पंचायती राज-
- पंचायती राज की परिभाषा
- स्थानीय स्वशासन
- सामुदायिक विकास कार्यक्रम
- बलवंत राय मेहता समिति
- त्रिस्तरीय पंचायती राज
- सादिक अली समिति
- गिरधारी लाल व्यास समिति
- अशोक मेहता समिति
- G.V.K. राव समिति
- एल एम सिंघवी समिति (L.M. सिंघवी समिति या लक्ष्मीमल सिंघवी समिति)
- पी.के. थुंगन समिति
- बी.एन. गाडगिल समिति
- 64वां तथा 65वां संविधान संशोधन
- पंचायती राज का संकट काल
- हरलाल सिंह खर्रा समिति
- 72वां संविधान संशोधन
- प्रवर समिति
- 73वां संविधान संशोधन
- 73वें संविधान संशोधन 1992 की विशेषताएं
- 74वां संविधान संशोधन
- राज्य वित्त आयोग
- जिला आयोजन समिति
- ग्राम सभा
पंचायती राज की परिभाषा-
- स्थानीय लोगों के द्वारा अपने ही क्षेत्र में स्वशासन की व्यवस्था को ही स्थानीय स्वशासन कहा जाता है।
स्थानीय स्वशासन-
- स्थानीय शासन की सर्वप्रथम शुरूआत दक्षिण भारत में चोल शासन काल में हुई थी। भारत में स्थानीय शासन प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। अथर्ववेद में ग्रामीण शब्द का उल्लेख मिलता है जिसका अभिप्राय गाँव का मुखिया है। इसी प्रकार बोध कालीन समय में ग्रामयोजक तथा मौर्यकाल में ग्रामिक शब्द गाँव के मुखिया का परिधायक है। मुगल काल में मुगदम ग्राम पंचायतों का मुखिया होता था।
लार्ड रिपन-
- भारत में स्थानीय स्वशासन की स्थापना 1882 ई. में लार्ड रिपन के द्वारा की गई थी इसीलिए लार्ड रिपन को स्थानीय स्वशासन का जनक या स्थानीय स्वशासन का पिता कहा जाता है। अर्थात् अंग्रेजों के शासन काल में लार्ड रिपन के द्वारा 1882 ई. में स्थानीय शासन को व्यवस्थित किया गया, ग्राम पंचायत, न्याय पंचायत, जिला बोर्डो को व्यवस्थित आधार दिया गया।
अधिनियम 1919-
- सन् 1919 के अधिनियम में स्थानीय शासन को वैधानिक आधार दिया गया था।
महात्मा गांधी-
- महात्मा गांधी के द्वारा अपनी पुस्तक "My Picture Free of India" में ग्राम स्वराज्य की बात कही गयी है। अर्थात् ग्रामीण आधार पर जनता को अधिकार मिलना चाहिए ताकि गांव की समस्याओं का समाधान हो सके और विकास सम्भव हो सके। महात्मा गांधी के इस सपने को पूरा करने के लिए संविधान निर्माताओं के द्वारा संविधान के भाग-4 व अनुच्छेद 40 के अन्तर्गत कहा गया की पंचायतों का गठन होना चाहिए।
सामुदायिक विकास कार्यक्रम-
- भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल में K.M. मुंशी समिति की सिफारिश पर 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। सामुदायिक विकास कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य यह था की गांवों की स्थिति में सुधार करना तथा गांवों का विकास करना। परन्तु यह कार्यक्रम असफल रहा।
बलवंत राय मेहता समिति-
- पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पंचायती राज के लिए सन् 1957 में बलवंत राय मेहता समिति का गठन किया। जिसकी अध्यक्षता बलवंत राय मेहता के द्वारा की गई थी। बलवंत राय मेहता समिति ने अपनी रिपोर्ट 24 नवम्बर 1957 को केन्द्र सरकार को सौपी थी। इस समिति के द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का सुझाव दिया गया। इसी सुझाव के आधार पर ही पंडित जवाहरलाल नेहरू के द्वारा 2 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले के बगदरी गांव से त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ किया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य विकेन्द्रीकरण स्थानीय स्व-शासन स्थापित करना था।
त्रिस्तरीय पंचायती राज-
- त्रिस्तरीय पंचायती राज के तीन स्तर है जैसे-
- 1. ग्राम स्तर- ग्राम पंचायत
- 2. पंचायत स्तर- पंचायत समिति
- 3. जिला स्तर- जिला परिषद
राजस्थान-
- भारत में पंचायती राज लागू करने वाला पहला राज्य राजस्थान बना। राजस्थान में सर्वप्रथम पंचायती राज लागू हुआ उस समय राजस्थान के मुख्यमंत्री मोहन लाल सुखाड़िया, राज्यपाल गुरुमुख निहाल सिंह, मुख्य सचिव भगवत सिंह मेहता तथा पंचायती राज मंत्री नाथूराम मिर्धा थे।
आंध्र प्रदेश-
- 11 अक्टूबर 1959 में आध्र प्रदेश राज्य के द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था को अपनाया गया। भारत में पंचायती राज को सम्पूर्ण राज्य में लागू करने वाला पहला राज्य आंध्र प्रदेश बना।
सादिक अली समिति-
- सन् 1964 में सादिक अली समिति का गठन किया गया। सादिक अली समिति ने यह सुझाव दिया की राजस्थान में पंचायती राज के अध्यक्षों का गठन पृथक निर्वाचित मण्डल द्वारा करवाये जाने चाहिए।
गिरधारी लाल व्यास समिति-
- सन् 1973 में गिरधारी लाल व्यास समिति का गठन किया गया। इस समिति ने संगठनात्मक, वित्तिय तथा प्रशासनिक समस्याओं को उजागर किया। गिरधारी लाल व्यास समिति ने यह सुझाव दिया की ग्राम सेवक का पद होना चाहिए। यह समिति राजस्थान की थी।
अशोक मेहता समिति-
- सन् 1977-78 में अशोक मेहता समिति का गठन किया गया। अशोक मेहता समिति ने यह सुझाव दिया की पंचायती राज के तीनों स्तरों में से मध्य स्तर (पंचायत स्तर) को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। केवल दो ही स्तर (मण्डल पंचायत व जिला परिषद) होने चाहिए। और समय पर इसके चुनाव करवाये जाने चाहिए।
G.V.K. राव समिति-
- सन् 1985 में राव समिति का गठन किया गया। राव समिति ने यह सुझाव दिया की इन संस्थाओं को पर्याप्त वितिय अधिकार दिया जाये व राज्य वित्त आयोग बने। तथा पंचायती राज का कार्यकाल 8 वर्ष व 4 स्तर होने चाहिए जैसे-
- 1. ग्राम स्तर- ग्राम पंचायत
- 2. खण्ड स्तर- पंचायत समिति
- 3. जिला स्तर- जिला परिषद
- 4. राज्य स्तर- राज्य विकास परिषद
एल एम सिंघवी समिति (L.M. सिंघवी समिति या लक्ष्मीमल सिंघवी समिति)-
- सन् 1986 में एल एम सिंघवी समिति का गठन किया गया। एल एम सिंघवी समिति ने यह सुझाव दिया की पंचायती राज को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया जाये अर्थात् पंचायती राज को संविधान में मान्यता दी जाये तथा ग्राम सभा का गठन किया जाना चाहिए। भारत में पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता व संरक्षण की माँग पहली बार एल एम सिंघवी समिति ने की थी तथा इसी समिति की सिफारिश पर ही 64वां संविधान संशोधन विधेयक लाया गया था।
पी.के. थुंगन समिति-
- सन् 1988 में थुंगन समिति का गठन किया गया। थुंगन समिति ने यह सुझाव दिया की पंचायती राज को वैधानिक आधार दिया जाना चाहिए, नियमित चुनाव होने चाहिए तथा कार्यकाल 5 वर्ष का होना चाहिए।
बी.एन. गाडगिल समिति-
- सन् 1989 में बी.एन गाडगिल समिति का गठन किया गया था। बी.एन. गाडगिल समिति को वर्तमान त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली का आधार माना जाता है।
64वां तथा 65वां संविधान संशोधन-
- एल एम सिंघवी समिति तथा थुंगन समिति के सुझाव के आधार पर राजीव गांधी के द्वारा संविधान में 64वां व 65वां संविधान संशोधन प्रस्ताव लाया गया। 64वां संविधान संशोधन पंचायती राज से संबंधित था तथा 65 वां संविधान संशोधन नगर निकाय से संबंधित था। 15 मई 1989 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने पंंचायती राज व्यवस्था के अधिक विकास तथा संवैधानिक दर्जा दिलाने के लिए 64वां व 65वां संविधान संशोधन विधेयक 1989 लोक सभा में प्रस्तुत कर पास करवाया लेकिन राज्य सभा में पास नहीं हो सका। इसीलिए 64वां व 65वां संविधान संशोधन स्वतः ही समाप्त हो गये।
विशेष- संविधान में किसी भी संविधान संशोधन के सफल होने के लिए उस संविधान संशोधन का संसद के दोनों सदनों (राज्य सभा व लोक सभा) में पारित होना जरूरी है अन्यथा वह संविधान संशोधन स्वतः ही समाप्त हो जाता है। अर्थात् संविधान संशोधन संसद के एक सदन में पारित हो जाता है तथा एक सदन में पारित नहीं हो पाता है ऐसी स्थिति में संविधान संशोधन स्वतः ही समाप्त हो जाता है।
विशेष-
- 1. लार्ड रिपन- भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक लार्ड रिपन को कहा जाता है।
- 2. पंडित जवाहर लाल नेहरू- भारत में पंचायती राज का जनक पंडित जवाहर लाल नेहरू को कहा जाता है। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने पंचायती राज को भारतीय लोकतन्त्र की प्रथम पाठशाला (प्रजातन्त्र में रीढ़ की हड्डी) कहा था। भारत में पंचायती राज को सर्वप्रथम पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ही लागू किया था।
- 3. बलवंत राय मेहता- भारत में पंचायती राय का जनक (त्रिस्तरीय लोकतान्त्रिक पंचायती राज) बलवंत राय मेहता को कहा जाता है। बलवंत राय मेहता गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री थे।
- 4. राजीव गांधी- भारत में आधुनिक पंचायती राज का जनक राजीव गांधी को कहा जाता है।
- 5. भगवती चरण- भारत में पंचायती राज का सूत्रधार भगवती चरण को माना जाता है।
पंचायती राज का संकट काल-
- भारत में सन् 1960 से 1980 तक के काल को पंचायती राज का संकट काल कहा जाता है।
हरलाल सिंह खर्रा समिति-
- सन् 1990-91 में हरलाल सिंह खर्रा समिति का गठन किया गया। हरलाल सिंह खर्रा समिति ने यह सुझाव दिया की इन संस्थाओं को शिक्षा, प्राथमिक चिकित्सा के सन्दर्भ में पर्याप्त अधिकार दिये जाने चाहिए तथा वित्तिय श्रोत उपलब्ध करवाये जाने चाहिए। इस समिति ने जिला परिषद एवं ग्रामिण विकास अधिकरण के विलय की अनुशंसा की थी। यह समिति राजस्थान की थी।
72वां संविधान संशोधन-
- सन् 1991 में P.V. नरसिम्हा राव के कार्यकाल में 72वां संविधान संशोधन प्रस्ताव लाया गया।
प्रवर समिति-
- 72वां संविधान संशोधन प्रस्ताव लाने के बाद संसद के द्वारा नाथुराम मिश्रा की अध्यक्षता में प्रवर समिति का गठन किया गया।
73वां संविधान संशोधन-
- 73वां संविधान संशोधन पंचायती राज से संबंधित था। 22 दिसम्बर 1992 को 73वां संविधान संशोधन लोक सभा के द्वारा दो तिहाई बहुमत से पारित कर दिया गया। अगले ही दिन 23 दिसम्बर 1992 को राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया। 17 राज्य विधान सभाओं के द्वारा 73वें संविधान संशोधन को समर्थन दिया गया। 20 अप्रैल 1993 को राष्ट्रपति द्वारा 73वें संविधान संशोधन पर हस्ताक्षर किये गये। 73वां संविधान संशोधन 24 अप्रैल 1993 से दिल्ली, जम्मू-कश्मीर, त्रिपुरा, मिजोरम, मेघालय को छोड़कर पूरे भारत (17 राज्यों में) में लागू किया गया। पंचायती राज का अभिप्राय 73वें संविधान संशोधन से लगाया जाता है।
24 अप्रैल-
- भारत में प्रतिवर्ष 24 अप्रैल को पंचायती राज दिवस मनाया जाता है।
कर्नाटक-
- भारत में सबसे पहले 73वां संविधान संशोधन लागू करने वाला राज्य कर्नाटक है। कर्नाटक में 73वां संविधान संशोधन 10 मई 1993 को लागू किया गया।
मध्य प्रदेश-
- भारत में 73वां संविधान संशोधन लागू होने के बाद सर्वप्रथम चुनाव करवाने वाला राज्य मध्य प्रेदश बना।
73वें संविधान संशोधन 1992 की विशेषताएं-
- 1. पंचायती राज संस्थाओं को संविधान में मान्यता दी गई।
- 2. इन संस्थाओं को 11वीं अनुसुची में जोड़ा गया।
- 3. संविधान के भाग 9 में उल्लेख किया गया।
- 4. नये अनुच्छेद 243 क से ण तक जोड़े गये।
- 5. इन संस्थाओं को राज्य सुची का विषय बनाया गया।
- 6. इन संस्थाओं को संविधान के 29 विषय प्रदान किये गये।
- 7. इन संस्थाओं में महिला आरक्षण 33 प्रतिशत दिया गया।
- 8. वर्तमान महिला आरक्षण 50 प्रतिशत है।
- 9. राज्यों को कहा गया एक वर्ष तक के अन्दर अपने हिसाब से व्यवस्था को लागू करे।
- 10. जिन राज्यों की संख्या 20 लाख तक है उन्हे मध्य स्तर बनाने की छुट दी गई।
74वां संविधान संशोधन-
- 74वां संविधान संशोधन नगर निकाय से संबंधित है। 74वां संविधान संशोधन सन् 1992 में लाया गया तथा 1 जुन 1993 में लागू किया गया था।
राज्य वित्त आयोग-
- राज्य वित्त आयोग का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 झ (I) में किया गया है।
- राज्य वित्त आयोग में एक वित्त आयुक्त होता है। जिसका प्रमुख कार्य पंचायती राज संस्थाओं की वित्तीय समिक्षा करना होता है। वित्त आयुक्त की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा 5 वर्ष के लिए की जाती है।
जिला आयोजन समिति-
- जिला आयोजन समिति का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 (ZD) में किया गया है।
- राजस्थान पंचायती राज अधिनियम 1994 की धारा 121 के अनुसार प्रत्येक जिले में एक आयोजन समिति होती है।
- जिला आयोजन समिति में कुल सदस्य संख्या 25 होती है।
- (अ) जिसमें 3 सदस्य पदेन होते है जैसे-
- 1. कलेक्टर
- 2. मुख्य कार्यकारी अधिकारी
- 3. अतिरिक्त कार्यकारी अधिकारी
- (ब) राज्य सरकार के द्वारा दो सदस्य मनोनीत किये जाते है जिसमें क्षेत्र के M.P. व M.L.A होते है।
- (स) 20 सदस्य पंचायत समिति नगर निकायों के प्रतिनिधि लिये जाते है।
- जिला आयोजन समिति का प्रमुख कार्य पंचायत समिति नगर निकायों के द्वारा किये गये कार्यों को सकेन्द्रित करना तथा जिला विकास योजना का प्रारूप बनाकर राज्य सरकार के सामने प्रस्तुत करना।
ग्राम सभा-
- ग्राम सभा का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243 क में मिलता है।
- अध्यक्ष- ग्राम सभा का अध्यक्ष संरपच होता है।
- सदस्य- गांव के सभी व्यस्क मतदाता ग्राम सभा के सदस्य होते है।
- बैठक- ग्राम सभा की बैठक 15 अगस्त, 26 जनवरी, 1 मई, 2 अक्टूबर को होती है।
- कार्य- ग्राम सभा का प्रमुख कार्य ग्राम पंचायत के द्वारा किये गये विकास कार्यो की समीक्षा करना तथा सुझाव देना।
- विशेष- ग्राम सभा पंचायती राज संस्थाओं की सबसे छोटी इकाई है।
Very important topic for gk
ReplyDeleteधन्यवाद, जीके क्लास में आपका स्वागत है।
DeleteBhut Acha sir ji
ReplyDeleteधन्यवाद, जीके क्लास में आपका स्वागत है।
DeleteVerV nice sir ji
ReplyDeleteधन्यवाद, जीके क्लास में आपका स्वागत है।
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