भारत का उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India)-
- भारत के संविधान के भाग-5 तथा अनुच्छेद 124 से अनुच्छेद 147 तक सर्वोच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय (न्यायपालिका) का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 124 से 147 तक का उल्लेख संविधान के भाग-5 में किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय में अंग्रेजी भाषा का ही उपयोग किया जाता है। अन्य किसी भाषा का उपयोग नहीं किया जाता है।
उच्चतम न्यायालय (Supreme Court)-
- 28 जनवरी 1950 को भारत में सर्वोच्च न्यायालय का उद्घाटन किया गया था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने प्रिवी काउंसिल (Privy Council) तथा फेडरल कोर्ट (Federal Court) (संघीय न्यायालय) का स्थान लिया। अर्थात् भारत में प्रिवी काउंसिल तथा फेडरल कोर्ट के स्थान पर उच्चतम न्यायालय का गठन किया गया था।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 124 के अनुसार भारत का एक उच्चतम न्यायालय होगा तथा उच्चतम न्यायालय में 1 मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अन्य न्यायाधीश होंगे।
- मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 8 थी जिसमें 1 मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अन्य न्यायाधीश थे। अर्थात् जिस समय संविधान का निर्माण किया गया था उस समय सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या कुल 8 थी।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाने के लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं होती है। संसद के द्वारा एक सामान्य अधिनियम पारित कर न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाया जा सकता है। अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाने का अधिकार संसद के पास है।
- 2019 में विधेयक से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या को 34 किया गया था।
- 2019 से पहले सर्वोच्च न्यायालय में न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या 31 थी। जिसमें 1 मुख्य न्यायाधीश तथा 30 अन्य न्यायाधीश थे।
- वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 33 न्यायाधीश + 1 मुख्य न्यायाधीश = 34 न्यायाधीश है।
- राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है तथा न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति भारत के मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI) से परामर्श करता है।
परामर्श एवं कॉलेजियम प्रणाली पर विवाद-
- सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित प्रावधानों में 'परामर्श' शब्द की अलग-अलग व्याख्या की है।-
- 1. प्रथम न्यायाधीश वाद- 1982 (First Judges Case 1982)
- 2. द्वितीय न्यायाधीश वाद- 1993 (Second Judges Case 1993)
- 3. तृतीय न्यायाधीश वाद- 1998 (Third Judges Case 1998)
प्रथम न्यायाधीश वाद 1982 (First Judges Case)- (एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ)- (S. P. Gupta Vs Union of India)
- प्रथम न्यायाधीश वाद 1982 के तहत सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 124 की व्याख्या की तथा न्यायालय ने माना कि 'परामर्श' शब्द से तात्पर्य है राष्ट्रपति व मुख्य न्यायाधीश के मध्य विचारों का आदान-प्रदान।
- प्रथम न्यायाधीश वाद 1982 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के द्वारा राष्ट्रपति को दी गई सलाह बाध्यकारी नहीं है अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति मंत्रिपरिषद की सलाह से ही की जानी चाहिए।
द्वितीय न्यायाधीश वाद 1993 (Second Judges Case 1993)-
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्ववर्ती निर्णय (प्रथम न्यायाधीश वाद) को उलट दिया तथा माना कि सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (CJI) व सर्वोच्च न्यायालय के 2 वरिष्ठतम न्यायाधीशों के द्वारा दी गई सलाह (परामर्श) राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी है। (1 मुख्य न्यायाधीश + 2 न्यायाधीश- द्वितीय न्यायाधीश वाद 1993 में कॉलेजियम व्यवस्था अस्तित्व में आई किन्तु 'कॉलेजियम' शब्द 1998 में प्रयुक्त हुआ)
- यदि राष्ट्रपति इनकी (1 मुख्य न्यायाधीश + 2 न्यायाधीश) सलाह को नहीं मानता है तो राष्ट्रपति को इसका कारण बताना होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी निर्णय दिया कि वरिष्ठतम न्यायाधीश को ही मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया जाना चाहिए।-
- सन् 1958 में विधि आयोग ने सिफारिश की कि सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की नियुक्ति में वरिष्ठता की बजाय योग्यता एकमात्र आधार होनी चाहिए।
- केशवानंद भारती वाद 1973- (सरकार के विरुद्ध निर्णय- तीन वरिष्ठतम न्यायाधीशों जे. एम. शेलात, के. एस. हेगडे, ए. एन. ग्रोवर की वरिष्ठता लांघकर ए. एन. रे को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था। (इस समय भारत का राष्ट्रपति वी वी गिरी था।)
- सन् 1976 ए.डी.एम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला वाद (4:1 से निर्णय) (सरकार के विरुद्ध निर्णय के कारण हंसराज खन्ना की वरिष्ठता लांघकर एम. एच. बेग को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।)
- जनता पार्टी ने मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति में वरिष्ठता सिद्धांत को अपनाने का वादा किया।
तृतीय न्यायाधीश वाद 1998 (Third Judges Case 1998)-
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्ववर्ती निर्णय की पुष्टि की तथा ये भी माना कि भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों का 'कॉलेजियम' (Collegium) राष्ट्रपति को न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए सलाह देगा तथा राष्ट्रपति को कॉलेजियम की सलाह माननी होगी।
- यदि कॉलेजियम के दो सदस्य सलाह से असहमत है तो राष्ट्रपति सलाह मानने के लिए बाध्य नहीं है।
- यदि राष्ट्रपति कॉलेजियम की सलाह नहीं मानता है तो राष्ट्रपति को इसका कारण बताना होगा।
- तृतीय न्यायाधीश वाद 1998 के समय पहली बार कॉलेजियम शब्द का प्रयोग किया गया।
99वां संविधान संशोधन 2014-
- कालान्तर में कॉलेजियम व्यवस्था की आलोचना होने लगी क्योंकि यह एक बंद व्यवस्था है जिसमें पारदर्शिता का अभाव है इस पर भाई-भतीजावाद के आरोप लगते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय में कुछ परिवारों का ही दबदबा है इसलिए सर्वोच्च न्यायालय में सभी वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय में अनुसूचित जाति (SC), जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), महिलाएं तथा अल्पसंख्यक वर्गों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है।
- इन आलोचनाओं को देखते हुए 99वें संविधान संशोधन अधिनियम 2014 के द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission- NJAC) का गठन किया गया जो न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में राष्ट्रपति को सलाह देता है।
- केंद्र सरकार ने 13 अप्रैल 2015 को 99वां संविधान संशोधन अधिनियम 2014 को लागू कर दिया था।
- 16 अक्टूबर 2015 को सर्वोच्च न्यायालय ने 99वें संविधान संशोधन 2014 को शून्य घोषित कर दिया था। अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय ने 15 अक्टूबर 2015 को 99वें संविधान संशोधन अधिनियम 2014 को असंवैधानिक घोषित कर दिया था।
- न्यायालय के अनुसार 99वां संविधान संशोधन अधिनियम न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सीमित करता है और स्वतंत्र न्यायपालिका संविधान का बुनियादी ढाँचा है। अतः कॉलेजियम व्यवस्था पुनः अस्तित्व में आ गई।
राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (National Judicial Appointments Commission- NJAC)-
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की स्थापना 99वें संविधान संशोधन अधिनियम 2014 के द्वारा की गई थी।
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में कुल 6 सदस्य थे जैसे-
- (I) भारत का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India- CJI)
- (II) सर्वोच्च न्यायालय के 2 न्यायाधीश (2 Supreme Court Judges)
- (III) विधि मंत्री (Law Minister)
- (IV) दो अन्य सदस्य जिसमें से एक सदस्य प्रख्यात कानूनविद् तथा एक SC/ST/OBC/अल्पसंख्यक/ महिला (आदि प्रख्यात कानूनविद्) में से कोई होना चाहिए।
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में दो अन्य सदस्यों की नियुक्ति एक तीन सदस्यी समिति के द्वारा की जानी थी।
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में दो अन्य सदस्यों की नियुक्ति 3 वर्षों के लिए की जाती थी।
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में दो अन्य सदस्य एक बार नियुक्त होने के बाद पुनः वह सदस्य नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग में दो अन्य सदस्यों की नियुक्ति करने के लिए गठित समिति के सदस्य निम्नलिखित है।-
- (I) भारत का मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India)
- (II) प्रधानमंत्री (Prime Minister)
- (III) लोकसभा में विपक्ष का नेता (Leader of Opposition in Lok Sabha)
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) का निर्णय न्यूनतम 5:1 बहुमत से होना चाहिए। अर्थात् राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के निर्णय में 6 में से 5 सदस्यों की सहमति होना आवश्यक है।
- राष्ट्रपति राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) की राय को पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है लेकिन दुबारा वही राय राष्ट्रपति के पास आने पर उस राय को राष्ट्रपति को मानना ही पड़ेगा।
कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System)-
- कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत तृतीय न्यायाधीश वाद के माध्यम से हुई थी।
- कॉलेजियम प्रणाली सन् 1998 से चल रही है।
- कॉलेजियम प्रणाली का उपयोग सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायलयों में न्यायाधीशों की नियुक्तियों एवं स्थानांतरण के लिए किया जाता है।
- भारत के मूल संविधान में या संविधान संशोधनों में 'कॉलेजियम' का उल्लेख नहीं किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय में कॉलेजियम प्रणाली का नेतृत्व सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश करता है।
- कॉलेजियम प्रणाली में कुल 5 सदस्य होते हैं। जिसमें 1 सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश तथा 4 अन्य न्यायाधीश होते हैं।
- कॉलेजियम प्रणाली में 5 में से 4 सदस्यों के हस्ताक्षर होने पर ही राष्ट्रपति कॉलेजियम की सलाह मानने के लिए बाध्य है। अर्थात् कॉलेजियम प्रणाली में कम से कम 4 सदस्यों की सहमती होना आवश्यक होती है।
विशेष- उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा उस न्यायालय के 4 अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं। अर्थात् उच्च न्यायालय के कॉलेजियम में कुल 5 सदस्य होते हैं। जिसमें से 1 सदस्य उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होता है तथा 4 उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश होते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता (Qualification of Judge of Supreme Court)-
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की योग्यता का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 124 में किया गया है।-
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
- 5 वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय में न्यायाधीश रहा हो या 10 वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय में वकील रहा हो या राष्ट्रपति की राय में एक प्रख्यात विधिवेता होना चाहिए।
न्यायाधीशों का कार्यकाल (Tenure of Judges)-
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के कार्यकाल का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 124 में किया गया है।
- 65 वर्ष तक की आयु तक न्यायाधीश अपने पद पर बना रह सकता है। अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का कार्यकाल अधिकतम 65 वर्ष की आयु तक ही होता है.
- कार्यकाल का उल्लेख संविधान में नहीं किया गया है। यह संसद के द्वारा निर्धारित है। संसद को यह अधिकार है की कार्यकाल को कम या ज्यादा कर सकती है।
- न्यायाधीशों के कार्यकाल में न्यूनतम आयु को कोई उल्लेख नहीं किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया (Procedure to Remove Supreme Court Judge from Post)-
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 124 में किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीश को पद से हटाने की प्रक्रिया समान ही है।
- निम्नलिकित दो आधारों पर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है।-
- 1. अक्षमता (Incapacity)
- 2. सिद्ध कदाचार (Proved Misbehavior)
- न्यायाधीश को हटाने का प्रस्ताव संसद के किसी भी सदन में पेश किया जा सकता है।
- न्यायाधीश को हटाने के प्रस्ताव पर राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर तथा लोकसभा में 100 सदस्यों के हस्ताक्षर होने चाहिए।
- राज्यसभा का सभापति या लोकसभा का अध्यक्ष प्रस्ताव को स्वीकार अथवा अस्वीकार कर सकता है।
- यदि प्रस्ताव स्वीकार किया जाता है तो लोकसभा अध्यक्ष या राज्यसभा सभापति आरोपों की जाँच के लिए 3 सदस्यीय समिति का गठन करता है जिसमें निम्नलिखित सदस्य होते हैं।-
- 1. उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या अन्य न्यायाधीश (The Chief Justice or a Judge of the Supreme Court)
- 2. किसी भी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश (A Chief Justice of a High Court)
- 3. विख्यात विधिवेता (A Distinguished Jurist)
- यदि समिति के द्वारा आरोप सही पाए जाते हैं तो सदन प्रस्ताव को आगे बढ़ाता है।
- यहाँ तक की प्रक्रिया अर्थात् उपर्युक्त प्रक्रिया का न्यायिक पुनरावलोकन (Judicially Reviewed) किया जा सकता है। तथा इसके बाद की प्रक्रिया का न्यायिक पुनरावलोकन नहीं किया जा सकता है।
- यह प्रस्ताव दोनों सदन में विशेष बहुमत से पारित किया जाता है।
- प्रत्येक सदन के द्वारा प्रस्ताव पारित होने के बाद न्यायाधीश को हटाने की सूचना राष्ट्रपति को दी जाती है।
- राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने का आदेश जारी करता है।
पद से हटाने का प्रस्ताव-
- अब तक केवल एक बार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ पद से हटाने का प्रस्ताव लाया गया है जो की 1991 सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश वी.रामास्वामी के खिलाफ लाया गया था लेकिन यह प्रस्ताव पास नहीं हो पाया था क्योंकि वी.रामास्वामी ने पहले ही अपने पद से त्याग पत्र दे दिया था। (जाँच में आरोप भी सही पाये गये थे)
- विशेष-
- भारत में अब तक 2 बार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के खिलाफ पद से हटाने का प्रस्ताव लाया गया है। जैसे-
- (I) सौमित्र सैन (कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश)- 2011 में राज्यसभा में पद से हटाने का प्रस्ताव लाया गया था।
- (II) पीडी दिनाकरन (सिक्किम उच्च न्यायालय के न्यायाधीश)- 2011 में राज्यसभा में पद से हटाने का प्रस्ताव लाया गया था।
- लेकिन उपर्युक्त दोनों के खिलाफ प्रस्ताव पास नहीं हो पाया था।
अनुच्छेद 125-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 125 में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्ते, पेंशन एवं सेवा शर्तों का उल्लेख किया गया है। (Salaries, Allowances, Pensions and Service Conditions)
- वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश (CJI) का वेतन- 2 लाख 80 हजार रुपयें है।
- वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों का वेतन- 2 लाख 50 हजार रुपयें है।
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की पेंशन (Pension) न्यायाधीशों के वेतन का 50% होगी।
अनुच्छेद 126-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 126 में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश (Acting CJI) का उल्लेख किया गया है।
- यदि सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या अस्थाई रूप से अनुपस्थित हो या वह अपने दायित्वों के निर्वहन में असमर्थ हो तब राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय में कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकता है।
अनुच्छेद 127-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 127 में तदर्थ (अस्थाई) न्यायाधीशों की नियुक्ति (Appointment of Ad-hoc Judge) का उल्लेख किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय में गणपूर्ति को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से भारत का मुख्य न्यायाधीश उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त कर सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश बनने की योग्यता रखने वाले को ही तदर्थ न्यायाधीश नियुक्ति किया जाता है।
- किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त करने के लिए संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी परामर्श लिया जाता है।
अनुच्छेद 128-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 128 के में सेवानिवृत न्यायाधीश की नियुक्ति (Appointment of Retired Judge) का उल्लेख किया गाय है।
- सर्वोच्च न्यायालय में यदि कार्यभार अधिक हो तो भारत का मुख्य न्यायाधीश किसी भी उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त कर सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय में सेवानिवृत न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए राष्ट्रपति की पूर्वानुमति के साथ सेवानिवृत्त न्यायाधीश की सहमति भी आवश्यक है।
- इसमें न्यायाधीश के वेतन व भत्ते का निर्धारण राष्ट्रपति के द्वारा तय किया जाता है।
- इस न्यायाधीश का अधिकतम कार्यकाल 2 वर्ष हो सकता है।
- इस न्यायाधीश के पास शक्तियां सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान ही होती है।
- यह न्यायाधीश सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश पद नाम का उपयोग नहीं कर सकता है।
अनुच्छेद 129-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 129 में अभिलेखिय न्यायालय (A Court of Record) व न्यायालय की अवमानना (Contempt of Court) का उल्लेख किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय भारत के राज्यक्षेत्र में स्थित अन्य सभी न्यायालयों के लिए अनुकरणीय होंगे अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों को आधार बनाकर राज्यों के उच्च न्यायालय अपने निर्णय देंगे।
- अन्य न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की समीक्षा व आलोचना नहीं कर सकते हैं।
- न्यायालय की अवमानना करने वाले व्यक्ति को उच्चतम न्यायालय दण्डित कर सकता है। इसके लिए 6 माह की सजा अथवा 2 हजार रुपये जुर्माना अथवा दोनों की सजा दी जा सकती है।
- न्यायालय की अवमानना: संविधान के द्वारा परिभाषित नहीं।
न्यायिक अवमानना अधिनियम, 1971:-
- न्यायालय की अवमानना को परिभाषित किया गया।
- न्यायालय की अवमानना पर जाँच की प्रक्रिया और दण्ड का प्रावधान-
- नागरिक अवमानना: जान-बूझकर आदेश आदि न मानना।
- आपराधिक अवमानना: न्यायालय का अपमान (प्रतिष्ठा को कम करना, न्यायिक प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करना)
अनुच्छेद 130-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 130 में सर्वोच्च न्यायालय के स्थान का उल्लेख किया गया है।
- संविधान के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय का स्थान दिल्ली होगा लेकिन भारत का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से सर्वोच्च न्यायालय की पीठ के लिए अन्य स्थान का निर्धारण कर सकता है।
सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता (Jurisdiction of the Supreme Court)-
- 1. आरंभिक अधिकारिता (Original Jurisdiction)- अनुच्छेद 131
- 2. अपीलीय अधिकारिता (Appellate Jurisdiction)- अनुच्छेद 132, 133, 134
- 3. रिट अधिकारिता (Writ Jurisdiction)- अनुच्छेद 32
- 4. परामर्शदात्री अधिकारिता (Advisory Jurisdiction)- अनुच्छेद 143
1. आरंभिक अधिकारिता (Original Jurisdiction)-
- अनुच्छेद 131
अनुच्छेद 131-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 में सर्वोच्च न्यायालय की आरंभिक अधिकारिता का उल्लेख किया गया है।
- इसके तहत वे मामले आत है जिनकी सुनवाई सीधे सर्वोच्च न्यायालय में की जाती है। जैसे-
- (I) केन्द्र Vs राज्य विवाद
- (II) राज्य Vs राज्य विवाद
- (III) केन्द्र + राज्य Vs अन्य राज्य विवाद
- इसके निम्नलिखित अपवाद है। अर्थात् इन निम्नलिखित मामलों की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में नहीं होगी। जैसे-
- (I) संविधान पूर्व की किसी संधि, समझौते, करार से संबंधित विवाद।
- (II) यदि किसी समझौते अथवा संधि में पहले से यह प्रावधान हो।
- (III) अंतर-राज्यीय नदी जल विवाद।
- (IV) वित्त आयोग को सौंपे गए मामले।
- (V) वाणिज्यिक प्रकृति के अन्य मामले।
- (VI) केंद्र-राज्य के बीच विभिन्न प्रकार के व्यय तथा पेंशन के भुगतान से संबंधित विवाद।
- (VII) केंद्र के विरुद्ध राज्यों के द्वारा नुकसान की भरपाई के मामले।
- राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित विवादों की सुनवाई केवल सर्वोच्च न्यायालय करेगा।
2. अपीलीय अधिकारिता (Appellate Jurisdiction)-
- उच्च न्यायालय की खण्डपीठ के निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
- सर्वोच्च न्यायालय में निम्नलिखित तीन प्रकार के मामलें में अपील हो सकती है। जैसे-
- (I) अनुच्छेद 132- संवैधानिक मामले (Constitutional Matters)
- (II) अनुच्छेद 133- दीवानी मामले (Civil Matters)
- (III) अनुच्छेद 134- आपराधिक मामले (Criminal Matters)
(I) अनुच्छेद 132- संवैधानिक मामले (Constitutional Matters)
- इसमें उच्च न्यायालय निर्णय के साथ यह प्रमाण देता है कि इस वाद में विधि का सारवान प्रश्न (Substantial Question of Law) निहित है जिसमें संविधान की व्याख्या (Interpretation of The Constitution) आवश्यक है तो सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
- यदि उच्च न्यायालय अपने निर्णय के साथ प्रमाण पत्र देता है कि इस वाद में लोक महत्व का विधि का सारवान प्रश्न निहित है जिसकी व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा की जानी चाहिए तो इस स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
(III) अनुच्छेद 134- आपराधिक मामले (Criminal Matters)
- यदि उच्च न्यायालय प्रमाण पत्र देता है तो सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जा सकती है।
- (I) यदि किसी व्यक्ति को अधीनस्थ न्यायालय ने बरी कर दिया हो लेकिन उच्च न्यायालय ने उसे 10 वर्ष या अधिक की सजा दे दी हो।
- (II) यदि उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय से किसी वाद या मामले को स्वयं ले लिया हो तथा आरोपी को 10 वर्ष या अधिक की सजा दी हो।
अनुच्छेद 135-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 135 के अनुसार संघीय न्यायालय (Federal Court) की सारी शक्तियां सर्वोच्च न्यायालय के पास होगी।
अनुच्छेद 136-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 में विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition- SLP) का उल्लेख किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय अपने विवेकानुसार भारत के राज्यक्षेत्र में स्थित किसी न्यायालय अथवा अधिकारण के द्वारा दिए गए किसी निर्णय या आदेश के विरुद्ध अपील करने की अनुमति दे सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय निम्नलिखित मामलों में यह अनुमति दे सकता है।
- किसी भी प्रकार का केस हो- सिविल (Civil), आपराधिका (Criminal)।
- केस किसी भी स्तर या चरण में हो।
- किसी भी कोर्ट (अधीनस्थ न्यायालय, उच्च न्यायालय, न्यायाधिकरण आदि) का केस हो।
- अपवाद (Exceptions)- सैन्य अधिकरण (कोर्ट मार्शल) का केस हो।
3. रिट अधिकारिता (Writ Jurisdiction)-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 में सर्वोच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता का उल्लेख किया गया है।
- यदि मूल अधिकारों का हनन होता है तो सर्वोच्च न्यायालय 5 प्रकार की रिट जारी कर सकता है। जैसे-
- (I) बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
- (II) परमादेश (Mandamus)
- (III) प्रतिषेध (Certiorari)
- (IV) उत्प्रेषण (Prohibition)
- (V) अधिकार पृच्छा (Quo-warranto)
4. परामर्शदात्री अधिकारिता (Advisory Jurisdiction)-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 में सर्वोच्च न्यायालय की परामर्शदात्री अधिकारिता का उल्लेख किया गया है।
- राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श ले सकता है यदि-
- लोक महत्व का विधि का प्रश्न या तथ्य का प्रश्न उत्पन्न हुआ हो या होने की संभावना हो।
- निम्नलिखित मामलों में सर्वोच्च न्यायालय सलाह देने के लिए बाध्य है।-
- संविधान पूर्व की संधि अथवा समझौतों से संबंधित विवाद।
- अन्य मामलों ने सर्वोच्च न्यायालय सलाह देने के लिए बाध्य नहीं है।
- सर्वोच्च न्यायालय जो सलाह देता है राष्ट्रपति उस सलाह को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)-
- सर्वोच्च न्यायालय विधायिका के द्वारा पारित किए गए अधिनियमों तथा कार्यपालिका के द्वारा जारी किए गए आदेशों की समीक्षा कर सकता है और यदि ये संविधान के प्रावधानों के अनुरूप ना हो तो उन्हें शून्य घोषित कर सकता है।
- यद्यपि संविधान में स्पष्टतः न्यायिक पुनरावलोकन शब्द का उल्लेख नहीं है किन्तु अप्रत्यक्ष रूप से अनेक अनुच्छेद न्यायालय को यह शक्ति प्रदान करते हैं। जैसे-
- अनुच्छेद 13 (2)
- अनुच्छेद 32
- अनुच्छेद 131, 132, 133, 134, 135, 136
- अनुच्छेद 143, 145
- अनुच्छेद 226, 246, 256
अनुच्छेद 137-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णयों की पुनः समीक्षा कर सकता है।
अनुच्छेद 138-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 138 के अनुसार संसद सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता में वृद्धि कर सकती है।-
- संघ सूची के विषय पर।
- संघ और राज्य के मध्य समझौते से भी प्रदान।
अनुच्छेद 139-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 139 के अनुसार संसद सर्वोच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता में वृद्धि कर सकती है। अर्थात् अनुच्छेद 32 के अतिरिक्त अन्य मामलों में भी रिट जारी करने का अधिकार हो सकता है।
अनुच्छेद 139 (A)-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 139 (A) में कुछ मामलों का स्थानान्तरण (Transfer of Certain Cases) का उल्लेख किया गया है। जैसे-
- भारत के राज्यक्षेत्र में स्थित किसी भी न्यायालय से किसी भी मामले को सर्वोच्च न्यायालय स्वयं के पास स्थानांतरित कर सकता है तथा एक न्यायालय से दूसरे न्यायालय में भी स्थानांतरित कर सकता है।
अनुच्छेद 140-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 140 के अनुसार संसद विधि के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को आनुषंगिक शक्तियां प्रदान कर सकती है।
अनुच्छेद 141-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 141 के अनुसार सर्वोच्च न्यायाल के द्वारा घोषित की गई विधि भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर सभी न्यायालयों पर बाध्यकारी होगी।
अनुच्छेद 142-
- सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों का प्रवर्तन (पूर्ण न्याय):-
- सर्वोच्च न्यायालय अपने आदेशों को लागू करने के लिए विधायिका व कार्यपालिका की शक्तियों को स्वयं अपने हाथ में ले सकता है।
- कुछ आलोचकों का मानना है कि इस अनुच्छेद के कारण न्यायिक सक्रियता को प्रोत्साहन मिलता है।
- आरम्भ में वंचित वर्गों और पर्यावरण मामलों में उपयोग।
- यूनियन कार्बाइड केस 1989 (Union Carbide Case 1989)-
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं को संसदीय कानूनों से ऊपर स्थापित कर दिया और कहा कि पूर्ण न्याय के लिए वह संसद के कानूनों को अध्यारोपित कर सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ 1998 (Supreme Court Bar Association Vs Union of India 1998)-
- अनुच्छेद 142 का प्रयोग संसदीय कानूनों के अनुपूरक के रूप में किया जाना चाहिए।
अनुच्छेद 142 के उपयोग के उदाहरण (Examples of Article 142 Invocation):-
- ताजमहल के संगमरमर की सफाई।
- कोल ब्लॉक आवंटन रद्द।
- IPL फिक्सिंग की जाँच।
- राष्ट्रीय राजमार्गों (500 मीटर तक) पर शराब बिक्री प्रतिबंधित।
- राम जन्मभूमि के लिए 3 माह में न्यास।
- ए.जी. पेरारिवलन को बरी करना।
अनुच्छेद 143-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के अनुसार राष्ट्रपति लोकमहत्व का प्रश्न (जिसमें विधि का प्रश्न, लोक महत्व का प्रश्न समाहित हो) पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाह मांग सकता है।
अनुच्छेद 144-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 144 के अनुसार विधिक तथा न्यायिक अधिकारी सर्वोच्च न्यायालय के सहायक के रूप में कार्य करेंगे।
अनुच्छेद 145-
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 145 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय अपने नियम विनियम स्वयं बनायेगा।
- सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक बेंच (Constitutional Bench) में 5 सदस्य होंगे।
- असहमत जज भी किसी वाद के निर्णय में अपने मत या फैसला सुनाएगा।
अनुच्छेद 146-
- सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारियों अथवा सेवकों की नियुक्ति और सेवा शर्तें, वेतन-भत्ते, पेंशन आदि का निर्धारण भारत के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा किया जाता है। अर्थात् इस कार्य के लिए मुख्य न्यायाधीश के द्वारा नियुक्त अन्य न्यायाधीश या अधिकारी के द्वारा यह कार्य किया जाएगा।
- सर्वोच्च न्यायालय के सभी व्यय संचित निधि पर भारति होंगे।
अनुच्छेद 147- निर्वचन (Interpretation)
- निर्वचन का अर्थ- व्याख्य होता है।
- विधि के सारवान प्रश्न की व्याख्या की गई है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-
- सर्वोच्च न्यायालय के पहले मुख्य न्यायाधीश हीरालाल जे कानिया है।
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सर्वाधिक कार्यकाल वाई वी चंद्रचूड़ का है।
- सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में सबसे कम कार्यकाल कमल नारायण सिंह का है। (18 दिन)
- वर्तमान तक एक भी महिला सर्वोच्च न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश नहीं बनी है।
- सर्वोच्च न्यायालय की पहली महिला न्यायाधीश फातिमा एम. बीवी थी। (1989)
- वर्तमान तक कुल 11 महिलाएं सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बन चुकी है।
- वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में कुल 3 महिला न्यायाधीश है।
- सर्वोच्च न्यायालय के पहले दलीत मुख्य न्यायाधीश केजी बालाकृष्णन है।
- एस. एच. कपाड़िया सर्वोच्च न्यायालय के ऐसे मुख्य न्यायाधीश है जिनका जन्म स्वतंत्र भारत में हुआ है।