 1857 ई. की क्रांति में कुशाल सिंह चाम्पावत का साथ दिया था। जैसे-
    • (I) शिवनाथ सिंह (Shivnath Singh)- आसोप का सामंत
    • (II) बिशन सिंह (Bishan Singh)- गूलर का सामंत
    • (III) अजीत सिंह (Ajeet Singh)- आलणियावास का सामंत
  • आसोप राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित है।
  • गूलर व आलणियावास राजस्थान के नागौर जिले में स्थित है।
  • शिवनाथ सिंह आसोप के नेतृत्व में विद्रोहियों ने दिल्ली की तरफ जाने का प्रयास किया था। लेकिन नारनौल (हरियाणा) के पास वे अंग्रेज अधिकारी गेरार्ड (Gerarda) से हार गये थे।
  • बडलू नामक स्थान पर शिवनाथ सिंह ने 35 दिनों तक अंग्रेजों का सामना किया था। 
  • बडलू राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
  • बडलू का युद्ध अंग्रेजों तथा शिवनाथ सिंह के मध्य लड़ा गया था।
  • आउवा में 1857 ई. की क्रांति के दो केंद्र थे। जैसे-
    • (I) सुगाली माता मंदिर- आउवा, पाली जिला, राजस्थान
    • (II) कामेश्वर मंदिर- आउवा, पाली जिला, राजस्थान (शिव मंदिर)


तख्त सिंह (Takhta Singh)-

  • 1857 ई. की क्रांति के दौरान तख्त सिंह मारवाड़ का राजा था।


कानजी (Kanji)- 

  • कानजी बिठौड़ा (Bithaura) का सामंत था। लेकन कुशाल सिंह ने इसकी हत्या कर दी थी।


5. ब्यावर छावनी (Beawar Cantonment)-

  • स्थित- अजमेर जिला, राजस्थान

  • ब्यावर छावनी के सैनिकों ने 1857 ई. की क्रांति में भाग नहीं लिया था।


6. खैरवाडा छावनी (Khriwara Cantonment)-

  • स्थित- उदयपुर जिला, राजस्थान

  • खैरवाडा छावनी के सैनिकों ने 1857 ई. की क्रांति में भाग नहीं लिया था।


कोटा का जन विद्रोह या कोटा में 1857 ई. की क्रांति- 15 अक्टूबर 1857 ई.

  • स्थान- कोटा जिला, राजस्थान
  • दिन- 15 अक्टूबर 1857 ई.
  • कोटा जन विद्रोह के दौरान मुख्य विद्रोही (Rebels) निम्नलिखित थे।
    • (I) वकील जयदयाल (मथुरा)
    • (II) रिसालदार मेहराब खान (करौली)
  • कोटा जन विद्रोह के दौरान कोटा का पॉलिटिकल एजेंट बर्टन (Burton) था।
  • कोटा जन विद्रोह के दौरान कोटा का राजा महाराव रामसिंह-2 था।
  • विद्रोहियों ने महाराव रामसिंह-2 को नजरबंद कर दिया गया तथा पोलिटिकल एजेंट बर्टन व उसके कुछ साथियों को भी मार दिया गया था। जैसे-
    • (I) फ्रेंक (Frank)- बर्टन का बेटा
    • (II) आर्थर (Arthur)- बर्टन का बेटा
    • (III) सेडलर (Sedlor)- डॉ.
    • (IV) सेविल कॉटंम (Sevil Contom)- डॉ.
    • (V) देवीलाल (Devilal)- महाराव रामसिंह-2 का प्रतिनिधि
  • मथुरेश जी मंदिर के महंत कन्हैयालाल गोस्वामी ने राजा तथा विद्रोहियों के बीच एक समझौता करवाया।
  • इस समझौते में 9 शर्ते रखी गई थी।
  • इस समझौते के तहत बर्टन की हत्या की जिम्मेदारी महाराव रामसिंह-2 पर डाल दी गई।
  • करौली के राजा मदनपाल (Madanpal) ने महाराव रामसिंह-2 को मुक्त करवाया।
  • 30 मार्च 1858 ई. को रोबर्टस (Roberts) ने कोटा को विद्रोहियों से पुर्णतः मुक्त करवाया।
  • रोबर्टस अंग्रेज अधिकारी था।
  • वकील जयदयाल तथा रिसालदार मेहराब खान को फांसी लगा दी गई।
  • अंग्रेजों ने महाराव रामसिंह-2 को भी दंडित किया तथा दंड के तौर पर महाराव रामसिंह-2 की तोपो की सलामी घटा दी गई।
  • अंग्रेजों ने करौली के राजा मदनपाल को सम्मानित किया तथा मदनपाल की तोपो की सलामी बढ़ा दी गई।
  • कोटा जन विद्रोह के अन्य विद्रोही निम्नलिखित है।-
    • (I) रतनलाल (Rayanlal)
    • (II) जियालाल (Jiyalal)
    • (III) हरदयाल (Hardayal)
  • हरदयाल वकील जयदयाल का भाई था।
  • हरदयाल कोटा जन विद्रोह में लड़ता हुआ मारा गया था।


टोंक का जन विद्रोह या टोंक में 1857 ई. की क्रांति-

  • स्थान- टोंक जिला, राजस्थान
  • टोंक के नवाब वजीरुद्दौला (Nawab Waziruddaula) ने 1857 ई. की क्रांति में अंग्रेजों का साथ दिया था।
  • टोंक जिन विद्रोह के विद्रोही निम्नलिखित है।-
    • (I) मीर आलम खाँ (Meer Alam Khan)
    • (II) अहमदयार खाँ (Ahamadyar Khan)
    • (III) मोइनुद्दीन (Moinuddin)
  • मोइनुद्दीन ने बहादूर शाह जफर से मुलाकात की थी।
  • निम्बाहेड़ा में जनता ने नीमच के विद्रोहियों का स्वागत किया था।
  • निम्बाहेड़ा में ताराचन्द पटेल ने अंग्रेज अधिकारी कर्नल जैक्सन का सामना किया था।
  • कर्नल जैक्सन नीमच के विद्रोहियों का पीछा कर रहा था।
  • अंग्रेजों ने ताराचन्द पटेल को फांसी लगा दी।
  • टोंक के विद्रोह में महिलाओं ने भी भाग लिया था। इस बात की जानकारी मोहम्मद मुजीब के नाटक "आजमाईश" (Ajamaish) से मिलती है।
  • निम्बाहेड़ा पहले टोंक रियासत में शामिल था लेकिन वर्तमान में निम्बाहेड़ा चित्तौड़गढ़ जिले में शामिल है।


धौलपुर का जन विद्रोह या धौलपुर में 1857 ई. की क्रांति-

  • स्थान- धौलपुर जिला, राजस्थान
  • धौलपुर में देव गुर्जर (Deva Gurjar) ने 1857 ई. की क्रांति की शुरुआत की थी।
  • इंदौर तथा ग्वालियर के विद्रोही धौलपुर आ गए थे।
  • इंदौर तथा ग्वालियर मध्यप्रदेश में स्थित है।
  • धौलपुर जन विद्रोह में विद्रोहियों के नेता निम्नलिखत थे।-
    • (I) राव रामचन्द्र (Rao Ramchandra)
    • (II) हीरालाल (Heeralal)
  • धौलपुर के राजा भगवन्त सिंह ने विद्रोह को दबाने के लिए पटियाला से सैना बुलाई थी।
  • राव रामचन्द्र और हीरालाल इंदौर तथा ग्वालियर से आये थे।


भरतपुर का जन विद्रोह या भरतपुर में 1857 ई. की क्रांति-

  • स्थान- भरतपुर जिला, राजस्थान
  • भरतपुर में गुर्जर तथा मेव समुदाय ने विद्रोह किया था।
  • भरतपुर जन विद्रोह के दौरान महाराजा जसवन्त सिंह ने पॉलिटिकल एजेंट मोरिसन को भरतपुर छोड़ने की सलाह दी थी।
  • भरतपुर जन विद्रोह के समय भरतपुर का राजा जसवंत सिंह था।
  • भरतपुर जन विद्रोह के समय भरतपुर का पोलिटिक्ल एजेंट मोरिसन (Morison) था।


अलवर का जन विद्रोह या अलवर में 1857 ई. की क्रांति-

  • स्थान- अलवर जिला, राजस्थान

  • अलवर के महाराजा विनय सिंह तथा शिवदान सिंह ने अंग्रेजों की सहायता की थी।
  • अंग्रेजों की सहायता के लिए विनय सिंह ने आगरा सैना भेजी थी। लेकिन अछनेरा के पास आगरा सैना को विद्रोहियों से हारना पड़ा।
  • दीवान फैजुल्ला खाँ ने विद्रोहियों का साथ दिया था।
  • फैजुल्ला खाँ अलवर के राजा का दीवान था अर्थात् मंत्री थी।
  • अछनेरा नामक स्थान आगरा के पास स्थित है।
  • अलवर में जब 1857 ई. की क्रांति शुरुआत हुई थी तब अलवर रियासत का राजा विनय सिंह था। लेकिन क्रांति के बीच में ही विनय सिंह की मृत्यु हो गई थी तथा अलवर का अगला राजा शिवदान बना था।


जयपुर का जन विद्रोह या जयपुर में 1857 ई. की क्रांति-

  • स्थान- जयपुर जिला, राजस्थान
  • जयपुर जन विद्रोह के दौरान प्रमुख नेता या विद्रोही निम्नलिखित है।-
    • (I) सादुल्ला खाँ (Sadulla Khan)
    • (II) विलायत खाँ (Vilayat Khan)
    • (III) उस्मान खाँ (Usman Khan)
    • (IV) लियाकत खाँ (Liyakat Khan)
  • पॉलिटिकल एजेंट ईडन के कहने पर महाराजा रामसिंह-2 ने विद्रोहियों के गिरफ्तार कर लिया था। अतः अंग्रेजों ने महाराजा रामसिंह-2 को सितार-ए-हिन्द (Sitar-e-Hind) की उपाधि तथा कोटपूतली (Kotputali) परगना दिया।
  • रामसिंह-2 के मंत्री शिवसिंह सामोद ने महाराजा रामसिंह-2 को बहादूर शाह जफर से मुलाकात की सलाह दी थी।
  • जयपुर जन विद्रोह के समय जयपुर रियासत का राजा रामसिंह-2 था।
  • जयपुर जन विद्रोह के समय जयपुर रियासत का पोलिटिकल एजेंट ईडर था।
  • सामोद ठिकाना जयपुर रियासत का ठिकाना था।
  • शिवसिंह सामोद का सामंत था।


बीकानेर का जन विद्रोह या बीकानेर में 1857 ई. की क्रांति-

  • स्थान- बीकानेर जिला, राजस्थान

  • महाराजा सरदार सिंह राजस्थान का एकमात्र ऐसा राजा था जिसने अपनी रियासते के बाहर जाकर क्रांति को दबाया था।
  • महाराज सरदार सिंह ने हिसार के पास बाड़लू नामक स्थान पर 1857 ई. की क्रांति को दबाया था।
  • बाड़लू पहले पंजाब राज्य में शामिल था।
  • बाड़लू वर्तमान में हरियाणा राज्य में शामिल है।
  • महाराजा सरदार सिंह के द्वारा 1857 ई. की क्रांति को दबाने पर अंग्रेजों ने महाराजा सरदार सिंह को टिब्बी परगने के 41 गाँव दिए थे।
  • टिब्बी हनुमानगढ़ में स्थित है।
  • बीकानेर जन विद्रोह के समय बीकानेर का राजा महाराजा सरदार सिंह था।


अमरचन्द बांठिया (Amarchand Banthiya)-

  • अमरचन्द बांठिया मूल रूप से बीकानेर के थे।
  • अमरचन्द बांठिया ने 1857 ई. की क्रांति के दौरान ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में  झांसी की रानी की आर्थिक सहायता की थी।
  • अमरचन्द बांठिया को क्रांति का भामाशाह कहा जाता है।
  • अंग्रेजों ने अमरचन्द बांठिया को फांसी लगा दी थी।
  • 1857 ई. की क्रांति में राजस्थान के सबसे पहले शहीद अमरचन्द बांठिया है।


तात्या टोपे (Tatya Tope)-

  • 1857 ई. की क्रांति के दौरान तात्या टोपे दो बार राजस्थान आये थे।
  • तात्य टोपे सबसे पहले मांडलगढ़ आये थे।
  • मांडलगढ़ राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
  • मेवाड़ में सलूम्बर ठिकाने के सामंत कैशरी सिंह तथा कोठारियों ठिकाने के सामंत जोधसिंह ने तात्या टोपे को शरण दी थी।
  • टोक के नासिर मुहम्मद खाँ (Nasir Muhammad Khan) ने तात्या टोपे का साथ दिया था।
  • बीकानेर महाराजा सरदार सिंह ने तात्यों टोपे को 10 घुड़सवारों की सहायता दी थी।
  • जेसलमेर को छोड़कर तात्या टोपे ने राजस्थान की सभी रियासतों से सहायता लेने का प्रयास किया था।


कुआडा का युद्ध (भीलवाड़ा)- 8 अगस्त 1858 ई.

  • स्थान- कुआडा, भीलवाड़ा जिला, राजस्थान
  • दिन- 8 अगस्त 1858 ई.
  • कुआड़ा के युद्ध में रोबर्टस (Roberts) ने तात्या टोपे को हरा दिया था।


रकमगढ़ का युद्ध (राजसमंद)- 13 अगस्त 1858 ई.

  • स्थान- रकमगढ़ किला, राजसमंद जिला, राजस्थान
  • दिन- 13 अगस्त 1858 ई.
  • रकमगढ़ के युद्ध में भी अंग्रेजों ने तात्या टोपे को हराया था।
  • रकमगढ़ के युद्ध में कोठारिया ठिकाने सामंत के जोधसिंह ने अंग्रेजों को रोका था। अर्थात् जोधसिंह ने तात्या टोपे का साथ दिया।
  • झालावाड़ के राजा पृथ्वीसिंह ने पलायता नामक स्थान पर तात्या टोपे के खिलाफ सैना भेजी थी।
  • गोपाल पलटन को छोड़कर बाकी सैना ने तात्या टोपे के खिलाफ लड़ने से मना कर दिया। अर्थात् गोपाल पलटन को छोड़कर बाकी सैना तात्या टोपे के साथ हो गई थी।
  • तात्या टोपे ने झालावाड़ पर अधिकार कर लिया।
  • पृथ्वीसिंह को तात्या टोपे को 5 लाख रुपये देने पड़े थे।
  • तात्या टोपे ने बांसवाड़ा पर भी अधिकारी कर लिया था।
  • इस समय बांसवाड़ा का राजा लक्ष्मण सिंह था।
  • मेजर रॉक ने तात्या टोपे को प्रतापगढ़ में हराया।
  • इस समय दलपत सिंह प्रतापगढ़ का राजा था।
  • कर्नल होम्स ने तात्या टोपे को सीकर के पास हराया।
  • तात्या टोपे के 600 सैनिकों ने बीकानेर के महाराजा सरदार सिंह के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था।
  • नरवर के जंगलों में मानसिंह के विश्वासघात के कारण अंग्रेजों ने तात्या टोपे को गिरफ्तार कर लिया तथा फांसी लगा दी।
  • नरवर मध्य प्रदेश में स्थित है।
  • सोवरस ने तात्या टोपे की फांसी का विरोध किया था।
  • इस समय सोवरस मेवाड़ का पोलिटिकल एजेंट था।


1857 ई. की क्रांति के कारण (Causes of Revolt of 1857 AD)-

  • 1. 1857 ई. की क्रांति के राजनीतिक कारण
  • 2. 1857 ई. की क्रांति के प्रशासनिक कारण
  • 3. 1857 ई. की क्रांति के आर्थिक कारण
  • 4. 1857 ई. की क्रांति के सामाजिक कारण
  • 5. 1857 ई. की क्रांति के धार्मिक कारण
  • 6. 1857 ई. की क्रांति का सैनिक कारण या सैन्य कारण
  • 7. 1857 ई. की क्रांति का तात्कालिक कारण
  • 8. 1857 ई. की क्रांति का साहित्यिक कारण


1. 1857 ई. की क्रांति के राजनीतिक कारण-

  • पोलिटिकल एजेंट रियासत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता था।
  • अंग्रेज रियासत के उत्तराधिकार मामले में हस्तक्षेप करते थे। 
  • राज्यों की सुरक्षा के लिए अंग्रेजों ने नयी सैनाओं का गठन किया तथा इन सैनाओं का खर्च जनता पर डाल दिया गया।
  • अंग्रेजों ने पूरानी रियासतों को तोड़कर नई रियासतों का गठन किया जैसे-
    • (I) धोलपुर रियासत- (गठन- 1806 ई.)
    • (II) टोंक रियासत- (गठन- 1817 ई.)
    • (III) झालावाड़ रियासत- (गठन- 1838 ई.)


2. 1857 ई. की क्रांति के प्रशासनिक कारण-

  • अंग्रेजों द्वारा सामंतों के विशेषाधिकार समाप्त कर दिये गये।
  • अंग्रेजों द्वारा सामंतों की सैनाओं को भंग कर दिया गया था।
  • अंग्रेजों ने सामंतों द्वारा लिए जाने वाले कर समाप्त कर दिए गये।


3. 1857 ई. की क्रांति के आर्थिक कारण-

  • किसानों का भू-राजस्व बढ़ा दिया गया।
  • ब्रिटिश माल की अधिकता के कारण हमारे घरेलू उद्योग धंधे बंद हो गये थे।
  • अंग्रेजों ने नये व्यापारिक मार्गों का विकास किया अतः हमारा व्यापार वाणिज्य समाप्त हो गया। अतः हमारे व्यापरी ब्रिटिश इंडिया की तरफ चले गये।


4. 1857 ई. की क्रांति के सामाजिक कारण-

  • अंग्रेजों ने हमारे सामजिक रिति रिवाजों में हस्तक्षेप किया था।


5. 1857 ई. की क्रांति के धार्मिक कारण-

  • ईसाई मिशनरी हिन्दू व इस्लाम धर्म का मजाक उड़ाते थे।


6. 1857 ई. की क्रांति का सैनिक कारण या सैन्य कारण-

  • अंग्रेज भारतीयों से पद व वेतन को लेकर नस्लीय भेदभाव करते थे।

  • ब्राउन बेस राइफल (Brown Bess Rifle) के स्थान पर नई इनफील्ड राइफलों (Enfield Rifles) का प्रयोग करना प्रारम्भ किया जिसमें चरबी वाले कारतुसों का प्रयोग किया जाता था।


7. 1857 ई. की क्रांति का तात्कालिक कारण-

  • ब्राउन बेस राइफल (Brown Bess Rifle) के स्थान पर नई इनफील्ड राइफलों (Enfield Rifles) का प्रयोग करना प्राप्त किया जिसमें चरबी वाले कारतुसों का प्रयोग किया जाता था।


8. 1857 ई. की क्रांति का साहित्यिक कारण-

  • हमारे विद्वानों ने अंग्रेज विरोधी पुस्तकों की रचना की जिसे राजस्थान में राष्ट्रवादी भावनों का संचार हुआ। जैसे-

  • पुस्तक- वीर सतसई (लेखक- सूर्यमल्ल मीसण)


राजस्थान में 1857 ई. की क्रांति के असफलता के कारण-

  • संगठन, रणनीति तथा नेतृत्व का अभाव था।
  • अलग-अलग स्थानों पर क्रांति अलग-अलग समय में हुई थी अतः अंग्रेजों को क्रांति दबाने का पर्याप्त समय या पूरा समय मिल जाता था।
  • क्रांति के बड़े नेताओं बहादुर शाह जफर तथा नाना शाह ने राजस्थान के विद्रोहियों से कोई संपर्क स्थापित नहीं किया।
  • तात्या टोपे का आगमन राजस्थान में बहुत देरी से हुआ था तथा अंग्रेज अन्य स्थानों पर क्रांति दबा चुके थे अतः अंग्रेजों ने अपना पुरा ध्यान तात्या टोपे पर लगाया।
  • राजस्थान के राजाओं ने अंग्रेजों का साथ दिया था।
  • अंग्रेजों ने क्रांति को अत्यधिक क्रूरतापूर्ण तरीके से कुचला था अतः आम जनता क्रांति में शामिल होने की हिम्मत नहीं कर सकी।
  • विद्रोहियों ने अजमेर पर कब्जा करने का कोई प्रयास नहीं किया था।
  • अंग्रेजों के पास विद्रोहियों की तुलना में अत्याधुनिक हत्थियार थे।
  • अंग्रेजों के पास विद्रोहियों की तुलना में अच्छे सैनापति थे।


राजस्थान में 1857 ई. की क्रांति के प्रभाव या परिणाम या महत्व-

  • 1857 ई. की क्रांति के दौरान राजाओं ने अंग्रेजों का साथ दिया था इसलिए क्रांति के बाद राजाओं को सम्मानित किया गया था। जैसे-
    • (I) जयपुर के राजा को सितार ए हिन्द की उपाधि दी जाती है।
    • (II) करौली के राजा की तोपो की सलामी बढ़ा दी जाती है।
    • (III) बीकानेर के राजा को टिबी परगने के 41 गाँव दिये गये।
  • अब अंग्रेजों ने अयोग्य राजाओं को संरक्षण देना प्रारम्भ किया जिससे जनता का शोषण हुआ या होने लगा था।
  • राजा तथा जनता के आपसी सम्पर्क को तोड़ने के लिए राजा महाराजाओं के बच्चो के लिए अलग से स्कूल व कॉलेज स्थापित किए गये। यह योजना वॉल्टर (Walter) के द्वारा 1869 ई. में दी गई थी। इस योजना के तहत 1875 ई. में अजमेर में मेयो कॉलेज (Mayo College) स्थापित किया गया था।
  • अंग्रेजी संरक्षण के कारण राजाओं की विलासिता बढ़ गई थी। अतः उन्होंने किसानों पर भू राजस्व बढ़ा दिए थे अतः राजस्थान में किसान आंदोलन प्रारम्भ हो गये थे।
  • क्रांति के दौरान सामंतों ने विद्रोहियों का साथ दिया था अतः क्रांति के बाद सामंतों को प्रभावहीन या शक्तिहीन बना दिया गया था।
  • राजस्थान में यातायात व संचार के साधनों का विकास हुआ।
  • शिक्षा के विकास के कारण राजस्थान में मध्यम वर्ग (Evolved) का उदय हुआ जिसने आगामी राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व किया। जैसे-
    • (I) विजय सिंह पथिक
    • (II) जय नारायण व्यास
  • राजस्थान की जनता ने क्रांति में भाग लिया था अतः यह सिद्ध हो गया था की राजस्थान की जनता अंग्रेजी शासन की समर्थक नहीं थी।
  • क्रांति ने आगमी राष्ट्रीय आंदोलन के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य किया तथा कुशाल सिंह चाम्पावत राजस्थान की लोक कहानियों तथा लोक गीतों के लोक नायक बन गए थे।


राजस्थान में 1857 ई. की क्रांति का स्वरूप या क्रांति की प्रकृति-

  • 1. सैनिक विद्रोह
  • 2. सामंती विद्रोह
  • 3. धार्मिक विद्रोह
  • 4. स्वतंत्रता संग्राम


1. सैनिक विद्रोह-

  • अंग्रेज इतिहासकारों के अनुसार सेवा संबंधी शर्तों तथा चर्बी वाले कारतुशों के कारण सैनिकों ने अंग्रेजों के खिलाफ बगावत की थी।
  • लेकिन यह तथ्य सही नहीं है क्योंकि ब्यावर तथा खेरवाड़ा छावनियों में सैनिकों ने क्रांति में भाग नहीं लिया था तथा अधिकांश सैनिकों ने क्रांति दबाने में अंग्रेजों की सहायता की थी तथा क्रांति में असैनिक तत्व भी सम्मिलित थे अतः इसे सैनिक विद्रोह नहीं कहा जा सकता।


2. सामंती विद्रोह-

  • अंग्रेजी शासन के दौरान सामंतों को प्रभावहीन बनाने की कोशिश की गई थी अतः अपने अधिकार प्राप्त करने के लिए सामंतों ने अपने निजी स्वार्थों के लिए क्रांति में भाग लिया था।

  • लेकिन यह बात भी सही नहीं है क्योंकि मेवाड़ के सामंतों ने अंग्रेज विरोधी तत्वों को शरण दी थी तथा मारवाड़ के सामंत विद्रोहियों के साथ दिल्ली तक गये थे।


3. धार्मिक विद्रोह-

  • अंग्रेजी इतिहासकारों के अनुसार 1857 ई. की क्रांति ईसाई धर्म के खिलाफ हिन्दू मुस्लिम षड्यन्त्र था।

  • लेकिन यह मत भी सही नहीं है क्योंकि राजस्थान में ईसाई मिशनरियों का प्रभाव अधिक नहीं था।


4. स्वतंत्रता संग्राम-

  • 1857 ई. की क्रांति के दौरान सभी विद्रोही दिल्ली की तरफ गये थे तथा इन्होंने बहादुर शाह जफर को अपना नेता माना था तथा क्रांति में सभी वर्गों की भागीदारी थी अतः यह सिद्ध होता है की यह भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम था।
  • नाथूराम खडगावत के अनुसार विद्रोहियों में बहादुर शाह तथा नाना शाहब के प्रति सहानुभूति थी तथा अंग्रेजों के प्रति नफरत थी।
  • आई. टी. प्रिचार्ड (I.T. Prichard) के अनुसार क्रांति सैनिक विद्रोह से प्रारम्भ हुई थी लेकिन धीरे-धीरे यह स्वतंत्रता संग्राम में बद गई थी।
  • आई.टी. प्रिचार्ड नसीराबाद छावनी का अंग्रेज अधिकारी था।
  • निश्चित रूप से यह हमारा पहला प्रयास था जिसमें हमने अंग्रेजी शासन का उन्मूलन (जड़ से उखाड़ फेकना) करने का प्रयास किया था।


1857 ई. की क्रांति के नसीराबाद में प्रारम्भ होने के कारण-

  • 15वीं बंगाल नेटिव इंफेन्ट्री से सैनिक मेरठ से अजमेर आये थे अतः वे क्रांति के बारे में जानते थे।
  • इन सैनिकों को अजमेर से नसीराबाद भेज दिया गया था अतः इनमें अंग्रेजों के फिलाफ आक्रोश था।
  • इन सैनिकों को हथियार रखने के लिए कहा गया था।
  • बॉम्बे लांसर्स (Bombay Lancers) को इन सैनिकों के खिलाफ लगा दिया गया था। या तेनात कर दिया गया था।


नसीराबाद छावनी के विद्रोहियों ने अजमेर पर कब्जे का प्रयास क्यों नहीं किया-

  • 1857 ई. की क्रांति में विद्रोह का प्रमुख केंद्र दिल्ली था अतः विद्रोही दिल्ली जाकर बहादुर शाह जफर से अनुमति लेना चाहते थे।
  • विद्रोहियों के साथ महिलाएं, बच्चे, घायल सैनिक तथा लुट का धन था अतः वे अजमेर जाकर अपना समय बरबाद नहीं करना चाहते थे।
  • अजमेर को जीतना इतना सरल भी नहीं था क्योंकि वहां पहले से मेरवाड़ा बटालियन (Merwara Batlalion) तेनात की जा चूकि थी।
  • अजमेर की सुरक्षा के लिए डीसा (Deesa) से एक यूरोपियन बटालियन आ रही थी।
  • डीसा गुजरात में स्थित है।


अन्य महत्वपूर्ण तथ्य (Other Important Facts)-

  • Infantry- पैदल सेना
  • A.G.G. = Agent to Governor General (एजेंट टू गवर्नर जनरल)
  • P.A. = Political Agent (पोलिटिकल एजेंट)
  • "Roles of Rajasthan in Struggle of 1857" नामक पुस्तक नाथूराम खडगावत के द्वारा लिखी गई है।
  • "Mutinies in Rajputana" नामक पुस्तक आई.टी. प्रिचार्ड के द्वारा लिखी गई है।
  • बहादुर शाह जफर की पत्नि का नाम जीनत महल था।
  • 11 मई 1857 को बहादुर शाह जफर को 1857 ई. की क्रांति का नेता घोषीत कर दिया गया था।
  • नसीराबाद छावनी डेविड ऑक्टरलोनी के नाम पर बनायी गई डॉ. डेविड ऑक्टरलोनी की उपाधि नसीर थी अतः उन्हीं के नाम पर नसीराबाद रखा गया था।
  • एरिनपुरा छावनी का नाम अंग्रेज अधिकारी मेजर डाउनिंग गाँव इरन (इंग्लैंड) पर रखा गया था।

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