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राष्ट्रपति की शक्तियां (Powers of President)

राष्ट्रपति की शक्तियां (Powers of President)-

  • 1. राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियां (Executive Powers of President)
  • 2. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां (Legislative Powers of President)
  • 3. राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां (Financial Powers of President)
  • 4. राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers of President)
  • 5. राष्ट्रपति की कूटनीति शक्तियां (Diplomatic Powers of President)
  • 6. राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियां (Military Powers of President)

  • 7. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां (Emergency Powers of President)
  • 8. राष्ट्रपति की निषेधाकारी शक्तियां या राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां (Veto Powers of President)
  • 9. राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियां (Pardoning Power of President)

  • 10. राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति (Power of President to Promulgate Ordinances)


1. राष्ट्रपति की कार्यपालिका शक्तियां (Executive Powers of President)-

  • राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिका का प्रमुख होता है।
  • संघ की समस्त कार्यपालिका शक्तियां राष्ट्रपति में निहित होती है।
  • संघ की समस्त कार्यपालिका शक्तियों का प्रयोग राष्ट्रपति के नाम से किया जाता है।
  • राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
  • मंत्री राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त ही अपने पद पर रहते हैं।
  • कार्यपालिका के कार्यों के सुचारू संचालन के लिए राष्ट्रपति नियम विनियम बना सकता है।
  • राष्ट्रपति राज्यों में राज्यपाल को नियुक्त कहता है।
  • संघ शासति प्रदेशों के उपराज्यपाल एवं प्रशासकों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • राष्ट्रपति महान्यायवादी की नियुक्ति करता है।
  • महान्यायवादी राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यन्त ही अपने पद पर रहता है।
  • राष्ट्रपति नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General -CAG) की नियुक्ति करता है।

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 263 के अनुसार राष्ट्रपति अंतर्राज्यीय परिषद (Inter State Council) का गठन करता है।

  • राष्ट्रपति अनेक आयोगों के अध्यक्षों एवं सदस्यों की नियुक्ति करता है। जैसे-
  • (I) संवैधानिक आयोग (Constitutional Commission)
  • (II) वैधानिक आयोग या सांविधिक आयोग (Statutory Commission)


(I) संवैधानिक आयोग (Constitutional Commission)-

  • राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग (Election Commission) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति वित्त आयोग (Finance Commission) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (National Commission for Scheduled Caste) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission for Scheduled Tribes) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।


(II) वैधानिक आयोग या सांविधिक आयोग (Statutory Commission)-

  • राष्ट्रपति राष्ट्रीय महिला आयोग (National Women Commission) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति मानवाधिकार आयोग (Human Rights Commission) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति अल्पसंख्यक आयोग (Minority Commission) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति सूचना आयोग (Information) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति केन्द्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) के अध्यक्ष तथा सदस्यों की नियुक्ति करता है।


कार्यकारी आयोग-

  • (I) नीति आयोग (NITI Aayog)


(I) नीति आयोग (NITI Aayog)-

  • नीति आयोग का गठन मंत्रिमंडल की अनुशंसा से राष्ट्रपति के द्वारा किया जाता है।


2. राष्ट्रपति की विधायी शक्तियां (Legislative Powers of President)-

  • राष्ट्रपति स्वयं संसद का एक भाग होता है।
  • राष्ट्रपति संसद के सत्र को आहूत (Summon) करता है एवं सत्रावसान (Prorogue) करता है।
  • राष्ट्रपति लोकसभा को भंग कर सकता है। किन्तु कार्यकाल पूरा होने पर लोकसभा स्वतः ही भंग हो जाती है।
  • राष्ट्रपति राज्यसभा में कुल 12 सदस्यों को मनोनीत कर सकता है।
  • राष्ट्रपति संसद को संदेश भेज सकता है तथा संसद के दोनों सदनों (लोकसभा व राज्यसभा) में अभिभाषण भी दे सकता है।
  • राष्ट्रपति संसद में विशेष अभिभाषण देता है। जैसे- आम चुनाव के बाद पहले सत्र में तथा प्रतिवर्ष पहले सत्र में अभिभाषण देता है।
  • सांसदों की अयोग्यता का निर्णय राष्ट्रपति के द्वारा लिया जाता है। लेकिन सांसदों की अयोग्यता का निर्णय राष्ट्रपति के द्वारा राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग की सलाह पर लिया जाता है।
  • अनुच्छेद 103 के तहत विधानसभा के सदस्यों (MLA) की अयोग्यता का निर्णय राज्यपाल के द्वारा लिया जाता है। लेकिन विधानसभा के सदस्यों की अयोग्यता का निर्णय राज्यपाल के द्वारा राष्ट्रीय निर्वाचन आयोग की सलाह पर लिया जाता है।
  • जब कोई विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो राष्ट्रपति के पास 3 विकल्प होते हैं। जैसे-
  • (I) विधेयक पर अपनी सहमति देना।
  • (II) विधेयक अपनी सहमति को रोक देना या विधेयक को अस्वीकार कर देना।
  • (III) विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटा देना।
  • राज्यपाल राज्य विधान मंडल के विधेयक को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रख सकता है तथा राष्ट्रपति इस विधेयक को अनेक बार पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है। जबकि संसद के विधेयक को राष्ट्रपति केवल एक बार ही पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकता है।
  • राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों (राज्यसभा व लोकसभा) की संयुक्त बैठक बुला सकता है।
  • राष्ट्रपति के द्वारा संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है।
  • कुछ विधेयक राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही संसद में पेश किए जाते हैं। जैसे- धन विधेयक, नये राज्य के गठन से संबंधित विधेयक आदि।
  • संसद से पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की सहमति के पश्चात ही अधिनियम बनता है।
  • यदि राज्यसभा में सभापति एवं उपसभापति दोनों ही पद रिक्त है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अस्थाई सभापति नियुक्त कर सकता है।
  • यदि लोकसभा में अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों ही पद रिक्त है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अस्थाई अध्यक्ष नियुक्त कर सकता है।
  • राष्ट्रपति निम्नलिखित संघ शासित प्रदेशों में शांति, विकास और सुशासन के लिए नियम विनियम बना सकता है। जैसे-
  • (I) अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह
  • (II) दादरा नगर हवेली और दमन दीव
  • (III) लक्षद्वीप
  • राष्ट्रपति निम्नलिखित प्रतिवेदनों को संसद के समक्ष रखवाता है। जैसे-
  • (I) संघ लोक सेवा आयोग की रिपोर्ट
  • (II) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का प्रतिवेदन
  • (III) वित्त आयोग का प्रतिवेदन
  • राष्ट्रपती अध्यादेश जारी कर सकता है।


3. राष्ट्रपति की वित्तीय शक्तियां (Financial Powers of President)-

  • भारत में प्रतिवर्ष बजट राष्ट्रपति की ओर से पेश किया जाता है।
  • राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही धन विधेयक पेश किया जाता है।
  • अनुदान की मांगें राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से पेश की जाती है।
  • राष्ट्रपती वित्त आयोग का गठन करता है।
  • राष्ट्रपती वित्त आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति के अधीन 500 करोड़ की आकस्मिक निधि (Contingency Fund) होती है।


4. राष्ट्रपति की न्यायिक शक्तियां (Judicial Powers of President)-

  • राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
  • राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श ले सकता है।
  • राष्ट्रपति के पास क्षमा करने की शक्ति होती है।


5. राष्ट्रपति की कूटनीति शक्तियां (Diplomatic Powers of President)-

  • सभी प्रकार के अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ एवं समझौते राष्ट्रपति के नाम से ही किये जाते हैं। लेकिन संधि एवं समझौते का संसद से अनुमोदन आवश्यक है।
  • अन्य देशों में हमारे राजदूत तथा उच्चायुक्तों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
  • अन्य देशों से आने वाले राजदूतों तथा उच्चायुक्तों का स्वागत राष्ट्रपति करता है।


6. राष्ट्रपति की सैन्य शक्तियां (Military Powers of President)-

  • राष्ट्रपति तीनों सैनाओं का प्रमुख होता है।

  • राष्ट्रपति युद्ध करने की एवं युद्ध विराम की घोषणा कर सकता है किन्तु युद्ध करने एवं युद्ध विराम की घोषणा करने में संसद के अनुमोदन की आवश्यकता होती है।


7. राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां (Emergency Powers of President)-

  • राष्ट्रपति तीन प्रकार के आपात की उद्घोषणा कर सकता है। जैसे-
  • (I) राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352 के अनुसार)
  • (II) राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगाना (अनुच्छेद 356 के अनुसार)
  • (III) वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360 के अनुसार)


8. राष्ट्रपति की निषेधाकारी शक्तियां या राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां (Veto Powers of President)-

  • भारत के राष्ट्रपति के पास तीन प्रकार की वीटो शक्तियां है जैसे-
  • (I) अत्यांतिक वीटो (Absolute Veto)
  • (II) निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)
  • (III) पॉकेट वीटो (Pocket Veto)


(I) अत्यांतिक वीटो (Absolute Veto)-

  • यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक पर अपनी सहमति को रोक लेता है अर्थात् राष्ट्रपति किसी विधेयक को अस्वीकार कर देता है तो उसे अत्यांतिक वीटो कहते हैं।
  • अभी तक भारत में राष्ट्रपति के द्वारा अत्यांतिक वीटो का प्रयोग 2 बार किया गया है। जैसे-
  • पहली बार अत्यांतिक वीटो का प्रयोग सन् 1954 में भारत के राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के द्वारा PEPSU विनियोग विधेयक पर अपना निर्णय रोककर किया गया था।
  • दूसरी बार अत्यांतिक वीटो का प्रयोग सन् 1991 में भारत के राष्ट्रपति आर. वेंकटरमन (रामस्वामी वेंकटरमण) के द्वारा संसद सदस्य वेतन, भत्ता और पेंशन संशोधन विधेयक को रोककर किया गया था।
  • राष्ट्रपति के द्वारा सामान्यतः अत्यांतिक वीटो का प्रयोग निजी सदस्य विधेयक में किया जा सकता है।
  • निजी सदस्य विधेयक गैर मंत्री के द्वारा रखा जाता है। अर्थात् जो सदस्य वर्तमान में मंत्री के पद पर नहीं हो तो उस सदस्य के द्वारा रखा गया विधेयक निजी सदस्य विधेयक कहलाता है।


(II) निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)-

  • यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद के पास वापस भेजता है तो उसे निलंबनकारी वीटो कहते हैं।
  • राष्ट्रपति के द्वारा किसी भी विधेयक को केवल 1 ही बार पुनर्विचार के लिए वापस भेजा जा सकता है।
  • अभी तक भारत में राष्ट्रपति के द्वारा निलंबनकारी वीटो का प्रयोग केवल 1 बार ही किया गया है। जैसे-
  • पहली बार निलंबनकारी वीटो का प्रयोग सन् 2006 में भारत के राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम (A.P.J. Abdul Kalam) के द्वारा लाभ का पद (Office of Profit) विधेयक 2006 पर किया गया था।
  • भारत का राष्ट्रपति धन विधेयक पर निलंबनकारी वीटो का प्रयोग नहीं कर सकता है।


(III) पॉकेट वीटो (Pocket Veto)-

  • यदि राष्ट्रपति किसी विधेयक पर ना तो सहमति दे, ना ही असहमति दे और ना ही पुनर्विचार के लिए वापस भेजे अर्थात् विधेयक को अनिश्चित काल के लिए अपने पास रख ले तो इसे पॉकेट वीटो कहते हैं।
  • भारत के संविधान में राष्ट्रपति के द्वारा किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करने की समय सीमा का उल्लेख नहीं किया गया है।
  • अभी तक भारत में राष्ट्रपति के द्वारा पॉकेट वीटो का प्रयोग केवल 1 बार ही किया गया है। जैसे-
  • पहली बार पॉकेट वीटो का प्रयोग सन् 1986 में भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के द्वारा भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक पर किया गया था।


संयुक्त राज्य अमेरिका में वीटो (Veto in United States of America)-

  • (I) पॉकेट वीटो (Pocket Veto)

  • (II) क्वालिफाइड वीटो (Qualified Veto)


(I) पॉकेट वीटो (Pocket Veto)-

  • अमेरिका के संविधान में अमेरिका के राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर हस्ताक्षर करने के लिए 10 दिन का समय दिया जाता है।

  • यदि अमेरिका का राष्ट्रपति 10 दिन में विधेयक पर हस्ताक्षर नहीं करता है और इसी दौरान अमेरिका की संसद (कांग्रेस) का सत्र समाप्त हो जाता है तो वह बिल भी समाप्त हो जाता है। इसे पॉकेट वीटो कहते हैं।


(II) क्वालिफाइड वीटो (Qualified Veto)-

  • यदि अमेरिका का राष्ट्रपति किसी विधेयक को अस्वीकार कर देता है और अमेरिका की संसद (कांग्रेस) उसे विशेष बहुमत से पुनः पारित कर देती है तो वह विधेयक अधिनियम बन जाता है। और इसके बाद राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता नहीं होती है।

  • भारत के संविधान में क्वालिफाइड वीटो की शक्ति नहीं है।


9. राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियां (Pardoning Power of President)-

  • भारत का राष्ट्रपति निम्नलिखित विषयों पर क्षमादान की शक्तियों का प्रयोग कर सकता है।-

  • संघीय कानून के उल्लंघन पर यदि किसी व्यक्ति को दंडित किया गया हो।
  • सैन्य न्यायालय के द्वारा दिए गए दण्ड के संबंध में।
  • मृत्युदण्ड के सभी मामलों में।
  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियां निम्न है।-
  • (I) क्षमा (Pardon)
  • (II) लघुकर (Commutation)
  • (III) परिहार (Remission)
  • (IV) विराम (Respite)
  • (V) प्रविलम्ब (Reprieve)


(I) क्षमा (Pardon)-

  • क्षमा शक्ति के तहत राष्ट्रपति के द्वारा किसी व्यक्ति को पूर्णतः क्षमा कर दिया जाता है।
  • राष्ट्रपति की क्षमा शक्ति के बाद व्यक्ति अपराध पूर्व की स्थिति में आ जाता है।
  • राष्ट्रपति की क्षमा शक्ति के बाद व्यक्ति को सजा के कारण उत्पन्न सभी अयोग्यताएँ भी समाप्त हो जाती है।


(II) लघुकर (Commutation)-

  • लघुकर की शक्ति के तहत राष्ट्रपति के द्वारा किसी व्यक्ति की सजा की प्रकृति को बदला जा सकता है। जैसे-
  • यदि किसी व्यक्ति को मृत्युदण्ड की सजा दी गई है तो राष्ट्रपति अपनी लघुकर शक्ति के तहत उस मृत्युदण्ड की सजा को आजीवन कारावास की सजा में परिवर्तित कर सकता है।
  • यदि किसी व्यक्ति को कठोर कारावास की सजा दी गई है तो राष्ट्रपति अपनी लघुकर शक्ति के तहत उस कठोर कारावास की सजा को साधारण कारावास की सजा में परिवर्तित कर सकता है।


(III) परिहार (Remission)-

  • परिहार की शक्ति के तहत राष्ट्रपति के द्वारा किसी व्यक्ति की सजा की अवधि को कम किया जा सकता है। जैसे-

  • यदि किसी व्यक्ति को 10 वर्ष की सजा दी गई है तो राष्ट्रपति अपनी परिहार शक्ति के तहत 10 वर्ष की सजा को 5 वर्ष की सजा में परिवर्तित कर सकता है।


(IV) विराम (Respite)-

  • विराम की शक्ति के तहत राष्ट्रपति के द्वारा किसी व्यक्ति की सजा की प्रकृति को भी बदला जा सकता है तथा किसी व्यक्ति की सजा की अवधि को भी कम किया जा सकता है। अर्थात् विराम की शक्ति के तहत राष्ट्रपति सजा की प्रकृति तथा सजा की अवधि दोनों को बदल सकता है। जैसे-
  • यदि किसी व्यक्ति को 4 वर्ष के कठोर कारावास की सजा दी गई है तो राष्ट्रपति अपनी विराम शक्ति के तहत 4 वर्ष के कठोर कारावास की सजा को 2 वर्ष के साधारण कारावास की सजा में परिवर्तित कर सकता है।

  • राष्ट्रपति अपनी विराम शक्ति का प्रयोग दिव्यांग व्यक्ति, गर्भवती महिला आदि के मामलों में करता है।


(V) प्रविलम्ब (Reprieve)-

  • प्रविलम्ब की शक्ति के तहत राष्ट्रपति के द्वारा किसी व्यक्ति की सजा पर अस्थायी रोक लगाई जा सकती है।

  • राष्ट्रपति के द्वारा प्रविलम्ब की शक्ति का प्रयोग सामान्यतः मृत्युदण्ड की सजा में किया जाता है।


राष्ट्रपति तथा राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों में अंतर-

  • (I) राष्ट्रपति का क्षमादान शक्तियां

  • (II) राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां


(I) राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियां-

  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियों का उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 72 में किया गया है।
  • संघीय कानून के उल्लंघन पर यदि किसी व्यक्ति को दंडित किया गया हो तो राष्ट्रपति अपनी क्षमादान शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
  • राष्ट्रपति अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग सैन्य न्यायालय के द्वारा दिए गये दण्ड पर भी कर सकता है।
  • किसी व्यक्ति के मृत्युदण्ड के समय भी राष्ट्रपति अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग कर सकता है।


(II) राज्यपाल की क्षमादान शक्तियां-

  • राज्यपाल की क्षमादान शक्तियों का उल्लेख भारत के संविधान के अनुच्छेद 161 में किया गया है।
  • राज्य कानून के उल्लंघन पर यदि किसी व्यक्ति को दण्डित किया गया हो तो राज्यपाल अपनी क्षमादान शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
  • राज्यपाल अपनी क्षमादान शक्ति का प्रयोग सैन्य न्यायालय के द्वारा दिए गये दण्ड पर नहीं कर सकता है।


राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय (Supreme Court Decisions Regarding Pardoning Powers of The President)-

  • दया की याचिका करने वाले व्यक्ति को राष्ट्रपति से मौखिक सुनवाई का अधिकार नहीं है क्योंकि राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति की प्रकृति प्रशासनिक है न्यायिक नहीं है।
  • यदि किसी सजा पा रहे व्यक्ति की दया याचिका को राष्ट्रपति ने खारिज कर दिया है तो उस व्यक्ति की सजा के क्रियान्वयन को रोकने के लिए पुनः आवेदन नहीं किया जा सकता है। अर्थात् एक बार दया याचिका खारिज हो जाती है तो दया याचिका को पुनः नहीं भेजा जा सकता है।
  • राष्ट्रपति प्रमाण (साक्ष्य) का पुनः अध्ययन कर सकता है और राष्ट्रपति का विचार न्यायालय से भिन्न हो सकता है।
  • राष्ट्रपति अपनी क्षमादान की शक्ति का प्रयोग केन्द्रीय मंत्रिमंडल के परामर्श से करेगा।
  • राष्ट्रपति अपने आदेश का कारण बताने के लिए बाध्य नहीं है क्योंकि यह राष्ट्रपति की विवेकाधीन दया है। अर्थात् राष्ट्रपति के किसी व्यक्ति की सजा को किस कारण से क्षमा किया है इसका कारण बताने के लिए राष्ट्रपति बाध्य नहीं है।
  • राष्ट्रपति को अपनी शक्ति का प्रयोग करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा कोई भी दिशा निर्देश निर्धारित करने की आवश्यकता नहीं है।
  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति पर कोई भी न्यायिक समीक्षा नहीं की जा सकती है यह विवकाधीन दया है लेकिन उसका विशेषाधिकार नहीं है इसलिए राष्ट्रपति के द्वारा अपनी क्षमादान शक्तियों का प्रयोग कर्तव्य निर्वहन के लिए व जनहित के लिए किया जाना चाहिए।
  • यदि राष्ट्रपति का क्षमादान का निर्णय स्वेच्छाचारी, विवेक रहित, दुर्भावना या भेदभाव पूर्ण है तो इस निर्णय की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है।
  • राष्ट्रपति का का क्षमादान का निर्णय स्वेच्छाचारी, विवेक रहित, दुर्भावना या भेदभाव पूर्ण है इसका फैसला सर्वोच्च न्यायालय करेगा।


राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियां (पक्ष व विपक्ष)-

  • (I) राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियों के पक्ष में तर्क

  • (II) राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियों के विपक्ष में तर्क


(I) राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियों के पक्ष में तर्क-

  • भारत के संविधान में राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का प्रावधान है। अतः राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति संवैधानिक है।
  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति संविधान निर्माताओं की भावनाओं के अनुरूप है।
  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायपालिका की भूल को सुधारने का एक अतिरिक्त अवसर है। क्योंकि यह मान्यता है की 99 अपराधी बच जाए पर 1 निर्दोष व्यक्ति को सजा नहीं होनी चाहिए।
  • न्यायपालिका सबूतो व गवाहों के आधार पर अपना निर्णय देती है। लेकिन कई बार मानवीय भावनाओं व संवेदनाओं को भी महत्व देना होता है। अतः राष्ट्रपति मानवीय भावनाओं के आधार पर निर्णय दे सकता है। जैसे- गर्भवती महिला की सजा को कम करके या क्षमा करके।
  • न्यायिक प्रक्रिया के अधिक चरण हो तो न्यायिक प्रक्रिया को अच्छा माना जाता है या ऐसी न्यायिक प्रक्रिया को आदर्श माना जाता है।
  • आपातकालीन स्थितियों में राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति काम आ सकती है।
  • कार्यपालिका को प्रायः विशिष्ट शक्तियां दी जाती है।
  • नीतिशास्त्र व परम्परागत मान्यताओं में भी दया को महान गुण माना गया है।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने भी क्षमादान की शक्ति को वैध माना है।


(II) राष्ट्रपति की क्षमादान शक्तियों के विपक्ष में तर्क-

  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति औपनिवेशिक कालीन व्यवस्था है।
  • औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों को सजा से बचाने के लिए ब्रिटिश को क्षमादान शक्ति की आवश्यकता थी।
  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत के विरुद्ध है क्योंकि कार्यपालिका को न्यायिक शक्ति प्रदान की गई है।
  • राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायपालिका की प्रतिष्ठा के विरुद्ध है क्योंकि राष्ट्रपति का निर्णय न्यायपालिका के निर्णय से अलग हो सकता है तथा राष्ट्रपति इसका कारण बताने के लिए भी बाध्य नहीं है। राष्ट्रपति बिना किसी जाँच के ही अपना निर्णय देता है।
  • राष्ट्रपति के पास अधिकांश दया याचिकाएं लम्बे समय तक लम्बित पड़ी रहती है जिससे न्याय मांगने वाले व अपराधी दोनों के अधिकारों का हनन होता है।
  • राजनीतिक उद्देश्यों के लिए राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दुरुपयोग भी किया जाता है। राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का उपयोग करते हैं।


10. राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति (Power of President to Promulgate Ordinances)-

  • यदि संसद के दोनों सदन (लोकसभा व राज्यसभा) सत्र में नहीं है तथा सरकार को तत्काल ही किसी कानून की आवश्यकता है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।
  • यदि संसद के दोनों सदनों में से कोई एक सदन सत्र में नहीं है तो ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है।
  • राष्ट्रपति के द्वारा जारी अध्यादेश की अधिकतम अवधि 6 महीने और 6 सप्ताह हो सकती है।
  • यदि संसद के दोनों सदन सत्र में हो तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी नहीं कर सकता है।
  • अध्यादेश एक अस्थाई कानून होता है।
  • अध्यादेश संसद के संसदीय अधिनियम की भाँति ही प्रभावी होता है। अर्थात् अध्यादेश सामान्य अधिनियम या कानून की तरह ही होता है।
  • अध्यादेश से संसदीय अधिनियम में संशोधन किया जा सकता है। लेकिन अध्यादेश से संविधान में संसोधन नहीं किया जा सकता है।
  • संसदीय अधिनियम की भाँति अध्यादेश को भूतकाल से लागू किया जा सकता है।
  • अध्यादेश का आयुकाल सीमित होता है। अर्थात् संसद के दोनों सदनों के सत्र आरम्भ होने के बाद 6 सप्ताह तक अध्यादेश अस्तित्व में रहता है।
  • अध्यादेश को राष्ट्रपति कभी भी वापस ले सकता है।
  • संसद अध्यादेश को समाप्त कर सकती है।
  • सरकार जब अध्यादेश को अनुमोदन के लिए संसद में पेश करती है तब सरकार को अध्यादेश की तात्कालिक आवश्यकता का स्पष्टीकरण देना होता है।
  • अध्यादेश की तात्कालिक आवश्यकताओं के कारणों का न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है।


38वां संविधान संशोधन 1975-

  • भारत के संविधान में 38वां संविधान संशोधन सन् 1975 में किया गया था।
  • भारत के संविधान के 38वें संविधान संशोधन में यह प्रावधान किया गया था की न्यायालय राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गये अध्यादेश का पुनरावलोकन नहीं कर सकता है तथा राष्ट्रपति की संतुष्टि अंतिम है।


44वां संविधान संशोधन 1978-

  • भारत के संविधान में 44वां संविधान संशोधन सन् 1978 में किया गया था।
  • भारत के संविधान के 44वें संविधान संशोधन 1978 में यह प्रावधान किया गया था की न्यायालय के द्वारा अध्यादेश की तात्कालिक आवश्यकताओं के कारणों का न्यायिक पुनरावलोकन किया जा सकता है।


डीसी वाधवा केश 1987 (DC Wadhwa Case 1987)-

  • डी. सी. वाधवा बनाम बिहार राज्य केस में सन् 1987 में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया की एक ही अध्यादेश को संसद में पारित करवाने का प्रयास किए बिना एक ही लेख में बार-बार प्रख्यापित नहीं किया जा सकता है। यदि ऐसा किया जाता है तो यह कार्यपालिका के द्वारा विधायिका की शक्तियों पर किया गया अतिक्रमण है। जैसे की बिहार राज्य में सन् 1967 से लेकर सन् 1981 के बीच 256 अध्यादेश जारी किए गए थे जो की अध्यादेश जारी करने की शक्ति का दुरुपयोग था।


कृष्ण कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य केस 2017-

  • कृष्ण कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य केस में भी सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यादेश को लेकर अपने पूर्ववर्ती निर्णय की पुष्टि की एवं निर्णय को दोहराया।


सरकारिया आयोग (Sarkaria Commission)-

  • सरकारिया आयोग के अनुसार अध्यादेश को केवल 1 बार पुनः प्रख्यापित किया जाना चाहिए। अर्थात् अध्यादेश को एक बार लाया जा सकता है और एक बार पुनः प्रख्यापित किया जा सकता है।


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