राजस्थान के प्रमुख इतिहासकार
1. कर्नल जेम्स टाॅड
2. सूर्यमल्ल मिश्रण
3. डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा
4. डाॅ. दशरथ शर्मा
5. दयालदास
6. कविरजा श्यामलदास
1. कर्नल जेम्स टाॅड
जन्म- 20 मार्च 1782 स्काॅटलैंड (इंग्लैण्ड) के इंस्लिंगटन नामक स्थान पर
मृत्यु- 18 नवम्बर 1835
उपनाम- (1) घोड़े वाले बाबा (2) राजस्थान इतिहास का पितामह या जनक
अन्य विशेषताएं-
कर्नल जेम्स टाॅड ने 1798 ई. में रंगरूट के रूप में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सेवा में प्रवेश लिया। अर्थात् कर्नल जेम्स टाॅड की नियुक्ति 17 वर्ष की किशोर आयु में ही ईस्ट इण्डिया कम्पनी में हो गई थी।
कर्नल जेम्स टाॅड को 1800 ई. में 14वीं रेजीमेन्ट के लेफ्टिनेंट के रूप में नियुक्त किया गया।
1801 ई. में कर्नल जेम्स टाॅड को दिल्ली के पास पुराने शहर की पैमाइश करने का काम सौंपा गया था।
कर्नल जेम्स टाॅड को 1805 ई. में दौलतराव सिंधिया के दरबार में अंग्रेज सैनिक टुकड़ी के अधिकारी के रूप में नियुक्त किया गया।
कर्नल जेम्स टाॅड 1817 से 1822 तक पाॅलिटिकल एजेंट रहे। सर्वप्रथम फरवरी 1818 ई. में राजस्थान में उदयपुर के पाॅलिटिकल एजेंट नियुक्त किये गये थे। सन् 1818 से 1822 तक कर्नल जेम्स टाॅड पश्चिमी राजपूताने के पोलिटिकल एजेंट के रूप में कार्यरत रहे।
कर्नल जेम्स टाॅड ने 1822 ई. में पाॅलिटिकल एजेंट के पद से अपना त्याग पत्र दे दिया था।
कर्नल जेम्स टाॅड की मृत्यु 53 साल की उम्र में 18 नवम्बर 1835 में इंग्लैंड में हो गई थी।
कर्नल जेम्स टाॅड ने 24 वर्ष भारत में बिताए तथा 18 वर्ष राजपुताना में बिताए।
कर्नल जेम्स टाॅड ने 2 पुस्तके लिखी-
1. एनल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान - यह पुस्तक दो भाग में प्रकाशित हुई थी। इस पुस्तक का प्रथम भाग 1829 में प्रकाशित हुआ था प्रथम भाग में मेवाड़ का इतिहास और सामन्ती व्यवस्था के बारे में लिखा गया है। तथा दूसरा भाग 1832 ई. में प्रकाशित हुआ था। इस पुस्तक के दोनों भागों में 85 अध्याय है। कर्नल जेम्स टाॅड की "एनाल्स एंड एंटीक्विटीज ऑफ राजस्थान" पुस्तक का हिंदी अनुवाद "डाॅ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा" ने किया था।
2. ट्रेवल्स इन वेस्टर्न इण्डिया (पश्चिमी भारत की यात्रा)- यह पुस्तक कर्नल जेम्स टाॅड की मृत्यु के बाद सन् 1839 में प्रकाशित हुई थी।
2. सूर्यमल्ल मिश्रण-
जन्म- 1815 ई. में राजस्थान के बूंदी जिले के हरडा गाँव में
मृत्यु- 1868
पिता- चण्डीदान
माता- भवानी देवी
उपनाम- (1) वीर रसावतार (2) राजस्थान के नवजागरण के प्रथम कवि (3) राज्य कवि
अन्य विशेषताएं-
सूर्यमल्ल मिश्रण राजस्थान के बूंदी जिले के हाड़ा शासक महाराव रामसिंह के दरबारी कवि थे।
दादु पंथी "साधु स्वरूप दास" पर सूर्यमल्ल मिश्रण की विशेष श्रद्धा थी।
सूर्यमल्ल मिश्रण के नाम पर "राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी" के द्वारा राजस्थानी भाषा का सर्वोच्च पुरस्कार "सूर्यमल्ल मिश्रण शिखर पुरस्कार" प्रतिवर्ष दिया जाता है।
सूर्यमल्ल मिश्रण के पिता चण्डीदान ने बलिविग्रह, सार सागर, वंशाभरण नामक ग्रंथ की रचना की थी।
सूर्यमल्ल मिश्रण के ग्रंथ-
1. वंश भास्कर
2. वीर सतसई
3. रामरंजाट
4. बलवन्त बुद्धि विलास (बलवन्त विलास या बलवद विलास)
5. छन्दोमयूख (फूटकर छंद)
6. सती रासौ
7. धातु रूपावली
वंश भास्कर-
महाराव रामसिंह के कहने पर ही सूर्यमल्ल मिश्रण ने 1840 ई. में "वंश भास्कर" नामक पिंगल काव्य ग्रन्थ लिखना शुरू किया था।
महाराव रामसिंह तथा सूर्यमल्ल मिश्रण में अनबन होने के कारण 1856 ई. में "वंश भास्कर" नामक ग्रंथ को लिखना बंद कर दिया था।
सूर्यमल्ल मिश्रण के छोड़ने के बाद "वंश भास्कर" नामक ग्रन्थ को दत्तक पुत्र मुरारीदान ने पूरा किया था।
कानूनगो ने "वंश भास्कर" नामक ग्रन्थ को "आधुनिक भारत की महाभारत" कहा है।
"वंश भास्कर" नामक ग्रंथ में अग्निवंशीय क्षत्रियों की चारों शाखाओं प्रतिहार, परमार, चालुक्य तथा चौहानों की अग्निकुण्ड से उत्पत्ति का उल्लेख है। तथा बूंदी के हाड़ा शासकों के मुगलों के साथ संबंधों की जानकारी भी वंश भास्कर से मिलती है।
वंश भास्कर पर कृष्ण सिंह बारहठ ने टिका लिखा।
वीर सतसई (700 छंद)-
वीर सतसई नामक ग्रंथ की रचना सूर्यमल्ल मिश्रण के द्वारा की गई थी।
अंग्रेजी राज के विरूद्ध आवाज उठाने वाला प्रथम ग्रंथ वीर सतसई था। वीर सतसई ग्रंथ में 1857 की क्रांति का वर्णन भी मिलता है।
वीर सतसई ग्रंथ का प्रसिद्ध गीत इला न देणी आपणी, हालरिया हुलराय पूत सिखावै पालणे, मरण बड़ाई माय। यह गीत राजस्थान का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का लौकीक गीत बना।
रामरंजाट- यह ग्रंथ सूर्यमल्ल मिश्रण ने 10 वर्ष की अल्पायु में लिखा था।
3. डाॅ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा-
जन्म- 15 सितम्बर 1863 , रोहिड़ा (सिरोही, राजस्थान)
मृत्यु- 17 अप्रैल 1947, रोहिड़ा (सिरोही, राजस्थान)
अन्य विशेषताएं-
डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा 1888 में उदयपुर आए जहाँ पर कविराज श्यामलदास ने डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा को उदयपुर के इतिहास विभाग में नियुक्त किया। अर्थात् इतिहास लेखन में सहायक बनाया।
डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा कविराज श्यामलदास को अपना गुरु मानते थे।
सन् 1908 से 1938 तक डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा राजपुताना म्युजियम अजमेर के अधीक्षक के पद पर रहे थे।
डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा प्रथम पूर्ण राजस्थान के इतिहासकार है।
सन् 1933 में डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ओरियण्टल काॅन्फ्रेंस, बड़ौदा में इतिहास विभाग के अध्यक्ष बने।
कानूनगो ने कहा की "राजपूताने में जन्में अंतिम और निःसंदेह सबसे महान इतिहासकार" डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा थे।
उपाधियां-
1. राम बहादुर- यह उपाधि डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा को सन् 1914 में दी गई थी।
2. अनुशीलन- यह उपाधि डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा को हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर से सन् 1933 में दी गई थी।
3. साहित्य वाचस्पति- यह उपाधि डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा को सन् 1937 में दी गई थी।
4. डि. लिटरेचर- यह उपाधि डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा को काशी विश्वविद्यालय के द्वारा सन् 1937 में दी गई थी।
5. महामहोपध्याय- यह उपाधि डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा को ईस्ट इंडिया कम्पनी के द्वारा दी गई थी।
रचनाएं-
1. भारतीय प्राचीन लिपिमाला- डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने हिंदी में पहली बार भारतीय प्राचीन लिपिमाला शास्त्र लिखा। यह पुस्तक सन् 1894 में प्रकाशित हुई थी।
2. सोलंकियों का प्राचीन इतिहास (1907)
3. सिरोही राज्य का इतिहास (1911)
4. राजपूताने का प्राचीन इतिहास (1927)
5. वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह (1928)
6. उदयपुर राज्य का इतिहास (2 भागों में) (1928-1932)
7. डूंगरपुर का इतिहास (1936)
8. बांसवाड़ का इतिहास (1937)
9. बीकानेर राज्य का इतिहास (2 भागों में) (1937-1940)
10. जोधपुर राज्य का इतिहास (2 भागों में) (1938-1941)
11. प्रतापगढ़ राज्य का इतिहास (1940)
4. डाॅ. दशरथ शर्मा-
जन्म- 1903 चूरू (राजस्थान)
मृत्यु- 1976
उपाधि- डी. लिट् की उपाधि (डाॅ. दशरथ शर्मा को "अर्ली चौहान डाईनेस्टीस" नामक पुस्तक के लिए अगरा विश्वविद्यालय से डी. लिट् की उपाधि प्राप्त हुई थी।)
पुस्तक- पृथ्वीराज चौहान-III व उनका युग
अन्य विशेषताएं-
डाॅ. दशरथ शर्मा ने सन् 1945 में सार्दुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट (सादुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टिट्यूट) की स्थापना की थी।
5. दयालदास-
जन्म- 1798 ई. कुड़िया गाँव (बीकानेर, राजस्थान)
मृत्यु- 1891 ई.
रचनाएं-
1. बीकानेर राठौड़ों री ख्यात
2. देश दर्पण
3. आर्याख्यान
4. कल्पद्रुम
5. बीकानेर पट्टा री विगत
6. पंवार वंश दर्पण
बीकानेर राठौड़ों री ख्यात-
उपनाम- दयालदास री ख्यात
बीकानेर राठौड़ों री ख्यात दयालदास के द्वारा रत्नसिंह के आदेश पर लिखी गई थी।
बीकानेर राठौड़ों री ख्यात में राठौड़ों की उत्पत्ति से लेकर सरदार सिंह तक का इतिहास है।
दयालदास 4 शासकों के संरक्षक रहे जैसे-
1. सूरत सिंह (1787-1828)
2. रत्न सिंह (1828-1851)
3. सरदार सिंह (1851-1872)
4. डूंगर सिंह (1872-1887)
6. कविराज श्यामलदास-
जन्म- 5 जुलाई 1838 धोकलिया गाँव (मेवाड़)
मृत्यु- 3 जून 1893
उपाधियां-
1. केसर-ए-हिन्द
2. कविराज- यह उपाधि सज्जनसिंह ने दी थी।
3. महामहोपाध्याय
पुस्तक- वीर विनोद
वीर विनोद-
इस पुस्तक को कविराज श्यामलदास ने सन् 1871 में शम्भुसिंह के समय लिखना प्रारम्भ किया था।
इस पुस्तक के लिए सज्जनसिंह ने 1 लाख रुपयें दिए थे।
इस पुस्तक के चार भाग है।
फतेहसिंह ने इस पुस्तक के लिखने पर रोक लगा दी थी।
वीर विनोद पुस्तक का प्रकाशन 1892 में किया गया था।
Nice article
ReplyDeleteधन्यवाद, जीके क्लास में आपका स्वागत है।
DeleteExam ke liye achi jankari sir ji
ReplyDeleteधन्यवाद, जीके क्लास में आपका स्वागत है।
DeleteVery good
ReplyDeleteधन्यवाद, जीके क्लास में आपका स्वागत है।
DeleteNice work
ReplyDeleteधन्यवाद, जीके क्लास में आपका स्वागत है।
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