राजस्थान में कंजर जनजाति का इतिहास-
- कंजर शब्द की उत्पत्ती संस्कृत शब्द काननचार या कानकचार से हुई है।
- काननचार या कानकचार शब्द का शाब्दिक अर्थ जंगल में विचरण करने वाला।
- कंजर जनजाति अपनी आपराधिक प्रवृत्ति के कारण कुख्यात है।
- संस्कृत गंर्थों में कंजर जनजाति को काननचार कहा गया है।
- कंजर जनजाति का प्रमुख व्यवसाय चोरी करना तथा भिक्षा मांगना है।
- कंजर जनजाति में घरों में पीछे की ओर खिड़की होती है जिसका प्रयोग भागने के लिए किया जाता है।
मोर का मांस-
- कंजर जनजाति में मोर का मांस सर्वप्रिय होता है।
खानाबदोश जनजाति-
- कंजर जनजाति को खानाबदोश जनजाति माना जाता है।
आराध्य देव-
- कंजर जनजाति के प्रमुख आराध्य देव चौथ माता, रक्तंदजी माता व हनुमान जी है।
चौथ माता का मंदिर (सवाई माधोपुर, राजस्थान)-
- चौथ माता का मंदिर राजस्थान राज्य के सवाई माधोपुर जिले के चौथ का बरवाड़ा नामक स्थान पर स्थित है।
रक्तंदजी माता का मंदिर (बूंदी, राजस्थान)-
- रक्तंदजी माता का मंदिर राजस्थान राज्य के बूंदी जिले के संतूर नामक स्थान पर स्थित है।
जोगणिया माता-
- कंजर जनजाति की कुलदेवी जोगणिया माता को माना जाता है।
पटेल-
- कंजर जनजाति में मुखिय को पटेल कहा जाता है।
जनसंख्या-
- जनगणना 2011 के अनुसार राजस्थान में कंजर जनजाति की कुल जनसंख्या 53818 है। यह जनसंख्या राजस्थान के भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, अलवर, अजमेर, बूंदी, टोंक, सवाई माधोपुर, बारा तथा बाँसवाड़ा जिले में पायी जाती है।
अनुसूचित जाति (SC)-
- राजस्थान में कंजर जनजाति अनुसूचित जाति (SC) में समिलित है।
पाती मांगना-
- कंजर जनजाति के लोग अपने काम पर जाने से पहले ईश्वर का आशीर्वाद लेते है जिसे कंजर जनजाति में पाती मांगना कहा जाता है।
हाकम राजा का प्याला-
- कंजर जनजाति के लोग हाकम राजा का प्याला पीने के बाद कभी झूठ नहीं बोलते है।
कंजर जनजाति के प्रमुख नृत्य-
- 1. चकरी नृत्य
- 2. धाकड़ नृत्य
1. चकरी नृत्य-
- वर्तमान में राजस्थान में चकरी नृत्य अत्यधिक लोकप्रिय माना जाता है।
- राजस्थान में हाड़ौती क्षेत्र की कंजर बालाएँ चकरी नृत्य करती है।
2. धाकड़ नृत्य-
- धाकड़ नृत्य कंजर जनजाति का नृत्य है।
कंजर जनजाति के प्रमुख वाद्य यंत्र-
- 1. ढोलक
- 2. मंजीरा
खूसनी-
- कंजर जनजाति की महिलाओं के द्वारा कमर में पहने जाने वाला वस्त्र खूसनी कहलाता है।