* राजपुत काल-
-7 वी से 12 वी शताब्दी का काल भारत/राजस्थान के इतिहास मे राजपूत काल कहलाता है
-राजपूत शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है
-प्रारम्भ मे राजपूत शब्द राजा/राज परिवार से सम्बंधित था परन्तु कालान्तर मे राजपूत शब्द जाति विशेष के लिए प्रयोग होता है
* राजपूतो कि उत्पती का सिद्धांत-
1. अग्निकुण्ड का सिद्धांत-
-यह सिद्धांत पृथ्वीराज चौहान के दरबारी कवि चन्दरवरदाई द्वारा अपनी पुस्तक पृथ्वीराज रासौ मे दिया गया
-इनके अनुसार आबू के यज्ञ को बचाने हेतु वशिष्ठ मुनि ने चार को उत्पन किया
-(अ) गुर्जर-प्रतिहार
-(ब) परमार
-(स) चालुक्य/सोलंकी
-(द) चौहान
-राजपूत शब्द संस्कृत भाषा का शब्द है
-प्रारम्भ मे राजपूत शब्द राजा/राज परिवार से सम्बंधित था परन्तु कालान्तर मे राजपूत शब्द जाति विशेष के लिए प्रयोग होता है
* राजपूतो कि उत्पती का सिद्धांत-
1. अग्निकुण्ड का सिद्धांत-
-इनके अनुसार आबू के यज्ञ को बचाने हेतु वशिष्ठ मुनि ने चार को उत्पन किया
-(अ) गुर्जर-प्रतिहार
-(ब) परमार
-(स) चालुक्य/सोलंकी
-(द) चौहान
-इस सिद्धांत का समर्थन सूर्यमल्ल मिश्रण और मुहणौत नैणसी द्वारा किया गया
* मुहणौत नैणसी-
-मुहणोत नैणसी को राजस्थान का अबुल फजल कहा जाता है
-इन्हे अबुल फजल कि संज्ञा मुंशी देवी प्रसाद द्वारा दि गई
-मुहणौत नैणसी ने नैणसी री ख्यात व मारवाड़ परगना री विगत नामक ग्रंथ लिखे है
-मारवाड़ परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कहा जाता है
-नैणसी री ख्यात एकमात्र ख्यात है जिसमे कही भी 'ह' शब्द का प्रयोग नही हुआ
-मुहणौत नैणसी मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह के दरबारी कवि थे
2. कर्नल जेम्स टोड ने राजपूतो को शक/शिथियन कहा था
3. वी.ए. स्मिथ ने राजपूतो को हुण जाति कहा था
* विशेष- हुणो के आक्रमण से बचने के लिए चीन के महान राजा शि-हुआंग-टी द्वारा चीन कि महान दिवार का निर्माण करवाया गया तथा इस दिवार कि तुलना कुम्भलगढ़ दुर्ग से कि जाती है
4. डाँ. गोपिनाथ शर्मा के अनुसार राजपूत वैदिक ब्राह्मण क्षत्रिय संतान है
(अ) गुर्जर-प्रतिहार-
-प्रतिहार का अर्थ द्वारपाल होता है
-गर्जर-प्रतिहारो मे गुर्जर जाति का प्रतिक न होकर एक क्षेत्र/जगह विशेष का प्रतिक है
-चीनी यात्री हवेंसाग ने भी गुर्जर-प्रतिहार मे गुर्जर जगह का प्रतिक है व अपनी पुस्तक सी.यु.कि मे लिखा है कि प्रतिहार गुजरात्रा कि सिमा के सुरक्षा प्रहरी थे
* एहोल अभिलेख
-सर्वप्रथम गुर्जर जाति का उल्लेख एहोल अभिलेख मे है
-एहोल अभिलेख चालुक्य राजा पुलकेशियन द्वितिय का है जिसे रवी किर्ति जैन द्वारा 633-34 ई. मे संस्कृत भाषा मे लिखा गया
-गुर्जर प्रतिहार शासक स्वयम् को राम के पुत्र कुश का वंशज मानते है अत: इतिहास मे सुर्यवंशी कहलाये
-मुहणौत नैणसी के अनुसार भारत मे गुर्जर प्रतिहारो कि 26 शाखाए है जिनमे से राजस्थान मे मण्डोर और भीनमाल मुख्य है
* स्थापना-
-गुर्जर प्रतिहारो का संस्थापक हरिशचन्द्र था
-गुर्जर प्रतिहारो कि प्रारम्भिक राजधानी मण्डोर थी
-मण्डोर वर्तमान मे जोधपुर मे स्थित है
-हरिशचन्द्र के पुत्र रज्जील से हि गुर्जर प्रतिहार वंश कि वंशावली प्रारम्भ होती है
-रज्जील के पौत्र नागभट्ट प्रथम ने भीनमाल को जीता था
1. नागभट्ट प्रथम-(730-760 ई.)
-नागभट्ट प्रथम ने भीनमाल को जीतकर अपनी राजधानी बनाया
-भीनमाल शाखा का संस्थापक नागभट्ट प्रथम था
-नागभट्ट प्रथम गुर्जर प्रतिहार शासक था जिसने अरबो को प्राजीत किया
-नागभट्ट प्रथम ने ही जालौर का किला बनवाया व उज्जैन पर अधिकार किया
-नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति मे मेघनाथ के युद्ध का अवरोधक/नासक व विशुद्ध क्षत्रीय राजा कहा है
-नागभट्ट प्रथम का दरबार नागावलोक का दरबार कहलाता है
-चीनी यात्री हवेंसाग ने भीनमाल को पिलो भीलो का नाम दिया
2. वत्सराज-(783-795 ई.)
-वत्सराज के शासन काल मे कनौज को लेकर त्रिराष्ट्र संघर्ष प्रारम्भ हुआ
-त्रिराष्ट्र संघर्ष मे भाग लेने वाले शासक
-(अ) गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज
-(ब) पाल वंश (बंगाल) का शासक धर्मपाल
-(स) राष्ट्रकुट वंश (द.भारत) का शासक ध्रुव प्रथम
-त्रिराष्ट्र संघर्ष को प्रारम्भ करने वाला प्रथम शासक वत्सराज था
-वत्सराज ने पाल वंश के शासक धर्मपाल को प्राजीत किया
-वत्सराज ध्रुव प्रथम से प्राजीत हुआ (प्रथम संघर्ष मे ध्रुव प्रथम विजयी रहा)
-प्राजीत होने के बाद वत्सराज को अपनी राजधानी गवालीपुर/जबालीपुर (जालौर) ले जानी पड़ी
-विजयी होने के बाद ध्रुव प्रथम ने अपने राष्ट्रकुट वंश के कुल चिन्ह गंगा, यमुना मे स्थापित करवाये
-सुरत और सन्जन अभिलेख के अनुसार यह युद्ध गंगा व यमुना के दौआब क्षेत्र मे लड़ा गया था
-ओसिया के जैन मंदिरो का निर्माण वत्सराज के शासन काल मे हुआ था
-ओसिया वर्तमान मे जोधपुर मे स्थित है
-ओसिया को राजस्थान का भुवनेश्वर कहा जाता है
-ओसिया का प्राचीन नाम उपकेश पटन था
-वत्सराज के शासन काल मे हि उधोतन सूरी ने अपना ग्रंथ कवलय माला 778 ई. मे जालौर मे लिखा
-वत्सराज के शासन काल मे जिन सैन सूरी ने हरिवंश पुराण कि रचना कि थी
-वत्सराज के शासन काल मे ओसिया मे हरिहर का मंदिर बनाया गया जो पंचायतन शैली का उदाहरण है
-गुर्जर प्रतिहारो का वास्तविक संस्थापक वत्सराज था
2. नागभट्ट द्वितिय-(795-833 ई.)
-नागभट्ट द्वितिय ने 816 ई. मे कनौज पर अधिकार कर गुर्जर प्रतिहार वंश कि राजधानी बनाया
-इस समय कनौज का राजा चक्रायुद्ध था
-नागभट्ट द्वितिय ने आयुध वंश और पाल वंश को प्राजीत करने के बाद परम भट्टारक महाराजा धिराज पंच परमेश्वर की उपाधि धारण कि थी
-इस उपाधि का उल्लेख बकुला के अभिलेख मे है
-नागभट्ट द्वितिय ने तुरूष्क मुस्लिम राज्य पर विजय प्राप्त कि और यहा का राजा वारिस बेग था
-नागभट्ट द्वितिय ने 833 ई. मे जीवित गंगा मे समाधि ली थी
3. भोज प्रथम-(836-885 ई.)
-भोज प्रथम को हि इतिहास मे मिहिर भोज के नाम से जाना जाता है
-भोज प्रथम के पास 2 उपाधिया थी
-(अ) आदिवराह (इस उपाधि का उल्लेख ग्वालियर अभिलेख मे है)
-(ब) प्रभास (इस उपाधि का उल्लेख दौलतपुर के अभिलेख मे है
-भोज प्रथम कि राजनैतिक और सैनिक उपलब्धियो का उल्लेख कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिनी मे है
-गवालियर प्रशस्ति कि रचना भोज प्रथम के समय कि गई
-भोज प्रथम के समय 851 ई. मे अरब यात्री सुलेमान भारत आया था जिन्होने भोज प्रथम को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु कहा था
-झोट प्रतिहार गुर्जर प्रतिहारो का एकमात्र था जो वीणा वादक था
-भोज प्रथम ने अपने शासन काल मे चाँदी के सिक्के जारी किये थे
4. महेन्द्रपाल प्रथम-(885-910 ई.)
-इनके दरबारी कवि राजशेखर थे जिन्होने बाल महाभारत, बाल रामायण, भूवनकोष, काव्यमीमासा और कर्पुरमंजरी नामक ग्रंथ कि रचना कि थी
-इतिहासकार B.N पाठक ने इन्हे अंतिम हिंदु भारत का सम्राट माना है
5. महिपाल-(913-944 ई.)
-राजशेखर ने महिपाल को आर्यावृत का महाराजा धिराज कहा था
-महिपाल कि विजयो और शासन का उल्लेख प्रचण्ड पाण्डव मे है
-महिपाल के समय अरब यात्री बगदाद निवासी अलमसूदी भारत आये
-अलमसूदी ने महिपाल को बोहरा राजा कहा है
6. राज्यपाल-(990-1019 ई.)
-इसके समय मे 1018-19 ई मे महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया था
7. यशपाल
-यह गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था
-गुर्जर प्रतिहार वंश के बाद यहा कनौज के गहढ़वाल वंश का अधिकार हो गया
* मुहणौत नैणसी-
-मुहणोत नैणसी को राजस्थान का अबुल फजल कहा जाता है
-इन्हे अबुल फजल कि संज्ञा मुंशी देवी प्रसाद द्वारा दि गई
-मुहणौत नैणसी ने नैणसी री ख्यात व मारवाड़ परगना री विगत नामक ग्रंथ लिखे है
-मारवाड़ परगना री विगत को राजस्थान का गजेटियर कहा जाता है
-नैणसी री ख्यात एकमात्र ख्यात है जिसमे कही भी 'ह' शब्द का प्रयोग नही हुआ
-मुहणौत नैणसी मारवाड़ के राजा जसवंत सिंह के दरबारी कवि थे
2. कर्नल जेम्स टोड ने राजपूतो को शक/शिथियन कहा था
3. वी.ए. स्मिथ ने राजपूतो को हुण जाति कहा था
* विशेष- हुणो के आक्रमण से बचने के लिए चीन के महान राजा शि-हुआंग-टी द्वारा चीन कि महान दिवार का निर्माण करवाया गया तथा इस दिवार कि तुलना कुम्भलगढ़ दुर्ग से कि जाती है
4. डाँ. गोपिनाथ शर्मा के अनुसार राजपूत वैदिक ब्राह्मण क्षत्रिय संतान है
(अ) गुर्जर-प्रतिहार-
-प्रतिहार का अर्थ द्वारपाल होता है
-गर्जर-प्रतिहारो मे गुर्जर जाति का प्रतिक न होकर एक क्षेत्र/जगह विशेष का प्रतिक है
-चीनी यात्री हवेंसाग ने भी गुर्जर-प्रतिहार मे गुर्जर जगह का प्रतिक है व अपनी पुस्तक सी.यु.कि मे लिखा है कि प्रतिहार गुजरात्रा कि सिमा के सुरक्षा प्रहरी थे
* एहोल अभिलेख
-सर्वप्रथम गुर्जर जाति का उल्लेख एहोल अभिलेख मे है
-एहोल अभिलेख चालुक्य राजा पुलकेशियन द्वितिय का है जिसे रवी किर्ति जैन द्वारा 633-34 ई. मे संस्कृत भाषा मे लिखा गया
-गुर्जर प्रतिहार शासक स्वयम् को राम के पुत्र कुश का वंशज मानते है अत: इतिहास मे सुर्यवंशी कहलाये
-मुहणौत नैणसी के अनुसार भारत मे गुर्जर प्रतिहारो कि 26 शाखाए है जिनमे से राजस्थान मे मण्डोर और भीनमाल मुख्य है
* स्थापना-
-गुर्जर प्रतिहारो का संस्थापक हरिशचन्द्र था
-गुर्जर प्रतिहारो कि प्रारम्भिक राजधानी मण्डोर थी
-मण्डोर वर्तमान मे जोधपुर मे स्थित है
-हरिशचन्द्र के पुत्र रज्जील से हि गुर्जर प्रतिहार वंश कि वंशावली प्रारम्भ होती है
-रज्जील के पौत्र नागभट्ट प्रथम ने भीनमाल को जीता था
1. नागभट्ट प्रथम-(730-760 ई.)
-नागभट्ट प्रथम ने भीनमाल को जीतकर अपनी राजधानी बनाया
-भीनमाल शाखा का संस्थापक नागभट्ट प्रथम था
-नागभट्ट प्रथम गुर्जर प्रतिहार शासक था जिसने अरबो को प्राजीत किया
-नागभट्ट प्रथम ने ही जालौर का किला बनवाया व उज्जैन पर अधिकार किया
-नागभट्ट प्रथम को ग्वालियर प्रशस्ति मे मेघनाथ के युद्ध का अवरोधक/नासक व विशुद्ध क्षत्रीय राजा कहा है
-नागभट्ट प्रथम का दरबार नागावलोक का दरबार कहलाता है
-चीनी यात्री हवेंसाग ने भीनमाल को पिलो भीलो का नाम दिया
2. वत्सराज-(783-795 ई.)
-वत्सराज के शासन काल मे कनौज को लेकर त्रिराष्ट्र संघर्ष प्रारम्भ हुआ
-त्रिराष्ट्र संघर्ष मे भाग लेने वाले शासक
-(अ) गुर्जर प्रतिहार शासक वत्सराज
-(ब) पाल वंश (बंगाल) का शासक धर्मपाल
-(स) राष्ट्रकुट वंश (द.भारत) का शासक ध्रुव प्रथम
-त्रिराष्ट्र संघर्ष को प्रारम्भ करने वाला प्रथम शासक वत्सराज था
-वत्सराज ने पाल वंश के शासक धर्मपाल को प्राजीत किया
-वत्सराज ध्रुव प्रथम से प्राजीत हुआ (प्रथम संघर्ष मे ध्रुव प्रथम विजयी रहा)
-प्राजीत होने के बाद वत्सराज को अपनी राजधानी गवालीपुर/जबालीपुर (जालौर) ले जानी पड़ी
-विजयी होने के बाद ध्रुव प्रथम ने अपने राष्ट्रकुट वंश के कुल चिन्ह गंगा, यमुना मे स्थापित करवाये
-सुरत और सन्जन अभिलेख के अनुसार यह युद्ध गंगा व यमुना के दौआब क्षेत्र मे लड़ा गया था
-ओसिया के जैन मंदिरो का निर्माण वत्सराज के शासन काल मे हुआ था
-ओसिया वर्तमान मे जोधपुर मे स्थित है
-ओसिया को राजस्थान का भुवनेश्वर कहा जाता है
-ओसिया का प्राचीन नाम उपकेश पटन था
-वत्सराज के शासन काल मे हि उधोतन सूरी ने अपना ग्रंथ कवलय माला 778 ई. मे जालौर मे लिखा
-वत्सराज के शासन काल मे जिन सैन सूरी ने हरिवंश पुराण कि रचना कि थी
-वत्सराज के शासन काल मे ओसिया मे हरिहर का मंदिर बनाया गया जो पंचायतन शैली का उदाहरण है
-गुर्जर प्रतिहारो का वास्तविक संस्थापक वत्सराज था
2. नागभट्ट द्वितिय-(795-833 ई.)
-नागभट्ट द्वितिय ने 816 ई. मे कनौज पर अधिकार कर गुर्जर प्रतिहार वंश कि राजधानी बनाया
-इस समय कनौज का राजा चक्रायुद्ध था
-नागभट्ट द्वितिय ने आयुध वंश और पाल वंश को प्राजीत करने के बाद परम भट्टारक महाराजा धिराज पंच परमेश्वर की उपाधि धारण कि थी
-इस उपाधि का उल्लेख बकुला के अभिलेख मे है
-नागभट्ट द्वितिय ने तुरूष्क मुस्लिम राज्य पर विजय प्राप्त कि और यहा का राजा वारिस बेग था
-नागभट्ट द्वितिय ने 833 ई. मे जीवित गंगा मे समाधि ली थी
3. भोज प्रथम-(836-885 ई.)
-भोज प्रथम को हि इतिहास मे मिहिर भोज के नाम से जाना जाता है
-भोज प्रथम के पास 2 उपाधिया थी
-(अ) आदिवराह (इस उपाधि का उल्लेख ग्वालियर अभिलेख मे है)
-(ब) प्रभास (इस उपाधि का उल्लेख दौलतपुर के अभिलेख मे है
-भोज प्रथम कि राजनैतिक और सैनिक उपलब्धियो का उल्लेख कल्हण द्वारा रचित राजतरंगिनी मे है
-गवालियर प्रशस्ति कि रचना भोज प्रथम के समय कि गई
-भोज प्रथम के समय 851 ई. मे अरब यात्री सुलेमान भारत आया था जिन्होने भोज प्रथम को इस्लाम का सबसे बड़ा शत्रु कहा था
-झोट प्रतिहार गुर्जर प्रतिहारो का एकमात्र था जो वीणा वादक था
-भोज प्रथम ने अपने शासन काल मे चाँदी के सिक्के जारी किये थे
4. महेन्द्रपाल प्रथम-(885-910 ई.)
-इनके दरबारी कवि राजशेखर थे जिन्होने बाल महाभारत, बाल रामायण, भूवनकोष, काव्यमीमासा और कर्पुरमंजरी नामक ग्रंथ कि रचना कि थी
-इतिहासकार B.N पाठक ने इन्हे अंतिम हिंदु भारत का सम्राट माना है
5. महिपाल-(913-944 ई.)
-राजशेखर ने महिपाल को आर्यावृत का महाराजा धिराज कहा था
-महिपाल कि विजयो और शासन का उल्लेख प्रचण्ड पाण्डव मे है
-महिपाल के समय अरब यात्री बगदाद निवासी अलमसूदी भारत आये
-अलमसूदी ने महिपाल को बोहरा राजा कहा है
6. राज्यपाल-(990-1019 ई.)
-इसके समय मे 1018-19 ई मे महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण किया था
7. यशपाल
-यह गुर्जर प्रतिहार वंश का अंतिम शासक था
-गुर्जर प्रतिहार वंश के बाद यहा कनौज के गहढ़वाल वंश का अधिकार हो गया
Good
ReplyDeleteThanks Antriksh Godara
DeleteNice
ReplyDeleteThanks Ashish Godara
DeleteGurjar partihar mihir bhoj
ReplyDeleteFinally Gurjar pratihar ka sansthapk non?
ReplyDeleteगुर्जर एक क्षेत्र विशेष का प्रतीक है तो राजपूत भी एक क्षेत्र विशेष का प्रतीक होना चाहिए फिर दोनो मे परिभाषा कैसे बदल जाती है?जबकि गर्जर प्रतिहारो के समय राजपूत नाम की कोई जाति ही नही थी । ऐसा क्यो ? जबकि प्रतिहारो के गुर्जर होने के सैकड़ो सबूत है। आप प्रतिहारो के राजपूत होने का तत्कालीन एक भी सबूत दिखा दे ।
ReplyDeleteHarish Chand
Deleteबहुत बढ़िया जानकारी 🙏🙏🙏
ReplyDeleteThanks Gaurav Rana
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