पल्लव वंश (Pallava Dynasty)-
- पल्लव वंश प्राचीन दक्षिण भारत का एक राजवंश था।
- भारत में पल्लव वंश का संस्थापक सिंहवर्मा या सिंहवर्मन था।
- पल्लव का अर्थ पान (पत्ता) या झाड़ी होता है।
- पल्लवों का उत्पत्ति स्थल तोंडमण्डल था।
- पल्लव वंश की राजधानी कांची या कांचीपुरम थी।
- पल्लवों के प्रारम्भिक अभिलेख प्राकृत भाषा में मिलते है किन्तु बाद वाले अभिलेख संस्कृत भाषा में मिलते है।
- पल्लवों को भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण माना जाता है।
- पल्लवों ने अपने अभिलेखों में स्वयम् को क्षत्रिय बताया है।
पल्लव वंश के प्रमुख शासक-
- 1. सिंहवर्मा या सिंहवर्मन
- 2. विष्णुगोप
- 3. सिंहविष्णु
- 4. महेन्द्रवर्मन
- 5. नरसिंह वर्मन प्रथम
- 6. नरसिंह वर्मन द्वितीय
- 7. नंदी वर्मन द्वितीय
1. सिंहवर्मा या सिंहवर्मन-
- भारत में पल्लव वंश की स्थापना सिंहवर्मा या सिंहवर्मन ने की थी।
2. विष्णुगोप-
- हरिषेण की प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त ने विष्णुगोप को पराजित किया था।
3. सिंहविष्णु-
- भारतीय कवि भारवि सिंहविष्णु का दरबारी विद्वान था।
- भारवि ने किरातार्जुनीयम् नामक पुस्तक लिखी थी।
- भारवि की किरातार्जुनीयम् पुस्तक का विषय भगवान शिव (किरात) व अर्जुन की कहानी है।
4. महेन्द्रवर्मन-
- महेन्द्रवर्मन एक विद्वान शासक था।
- महेन्द्रवर्मन ने मतविलास की उपाधि धारण की थी।
- पल्लव स्थापत्य कला का पहला चरण महेन्द्रवर्मन के शासक काल में आरम्भ हुआ था।
महेन्द्रवर्मन की पुस्तकें-
- (I) मत्तविलास प्रहसन
- (II) भगवतज्जुदियम प्रहसन
(I) मत्तविलास प्रहसन-
- मत्तविलास प्रहसन पुस्तक की रचना पल्लव वंश के शासक महेन्द्रवर्मन ने की थी।
- मत्तविलास प्रहसन पुस्तक एक प्राचीन संस्कृत एकांकी नाटक है।
- मत्तविलास प्रहसन एक व्यंग्य पुस्तक है।
- मत्तविलास प्रहसन पुस्तक में बौद्ध भिक्षुओं व कापालिकों पर व्यंग्य किया गया है।
- मत्तविलास प्रहसन पुस्तक को भारत की पहली व्यंग्य या व्यंग्यात्मक पुस्तक माना गया है।
(II) भगवतज्जुदियम प्रहसन या भगवदज्जुदियम प्रहसन-
- भगवतज्जुदियम प्रहसन या भगवदज्जुदियम प्रहसन पुस्तक की रचना पल्लव वंश के शासक महेन्द्रवर्मन ने की थी।
- भगवतज्जुदियम प्रहसन या भगवदज्जुदियम प्रहसन पुस्तक एक व्यंग्य पुस्तक है।
5. नरसिंह वर्मन प्रथम-
- नरसिंह वर्मन प्रथम पल्लव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।
- नरसिंह वर्मन प्रथम की उपाधियां-
- (I) मामल्ल (महामल्ल)
- (II) वातापीकोंड
- नरसिंह वर्मन प्रथम ने चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय को पराजित किया तथा पुलकेशिन द्वितीय को पराजित करने के बाद नरसिंह वर्मन प्रथम ने वातापीकोंड की उपाधि धारण की था।
- नरसिंह वर्मन प्रथम ने मामल्लपुरम शहर बसाया था।
- मामल्लपुरम को वर्तमान में महाबलिपुरम कहा जाता है।
- मामल्लपुरम या महाबलिपुरम शहर वर्तमान में भारत के तमिलनाडु राज्य के चेंगलपट्टु जिले में स्थित है।
- पल्लव स्थापत्य कला का द्वितीय चरण नरसिंह वर्मन प्रथम के शासन काल में आरम्भ हुआ था।
6. नरसिंह वर्मन द्वितीय-
- नरसिंह वर्मन द्वितीय ने राजसिंह (राजसिंह प्रथम या राजसिंह द्वितीय) की उपाधि धारण की थी।
- पल्लव स्थापत्य कला का तीसरा चरण नरसिंह वर्मन द्वितीय के शासक काल में आरम्भ हुआ था।
7. नंदी वर्मन द्वितीय-
- पल्लव स्थापत्य कला का चौथा चरण नंदीवर्मन द्वितीय के शासन काल में आरम्भ हुआ था।
पल्लव वंश का सांस्कृतिक योगदान-
- द्रविड़ मंदिर स्थापत्य कला का आरम्भ पल्लवंश में हुआ था।
- पल्लव वंश के शासक काल में मंदिर स्थापत्य कला तीन भागों में विभाजित था जैसे-
- (I) मण्डप या मंडप
- (II) रथमंदिर
- (III) मंदिर
- पल्लव कला का विकास चार चरणों में हुआ था जैसे-
- 1. पहला चरण- महेन्द्रवर्मन शैली
- 2. दूसरा चरण- नरसिंहवर्मन प्रथम शैली या मामल्ल शैली
- 3. तीसरा चरण- नरसिंहवर्मन द्वितीय शैली या राजसिंह शैली
- 4. चौथा चरण- नंदीवर्मन द्वितीय शैली
1. महेन्द्रवर्मन शैली या मत्तविलास शैली-
- पल्लव वंश के शासक महेन्द्रवर्मन के शासन काल में भारत में गुफाओं का निर्माण हुआ जिन्हें मंडप कहा जाता था।
- महेन्द्रवर्मन के शासन काल में निर्मित मंडप में 2 या 3 कक्ष होते थे।
2. नरसिंहवर्मन प्रथम शैली या मामल्ल शैली-
- पल्लव वंश के शासक नरसिंहवर्मन प्रथम के शासन काल में भारत में मंडपों व रथमंदिरों का निर्माण आरम्भ हुआ था।
- नरसिंहवर्मन प्रथम के शासन काल में निर्मित प्रत्येक मंडप में 3 या 4 कक्ष होते थे।
- नरसिंहवर्मन प्रथम के शासन काल में महाबलीपुरम में रथमंदिरों का निर्माण होना आरम्भ हो गया था।
- महाबलीपुरम भारत के तमिलनाडु राज्य के चेंगलपट्टु जिले में स्थित एक शहर का नाम है।
- रथमंदिर एकाश्मक मंदिर है अर्थात् रथमंदिरों का निर्माण एक ही पत्थर या चट्टान से किया गया था।
- नरसिंवर्मन प्रथम के शासन काल में निर्मित रथमंदिरों को पांडव मंदिर या सप्त पैगोड़ा मंदिर कहा जाता है।
- नरसिंहवर्मन प्रथम के शासन काल में निर्मित रथमंदिरों की संख्या 8 है। जैसे-
- (I) युधिष्ठिर रथ मंदिर (सबसे भव्य रथ मंदिर)
- (II) भीम रथ मंदिर
- (III) अर्जुन रथ मंदिर- शिव को समर्पित
- (IV) नकुल सहदेव रथ मंदिर
- (V) द्रौपदी रथ मंदिर (सबसे साधारण और सबसे छोटा) एक मंजिला, दुर्गा को समर्पित
- (VI) गणेश रथ मंदिर
- (VII) पीदारी रथ मंदिर या पिदारी रथ मंदिर (पेडारी रथ मंदिर)
- (VIII) वलैय रथ मंदिर
- महाबलीपुरम का सबसे अंतिम का आठवां रथ मंदिर 2004 की सुनामी के दौरान मिला था।
3. नरसिंहवर्मन द्वितीय शैली या राजसिंह शैली-
- नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासन काल में स्वतंत्र मंदिरों का निर्माण आरम्भ हुआ था।
- नरसिंहवर्मन द्वितीय का शासन काल पल्लव मंदिर स्थापत्य कला का स्वर्णकाल था।
नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासन काल में निर्मित प्रमुख मंदिर-
- (I) महाबलीपुरम का तटीय मंदिर
- (II) कैलाशनाथ मंदिर
- (III) बैकुंठ पेरुमल मंदिर
(I) महाबलीपुरम का तटीय मंदिर-
- महाबलीपुरम का तटीय मंदिर का निर्माण पल्लव वंश के शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासन काल में हुआ था।
- महाबलीपुरम का तटीय मंदिर भारत के तमिलनाडु राज्य के चेंगलुट्टु जिले के महाबलीपुरम शहर में स्थित है।
- महाबलीपुरम का तटीय मंदिर राजसिंह शैली में निर्मित प्रथम मंदिर है।
(II) कैलाशनाथ मंदिर-
- कैलाशनाथ मंदिर का निर्माण पल्लव वंश के शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासन काल में हुआ था।
- कैलाशनाथ मंदिर तमिलनाडु के कांचीपुरम शहर में स्थित है।
- कांचीपुरम शहर भारत के तमिलनाडु राज्य के कांचीपुरम जिले में स्थित है।
- कांचीपुरम को कांची भी कहा जाता है।
(III) बैकुंठ पेरुमल मंदिर-
- बैंकुठ पेरुमल मंदिर का निर्माण पल्लव वंश के शासक नरसिंहवर्मन द्वितीय के शासन काल में हुआ था।
4. नंदीवर्मन द्वितीय शैली-
- पल्लव वंश के शासक नंदीवर्मन के शासन काल में पल्लव स्थापत्य काल का पतन हुआ था।
- नंदीवर्मन द्वितीय के शासन काल में छोटे छोटे मंदिरों का निर्माण होना आरम्भ हुआ था किन्तु अलंकरण पर विशेष ध्यान दिया गया था।
नंदीवर्मन द्वितीय शैली के शासन काल में निर्मित प्रमुख मंदिर-
- (I) मुक्तेश्वर मंदिर
(I) मुक्तेश्वर मंदिर-
- मुक्तेश्वर मंदिर ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित है।
- मुक्तेश्वर मंदिर का निर्माण पल्लव वंश के शासक नंदीवर्मन द्वितीय से शासन काल में हुआ था।
अर्जुन तपस्या या गंगावतरण शैली-
- अर्जुन तपस्या या गंगावतरण शैली महाबलीपुरम में स्थित है।
कृष्ण की बटरबाॅल (Krishna's Butter Ball)-
- कृष्ण की बटरबाॅल या कृष्ण की मखन गेंद महाबलीपुरम में स्थित है।
पल्लव वंश का साहित्य में योगदान-
- पल्लव वंश के शासकों ने शिक्षा के केन्द्रों का निर्माण करवाया जिन्हें घटिका कहा जाता था।
- पल्लव वंश के शासन काल में कांची या कांचीपुरम का शिक्षा के केन्द्र के रूप में विकास हुआ था अर्थात् पल्लव वंश के समय शिक्षा का प्रमुख केन्द्र कांची या कांचीपुरम था।
- पल्लव वंश के शासकों ने विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया था जैसे-
- 1. भारवि
- 2. दंडिन
1. भारवि-
- भारवि ने किरातार्जुनीयम् नामक पुस्तक की रचना की थी।
2. दंडिन या दंडी-
- दंडिन या दंडी ने तीन पुस्तकों की रचना की थी जैसे-
- (I) दशकुमारचरित
- (II) काव्यादर्श
- (III) अवन्तिसुन्दरी
(I) दशकुमारचरित-
- दशकुमारचरित नामक पुस्तक की रचना दंडी या दण्डी ने की थी।
(II) काव्यादर्श-
- काव्यादर्शन नामक पुस्तक की रचना दंडी या दण्डी ने की थी।
(III) अवन्तिसुन्दरी-
- अवन्तिसुन्दरी नामक पुस्तक की रचना दंडी या दण्डी ने की थी।
भक्ति आंदोलन-
- पल्लव वंश के शासन काल में आलवार संतो व नयनार संतों ने भक्ति आंदोलन आरम्भ किया था।