Ads Area

राजस्थान के रीति-रिवाज एवं प्रथाएं (Customs and traditions of Rajasthan)

राजस्थान के रीति-रिवाज और परम्पराएं (Customs and Traditions of Rajasthan)-

  • 1. नाता प्रथा
  • 2. केसरिया
  • 3. जौहर
  • 4. सती प्रथा
  • 5. मानव व्यापार या दासों का क्रय-विक्रय
  • 6. समाधि प्रथा
  • 7. कन्यावध
  • 8. डाकन प्रथा
  • 9. त्याग प्रथा
  • 10. बाल विवाह
  • 11. विधवा विवाह
  • 12. सागड़ी प्रथा या बंधुआ मजदूर प्रथा
  • 13. हेलमा
  • 14. झगड़ा
  • 15. दापा
  • 16. मौताणा
  • 17. छेड़ा फाड़ना
  • 18. नातरा या आणा
  • 19. कूकडी रस्म
  • 20. टीका
  • 21. रीत
  • 22. सामेला
  • 23. पीठी
  • 24. फेरा
  • 25. सीख
  • 26. औलन्दी
  • 27. जांनोटण
  • 28. मौसर
  • 29. मुगधणा
  • 30. बढार का भोज


                                      1. नाता प्रथा-

                                      • यह भीलों व अन्य आदिवासी जातियों में प्रचलित प्रथ है।

                                      • इसमें पत्नी अपने पूर्व पति को छोड़कर अपनी पसंद के किसी अन्य पुरुष के साथ जीवन व्यतीत करती है।


                                      2. केसरिया-

                                      • राजपूत योद्धाओं द्वारा पराजय की स्थिति में या शत्रु के समक्ष आत्मसमर्पण करने के बाजाय केसरिया वस्त्र धारण कर शत्रु पर टूट पड़ना एवं मातृभूमि की रक्षा के लिए शहीद हो जाना केसरिया कहलाता था।

                                      • केसरिया का उद्देश्य शत्रु के समक्ष आत्मसमर्पण के बजाय युद्ध में लड़कर वीरगति को प्राप्त करना होता था।


                                      3. जौहर-

                                      • जब राजपूत योद्धाओं द्वारा केसरिया किया जाता था तब राजपूत वीरांगनाओं द्वारा शत्रु से अफने सतीत्व व आत्मसम्मान की रक्षा के लिए किया जाने वाला सामूहिक अग्नि स्नान जौहर कहलाता था।


                                      4. सती प्रथा-

                                      • इस प्रथा के अंतर्गत पत्नी स्वेच्छा से अपने पति के शव के साथ चिता में जीवित जलकर मृत्यु को वरण करती थी।
                                      • प्राचीनकाल में इस प्रथा को अद्वितीय एवं सर्वोच्च बलिदान का प्रतीक माना जाता था।
                                      • मध्यकाल में इस प्रथा को स्त्री की इच्छा के विपरीत परिवार की मर्यादा एवं प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए किया जाने लगा।
                                      • मध्यकाल में इस प्रथा ने भयावह रूप धारण कर लिया था।
                                      • इस प्रथा को सहगमन भी कहते हैं।
                                      • बूंदी राजस्थान की पहली रियासत थी जिसने 1822 ई. में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया था।
                                      • राजा राम मोहन राय के प्रयासों से 1829 ई. में गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिक ने एक अधिनियम पारित कर इस प्रथा को अवैध घोषित कर दिया था।
                                      • अलवर राजस्थान की पहली रियासत थी जिसने 1829 ई. के कानून के लागू होने के बाद सबसे पहले 1830 ई. में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया था।
                                      • राजस्थान की निम्न रियसातों ने इस प्रथा पर प्रतिबंध लगाया था।-
                                      • (I) बूंदी रियासत- 1822 ई.
                                      • (II) अलवर रियसात- 1830 ई.
                                      • (III) जयपुर रियासत- 1844 ई.
                                      • (IV) जोधपुर रियासत- 1848 ई.
                                      • (V) उदयपुर रियासत- 1861 ई.
                                      • (VI) कोटा रियासत- 1862 ई.


                                      5. मानव व्यापार या दासों का क्रय-विक्रय-

                                      • प्राचीन काल से ही राजस्थान में मनुष्यों का व्यापार दासों की खरीद-फरोख्त के रूप में होता था।
                                      • मुख्यतः युद्ध के कैदियों को दास के रूप में बाजार में बेचा व खरीदा जाता था।
                                      • राजस्थान में पहली बार जयपुर रियासत में जयपुर रिजेन्सी कौंसिल के अध्यक्ष जॉन लुडलो के प्रयासों से 1847 ई. में मानव व्यापार पर प्रतिबंध लगाया था।
                                      • उदयपुर में 1863 ई. में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया था।
                                      • कोटा में 1867 ई. में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया था।


                                      6. समाधि प्रथा-

                                      • इस प्रथा के अंतर्गत व्यक्ति मृत्यु को वरण करने के उद्देश्य से स्वयं को जल में डूबोकर या भूमि में दफनाकर अपने प्राण त्याग देता था।

                                      • सामान्यतः साधु महात्माओं व धार्मिक गुरुओं द्वारा इस प्रथा का पालन किया जाता था।
                                      • राजस्थान में पहली बार जयपुर रियासत में जयपुर रिजेन्सी कौंसिल के अध्यक्ष जॉन लुडलो के प्रयासों से 1844 ई. में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया गया था।


                                      7. कन्यावध-

                                      • यह प्रथा मध्यकाल में राजस्थान में  मुख्यतः राजपूतों में प्रचलित थी।
                                      • इस प्रथा में कन्या के जन्म लेते ही उसे मार दिया जाता था।
                                      • राजस्थान में ब्रिटिश शासन के अधिक प्रभावी होते ही ब्रिटिश सरकार ने रियासतों को कन्यावध पर लोक लगाने के आदेश दिये।
                                      • कैप्टन हॉल ने केंद्रशासित क्षेत्र मेरवड़ा की मेर पंचायत में इस प्रथा पर प्रतिबंध लगवाया था।
                                      • राजस्थान में पहली बार कोटा रियासत ने हाड़ौती के पॉलिटिकल एजेंट विलकिंसन के प्रयासों से 1834 ई. में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया था।
                                      • इस समय कोटा रियासत का शासक महाराव उम्मेदसिंह था।


                                      8. डाकन प्रथा-

                                      • इस प्रथा में स्त्रियों को डाकन होने के संदेह में शारीरिक एवं मानसिक यातनाएं व निर्मम अत्याचार किए जाते थे।
                                      • कई मामलों में डाकन होने के संदेह पर स्त्रियों को मार भी दिया जाता था।
                                      • राजस्थान में कई जातियाें मुख्यतः मीणा एवं भील में यह प्रथा अधिक प्रचलित थी।
                                      • राजस्थान में पहली बार उदयपुर में महाराणा स्वरूप सिंह ने ब्रिटिश सरकार की सलाह पर 1853 ई. में इस प्रथा को गैर कानूनी घोषित किया था।
                                      • इस प्रथा पर यह प्रतिबंध भीलों द्वारा अपनी प्रथाओं व मान्यताओं पर अंग्रेजी हस्तक्षेप के रूप में माना गया इसलिए यह आगामी जनजातीय आंदोलनों का प्रमुख कारण भी बना।


                                      9. त्याग प्रथा-

                                      • राजपूत परिवारों में कन्या के विवाह के समय कन्या के पिता द्वारा चारण, ढोली, भाट एवं अन्य जाति के लोगों को स्वेच्छा से दान दक्षिणा दी जाती थी जिसे त्याग कहा जाता था।
                                      • कालांतर में चारण, भाट आधि द्वारा हठपूर्वक मुँह माँगी दान दक्षिणा की माँग की जाने लगी जिसके फलस्वरूप यह प्रथा वधु पक्ष के लिए अतिरिक्त बोझ बन गया।
                                      • राजस्थान में पहली बार जोधपुर रियासत ने इस प्रथा को सीमित करने का प्रयास किया था।


                                      10. बाल विवाह-

                                      • इस प्रथा के अंतर्गत बच्चों का विवाह बिना ज्ञान व सहमति के कर दिया जाता है।
                                      • राजस्थान में आज भी आखा जीत के दिन बड़े पैमाने पर बाल विवाह होते हैं।
                                      • समाज सेवी हरविलास शारदा के प्रयासों से 1929 ई. में शारदा एक्ट पारित हुआ।
                                      • शारदा एक्ट के तहत लड़कियों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 15 वर्ष व लड़कों के लिए विवाह की न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई थी।
                                      • शारदा एक्ट से पूर्व जोधपुर के प्रधानमंत्री सरप्रताप द्वारा इस प्रथा के विरोध में प्रतिबंधक कानून बनाया गया था।


                                      11. विधवा विवाह-

                                      • वर्तमान समय में भी विधवा का जीवन अत्यंत कष्टपूर्ण होता है।
                                      • हम कल्पना कर सकते हैं की मध्यकाल में विधवा महिला का जीवन अत्यंत नारकीय एवं असहनीय रहा होगा।
                                      • समाज सेवी ईश्वरचंद विद्यासागर के अथक प्रयासों से लॉर्ड डलहोजी ने विधवाओं को इस दुर्दशा से मुक्त करने के लिए 1856 ई. में विधाव पुनर्विवाह अधिनियम बनाया था।
                                      • आर्य समाज के कार्यकर्ता चाँदकरण शारदा ने विधवा विवाह को प्रोत्साहित करने के लिए 'विधवा-विवाह' नामक पुस्तक लिखी थी।


                                      12. सागड़ी प्रथा या बंधुआ मजदूर प्रथा-

                                      • इस प्रथा के अंतर्गत किसी व्यक्ति को स्थानीय जमींदारों, साहूकारों आदि द्वारा उधार दी गई राशि के बदले उम्र भर नौकर के रूप में कार्य करने के लिए विवश किया जाता था। तथा इस कार्य के बदले में उसे कोई वेतन भी नहीं दिया जाता था।

                                      • 1961 ई. में राजस्थान सरकार ने सागड़ी निवारण अधिनियम पारित करके बंधुआ मजदूर को पूंजीपति जमीदारों व महाराजाओं के चंगुल से मुक्ति दिलवाने का प्रयास किया।


                                      13. हेलमा-

                                      • यह सामूहिक सहयोग की एक द्वितीय परंपरा है जिसमें सभी लोग मिलकर निःस्वार्थ रूप से एक दूसरे के कार्यों जैसे घर बनाने का कार्य, खेत के कार्य आदि में सहयोग करते हैं।


                                      14. झगड़ा-

                                      • यह एक प्रतिपूर्ति राशि होती है जिसे उस व्यक्ति द्वारा माँगी जाती है जिसकी पत्नी उसे छोड़कर किसी अन्य व्यक्ति के पास चली जाती है।

                                      • इस राशि का निर्धारण पंचायत द्वारा किया जाता है।

                                      • यह राशि दूसरे व्यक्ति द्वारा महिला के पूर्व पति को देना अनिवार्य होता है।


                                      15. दापा-

                                      • यह प्रथा कई आदिवासी जनजातियों में प्रचलित है।

                                      • इसमें वर पक्ष को शादी के लिए वधू के पिता को कुछ राशि का भुगतान करना होता है जिसे दापा कहते हैं।


                                      16. मौताणा-

                                      • यह किसी आदिवासी की किसी दुर्घटना या अन्य कारण से मृत्यु हो जाती है तो आरोपी व्यक्ति को मृतक के परिवार को एक निश्चित राशि का भुगतान करना होता है जिसे मौताणा कहते हैं।
                                      • इस राशि का निर्धारण पंचायत द्वारा किया जाता है।
                                      • यह राशि मृतक के परिवार को देना अनिवार्य होती है।
                                      • मौताणा मिलने के बाद ही मृतक का परिवार शव को घटना स्थल से उठाता है।


                                      17. छेड़ा फाड़ना-

                                      • यह प्रथा आदिवासियों द्वारा तलाक लेने का एक तरीका है।

                                      • इस प्रथा में आदिवासी व्यक्ति पंचायत के सामने अपनी पत्नी की साड़ी का एक हिस्सा फाड़ता है तथा ऐसा करने पर पति द्वारा अपनी पत्नी का त्याग करना समझा जाता है। जिसे छेड़ा फाड़ना कहते हैं।


                                      18. नातरा या आणा-

                                      • आदिवासियों में विधवा स्त्री का पुनर्विवाह करना नातरा या आणा कहलाता है।


                                      19. कूकडी रस्म-

                                      • यह सांसी जाति की एक रस्म है।

                                      • इसमें नवविवाहिता को विवाह उपरांत अपनी चारित्रिक पवित्रता की परीक्षा देनी होती थी।


                                      20. टीका-

                                      • विवाह निश्चित हो जाने पर लड़की के पिता या कन्या पक्ष की तरफ से लड़के के लिए दिये जाने वाले उपहार टीका कहलाते हैं।


                                      21. रीत-

                                      • विवाह निश्चित होने पर लड़के वालों की तरफ से लड़की को भेजे जाने वाले उपहार रीत कहलाते हैं।


                                      22. सामेला-

                                      • विवाह के दौरान जब वर वधु के यहाँ पहुंचता है तो वधु के पिता द्वारा अपने सगे संबंधियों के साथ वर पक्ष का स्वागत किया जाता है जिसे सामेला कहते हैं।


                                      23. पीठी-

                                      • वर व वधु का सैंदर्य निखारने के लिए स्त्रियों द्वारा उनके शरीर पर लगाया जाने वाला हल्दी व आटे का उबटन पीठी कहलाता है।


                                      24. फेरा-

                                      • वर व वधु परिणय सूत्र में अग्नि के समक्ष सात फेरे लगाकर एक दूसरे को सात वचन देते हैं।


                                      25. सीख-

                                      • विवाह के बाद वर, वधु एवं बारातियों को उपहार देकर विदा किया जाता है इन उपहारों को सीख कहते हैं।


                                      26. औलन्दी-

                                      • नववधू के साथ जाने वाली लड़की या स्त्री को औलन्दी कहते हैं।


                                      27. जांनोटण-

                                      • विवाह के दौरान वर पक्ष की तरफ से दिया जाने वाला भोज जांनोटण कहलाता है।


                                      28. मौसर-

                                      • मृत्यु भोज को ही मौसर कहा जाता है।

                                      • कुछ व्यक्ति जीवित अवस्था में ही मौसर कहवाते है जिसे जौसर कहते हैं।


                                      29. मुगधणा-

                                      • विनायक स्थापना के पश्चात भोजन पकाने के लिए काम में ली जाने वाली लकड़ियां मुगधणा कहलाती है।


                                      30. बढार का भोज-

                                      • विवाह के मौके पर दिये जाने वाला सामूहिक प्रतिभोज को ही बढार का भोज कहते हैं।

                                      Post a Comment

                                      0 Comments

                                      Top Post Ad

                                      Below Post Ad