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भारत में मानसून (Monsoon in India)

भारत में मानसून (Monsoon in India)-

  • मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी भाषा के शब्द 'मौसिम' से हुई है।
  • 'मौसिम' का शाब्दिक अर्थ ऋतु होता है।
  • वास्तव में मानसून अर्द्ध स्थाई पवनों को कहा जाता है जो हर 6 महीने में अपनी दिशा में परिवर्तन करती है।
  • मानसून पवनों की दिशा परिवर्तिन की जानकारी अरबी यात्री अल मसूदी में दी थी।
  • मानसून प्रभावित क्षेत्रों में उष्टकटिबंधीय मानसून जलवायु पायी जाती है।
  • मानसून जलवायु दक्षिण एशिया, दक्षिण पूर्वी एशिया तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में पायी जाती है।
  • मानसून जलवायु की दो प्रमुख विशेषताएं है। जैसे-
  • (I) मानसून पवनों की दिशा में ऋतुवत परिवर्तन
  • (II) ग्रीष्म ऋतु में अधिक वर्षा
  • मानसून को समझने के लिए बहुत से सिद्धांत दिये गये है।
  • इन सिद्धांतों को 2 वर्गों में बांटा गया है। जैसे-
  • (I) चिरसम्मत परिकल्पना (Classical Concept)
  • (II) आधुनिक परिकल्पना (Modern Concept)


(I) चिरसम्मत परिकल्पना (Classical Concept)-

  • चिरसम्मत परिकल्पना के संबंधित वैज्ञानिक जैसे-
  • (A) एडमंड हैली


(II) आधुनिक परिकल्पना (Modern Concept)-

  • आधुनिक परिकल्पना से संबंधिक वैज्ञानिक जैसे-
  • (A) फ्लोन
  • (B) एम.टी.यिन
  • (C) पी.कोटेश्वरम
  • (D) रामास्वामी
  • (E) रामामूर्ति
  • (F) रामानाथम
  • (G) अनंतकृष्णन
  • (H) पंथ
  • (I) हेमिल्टन
  • (J) जम्बूनाथ


वसंत गोवारिकर (Vasant Gowariker)-

  • वसंत गोवारिकर को भारतीय मानसून मॉडल का जनक कहते हैं।


MONEX-

  • MONEX Full Form = Monsoon Experiment
  • MONEX का पूरा नाम = मानसून प्रयोग
  • MONEX की शुरुआत 1979 में भारत और सोवियत संघ के द्वारा की गई।
  • वर्तमान में बहुत से देश MONEX से जुड़े है।
  • MONEX प्रयोग हिंद महासागर में हो रहा है।
  • MONEX प्रयोग को शीतकालीन MONEX (Winter MONEX) व ग्रीष्मकालीन MONEX (Summer MONEX) के रूप में किया जा रहा है।


मानसून से संबंधित सिद्धांत (Monsoon Related Theories)-

  • (अ) चिरसम्मत परिकल्पना (Classical Concept)

  • (ब) आधुनिक परिकल्पना (Modern Concept)


(अ) चिरसम्मत परिकल्पना (Classical Concept)-

  • 1. उष्मीय सिद्धांत (Thermal Theory)- एडमंड हैली


1. उष्मीय सिद्धांत (Thermal Theory)-

  • उष्मीय सिद्धांत एडमंड हैली के द्वारा दिया गया है।
  • एडमंड हैली के अनुसार मानसून निर्माण का प्रमुख कारण जल तथा स्थल का विभेदी तापन है।
  • ग्रीष्म ऋतु के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप अत्यधिक गर्म हो जाता है अतः भारत पर निम्न दाब परिस्थितियों का निर्माण होता है इसकी तुलना में हिंद महासागर में उच्च दाब परिस्थितियां पायी जाती है अतः पवनें हिंद महासागर से भारतीय उपमहाद्वीप के ओर चलती है इन्हें दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनें कहते हैं। इन पवनों के कारण ग्रीष्म ऋतु में भारत में वर्षा प्राप्त होती है।
  • शीत ऋतु के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप पर उच्च दाब परिस्थितियों का निर्माण होता है। इसकी तुलना में हिंद महासागर में निम्न दाब परिस्थितियां पायी जाती है अतः पवनें भारतीय उपमहाद्वीप से हिंद महासागर की ओर चलती है इन्हें उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें कहते हैं। ये पवनें जल से स्थल की ओर चलती है अतः यह सामान्यतः वर्षा नहीं करती है। इन पवनों की एक शाखा शीत ऋतु में कोरोमंडल तट पर वर्षा करती है।
  • उष्मीय सिद्धांत की कमियां-
  • यह सिद्धांत निम्नलिखित परिघटनाओं को नहीं समझा पाया।-
  • (I) अप्रैल तथा मई के महीने में निम्न दाब के बावजूद वर्षा प्राप्त नहीं होती।
  • (II) मानसून की कोई निश्चित तिथि निर्धारित नहीं है।
  • (III) प्रत्येक वर्ष वर्षा की मात्रा में अंतर पाया जाता है।
  • इस सिद्धांत की कमियों को दूर करने के लिए आधुनिक परिकल्पना के अंतर्गत बहुत से सिद्धांत दिये गये है।


(ब) आधुनिक परिकल्पना (Modern Concept)-

  • एडमंड हैली के उष्मीय सिद्धांत की कमियों को दूर करने के लिए आधुनिक परिकल्पना के अंतर्गत बहुत से सिद्धांत दिये गये हैं। जैसे-
  • 1. ITCZ सिद्धांत (ITCZ Theories)- फ्लोन
  • 2. जेट स्ट्रीम सिद्धांत (Jet Stream Theories)-
  • (I) उपोष्ण कटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम (Subtropical Westerly Jet Stream- STWJS)
  • (II) उष्ण कटिबंधीय पूर्वा जेट स्ट्रीम तथा तिब्बत का पठार [Tropical Easterly Jet Stream (TEJS) and Tibet Plateau]
  • 3. अल नीनो (El Nino)
  • 4. ला नीना (La Nina)
  • 5. हिंद महासागरीय द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole)


1. ITCZ सिद्धांत (ITCZ Theories)-

  • ITCZ Full Form = Inter Tropical Convergence Zone
  • ITCZ का पूरा नाम = अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र

  • इस सिद्धांत के अन्य नाम-
  • (I) अंतः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र का सिद्धांत (Theory of Inter Tropical Convergence Zone)
  • (II) गतिशील परिकल्पना (Dynamic Concept)
  • (III) वायुपुंज का सिद्धांत (Airmass Theory)
  • (IV) विषुवत रेखीय पछुआ पवनों का सिद्धांत (Theory of Equatorial Westerlies)
  • यह सिद्धांत 1950 के दशक में फ्लोन द्वारा दिया गया था।
  • इस सिद्धांत के अनुसार मानसून निर्माण का प्रमुख कारण दाब पेटियों का विस्थापन है।
  • सूर्य की बदलती स्थित के कारण दाब पेटियों का विस्थापन होता है।
  • जून के महीने (ग्रीष्म ऋतु) के दौरान भारत पर ITCZ आकर स्थापित हो जाता है तथा अन्य दाब पेटियां भी थोड़ा उत्तर की विस्थापित हो जाती है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध की उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पेटी (STHPB) 40°-45° उत्तरी अक्षांश के बीच स्थापित होती है।
  • दक्षिण गोलार्द्ध की उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पेटी (STHPB) 10°-15° दक्षिणी अक्षांश के बीच स्थापित हो जाती है। इस उच्च दाब पेटी से ITCZ की ओर पवनें चलती है। यह दक्षिणी गोलार्द्ध की व्यापारिक पवनें होती है।
  • उत्तरी गोलार्द्ध में प्रवेश करने के बाद ये पवनें कोरिओलिस बल के कारण दांयी ओर मुड़ कर दक्षिण-पश्चिम मानसून पवनों का रूप ले लेती है।
  • इन पवनों के कारण भारत में जून-जुलाई-अगस्त के दौरान वर्षा प्राप्त होती है।
  • शीत ऋतु के दौरान ITCZ दक्षिणी गोलार्द्ध में विस्थापित हो जाता है। अन्य दाब पेटियां भी थोड़ा दक्षिण की ओर विस्थापित होती है।
  • भारत पर उत्तरी गोलार्द्ध की उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पेटी (STHPB) स्थित होती है।
  • इस उपोष्ण कटिबंधीय उच्च दाब पेटी (STHPB) से दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थित ITCZ की ओर पवनें चलती है। इन्हें उत्तर-पूर्वी मानसून पवनें कहते हैं।
  • स्थल के जल की ओर चलने के कारण यह पवनें सामान्यतः शुष्क होती है तथा भारत में शीत ऋतु के दौरान सामान्यतः वर्षा नहीं करती है।


स्पेट की चक्रवाती परिकल्पना (Cyclonic Hypothesis of Spate)-

  • स्पेट ऑस्ट्रेलियन भूगोलवेत्ता थे।
  • स्पेट के अनुसार मानसून एक चक्रवाती परिकल्पना है।
  • मानसून का निर्माण दो भिन्न प्रकृति के वायुपुंजों के मिलने से बने वाताग्र (Front) के कारण होती है।
  • वाताग्र वाले क्षेत्र में वर्षा होती है।
  • स्पेट के अनुसार ग्रीष्म ऋतु में वाताग्र निर्माण की प्रक्रिया प्रबल होती है अतः ग्रीष्म ऋतु में अधिक वर्षा प्राप्त होती है।
  • शीत ऋतु के दौरान वाताग्र निर्माण की प्रक्रिया क्षीण (Weak) होती है अतः शीत ऋतु के दौरान कम वर्षा प्राप्त होती है।


2. जेट स्ट्रीम सिद्धांत (Jet Stream Theories)-

  • क्षोभमंडल में 8 से12 km की ऊँचाई पर पश्चिम से पूर्व की ओर तीव्र गति से विसर्पाकार रूप में चलने वाली पवनों को जेट स्ट्रीम कहते हैं।
  • जेट स्ट्रीम की तीव्रता एवं गति शीत ऋतु के दौरान अधिक होती है।
  • जेट स्ट्रीम समदाब रेखाओं के समानांतर चलती है। अतः इन्हें भूविक्षेपी पवनें भी कहते हैं।
  • विश्व में 4 स्थाई जेट स्ट्रीम होती है।
  • कुछ जेट स्ट्रीम अस्थाई भी होती है।
  • जेट स्ट्रीम का प्रभाव भारतीय मानसून पर पड़ता है।


(I) उपोष्ण कटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम (Subtropical Westerly Jet Stream- STWJS)-

  • इस जेट स्ट्रीम के मानसून पर प्रभाव की जानकारी एम.टी.यिन (M.T. Yin) ने दी थी।
  • यह स्थाई जेट स्ट्रीम है।
  • दाबपेटियों के विस्थापन के साथ यह जेट स्ट्रीम विस्थापित होती है।
  • शीत ऋतु के दौरान इस जेट स्ट्रीम का प्रभाव भारत पर अधिक रहता है।
  • शीत ऋतु के दौरान यह जेट स्ट्रीम हिमालय पर्वत से टकराकर दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। जैसे-
  • (अ) उत्तरी शाखा
  • (ब) दक्षिणी शाखा
  • जेट स्ट्रीम की दक्षिणी शाखा का प्रभाव भारत पर रहता है।
  • इस दक्षिणी शाखा के कारण भारत पर बनी उच्च दाब परिस्थितियां प्रबल (Strong) हो जाती है।
  • प्रबल उच्च दाब के कारण भारत में वायु का अवतलन (Descending Air) होता है अतः बादल निर्माण एवं वर्षा की स्थित शीत ऋतु के दौरान नहीं बन पाती है।
  • भारत में वायुमंडलीय स्थायित्व की स्थिति होती है।
  • यह जेट स्ट्रीम भूमध्य सागर में बनने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को भारत की ओर ले आती है।
  • इन चक्रवातों के कारण शीत ऋतु में उत्तर-पश्चिमी भारत में वर्षा प्राप्त होती है। इस वर्षा को मावठ कहते हैं।
  • इस पूरी परिघटना को पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbance) कहा जाता है।
  • विशेष- जेस स्ट्रीम के विभाजन में हिमालय तथा तिब्बत का पठार दोनों की ही भूमिका होती है।
  • ग्रीष्म ऋतु के आगमन के साथ इस जेट स्ट्रीम की दक्षिणी शाखा उत्तर की ओर विस्थापित होने लगती है।
  • अप्रैल तथा मई के महीने में जेट स्ट्रीम की दक्षिणी शाखा भारत पर उपस्थित होती है जिसके कारण निम्न दाब के बावजूद भारत में वर्षा प्राप्त नहीं होती है।
  • जून के महीने में ITCZ भारत पर आकर स्थापित हो जाता है तथा उपोष्ण कटिबंधीय पछुआ जेट स्ट्रीम पूर्ण रूप से भारत से हट जाती है।
  • भारत में मानसून वर्षा उस तिथि को प्रारम्भ होती है जब जेट स्ट्रीम पूर्ण रूप से भारत से हट जाती है अतः यह जेट स्ट्रीम मानसून को आगमन को प्रभावित करती है।


मावठ एवं पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव (Effects of Maavath and Western Disturbance)-

  • मावठ वर्षा रबी की फसल के लिए लाभदायक होती है।
  • यदि मावठ वर्षा मार्च, अप्रैल व मई के महीने के दौरान प्राप्त होती है तो फसलों को नुकसान पहुँचाती है।
  • पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में पश्चिमी विक्षोभ के कारण बर्फबारी होती है।
  • बर्फबारी के कारण शीत ऋतु की तीव्रता बढ़ जाती है तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में शीत लहरे चलती है।
  • पश्चिमी विक्षोभ के कारण कोहरे (Fog) एवं पाले (Frost) की स्थिति बनती है।
  • मावठ के कारण कई बार अन्य आपदाओं का बढ़ावा मिलता है। जैसे- बाढ़, भूस्खलन आदि।


(II) उष्ण कटिबंधीय पूर्वा जेट स्ट्रीम तथा तिब्बत का पठार [Tropical Easterly Jet Stream (TEJS) and Tibet Plateau]-

  • इस जेट स्ट्रीम तथा तिब्बत के पठार के मानसून पर प्रभाव की जानकारी पी. कोटेश्वरम (P.Koteshwaram) ने दी थी।
  • यह अस्थाई जेट स्ट्रीम है जो जून, जुलाई व अगस्त के महीनों के दौरान बनती है।
  • इस जेट स्ट्रीम का मानसून पर सकारात्मक प्रभाव रहता है।
  • तिब्बत का पठार विश्व का सबसे बड़ा पर सबसे ऊंचा पठार है।
  • जून के महीने में तिब्बत का पठार अत्यधिक गर्म हो जाता है अतः वहाँ वायु गर्म होकर ऊपर उठती है
  • तिब्बत के पठार पर निम्न दाब परिस्थितियों का निर्माण होता है।
  • तिब्बल के पठार के ऊपर उठने वाली वायु उच्च वायुमंडल में एकत्रित हो जाती है तथा यह वायु उच्च वायुमंडल में गति करते हुए दक्षिणी हिंद महासागर की ओर जाती है।
  • तिब्बत के पठार से हिंद महासागर की ओर चलने वाली पवनें कोरिओलिस बल के कारण दांयी ओर मुड़ जाती है तथा उष्ण कटिबंधीय पूर्वा जेट स्ट्रीम का रूप ले लेती है।
  • तिब्बत के पठार से उठने वाली वायु दक्षिणी हिंद महासागर में अवतलित होती है जिससे मेडागास्कर (Madagascar) द्वीप के पास मेस्करेन हाई (Mascarene High) नामक उच्च दाब केंद्र का निर्माण होता है।
  • मेस्करेन हाई से मानसून पवनों के साथ भारत की ओर पवनें चलती है इससे मानसून पवनों की तीव्रता बढ़ जाती है।
  • उष्ण कटिबंधीय पूर्वा जेट स्ट्रीम के कारण भारत तथा हिंद महासागर के बीच पायी जाने वाली दाब प्रवणता बढ़ जाती है इससे मानसून पवनों की गति बढ़ जाती है अतः तिब्बत के पठार तथा पूर्वा जेट स्ट्रीम का भारतीय मानसून पर सकारात्मक प्रभाव रहता है।


सोमाली जेट स्ट्रीम (Somali Jet Stream)-

  • यह निम्न वायुमंडलीय जेट स्ट्रीम है जो पूर्व अफ्रीका के पर्वतों से टकराकर भारत की ओर विक्षेपित होती है।
  • यह जेट स्ट्रीम भारत की ओर मानसून पवनों के प्रवाह को प्रबल करती है अतः इस जेट स्ट्रीम का भारतीय मानसून पर सकारात्मक प्रभाव है।


अल नीनो तथा ला नीना परिकल्पना (El Nino and La Nina Concept)-

  • दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग के जल का तापमान भारतीय मानसून को प्रभावित करता है।
  • जब पेरु के तट के पास सामान्य से गर्म धारा होती है उसे अलनीनो की स्थिति कहते हैं।
  • अल नीनो का भारतीय मानसून पर नकारात्मक प्रभाव होता है।
  • जब पेरु के तट के पास सामान्य से ठंडी धारा होती है उसे ला नीना की स्थिति कहते हैं।
  • ला नीना का भारतीय मानसून पर सकारात्मक प्रभाव होता है।
  • अल नीनो एवं ला नीना की स्थित 2 से 5 वर्ष में बनती है।
  • एक बार बनने के बाद अल नीनो एवं ला नीना की स्थिति 9 से 12 महीनों तक बनी रहती है।
  • राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन (National Oceanic and Atmospheric Administration) अली नीनो एवं ला नीना की घोषणा करता है।


3. अल नीनो (El Nino)-

  • अल नीनो स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ बालक होता है।
  • अल नीनो दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में बनने वाली गर्म धारा होती है।
  • अल नीनो की स्थिति दिसम्बर में क्रिसमस के दौरान बनती है अतः अल नीनो को ईशु का शिशु कहते हैं।
  • अल नीनो को महासागरीय भूखार भी कहते हैं।
  • अल नीनो का भारतीय मानसून पर नकारात्मक प्रभाव होता है।
  • अल नीनो के दौरान पेरु के तट के पास निम्न दाब परिस्थितियां पायी जाती है तथा वायु के संवहन के कारण इस क्षेत्र में वर्षा प्राप्त होती है।
  • ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट के पास उच्च दाब परिस्थितियां पायी जाती है तथा वायु के अवतलन के कारण इस क्षेत्र में वर्षा प्राप्त नहीं होती।
  • वॉकर चक्र (Walker Cell) की दिशा घड़ी की विपरित दिशा में होती है।
  • दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में निम्न दाब के रूप में पवनों को आकृषित करने वाला बल प्रभावि होती है अतः दक्षिणी गोलार्द्ध की पूर्वा पवनें कमजोर होती है परिणाम स्वरूप भारत की ओर जाने वाली मानसून पवनें भी कमजोर होती है इस दौरान दक्षिणी हिंद महासागर में वाष्पीकरण की मात्रा कम हो जाती है अतः भारत की ओर जाने वाली मानसून पवनों को कम जलवाष्प प्राप्त होता है इससे भारत में होने वाली वर्षा की मात्रा कम हो जाती है अतः अल नीनो को भारतीय मानसून पर नकारात्मक प्रभाव होता है।


अल नीनो के प्रभाव (Impact of El Nino)-

  • दक्षिणी प्रशांत महासागर के जल के तापमान में परिवर्तन होता है।
  • दक्षिणी प्रशांत महासागर में पायी जाने वाली दाब परिस्थितियां परिवर्तित होती है।
  • विषुवत रेखीय वायुमंडलीय परिसंचरण में विकृति आ जाती है। (वॉकर चक्र की दिशा बदल जाती है।)
  • महासागरीय जल के वाष्पीकरण में अनियमितता आ जाती है।
  • दक्षिण पूर्वी एशिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया तथा पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में वर्षा कम प्राप्त होती है।
  • मानसून प्रभावित क्षेत्रों में सुखे की स्थिति का निर्माण होता है इससे दावानल (वन अग्नि) की स्थिति बढ़ जाती है।
  • इक्वाडोर तथा पेरु के तटवर्ती क्षेत्र में भारी वर्षा प्राप्त होती है इससे इन क्षेत्रों में बाढ़ एवं मृदा अपरदन की समस्या उत्पन्न होती है।
  • पेरु के तट के पास पादप प्लवकों की वृद्धि दर कम हो जाती है जिससे इस क्षेत्र में मछलियों की संख्या कम हो जाती है इसका दक्षिण अमेरिका के मत्स्यन उद्योग में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
  • मानसून के आगमन में देरी हो जाती है।
  • मानसून प्रभावित क्षेत्रों में कृषि उत्पादन कम हो जाता है इससे देश की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


वॉकर चक्र (Walker Cell)-

  • दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी तथा पश्चिमी भाग की दाब परिस्थितियों में पाये जाने वाले अंतर के कारण होने वाले वायु परिसंचरण को वॉकर चक्र कहते हैं।
  • सामान्य परिस्थितियों में वॉकर चक्र की दिशा घड़ी की दिशा में होती है तथा अल नीनो के दौरान वॉकर चक्र के दिशा घड़ी की विपरित दिशा में होती है।


अल नीनो दक्षिणी दोलन (ENSO)-

  • ENSO Full Form = El Nino Southern Oscillation
  • ENSO का पूरा नाम = अल नीनो दक्षिणी दोलन
  • अल नीनो के कारण दक्षिणी प्रशांत महासागर के वॉकर चक्र की दिशा में होने वाले परिवर्तन को अल नीनो दक्षिणी दोलन कहते हैं।
  • अल नीनो के दौरान वॉकर चक्र की दिशा घड़ी की विपरित दिशा में हो जाती है जो सामान्यतः घड़ी की दिशा में होती है।


दक्षिणी दोलन सूचकांक (SOI)-

  • SOI Full Form = Southern Oscillation Index
  • SOI का पूरा नाम = दक्षिणी दोलन सूचकांक
  • इस सूचकांक के अंतर्गत ताहिती के दाब में से डार्विन का दाब घटाया जाता है।
  • यदि इस सूचकांक का उत्तर धनात्मक होता है तो वह सामान्य परिस्थितियों का सूचक होता है।
  • यदि इस सूचकांक का उत्तर ऋणात्मक होता है तो वह अल नीनो की स्थिति को दर्शाता है अतः यह सूचकांक अल नीनो के निर्माण एवं तीव्रता की जानकारी देता है।
  • SOI = ताहिती का दाब - डार्विन का दाब
  • SOI = Tahiti's Pressure - Darwin's Pressure
  • Normal= 1000 mb - 950 mb = + 50 mb
  • El Nino= 900 mb - 950 mb = - 50 mb


    4. ला नीना (La Nina)-

    • ला नीना स्पेनिश भाषा का शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ बालिका (Female Child/Little Girl) होता है।
    • ला नीना दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में बनने वाली ठंडी महासागरीय धारा है।
    • ला नीना का भारतीय मानसून पर सकारात्मक प्रभाव रहता है।
    • ला नीना की स्थिति सामान्यतः अल नीनो के बाद बनती है।
    • अल नीनो के दौरान दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में भारी वर्षा प्राप्त होती है जिससे इस क्षेत्र का जल स्तर बढ़ जाता है अतः महासागरीय जल पूर्वी से पश्चिम की ओर बहने लगता है इससे पेरु के तट के पास का गर्म जल विस्थापित हो जाता है अतः इस क्षेत्र में ठंडे जल का अपवलन (Upwelling) होता है।
    • ठंडे जल के अपवलन के कारण ला नीना का निर्माण होता है।
    • ला नीना के दौरान दक्षिणी प्रशांत महासागर के पूर्वी भाग में उच्च दाब परिस्थितियां पायी जाती है।
    • इस उच्च दाब के रूप में यहाँ पवनों को धकेलने वाला बल प्रभावी होता है अतः इस क्षेत्र की पूर्वा पवनें प्रबल होती है।
    • वॉकर चक्र की दिशा घड़ी के दिशा में होती है।
    • ऑस्ट्रेलिया के पूर्वी तट पर संवहन के कारण वर्षा प्राप्त होती है।
    • हिंद महासागर में वाष्पीकरण की मात्रा अत्यधिक बढ़ जाती है अतः भारत की ओर जाने वाली मानसून पवनों को अधिक जलवाष्प प्राप्त होता है जिससे भारत में होने वाली वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है।


    ला नीना का ट्रिपल डिप (Triple Dip of La Lina)-

    • वर्ष 2020, 2021, 2022 में लगातार तीन वर्षों तक ला नीना की स्थिति बनी रही जिसे ला नीना का ट्रिपल डिप कहा जाता है।


    अल नीनो मोडोकी (El Nino Modoki)-

    • सामान्यतः अल नीनो के कारण गर्म पानी पेरु के तट के पास होता है लेकिन यही गर्म पानी पेरु के तट के पास होने के बजाय प्रशांत महासागर के मध्य भाग में हो तो उसे अल नीनो मोडोकी की स्थित कहा है। अर्थात् अल नीनो मोडोकी स्थिति में गर्म जल प्रशांत महासागर के मध्य भाग में होता है जिससे प्रशांत महासागर के मध्य भाग में निम्न वायु दाब होता है।
    • वायु का संवहन भी प्रशांत महासागर के मध्य भाग में होगा।
    • जब प्रशांत महासागर में वायु का संवहन होगा तब थोड़ी वायु पेरु के तट के पास उतरती हो तथा थोड़ी वायु ऑस्ट्रेलिया के तट के पास उतरती है अर्थात् वायु दोनों तरफ उतरती है। जिससे दोनों तटों पर उच्च दाब की स्थ्ति बनती है।
    • जो वॉकर चक्र सामान्यतः सिंगल होता है वह दो भागों में विभाजित हो जाता है।
    • इस स्थिति में वर्षा प्रशांत महासागर के मध्य भाग में होती है।
    • इस स्थ्ति में पेरु के तट व ऑस्ट्रेलिया के तट पर वर्षा नहीं होती है।


    5. हिंद महासागरीय द्विध्रुव (Indian Ocean Dipole)-

    • हिंद महासागर के पश्चिमी तथा पूर्वी भाग के जल के तापमान में अंतर पाया जाता है इसे हिंद महासागरीय द्विध्रुव कहते हैं।
    • जब हिंद महासागर के पश्चिमी भाग में गर्म जल होता है तो इसकी तुलना में पूर्वी भाग में ठंडा जल होता है इसे सकारात्मक द्विध्रुव की स्थिति कहते हैं। इस स्थिति के दौरान पूर्वी अफ्रीका तथा दक्षिण एशिया में भारी वर्षा प्राप्त होती है। इस स्थिति के दौरान यदि अल नीनो का निर्माण हो तो भारत पर अल नीनो का नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ता है तथा भारत में सामान्य वर्षा प्राप्त होती है।
    • जब हिंद महासागर के पूर्वी भाग में गर्म जल होता है तो इसकी तुलना में पश्चिमी भाग में ठंडा जल होता है इसे नकारात्मक द्विध्रुव की स्थिति कहते हैं। इस स्थिति के दौरान दक्षिण पूर्वी एशिया, इंडोनेशिया तथा उत्तरी ऑस्ट्रेलिया में भारी वर्षा प्राप्त होती है। इस दौरान यदि अल नीनो की स्थिति बनी हो भारत पर अल नीनो का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।


    मेडन जुलियन दोलन (MJO)-

    • MJO Full Form - Madden Julian Oscillation
    • MJO का पूरा नाम = मेडन जुलियन दोलन
    • यह उष्ण कटिबंधीय वायु परिसंचरण है जो पश्चिम से पूर्व की ओर घूमता रहता है।


    धूलभरी आँधियां (Dust Storms)-

    • इन आँधियों का मानसून पर सकारात्मक प्रभाव रहता है।
    • अरब सागर के ऊपर ये धूल के कण उष्मा पंप का कार्य करते हैं जिसके कारण अरब सागर में वाष्पीकरण की मात्रा बढ़ जाती है अतः इस क्षेत्र में गुजरने वाली मानसून पवनों को अधिक जलवाष्प प्राप्त होता है। इससे भारत में होने वाली वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है।
    • उच्च वायुमंडल में संघनन की क्रिया इन धूल के कणों के चारों ओर होती है जिसके कारण बादल निर्माण होता एवं वर्षा अधिक प्राप्त होती है।


    ठोस कण (Aerosols)-

    • उद्योगों से निकलने वाले ठोस कण (Industrial Aerosols) मानसून पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

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