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चोल वंश

चोल वंश (Chola Dynasty)-

  • भारत में चोल वंश का संस्थापक विजयालय था।
  • चोल वंश की राजधानी तंजोर या तंजावुर थी।
  • तंजोर या तंजावुर वर्तमान में भारत के तमिलनाडु राज्य तंजावूर जिले में स्थित एक नगर का नाम है।


चोल वंश के प्रमुख शासक-

  1. विजयालय
  2. आदित्य प्रथम
  3. परांतक प्रथम
  4. परांतक द्वितीय
  5. उत्तम चोल
  6. अरिमोली वर्मन या अरिमोलिवर्मन
  7. राजेन्द्र प्रथम
  8. राजाधिराज
  9. राजेन्द्र द्वितीय
  10. अधिराजेन्द्र
  11. कुलोतुंग द्वितीय


1. विजयालय-

  • विजयालय ने चोल वंश की स्थापना की थी।


2. आदित्य प्रथम-

  • आदित्य प्रथम ने पल्लवों को पराजित किया तथा पल्लवों को पराजित कर चोलों की स्वतंत्र सत्ता स्थापित की थी।


3. परांतक प्रथम-

  • चोल वंश के शासक परांतक प्रथम का उत्तरमेरूर अभिलेख मिलता है।
  • परांतक प्रथम का उत्तरमेरूर अभिलेख भारत के तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम जिले में स्थित उत्तरमेरूर नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
  • परांतक प्रथम के उत्तरमेरूर अभिलेख से चोल वंश के शासक के समय की स्थानीय स्वशासन की जानकारी मिलती है।


उत्तरमेरूर अभिलेख-

  • उत्तर मेरूर अभिलेख भारत के तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम जिले के उत्तरमेरूर नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
  • उत्तर मेरूर अभिलेख चोल वंश के शासक परांतक प्रथम का है।
  • उत्तरमेरूर अभिलेख के अनुसार चोल वंश के शासन काल के दौरान भारत में ब्राह्मणों को भूमि का अनुदान दिया जाता था जिसके प्रशासनिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन गाँव स्वयम् करता था।
  • चोल वंश का शासन काल के दौरान भारत में गाँवों को 30 वार्डों में विभाजित किया जाता था।
  • चोल वंश के शासन काल में भारत में 30 वार्डों या सदस्यों की इस समिति को सभा या उर कहा जाता था।
  • चोल वंश के शासन काल में भारत में समिति का सदस्य बनने हेतु कुछ योग्यताएं जरूरी थी जैसे-
    • (I) सदस्य बनने के लिए कम से कम 1½ एक जमीन होना आवश्यक था।
    • (II) सदस्य बनने के लिए स्वयम् का मकान होना आवश्यक था।
    • (III) सदस्य बनने के लिए वेदों का ज्ञान होना आवश्यक था।
    • (IV) जो सदस्य बनना चाहता था वह स्वयम् तथा उसका परिवार व उसके मित्रों में से कोई भी आपराधिक प्रवृति का नहीं होना चाहिए।
    • (V) सदस्य बनने के लिए आयु सीमा 35 वर्ष से 70 वर्ष तक थी।
    • (VI) कोई भी व्यक्ति सदस्य केवल एक ही बार बन सकता था।
    • (VII) सदस्य बनाने के लिए लाॅटरी का चयन बच्चों से करवाते थे।

4. परांतक द्वितीय-

  • परांतक द्वितीय चोल वंश का शासक था।
  • परांतक द्वितीय सुंदर चोल के रूप में प्रसिद्ध था।


5. उत्तम चोल-

  • उत्तम चोल चोल वंश का शासक था।
  • उत्तम चोल ने अपने शासन काल के दौरान भारत में सोने के सिक्के चलाये थे।


6. अरिमोली वर्मन या अरिमोलिवर्मन-

  • अरिमोली वर्मन या अरिमोलिवर्मन चोल वंश का शासक था।
  • अरिमोली वर्मन चोल वंश के शासक उत्तम चोल के पुत्र था।
  • अरिमोली वर्मन ने राजराज की उपाधि धारण की थी।
  • अरिमोलीवर्मन राजराजा के नाम से प्रसिद्ध हुआ था।
  • अरिमोली वर्मन ने लौह एवं रक्त की नीति को अपनाया था।
  • अरिमोली वर्मन ने श्रीलंका पर आक्रमण कर श्रीलंका के शासक महेन्द्र-V को पराजित किया तथा श्रीलंका की राजधानी अनुराधापुर को तहस नहस कर दिया था।
  • अरिमोली वर्मन ने उत्तरी श्रीलंका पर अधिकार कर लिया तथा उत्तरी श्रीलंका का नाम बदलकर मुन्डि चोल मण्डलम (मंडिचोल मंडलम) कर दिया था।
  • अरिमोली वर्मन ने तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।


बृहदेश्वर मंदिर या वृहदेश्वर मंदिर (तंजौर, तमिलनाडु, भारत)-

  • बृहदेश्वर मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के तंजावूर या तंजौर जिले के तंजावूर या तंजौर नगर में स्थित है।
  • तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण 1010 ई. में हुआ था।
  • तंजौर के बृहदेश्व मंदिर का निर्माण चोल वंश के शासक अरिमोली वर्मन ने करवाया था।
  • 2010 में भारत सरकार ने तंजौर में एक कार्यक्रम आयोजित किया था जिसमें भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने तंजौर के बृहदेश्वर मंदिर पर 1000 रुपये का सिक्का जारी किया था।
  • तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
  • तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर ग्रेनाइट से निर्मित मंदिर है।
  • तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर दक्षिण भारत का सबसे ऊंचा मंदिर है।
  • तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर अपने भव्य विमान (मंदिर का उपरी हिस्सा या शिखर) के लिए प्रसिद्ध है।


7. राजेन्द्र प्रथम (1014 ई. - 1044 ई.)-

  • राजेन्द्र प्रथम चोल वंश का शासक था।
  • राजेन्द्र प्रथम चोल वंश का सबसे महान शासक था।
  • राजेन्द्र प्रथम चोल वंश के शासक अरिमोली वर्मन प्रथम का पुत्र था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने चालुक्य वंश, पांडय वंश तथा चेर वंश के शासकों को पराजित किया था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने अपने पिता अरिमोली वर्मन की लौह एवं रक्त की नीति को जारी रखा था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने श्रीलंका के शासक महेन्द्र-V को बंदी बनाकर सम्पूर्ण श्रीलंका पर अधिकार कर लिया था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने मालदीव और अंडमान निकोबार द्वीप समूह को जीत लिया था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने जावा द्वीप, सुमात्रा द्वीप, बाली द्वीप, सुदीमन आदि क्षेत्रों को जीत लिया था।
  • जावा द्वीप, सुमात्रा द्वीप, बाली द्वीप, सुदीमन आदि क्षेत्र इंडोनेशिया में स्थित है।
  • राजेन्द्र प्रथम ने थाईलैंड, कंबोडिया और बर्मा के शासकों को पराजित किया था।
  • राजेन्द्र प्रथम के समय में बंगाल की खाड़ी को चोलों की झील कहा जाता था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने गंगा नदी तक सभी राज्यों को जीत लिया था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने पाल वंश के शासक महिपाल को पराजित किया था।
  • गंगा घाटी अभियान की सफलता के बाद राजेन्द्र प्रथम ने गंगैकोण्ड या गंगैकोण्डचोल की उपाधि धारण की थी।
  • गंगा घाटी अभियान की सफलता के बाद राजेन्द्र प्रथम ने भारत में गंगैकोण्ड चोलपुरम् नामक शहर बसाया था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने गंगैकोण्ड चोलपुरम् शहर बसाकर गंगैकोण्ड चोलपुरम् को अपनी राजधानी बनाया था।
  • गंगैकोण्ड चोलपुरम् शहर वर्तमान में भारत के तमिनाडु राज्य के त्रिचुरापल्ली जिले में स्थित है।
  • गंंगैकोण्ड चोलपुरम् क्षेत्र में सिंचाई हेतु राजेन्द्र प्रथम ने चोलगंगम तालाब या गंगेचोलम तालाब का निर्माण करवाया था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने वृहत्तर भारत के सपने को पूरा किया तथा भारतीय संस्कृति को पूर्व दक्षिण एशिया में फैलाया था।
  • राजेन्द्र प्रथम एक विद्वान शासक था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने कुछ मंत्रों की रचना की थी।
  • राजेन्द्र प्रथम स्वयम् भगवान शिव का अनुयायी था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने गंगैकोंडचोलपुरम में गंगैकोंड चोलेश्वर मंदिर (गंगैकोंडचोलपुरम मंदिर) का निर्माण करवाया था।


8. राजाधिराज-

  • राजाधिराज चोल वंश का शासक था।
  • राजाधिराज चोल वंश के शासक राजेन्द्र प्रथम का पुत्र था।
  • राजाधिराज चोल वंश का एक महान शासक था।
  • राजाधिराज ने कई चोल अभियानों का नेतृत्व किया था।


कोप्पम का युद्ध-

  • कोप्पम का युद्ध चोल वंश के शासक राजाधिराज तथा चालुक्य वंश के शासक सोमेश्वर के मध्य लड़ा गया था।
  • कोप्पम के युद्ध में चालुक्य वंश का शासक सोमेश्वर पराजित हुआ था।
  • कोप्पम के युद्ध के दौरान युद्ध के मैदान में चोव वंश के शासक राजाधिराज की मृत्यु हो गयी थी।
  • चोल वंश के शासक राजाधिराज के लिए कहा जाता था की राजाधिराज वह शासक है जिसकी मृत्यु हाथी की पीठ पर हुई थी।
  • कोप्पम के युद्ध के दौरान युद्ध के मैदान में राजाधिराज की मृत्यु हो जाने के कारण युद्ध के मैदान में ही राजाधिराज के छोटे भाई राजेन्द्र द्वितीय का राजतिलक कर राजा बनाया गया था।


9. राजेन्द्र द्वितीय-

  • राजेन्द्र द्विरीय चोल वंश का शासक था।
  • राजेन्द्र द्वितीय चोल वंश का शासक राजाधिराज का छोटा भाई तथा राजेन्द्र प्रथम का पुत्र था।
  • चोल वंश के शासक राजाधिराज की मृत्यु के बाद राजेन्द्र द्वितीय के शासक बनाया गया था।
  • राजेन्द्र द्वितीय का राज्याभिषेक युद्ध के मैदान में हुआ था या किया गया था।


10. अधिराजेन्द्र-

  • अधिराजेन्द्र चोल वंश का शासक था।
  • अधिराजेन्द्र चोल वंश के शासक वीर राजेंद्र का पुत्र था।
  • चोल वंश के शासक अधिराजेन्द्र की हत्या जनता के द्वारा कर दी गई थी।


11. कुलोतुंग द्वितीय-

  • कुलोतुंग द्वितीय चोल वंश का शासक था।
  • कुलोतुंग द्वितीय ने भगवान विष्णु या गोविन्दराज की मूर्ति को समुद्र में फिकवा दिया था।
  • कुलोतुंग द्वितीय के द्वारा समुद्र में फिकवायी गई भगवान विष्णु या गोविन्दराज की मूर्ति को रामानुजाचार्य ने समुद्र से निकलवाकर तिरुपति बालाजी में पुनः स्थापित करवाया था।
  • तिरुपति बालाजी मंदिर भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के चित्तूर जिले में स्थित है।


चोलों का सांस्कृतिक योगदान-

  • चोल वंश के सांस्कृतिक योगदान को दो भागों में विभाजित किया गया है जैसे-
    • (I) पल्लव प्रभाव
    • (II) चोल प्रभाव


(I) पल्लव प्रभाव-

  • चोल वंश के शासक विजयालय ने नरता मलाई या नात्तमलाई में चोलेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • चोल वंश के शासक परांतक प्रथम ने श्रीनिवासनल्लूर में कोरंगनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।


कोरंगनाथ मंदिर (श्रीनिवासनल्लूर, तिरुचिरापल्ली, तमिलनाडु, भारत)-

  • कोरंगनाथ मंदिर का निर्माण चोल वंश के शासक परांतक प्रथम ने करवाया था।
  • परांतक प्रथम के द्वारा निर्मित श्रीनिवासनल्लूर के कोरंगनाथ मंदिर का विमान (शिखर) 4 मंजिला है।
  • श्रीनिवासनल्लूर का कोरंगनाथ मंदिर सरस्वती, दुर्गा एवं लक्ष्मी की सुंदर तक्षण मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है।
  • कोरंगनाथ मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य में तिरुचिरापल्ली जिले के श्रीनिवासनल्लूर शहर में स्थित है।


(II) चोल प्रभाव-

  • चोल वंश के शासक अरिमोली वर्मन ने तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • चोल वंश के शासक राजेन्द्र प्रथम ने गंगैकोण्ड चोलपुरम में गंगैकोण्ड चोलेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • राजेन्द्र प्रथम ने गंगैकोंडचोलपुरम में गंगेकोंड चोलेश्वर मंदिर (गांगेयकोंडाचोलीश्वरम मंदिर) या गंगैकोंडचोलपुरम मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • गंगैकोण्ड चोलपुरम् शहर वर्तमान में भारत के तमिनाडु राज्य के त्रिचुरापल्ली जिले में स्थित है।
  • गंंगैकोण्ड चोलपुरम् में राजेन्द्र प्रथम ने चोलगंगम तालाब या गंगेचोलम तालाब का निर्माण करवाया था।
  • चोल वंश के शासक काल में भारत में दारासुरम विशाल मूर्तियों का केन्द्र था।
  • दारासुरम नामक स्थान भारत के तमिलनाडु राज्य के तंजावुर या तंजौर जिले में कुंभकोणम के पास स्थित है।
  • नटराज की मूर्तियों का निर्माण चोल वंश के शासन काल की प्रमुख विशेषता है।
  • चोल वंश के शासन काल में भारत में निर्मित मंदिरों की दिवारों से रामायण, महाभारत तथा भगवान शिव से संबंधित धार्मिक चित्र मिलते है।


बृहदेश्वर मंदिर (तंजौर, तमिलनाडु, भारत)-

  • तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर का निर्माण चोल वंश के शासक अरिमोली वर्मन ने करवाया था।
  • तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर अपने विशाल विमान (शिखर) के लिए प्रसिद्ध है।
  • तंजौर का बृहदेश्वर मंदिर दक्षिण भारत का सबसे ऊंचा मंदिर है।


चोल वंश के शासक काल में निर्मित अन्य प्रसिद्ध मंदिर-

  • (I) एरावतेश्वर मंदिर (दारासुरम, तमिलनाडु, भारत)
  • (II) कम्पहरेश्वर मंदिर (त्रिभुवनम)


(I) एरावतेश्वर मंदिर (दारासुरम, तमिलनाडु, भारत)-

  • एरावतेश्वर मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के तंजावूर या तंजौर जिले में कुंभकोणम नगर के पास दारासुरम नामक स्थान पर स्थित है।


(II) कम्पहरेश्वर मंदिर (त्रिभुवनम, तमिलनाडु, भारत)-

  • कम्पहरेश्वर मंदिर का निर्माण चोल वंश के शासक कुलोतुंग तृतीय ने त्रिभुवनम में करवाया था।
  • कम्पहरेश्वर मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के तंजावूर या तंजौर जिले में कुंभकोणम नगर के पास त्रिभुनवम नामक स्थान पर स्थित है।


चोल वंश की विशेषताएं-

  • चोल वंश के शासन काल के दौरान भारत में स्थानीय स्वशासन था।
  • चोल वंश ने भारत में शैव धर्म को संरक्षण प्रदान किया था।
  • नटराज की मूर्तियों का निर्माण चोल वंश के शासन काल के दौरान बनना आरम्भ हुआ था।
  • चोल वंश के शासन काल में बंगाल की खाड़ी को चोलों की झील कहा जाता था अर्थात् चोलों के पास विशाल नौसेना थी।

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