राजस्थान की वेशभूषा (Costumes of Rajasthan)-
- कालीबंगा व आहड़ सभ्यता के काल से ही राजस्थान में सूती वस्त्रों का प्रचलन था।
- इन स्थानों से उत्खनन में प्राप्त रुई काटने के चक्र और टाकली इस बात को सिद्ध करती है कि उस काल के लोग रुई के वस्त्रों का उपयोग करते थे।
राजस्थान में पुरुषों की वेशभूषा-
- 1. पगड़ी
- 2. अंगरखी
- 3. अचकन
- 4. चोगा
- 5. धोती
- 6. बिरजस या ब्रीचेस
- 7. कमरबंद या पटका
- 8. पछेवड़ा
- 9. घूघी
- 10. आतमसुख
1. पगड़ी-
- यह पुरुषों द्वारा सिर पर धारण की जाती है।
- इसे साफा, पोतिया, पाग, बागा एवं पेंचा भी कहते हैंं।
- यह आन-बान और शान का प्रतीक मानी जाती है।
- इसे सजाने के लिए तुर्रे, सरपेच, बालाबंदी, धुगधुगी, पछेवड़ी, लटकन, फतेपेच आदि का प्रयोग किया जाता है।
- जोधपुर की खिड़कियां पाग बहुत लोकप्रिय है।
- जोधपुर में मौसम एवं उत्सवों के अनुसार भिन्न-भिन्न प्रकार की पगड़ी पहनी जाती है। जैसे-
- (I) श्रावण में लहरिया पगड़ी
- (II) विवाहोत्सव पर मोठड़े की पगड़ी
- (III) दशहरे पर भदील पगड़ी
- (IV) होली पर फूल-पत्ती की छपाई वाली पगड़ी
- सुनार आंटे वाली पगड़ी का प्रयोग करते हैं।
- बंजारे मोटी पट्टेदार पगड़ी का प्रयोग करते हैं।
- राजस्थान में कई किस्म एवं शैलियों की पगड़ियां प्रचलित है। जैसे-
- (I) अटपटी पगड़ी- मेवाड़
- (II) अमरशाही पगड़ी
- (III) उदेशाही पगड़ी
- (IV) खंजरशाही पगड़ी
- (V) शिवशाही पगड़ी
- (VI) विजयशाही पगड़ी
- (VII) शाहजहाँनी पगड़ी
2. अंगरखी-
- यह पुरुषों द्वारा शरीर के ऊपरी भाग में पहनी जाती है।
- इसे बुगतरी, तनसुख, दुतई, गाबा, गदर, मिरजाई आदि नामों भी जाना जाता है।
3. अचकन-
- यह पुरुषों द्वारा शरीर के ऊपरी भाग में पहने जाने वाला परिधान है।
- यह घुटनों तक लम्बा होता है।
- यह मुस्लिम समुदाय में अधिक प्रचलित है।
4. चोगा-
- यह एक लम्बी आस्तीन वाला घेरदार परिधान है।
- यह पुरुषों द्वारा अंगरखी के ऊफर पहना जाता है।
5. धोती-
- यह पुरुषों की पारम्परिक वेशभूषा है।
- यह कमर के नीचे पहनी जाती है।
6. बिरजस या ब्रीचेस-
- यह एक चुड़ीदार पायजामेनुमा वस्त्र है।
- यह पैरों से घुटनों तक तंग तथा घुटनों से कमर तक घेरदार चौड़ा होता है।
- यह मुख्यतः घुड़सवारी एवं उत्सवों के दौरान पहना जाता है।
7. कमरबंद या पटका-
- यह कमर पर बांधे जाने वाली पट्टीनुमा वस्त्र है।
- इसमें तलवार आदि रखी जाती है।
8. पछेवड़ा-
- यह मोटी कंबल की तरह का वस्त्र है।
- यह सर्दी के दिनों में ओढ़ने के लिए प्रयोग में लिया जाता है।
9. घूघी-
- ऊन से बनी घूघी अरशा व सर्दी से बचाव के लिए ओढ़ी जाती है।
10. आतमसुख-
- यह मुख्यतः तेज सर्दी में ओढ़ा जाता है।
- इसकी तुलना कश्मीरी फिरन से की जा सकती है।
राजस्थान में महिलाओं की वेशभूषा-
- 1. ओढ़नी
- 2. कुर्ती और काँचली
- 3. तिलका
- 4. दामड़ी
1. ओढ़नी-
- स्त्रियां सिर, चेहरे एवं ऊपरी शरीर को ढकने के लिए ओढ़नी का प्रयोग करती है।
- पोमचा, लहरिया, मोठड़ा एवं लूगड़ा आदि ओढ़नियों के विभिन्न प्रकार है।
- पोमचा- यह एक प्रकार की ओढ़नी है जो नवजात शिशु की माँ के लिए उसके मातृपक्ष की ओर से आता है।
- लड़की के जन्म पर शिशु की माँ गुलाबी पोमचा ओढ़ती है।
- लड़के के जन्म पर शिशु की माँ पीला पोमचा ओढ़ती है।
- लहरिया- लहरिया श्रावण मास में तीज पर विशेष रूप से पहना जाता है।
- होली के अवसर पर फागणियां लहरिया पहना जाता है।
- लाल रंग की ओढ़नी जिस पर धागों से कसीदाकारी होती है दामणी कहलाती है।
- लूगड़ा- लूगड़ा विवाहित स्त्रियों द्वारा पहना जाता है।
- पाँच संख्या को शुभ माना जाने के कारण मांगलिक अवसरों पर पचरंगा लहरिया पहना जाता है।
- लहरिये के प्रकार निम्न है।-
- (I) प्रतापशाही लहरिया- इसका उल्लेख साहित्य में मिलता है।
- (II) राजशाही लहरिया- यह लहरिया जयपुर के रंगरेज रंगते थे जिसमें चमकदार गुलाबीन रंग की आड़ी रेखाएं बनती थी।
- (III) समुद्र लहरिया- इसमें चौड़ी-चौड़ी धारियां बनती है तथा यह 2, 3, 5, 7 रंगों में बनता है।
2. कुर्ती और काँचली-
- कांचली आस्तीन वाला एक आंतरिक वस्त्र होता है जो महिला द्वारा शरीर के ऊपरी हिस्से में पहना जाता है।
- कुर्ती बिना बांह के ब्लाउज की तरह का एक वस्त्र होता है जो काँचली के ऊपर पहना जाता है तथा यह महिलाओं के शरीर को गर्दन से कमर तक ढकता है।
3. तिलका-
- यह मुस्लिम स्त्रियों का पहनावा है।
4. दामड़ी-
- मारवाड़ की स्त्रियां लाल रंग की धागों की कसीदाकारी की हुई ओढ़नी पहनती है जिसे दामड़ी कहा जाता है।
राजस्थान में आदिवासियों की वेशभूषा-
- 1. अंगरखा
- 2. अंगोछा
- 3. कटकी
- 4. नांदणा या नानड़ा
- 5. रेनसाई
- 6. जामसाई साड़ी
- 7. कछाबू
- 8. फूदड़ी
- 9. केरी भांत की ओढ़नी
- 10. ज्वार भांत की ओढ़नी
- 11. तारा भांत की ओढ़नी
- 12. लहर भांत की ओढ़नी
1. अंगरखा-
- यह पुरुषों द्वारा कमर के ऊपर पहना जाता है।
- इस पर सफेद धागे से कढ़ाई की जाती है।
- इसे सुंदर बनाने के लिए इस पर फूल, सितारे एवं ज्यामितीय आकृतियां बनाई जाती है।
2. अंगोछा-
- यह सिर पर पहना जाता है।
- इसके किनारों पर कंगूरे छेप होते हैं।
3. कटकी-
- इसे अविवाहित लड़कियों द्वारा सिर पर ओढ़ा जाता है।
4. नांदणा या नानड़ा-
- यह आदिवासी महिलाओं में प्रचलित सबसे प्राचीनतम पोशाक है।
- इसमें नीले रंग की छींट होती है जिस पर तितली भांत (प्रकार) के चतुष्कोण बने होते हैं।
5. रेनसाई-
- यह महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली एक प्रकार की साड़ी है।
6. जामसाई साड़ी-
- यह विवाह के अवसर पर आदिवासी महिलाओं द्वारा पहने जाने वाली साड़ी है।
7. कछाबू-
- आदिवासी महिलाओं के घुटनों तक के घाघरे को कछाबू कहते हैं।
8. फूदड़ी-
- यह आदिवासी महिलाओं का वस्त्र है।
- इस पर षट्कोणीय आकृति में तारें बने होते हैं।
9. केरी भांत की ओढ़नी-
- छोटे व कच्चे आम को केरी कहते हैं।
- इस ओढ़नी के किनारों एवं पल्लू पर केरी छपी होती है।
- इस ओढ़नी के मुख्य भाग पर छोटी-छोटी बिंदियां बनी होती है।
10. ज्वार भांत की ओढ़नी-
- इस ओढ़नी के दोनों ओर लाल रंग की छोटी-छोटी बिंदियां एवं लाल रंग के बेल-बूटे छपे होते हैं।
11. तारा भांत की ओढ़नी-
- यह लाल रंग की ओढ़नी है जिसकी जमीन (पृष्ठभूमि) भूरे रंग की होती है।
- इसके किनारे पर छोर तारों जैसा षट्कोणीय आकृति में दिखाई देता है।
12. लहर भांत की ओढ़नी-
- यह ज्वार भांत की बिंदियों से निर्मित लहरियां होता है।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य-
- राजस्थान में साड़ियों के विविध नाम प्रचलित थे। जैसे- चोल, निचोल, पट, दुकूल, अंसुक, वसन, चीर-पटोरी, चोरसो, धोरावासी आदि।
- राजस्थान में स्त्रियों के परिधान के लिए कई प्रकार के कपड़े प्रचलित थे। जैसे- जिन्हें जामादानी, किमखाब, टसर, छींट, मलमल, मखमल, पर्चा, मसरू, चिक, इलायची, महमूदी चिक, मीर-ए-बादला, नौरंगशाही, बहादुरशाही, फर्रूखशाही, बाफ्ता, मोमजामा, गंगाजली आदि।