राजस्थान में मीणा तथा भील जनजाति के बाद राजस्थान की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति गरासिया जनजाति है। गरासिया जनजाति को चौहानों का वंशज माना जाता है।
जनसंख्या- जनगणना 2011 के अनुसार राजस्थान में गरासिया जनजाति की कुल जनसंख्या लगभग 3.14 लाख है जो की राजस्थान की कुल जनजातियों का 3.4 प्रतिशत है।
जनसंख्या की दृष्टि से सर्वाधिक गरासिया जनजाति वाले जिले निम्नलिखित है-
1. सिरोही- जनगणना 2011 के अनुसार राजस्थान का सर्वाधिक गरासिया जनजाति वाला जिल सिरोही है। सिरोही जिले में गरासिया जनजाति की कुल जनसंख्या लगभग 1.53 लाख है।
2. उदयपुर- राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से गरासिया जनजाति का दूसरा सबसे बड़ा जिला उदयपुर है। राजस्थान के उदयपुर जिले में गरासिया जनजाति की कुल जनसंख्या लगभग 1.04 लाख है।
3. पाली- राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से गरासिया जनजाति का तीसरा सबसे बड़ा जिला पाली है।
कर्नल जेम्स टाॅड- कर्नल जेम्स टोड के अनुसार गरासियों की उत्पत्ति 'गवास' शब्द से हुई है। 'गवास' शब्द का शाब्दिक अर्थ 'सर्वेन्ट' होता है।
भाषा- गरासिया जनजाति की भाषा गुजराती तथा मराठी भाषा से प्रभावित है। गरासिया जनजाति की भाषा को गुजराती, मेवाड़ी, मारवाड़ी तथा भीली भाषा का मिश्रण माना जाता है।
मूल निवास स्थान (मूल प्रदेश)- गरासिया जनजाति का मूल निवास स्थान या मूल प्रदेश राजस्थान के सिरोही जिले का आबूरोड़ का भाखर क्षेत्र माना जाता है।
सहलोत या पालवी- गरासिया जनजाति के लोग अपने मुखिया को सहलोत या पालवी कहते है।
मोर- गरासिया जनजाति में मोर पक्षी को पूजनीय या आदर्श पक्षी माना जाता है।
घेर- गरासिया जनजाति में घर को घेर कहा जाता है।
नक्की झील (माउण्ट आबू, सिरोही, राजस्थान)- गरासिया जनजाति के लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों को नक्की झील में विसर्जित करते है। नक्की झील राजस्थान के सिरोही जिले की माउण्ट आबू नामक स्थान पर स्थित है।
हुर्रे (हुरे)- गरासिया जनजाति में मृत व्यक्ति के स्मारक को हुर्रे कहते है। गरासिया जनजाति में मृत्यु के 12 दिन के बाद अन्तिम संस्कार किया जाता है।
मोतीलाल तेजावत- गरासिया जनजाति में एकता का प्रयास करने वाला व्यक्ति मोतीलाल तेजावत है।
फालिया- गरासिया जनजाति में गाँव की सबसे छोटी इकाई को फालिया कहा जाता है।
गरासिया जनजाति के प्रमुख मेले-
1. कोटेश्वर का मेला
2. चेतर विचितर मेला
3. गणगौर मेला
4. मनखां रो मेला- यह गरासिया जनजाति का सबसे बड़ा मेला है।
5. भाखर बावजी का मेला
6. नेवटी मेला
7. ऋषिकेश का मेला
8. देवला मेला
गरासिया जनजाति के प्रमुख वाद्य यंत्र-
1. बांसुरी
2. नगाड़ा
3. अलगोजा
गरासिया जनजाति के प्रमुख नृत्य-
1. लूर नृत्य
2. जवारा नृत्य
3. मांदल नृत्य
4. घूमर नृत्य
5. मोरिया नृत्य
6. गौर नृत्य
7. कूँद नृत्य
8. वालर नृत्य
सोहरी- गरासिया जनजाति के लोग अनाज का भंडारण कोठियों में करते है तथा इन्हीं कोठियों को सोहरी कहा जाता है।
प्रेम विवाह- गरासिया जनजाति में प्रेम विवाह प्रचलन में है। गरासिया जनजाति में पुत्र विवाह के बाद अपने माता पिता से अलग रहता है।
सेवा विवाह- गरासिया जनजाति में वर, वधू के घर पर घर जंवाई बनकर रहता है उसे सेवा विवाह कहते है।
खेवणा या माता विवाह- गरासिया जनजाति में यदि कोई विवाहित स्त्री अपने प्रेमी के साथ भाग कर विवाह करती है तो उस विवाह को खेवणा या माता विवाह कहा जाता है।
मेलबो विवाह- गरासिया जनजाति में विवाह का खर्च बचाने के लिए वधू को वर के घर पर छोड़ देते है जिसे मेलबो विवाह कहते है।
आटा-साटा या अट्टा-सट्टा विवाह- गरासिया जनजाति में लड़की के बदले में उसी घर की लड़की को बहू के रुप में लेते है जिसे आटा-साटा या अट्टा-सट्टा विवाह कहा जाता है इस विवाह को विनियम विवाह भी कहते है।
विधवा विवाह- गरासिया जनजाति में विधवा विवाह भी प्रचलन में है। गरासिया जनजाति में विधवा विवाह करने को आपणा करना या नातरा करना या चुनरी ओढाणा कहा जाता है।
भील गरासिया- गरासिया जनजाति में कोई गरासिया पुरुष किसी भील स्त्री से विवाह कर लेता है तो उसके परिवार को भील गरासिया कहा जाता है।
गमेती गरासिया- गरासिया जनजाति में भील पुरुष किसी गरासिया स्त्री से विवाह कर लेता है तो उसके परिवार को गमेती गरासिया कहा जाता है।
सामाजिक परिवेश की दृष्टि से गरासिया जनजाति को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है जैसे-
1. मोटी नियात- गरासिया जनजाति में मोटी नियात वर्ग सबसे उच्च वर्ग माना जाता है। मोटी नियात वर्ग के गरासिया लोगों को बाबोर हाइया कहा जाता है।
2. नेनकी नियात- गरासिया जनजाति में नेनकी नियात वर्ग मध्यम वर्ग होता है। नेनकी नियात वर्ग के गरासिया लोगों को माडेरिया कहा जाता है।
3. निचली नियात- गरासिया जनजाति में निचली नियात वर्ग सबसे निम्न वर्ग माना जाता है।
कोंधिया या मेक- गरासिया जनजाति में मृत्यु भोज को कोंधिया या मेक कहा जाता है।
अनाला भोर भू प्रथा- गरासिया जनजाति में नवजात शिशु की नाल काटने की प्रथा को ही अनाला भोर भू प्रथा कहा जाता है।
गरासिया जनजाति की वेशभूषा-
1. पुरुषों की वेशभूषा- गरासिया जनजाति के पुरुष धोती व कमीज पहनते है। कमीज को झूलकी या पुठियो भी कहा जाता है। तथा सिर पर साफा बांधते है साफा को फेंटा भी कहा जाता है।
2. स्त्रियों की वेशभूषा- गरासिया जनजाति में स्त्रिया कांच का जड़ा हुआ लाल रंग का घाघरा, ओढ़णी व झूलकी, कुर्ता व कांचली मुख्य पुरु पहनती है।
गरासिया जनजाति के आभूषणा-
1. पुरुषों के आभूषण- गरासिया जनजाति में पुरुष हाथ में कड़े (कड़ले) व भाटली पहनते है, गले में पत्रला या हँसली पहनते है तथा कान में झेले या मुरकी, लूंग व तंगल पहनते है।
2. स्त्रियों के आभूषण- गरासिया जनजाति में कुँवारी लड़किया हाथ में लाख की चूड़ियाँ पहनती है तथा विवाहित स्त्रिया हाथों में हाथीदाँत की चूड़ियाँ पहनती है। गरासिया स्त्री सिर पर चाँदी का बोर, कान में डोरणे (टोटी या लटकन), मसिया पहनती है गले में बारली व बालों में दामणी (झेले) पहनती है नाक में नथ (कोंटा) पहनती है तथा हाथों में धातु की गूजरी और पैर में कडुले पहनती है।
हारी-भावरी- गरासिय जनजाति में की जाने वाली सामूहिक कृषि को हारी-भावरी कहा जाता है।
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जनसंख्या- जनगणना 2011 के अनुसार राजस्थान में गरासिया जनजाति की कुल जनसंख्या लगभग 3.14 लाख है जो की राजस्थान की कुल जनजातियों का 3.4 प्रतिशत है।
जनसंख्या की दृष्टि से सर्वाधिक गरासिया जनजाति वाले जिले निम्नलिखित है-
1. सिरोही- जनगणना 2011 के अनुसार राजस्थान का सर्वाधिक गरासिया जनजाति वाला जिल सिरोही है। सिरोही जिले में गरासिया जनजाति की कुल जनसंख्या लगभग 1.53 लाख है।
2. उदयपुर- राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से गरासिया जनजाति का दूसरा सबसे बड़ा जिला उदयपुर है। राजस्थान के उदयपुर जिले में गरासिया जनजाति की कुल जनसंख्या लगभग 1.04 लाख है।
3. पाली- राजस्थान में जनसंख्या की दृष्टि से गरासिया जनजाति का तीसरा सबसे बड़ा जिला पाली है।
कर्नल जेम्स टाॅड- कर्नल जेम्स टोड के अनुसार गरासियों की उत्पत्ति 'गवास' शब्द से हुई है। 'गवास' शब्द का शाब्दिक अर्थ 'सर्वेन्ट' होता है।
भाषा- गरासिया जनजाति की भाषा गुजराती तथा मराठी भाषा से प्रभावित है। गरासिया जनजाति की भाषा को गुजराती, मेवाड़ी, मारवाड़ी तथा भीली भाषा का मिश्रण माना जाता है।
मूल निवास स्थान (मूल प्रदेश)- गरासिया जनजाति का मूल निवास स्थान या मूल प्रदेश राजस्थान के सिरोही जिले का आबूरोड़ का भाखर क्षेत्र माना जाता है।
सहलोत या पालवी- गरासिया जनजाति के लोग अपने मुखिया को सहलोत या पालवी कहते है।
मोर- गरासिया जनजाति में मोर पक्षी को पूजनीय या आदर्श पक्षी माना जाता है।
घेर- गरासिया जनजाति में घर को घेर कहा जाता है।
नक्की झील (माउण्ट आबू, सिरोही, राजस्थान)- गरासिया जनजाति के लोग अपने पूर्वजों की अस्थियों को नक्की झील में विसर्जित करते है। नक्की झील राजस्थान के सिरोही जिले की माउण्ट आबू नामक स्थान पर स्थित है।
हुर्रे (हुरे)- गरासिया जनजाति में मृत व्यक्ति के स्मारक को हुर्रे कहते है। गरासिया जनजाति में मृत्यु के 12 दिन के बाद अन्तिम संस्कार किया जाता है।
मोतीलाल तेजावत- गरासिया जनजाति में एकता का प्रयास करने वाला व्यक्ति मोतीलाल तेजावत है।
फालिया- गरासिया जनजाति में गाँव की सबसे छोटी इकाई को फालिया कहा जाता है।
गरासिया जनजाति के प्रमुख मेले-
1. कोटेश्वर का मेला
2. चेतर विचितर मेला
3. गणगौर मेला
4. मनखां रो मेला- यह गरासिया जनजाति का सबसे बड़ा मेला है।
5. भाखर बावजी का मेला
6. नेवटी मेला
7. ऋषिकेश का मेला
8. देवला मेला
गरासिया जनजाति के प्रमुख वाद्य यंत्र-
1. बांसुरी
2. नगाड़ा
3. अलगोजा
गरासिया जनजाति के प्रमुख नृत्य-
1. लूर नृत्य
2. जवारा नृत्य
3. मांदल नृत्य
4. घूमर नृत्य
5. मोरिया नृत्य
6. गौर नृत्य
7. कूँद नृत्य
8. वालर नृत्य
सोहरी- गरासिया जनजाति के लोग अनाज का भंडारण कोठियों में करते है तथा इन्हीं कोठियों को सोहरी कहा जाता है।
प्रेम विवाह- गरासिया जनजाति में प्रेम विवाह प्रचलन में है। गरासिया जनजाति में पुत्र विवाह के बाद अपने माता पिता से अलग रहता है।
सेवा विवाह- गरासिया जनजाति में वर, वधू के घर पर घर जंवाई बनकर रहता है उसे सेवा विवाह कहते है।
खेवणा या माता विवाह- गरासिया जनजाति में यदि कोई विवाहित स्त्री अपने प्रेमी के साथ भाग कर विवाह करती है तो उस विवाह को खेवणा या माता विवाह कहा जाता है।
मेलबो विवाह- गरासिया जनजाति में विवाह का खर्च बचाने के लिए वधू को वर के घर पर छोड़ देते है जिसे मेलबो विवाह कहते है।
आटा-साटा या अट्टा-सट्टा विवाह- गरासिया जनजाति में लड़की के बदले में उसी घर की लड़की को बहू के रुप में लेते है जिसे आटा-साटा या अट्टा-सट्टा विवाह कहा जाता है इस विवाह को विनियम विवाह भी कहते है।
विधवा विवाह- गरासिया जनजाति में विधवा विवाह भी प्रचलन में है। गरासिया जनजाति में विधवा विवाह करने को आपणा करना या नातरा करना या चुनरी ओढाणा कहा जाता है।
भील गरासिया- गरासिया जनजाति में कोई गरासिया पुरुष किसी भील स्त्री से विवाह कर लेता है तो उसके परिवार को भील गरासिया कहा जाता है।
गमेती गरासिया- गरासिया जनजाति में भील पुरुष किसी गरासिया स्त्री से विवाह कर लेता है तो उसके परिवार को गमेती गरासिया कहा जाता है।
सामाजिक परिवेश की दृष्टि से गरासिया जनजाति को तीन वर्गों में विभाजित किया गया है जैसे-
1. मोटी नियात- गरासिया जनजाति में मोटी नियात वर्ग सबसे उच्च वर्ग माना जाता है। मोटी नियात वर्ग के गरासिया लोगों को बाबोर हाइया कहा जाता है।
2. नेनकी नियात- गरासिया जनजाति में नेनकी नियात वर्ग मध्यम वर्ग होता है। नेनकी नियात वर्ग के गरासिया लोगों को माडेरिया कहा जाता है।
3. निचली नियात- गरासिया जनजाति में निचली नियात वर्ग सबसे निम्न वर्ग माना जाता है।
कोंधिया या मेक- गरासिया जनजाति में मृत्यु भोज को कोंधिया या मेक कहा जाता है।
अनाला भोर भू प्रथा- गरासिया जनजाति में नवजात शिशु की नाल काटने की प्रथा को ही अनाला भोर भू प्रथा कहा जाता है।
गरासिया जनजाति की वेशभूषा-
1. पुरुषों की वेशभूषा- गरासिया जनजाति के पुरुष धोती व कमीज पहनते है। कमीज को झूलकी या पुठियो भी कहा जाता है। तथा सिर पर साफा बांधते है साफा को फेंटा भी कहा जाता है।
2. स्त्रियों की वेशभूषा- गरासिया जनजाति में स्त्रिया कांच का जड़ा हुआ लाल रंग का घाघरा, ओढ़णी व झूलकी, कुर्ता व कांचली मुख्य पुरु पहनती है।
गरासिया जनजाति के आभूषणा-
1. पुरुषों के आभूषण- गरासिया जनजाति में पुरुष हाथ में कड़े (कड़ले) व भाटली पहनते है, गले में पत्रला या हँसली पहनते है तथा कान में झेले या मुरकी, लूंग व तंगल पहनते है।
2. स्त्रियों के आभूषण- गरासिया जनजाति में कुँवारी लड़किया हाथ में लाख की चूड़ियाँ पहनती है तथा विवाहित स्त्रिया हाथों में हाथीदाँत की चूड़ियाँ पहनती है। गरासिया स्त्री सिर पर चाँदी का बोर, कान में डोरणे (टोटी या लटकन), मसिया पहनती है गले में बारली व बालों में दामणी (झेले) पहनती है नाक में नथ (कोंटा) पहनती है तथा हाथों में धातु की गूजरी और पैर में कडुले पहनती है।
हारी-भावरी- गरासिय जनजाति में की जाने वाली सामूहिक कृषि को हारी-भावरी कहा जाता है।
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