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केंद्र व राज्य के मध्य विधायी संबंध (Legislative Relations Between Centre and State)

केंद्र-राज्य विधायी संबंध (Centre-State Legislative Relations)-

  • केंद्र व राज्य के मध्य विधायी संबंधों का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-11 व अनुच्छेद 245 से अनुच्छेद 263 तक में किया गया है।


अनुच्छेद 245 (1)-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 245 (1) में संसद के द्वारा पारित की गई विधियों (Laws Passed by Parliament) का उल्लेख किया गया है।
  • संसद (Parliament) के द्वारा पारित की गई विधियाँ भारत के सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र में अथवा उसके किसी क्षेत्र विशेष में लागू हो सकती है।
  • राज्य विधायिका (State Legislature) द्वारा पारित की गई विधियाँ राज्य के सम्पूर्ण राज्य क्षेत्र में अथवा उसके किसी क्षेत्र विशेष में लागू हो सकती है।


अनुच्छेद 245 (2)-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 245 (2) के अनुसार संसद द्वारा पारित की गई विधियाँ भारत से बाहर रहने वाले भारतीय नागरिकों (Indian Citizens) पर भी लागू हो सकती है।
  • राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित विधि विशेष स्थिति में राज्य के बाहर भी लागू हो सकती है। जैसे-
  • (I) न्यास (Trust)
  • (II) गुजरात का Land Ceiling Act
  • (III) Bombay State Vs R.M.D.C 1957


(अपवाद/ Exceptions)- अनुच्छेद 240

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 240 के अनुसार राष्ट्रपति यह आदेश जारी कर सकता है कि कोई संसदीय विधि (Parliamentary Law) या उस विधि का कोई भाग संघ शासित प्रदेशों (Union Territories) में लागू नहीं होगा। 
  • 4 संघ शासित प्रदेशों में जैसे-
  • (I) अण्डामान निकोबार (Andaman and Nicobar)
  • (II) दमन-दीव और दादरा नगर हवेली (Daman-Diu and Dadra Nagar Haveli)
  • (III) लक्षद्वीप (Lakshadweep)
  • (IV) लद्दाख (Ladakh)
  • राष्ट्रपति (President) यह आदेश जारी कर सकता है कि संसद द्वारा पारित किया गया कोई अधिनियम (Act) या उस अधिनियम का कोई भाग निम्नलिखित राज्यों के स्वायत्तशासी जिलों (Autonomous Districts) में निष्प्रभावी होगा-
  • (I) मेघालय (Meghalaya)
  • (II) त्रिपुरा (Tripura)
  • (III) मिजोरम (Mizoram)
  • राज्यपाल यह निर्देश दे सकता है कि कोई संसदीय विधि या उसका कोई भाग राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नही होगा। (जो 5वीं अनुसूची में दिये गये है।)
  • असम का राज्यपाल यह निर्देश दे सकता है कि संसद द्वारा पारित किया गया कोई अधिनियम अथवा उसका कोई भाग छठी अनुसूची के जनजातीय क्षेत्रों (स्वायत्तशासी जिलों) में लागू नहीं होगा।


अनुच्छेद 246-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 में 'संघ व राज्यों के मध्य विषयों का विभाजन' (Division of Subjects between Union and States) का उल्लेख किया गया है।
  • संघ सूची (Union List) या राज्य सूची (State List) या समवर्ती सूची (Concurrent List) के द्वारा केंद्र व राज्यों के मध्य विषयों का विभाजन किया गया है। इसका उल्लेख संविधान की 7वीं अनुसूची (Seventh Schedule) में किया गया है।
  • संघ सूची व राज्य सूची के बीच अतिव्याप्ति (Overlapping) है तो संघ सूची को प्रधानता दी जाएगी इसे परिसंघ की सर्वोच्चता (Supremacy of Federation) का सिद्धांत कहते हैं।


न्यायालय के विनिश्चय (Judgments of The Court)-

  • संघ सूची की प्रधानता (Predominance of Union List)
  • प्रत्येक विषय को व्यापक अर्थ देना (Giving Widest Meaning to Each Entry)
  • आनुषंगिक विषय व समानुषंगी विषय भी आते हैं। जैसे-
  • (I) भूमि (Land)
  • (II) कर (Tax)
  • समन्वयकारी निर्वचन (Harmonious Construction)
  • सार एवं तत्व (बंगाल साहूकारी अधिनियम, मुम्बई मद्यनिषेध अधिनियम)


अनुच्छेद 247-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 247 के अनुसार संसद अतिरिक्त न्यायालयों की स्थापना कर सकती है।


अनुच्छेद 248-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 248 के अनुसार अवशिष्ट शक्तियाँ (Residuary Powers) संघ को प्रदान की गई है। (संघ, राज्य तथा समवर्ती सूची में उल्लिखित विषयों के अतिरिक्त विषय) (ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत सरकार अधिनियम 1935)
  • कनाडा में अवशिष्ट शक्तियां केंद्र के पास है।
  • ऑस्ट्रेलिया में अवशिष्ट शक्तियां राज्यों के पास है।
  • भारत सरकार अधिनियम 1935 में अवशिष्ट शक्तियाँ गवर्नर जनरल के पास थी।


अनुच्छेद 249-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्य सभा दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करके संसद को राज्य सूची के विषय  पर कानून बनाने का अधिकार दे सकती है।

  • यह कानून 1 वर्ष तक लागू रहेगा तथा राज्य सभा पुनः प्रस्ताव पारित करके इसे 1 वर्ष से अधिक समय के लिए बढ़ा सकती है।


राष्ट्रीय महत्व (National Importance)-

  • संसद किसी संस्था को राष्ट्रीय महत्त्व (National Importance) का घोषित कर उससे संबंधित सभी विषयों पर विधि बना सकती है।


अनुच्छेद 250-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 250 के अनुसार राष्ट्रीय आपातकाल (Emergency) के समय संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है।

  • यह कानून आपातकाल की समाप्ति के बाद 6 माह तक ही लागू रहेगा। अर्थात् आपातकाल से समय संसद के द्वारा राज्य सूची के विषय पर बनाया गया कानून आपातकाल की समाप्ति के 6 माह बाद ही समाप्त हो जाएगा।


अनुच्छेद 251-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 251 के अनुसार यदि राज्य सूची के किसी विषय पर संसद और राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों के मध्य टकराव है तो संसद द्वारा पारित अधिनियम प्रभावी होगा।


अनुच्छेद 252-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 252 के अनुसार यदि दो या अधिक राज्य केंद्र से आग्रह करे तो संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है।
  • यह कानून उन्हीं राज्यों पर लागू होगा जिन राज्यों ने ऐसा आग्रह किया है।
  • उदाहरण (Examples)-
  • (I) Wild Life Protection Act 1972
  • (II) Water (Prevention and Control of Pollution) Act 1974
  • (III) Human Organs Transplant Act 1994


अनुच्छेद 253-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 253 के अनुसार किसी अंतर्राष्ट्रीय संधि या समझौते को लागू करने के लिए संसद राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है।
  • उहाहरण (Examples)-
  • (I) United Nation (Privileges and Immunities) Act. 1947
  • (II) Geneva Convention Act. 1982
  • (III) Anti-Hijacking Act. 1982
  • (IV) Legislations Relating to Environment and TRIPS


अनुच्छेद 254-

  • भारत के संविधान के अनुच्छेद 254 के अनुसार यदि समवर्ती सूची पर संसद व राज्य विधायिका दोनों कानून बनाते है तथा इन कानूनों में विरोधाभास है तो संसदीय कानून प्रभावी होगा।

  • यदि राज्य विधानमंडल द्वारा बनाई विधि संसदीय विधि के विरुद्ध थी और उसे राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखा गया था तथा उसे राष्ट्रपति द्वारा सहमति दे दी गई थी तो उस राज्य में वह कानून लागू होगा लेकिन संसद नई विधि द्वारा राज्य विधि को निरस्त कर सकती है।


अनुच्छेद 255-

  • यदि किसी विधेयक पर राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल की पूर्वानुमति की आवश्यकता थी लेकिन पूर्वानुमति लिए बिना विधेयक को पारित कर दिया गया है तो केवल इस आधार पर वह अधिनियम अविधिमान्य नहीं होगा।

  • संघ के पास विधायी शक्तियां अधिक है तथा अवशिष्ट शक्तियां भी संघ को दी गई है तथा अनेक अवसरों पर संघ राज्य की विधायी शक्तियों पर अतिक्रमण कर सकता है लेकिन राज्य विधायिका संघ सूची के विषय पर अतिक्रमण नहीं कर सकती है।


अन्य मामलों में संघ की विधायी श्रेष्ठता या सर्वोच्चता (Legislative Supremacy of Union Legislature in other Matters)-

  • राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो तो संसद उस राज्य के लिए राज्य सूची के विषय पर कानून बना सकती है।
  • राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित अधिनियम को राज्यपाल राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रख सकता है।
  • किसी संस्था को राष्ट्रीय महत्व की घोषित करके उसके लिए भी संसद विधि बना सकती है।
  • राज्य सूची के कुछ विषयों पर राज्य विधान मण्डल में विधेयक पेश करने से पहले राष्ट्रपति की पूर्वानुमति आवश्यक होती है। जैसे- यदि विधेयक व्यापार वाणिज्य (Trade Commerce) की स्वतंत्रता पर कोई रोक लगाता है।
  • वित्तीय आपातकाल के समय राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकता है कि राज्य विधान मण्डल द्वारा पारित धन विधेयक (Money Bill) व अन्य वित्त विधेयक (Finance Bill) राष्ट्रपति के लिए आरक्षित रखें।
  • संघ के पास विधायी शक्तियाँ अधिक है तथा अवशिष्ट शक्तयाँ भी संघ को दी गई है, समवर्ती सूची पर भी संघ को सर्वोच्चता या प्राथमिकता दी गई है तथा अनेक अवसरों पर संघ राज्य की विधायी शक्तियों पर अतिक्रमण कर सकता है लेकिन राज्य विधायिका संघ सूची के विषय पर अतिक्रमण (Encroach) नहीं कर सकती है।
  • संघ राज्य को कानून बनाने से रोक भी सकता है। (अनुच्छेद 200 के अनुसार राज्यपाल अपने पास रख सकता है। अर्थात् राज्यों को कानून बनाने से रोक भी सकता है।)

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