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कुम्भलगढ़ दुर्ग (राजसमंद, राजस्थान)

श्रेणी-
कुम्भलगढ़ दुर्ग दुर्गों की गिरी श्रेणी में शामिल है।

स्थित-
कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान राज्य के राजसमंद जिले की जरगा की पहाड़ी पर स्थित है।

निर्माता-
कुम्भलगढ़ दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा के द्वारा करवाया गया था।

वास्तुकार-
कुम्भलगढ़ दुर्ग का वास्तुकार मण्डन को माना जाता है।

उपनाम या अन्य नाम-
  • मेवाड़ व मारवाड़ सीमा का प्रहरी
  • कुम्भलमेरु
  • कमलमीर
मेवाड़ व मारवाड़ सीमा का प्रहरी-
कुम्भलगढ़ दुर्ग मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा पर स्थित होने के कारण कुम्भलगढ़ दुर्ग को मेवाड़ व मारवाड़ की सीमा का प्रहरी भी कहा जाता है।

कुम्भलमेरु-
कुम्भलगढ़ दुर्ग को कुम्भलमेरु के नाम से भी जाना जाता है।

कमलमीर-
कुम्भलगढ़ दुर्ग को कमलमीर के नाम से भी जाना जाता है।

परिधि-
कुम्भलगढ़ दुर्ग की परिधि 36 किलोमीटर है।

ऊँचाई-
कुम्भलगढ़ दुर्ग 3568 फीट की ऊँचाई पर स्थित है।

कथन-
अबुल फजल ने कुम्भलगढ़ दुर्ग के लिए यह कथन कहा था की यह दुर्ग इतनी बुलन्दी पर बना हुआ है कि नीचे से उपर सीर उठाकर देखने से सीर पर रखी पगड़ी गिर जाती है।

दर्शनिय स्थल-
  • 12 खम्भों की छतरी (कुँवर पृथ्वीराज की छतरी)
  • झाली रानी का मालिया
  • बादल महल
  • झालीबाव बावड़ी
  • मामदेव का कुंड
12 खम्भों की छतरी (कुँवर पृथ्वीराज की छतरी)-
कुँवर पृथ्वीराज महाराणा रायमल का बड़ा पुत्र तथा राणा सांगा का भाई था कुँवर पृथ्वीराज की छतरी को ही 12 खम्भों की छतरी कहा जाता है। कुँवर पृथ्वीराज राजस्थान में  उड़णा राजकुमार के नाम से प्रसिद्ध था।

झाली रानी का मालिया-
झाली रानी का मालिया (महल) राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित है।

बादल महल-
बादल महल राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित है।

झालीबाव बावड़ी-
झालीबाव बावड़ी राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित है।

मामदेव का कुंड-
मामदेव का कुंड राजस्थान के कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित है।

अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य-
कुम्भलगढ़ दुर्ग राजस्थान का एकमात्र ऐसा दुर्ग है जो रानी को समर्पित है।
राजस्थान स्थित कुम्भलगढ़ दुर्ग रानी कुम्भल देवी को समर्पित है।
वीर विनोद पुस्तक के रचियता कवि श्यामलदास के अनुसार राजस्थान में 84 दुर्गों में से 32 दुर्गों का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था।
महाराणा कुम्भा को राजस्थानी स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है।
कुम्भलगढ़ दुर्ग में एक लघु दुर्ग बना हुआ है जिसे कटारगढ़ दुर्ग कहा जाता है।
कटारगढ़ दुर्ग को मेवाड़ की आँख कहा जाता है।
1468 में महाराणा कुम्भा की हत्या उसके पुत्र उदा के द्वारा कुम्भलगढ़ दुर्ग में की गई थी इसीलिए उदा को मेवाड़ का पितृहन्ता कहा जाता है।
1537 में उदयसिंह का राज्याभिषेक कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुम्भलगढ़ दुर्ग में स्थित बादल महल में हुआ था।
1572 में महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ था लेकिन राज्याभिषेक समारोह का आयोजन कुम्भलगढ़ दुर्ग में हुआ था।
राजस्थान में सर्वाधिक पहाड़ी दुर्गों के निर्माण हेतु महाराणा कुम्भा को हाल गुरु की उपाधि दी गई थी।
कर्नल जेम्स टाॅड ने कुम्भलगढ़ दुर्ग की तुलना एटुस्कन (एट्रुस्कन) से की है।


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