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राजस्थानी साहित्य का वर्गीकरण (Classification of Rajasthani Literature)

राजस्थान के साहित्य का वर्गीकरण (Classification of Literature of Rajasthan)-

  • राजस्थानी साहित्य का वर्गीकरण चार भागों में किया गया है अर्थात् राजस्थान के साहित्य को 4 भागों में बाटा गया है। जैसे-

  • 1. प्राचीन राजस्थानी साहित्य (1050-1450 ई.)
  • 2. पूर्व मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य (1450-1650 ई.)
  • 3. उत्तर मध्यकालीन राजस्थानी साहित्य (1650-1850 ई.)
  • 4. आधुनिक राजस्थानी साहित्य (1850- वर्तमान तक)


1. राजस्थान का प्राचीन साहित्य (1050-1450 ई.)

  • इस समय राजस्थान विदेशी आक्रमणों का सामना कर रहा था अतः साहित्य में वीर नायकों की प्रशंसा की गई इसलिए इसे "वीर गाथा" काल कहा जाता है। जैसे-

  • (I) श्रीधर के द्वारा लिखी गई पुस्तक "रणमल छन्द"

  • रणमल राठौड़ गुजरात की ईडर रियासत का राजा था।
  • रणमल ने पाटन (गुजरात) के सूबेदार जफर खाँ को हराया था।
  • श्रीधर के द्वारा लिखी गई पुस्तक रणमल छन्द रणमल पर लिखी गई पुस्तक है।


2. राजस्थान का पूर्व मध्यकालीन साहित्य (1450-1650 ई.)-

  • इस समय विदेशी आक्रमणकारी मंदिर तथा मूर्तियां तोड़ रहे थे तथा बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करवाया जा रहा था अतः लोग संतों की शरण में पहुँचे इसलिए इस समय संत साहित्य अधिक लिखा गया था अतः इसे भक्ति काल कहा जाता है। जैसे-
  • (I) सांयाजी झूला (गुजरात) के द्वारा लिखी गई पुस्तक- "नाग दमण"
  • (II) सांयाजी झूला (गुजरात) के द्वारा लिखी गई पुस्तक- "रुकमणी हरण"
  • (III) माधोदास के द्वारा लिखी गई पुस्तक- "रामरासौ"


3. राजस्थान का उत्तर मध्यकालीन साहित्य (1650-1850 ई.)-

  • इस समय अपेक्षाकृत शांति का वातावरण था अतः समाज में नैतिक मूल्यों को बढ़ावा दिया गया तथा प्रेम कहानियां अधिक लिखी गई इसलिए इस काल को नीति एवं शृंगार काल कहते हैं। जैसे-
  • (I) मंछाराम के द्वारा लिखी गई पुस्तक- "रघुनाथ रुपक"
  • (II) कृपाराम खिड़िया के द्वारा लिखी गई पुस्तक- "राजिया रा दूहा"
  • कृपाराम खिड़िया सीकर के राजा लक्ष्मण सिंह के दरबारी विद्वान थे।
  • राजिया कृपाराम खिड़िया के नौकर का नाम था।


4. राजस्थान का आधुनिक साहित्य (1850- वर्तमान तक)-

  • इस समय राजस्थान के विद्वानों ने अंग्रेज विरोधी पुस्तकों की रचना की थी जिसमें राजस्थान में राष्ट्रवादी भावनों का संचार हुआ इसलिए इसे राष्ट्रवादी काल कहा जाता है। जैसे-
  • (I) सूर्यमल्ल मीसण की पुस्तकें-
  • (A) वीर सतसई- वीरता के 700 दोहे
  • (B) वंश भास्कर
  • (C) बलवन्त विलास
  • (D) सती रासौ
  • (E) छन्द मयूख
  • (F) राम रजांट
  • सूर्यमल्ल मीसण बूंदी के राजा रामसिंह के दरबारी विद्वान थे।
  • सूर्यमल्ल मीसण के पत्रों से 1857 ई. की क्रांति की जानकारी मिलती है।
  • सूर्यमल्ल मीसण की पुस्तक वंश भास्कर में बूंदी का इतिहास है।
  • वंश भास्कर नामक पुस्तक की शुरुआत सूर्यमल्ल मीसण ने की थी लेकिन वंश भास्कर पुस्तक को पुरा मुरारिदान ने किया था।
  • मुरारिदान सूर्यमल्ल मीसण का दत्तक पुत्र था।
  • (II) शंकरदान सामौर की पुस्तकें-
  • (A) अंग्रेजा री नीत (अंग्रेजा री नीत नामक पुस्तक अंग्रेजों के खिलाफ लिखी गई पुस्तक है।)
  • (B) देव दर्पण (देव दर्पण नामक पुस्तक अंग्रेजों के खिलाफ लिखी गई पुस्तक है।)
  • (C) सगती सुजस (सगती सुजस नामक पुस्तक में माता के बारे में या शक्ति पूजा के बारे में जानकारी मिलती है।)
  • (D) भागीरथी महिमा (भागीरथी महिमा नामक पुस्तक में गंगा के बारे में जानकारी मिलती है।)


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