मांग और आपूर्ति (Demand and Supply)-
- अर्थव्यवस्था में दो बाजार शक्तियां मांग और आपूर्ति आदर्श रूप से ये दोनों समान होनी चाहिए लेकिन व्यवहारिक रूप से असंतुलित रहती है।
- मांग और आपूर्ति के असंतुलित रहने से दो प्रकार की परिस्थितियां बनती है। जैसे-
- 1. मांग > आपूर्ति = कीमते बढ़ेगी - विक्रेता या उत्पादक को लाभ होगा - निवेश बढ़ेगा - रोजगार बढ़ेगा - नियमित आय होगी - जीवन स्तर बढ़ेगा
- 2. आपूर्ति > मांग = कीमते कम होगी - मंदी आयोगी - उत्पादक या विक्रेता को हानी होगी - निवेश घटेगा - रोजगार घटेगा - नियमित आय नहीं होगी - जीवन स्तर घटेगा
1. मांग > आपूर्ति (Demand > Supply)-
- यदि बाजार में मांग अधिक हो और आपूर्ति कम हो तब कीमते बढ़ेगी, कीमते बढ़ेगी तब विक्रेता या उत्पादक को लाभ होगा, विक्रेता या उत्पादक को लाभ होगा तब विक्रेता या उत्पादक ओर अधिक निवेश करेगा, विक्रेता या उत्पादक ओर अधिक निवेश करेगा तब रोजगार बढ़ेगा, रोजगार बढ़ेगा तब नियमित आय होगी और नियमित आय होगी तब जीवन स्तर बढ़ेगा।
2. आपूर्ति > मांग (Supply > Demand)-
- यदि बाजार में मांग कम हो और आपूर्ति अधिक हो तब कीमते कम होगी, कीमते कम होगी तब मंदी आयेगी, मंदी आयेगी तो विक्रेता या उत्पादक को हानी होगी, विक्रेता या उत्पादक को हानी होगी तब विक्रेता या उत्पादक निवेश कम करेगा, विक्रेता या उत्पादक निवेश कम करेगा तब रोजगार घटेगा, रोजगार घटेगा तब नियमित आय नहीं होगी और नियमित आय नहीं होगी तब जीवन स्तर घटेगा।
मांग और आपूर्ति (Demand and Supply)-
- मांग का संबंध पैसों से होता है। जबकि आपूर्ति का संबंध उत्पादन से होता है।
- आपूर्ति को हमेशा बढ़ाने के प्रयास किए जाते है क्योंकि आपूर्ति से रोजगार जुड़े होते है।
- यदि बाजार में पैसे अधिक है तब इसका अर्थ है बाजार में तरलता (द्रव) अधिक है।
- तरलता को कम या ज्यादा किया जा सकता है।
- तरलता को कम या ज्यादा करने के लिए RBI के द्वारा मौद्रिक नीति को प्रयोग किया जाता है।
- महंगाई को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक नीति का प्रयोग किया जाता है।
- बाजार में मंदी की स्थिति में सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
- बाजार में मंदी की स्थिति में सरकार के द्वारा अपने खर्च को बढ़ाया जाता है जिससे की बाजार में मांग सर्जित की जा सके इसके लिए सरकार के द्वारा राजकोषीय नीति का प्रयोग किया जाता है।
मांग की परिभाषा (Definition of Demand)-
- वस्तु या सेवा की वह मात्रा जो की कोई भी उपभोक्ता विभिन्न कीमतों पर खरीदने के लिए तैयार है मांग कहलाती है।
मांग को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Demand)-
- 1. वस्तु या सेवा की कीमत (Price of Goods or Services)
- 2. व्यक्ति की आय (Individual's Income)
- 3. जनसंख्या (Population)
- 4. संबंधित वस्तुएं (Related Goods)
- 5. उपभोक्ता की पसन्द व रुचि (Liking and Interest of Consumer)
- 6. भविष्य की कीमतों की अपेक्षा (Future Price Expectation)
- 7. सरकारी नीति (Government Policy)
- 8. विज्ञापन (Advertisement)
1. वस्तु या सेवा की कीमत (Price of Goods or Services)-
- यदि वस्तु या सेवा की कीमते बढ़ती है तब वस्तु या सेवा की मांग कम हो जाती है।
- यदि वस्तु या सेवा की कीमते कम हो जाती है तब वस्तु या सेवा की मांग बढ़ जाती है।
2. व्यक्ति की आय (Individual's Income)-
- व्यक्ति की आय के बढ़ने के साथ साथ वस्तु और सेवाओं की मांग बढ़ जाती है तथा व्यक्ति उच्च गुणवत्ता की वस्तुएं या सेवाएं खरीदने लगता है।
3. जनसंख्या (Population)-
- जनसंख्या के बढ़ने से वस्तु या सेवा की मांग भी बढ़ती है।
4. संबंधित वस्तुएं (Related Goods)-
- संबंधित वस्तुएं दो प्रकार की होती है जैसे-
- (I) पूरक वस्तुएं (Complementary Goods)
- (I) प्रतिस्थापन वस्तुएं (Replacement Goods)
(I) पूरक वस्तुएं (Complementary Goods)-
- जब दो या दो से अधिक वस्तुओं का प्रयोग एक साथ किया जाये तब उन्हें एक दुसरे का पूरक कहा जाता है।
- पूरक वस्तुओं की कीमतों के परिवर्तन से मुख्य वस्तु की मांग भी परिवर्तित होती है। जैसे- मोबाइल फोन और मोबाइल चार्जर (मोबाइल फोन के बीना चार्जर को कोई उपयोग नहीं और चार्जर के बीना मोबाइल फोन का कोई उपयोग नहीं अर्थात् दोनों का उपयोग साथ में किया जाता है। अतः ये दोनों एक दुसरे की पूरक वस्तुएं है।)
(II) प्रतिस्थापन वस्तुएं (Replacement Goods)-
- जब दो वस्तुओं का प्रयोग एक दुसरे के स्थान पर किया जा सके उन्हे प्रतिस्थापन वस्तुएं कहा जाता है। जैसे- चाय व काॅफी (यदि काॅफी की कीमते बढ़ जाती है तब चाय की मांग बढ़ जायेगी)
5. उपभोक्ता की पसन्द व रुचि (Liking and Interest of Consumer)-
- उपभोक्ता की पसन्द व रुचि से मांग प्रभावित होती है।
6. भविष्य की कीमतों की अपेक्षा (Future Price Expectation)-
- यदि उपभोक्ता को लगता है की भविष्य में कीमते बढ़ने वाली है तब उपभोक्ता वर्तमान में मांग को बढ़ा देता है।
- यदि उपभोक्ता को लगता है की भविष्य में कीमते कम होने वाली है तब उपभोक्ता वर्तमान में मांग को कम कर देता है।
7. सरकारी नीति (Government Policy)-
- यदि सरकार किसी वस्तु की मांग बढ़ाना चाहे तब सरकार उस वस्तु के लिए सब्सिडी दे सकती है।
- यदि सरकार किसी वस्तु की मांग को कम करना चाहे तब सरकार उस वस्तु पर अतिरिक्त कर (Tax) लगा सकती है।
8. विज्ञापन (Advertisement)-
- यदि किसी वस्त या उत्पाद का विज्ञापन अत्यधिक किया जाये तब उपभोक्ता उस वस्तु या उत्पाद को खरीदने के लिए तैयार हो जाता है।
मांग के प्रकार (Types of Demand)-
- 1. प्रत्यक्ष मांग (Direct Demand)
- 2. अप्रत्यक्ष मांग (Indirect Demand)
- 3. संयुक्त मांग (Joint Demand)
- 4. प्रतिस्पर्धी मांग (Competitive Demand)
- 5. समग्र मांग (Aggregate Demand)
- 6. व्यक्तिगत मांग (Personal Demand)
- 7. बाजार मांग (Market Demand)
1. प्रत्यक्ष मांग (Direct Demand)-
- वह मांग जो की उपभोक्ता के द्वारा सर्जित की जाती है प्रत्यक्ष मांग कहलाती है। जैसे- उपभोक्ता के द्वारा चाय की मांग
2. अप्रत्यक्ष मांग (Indirect Demand)-
- वह मांग जो की विक्रेता या उत्पादक के द्वारा सर्जित की जाती है अप्रत्यक्ष मांग कहलाती है। जैसे- चाय बनाने वाले के द्वारा दूध की मांग
3. संयुक्त मांग (Joint Demand)-
- जब दो या दो से अधिक वस्तुओं की मांग एक साथ की जाती है तब वह मांग संयुक्त मांग कहलाती है।
4. प्रतिस्पर्धी मांग (Competitive Demand)-
- प्रतिस्पर्धी मांग प्रतिस्थापन वस्तुओं के कारण उत्पन होती है जैसे- चाय, काॅफी की मांग
5. समग्र मांग (Aggregate Demand)-
- जब एक ही वस्तु का प्रयोग विभिन्न कार्यों के लिए किया जा सके समग्र मांग कहलाती है। जैसे- दूध का प्रयोग
6. व्यक्तिगत मांग (Personal Demand)-
- जब मांग की गणना किसी एक व्यक्ति के दृष्टिकोण से की जाये तब वह मांग व्यक्तिगत मांग कहलाती है।
7. बाजार मांग (Market Demand)-
- जब मांग की गणना एक से अधिक व्यक्तियों के दृष्टिकोण से की जाये तब वह मांग बाजार मांग कहलाती है।
मांग का नियम (Law of Demand)-
- मांग का नियम कीमत व मांग के बीच नकारात्मक संबंध को दर्शाता है अर्थात् वस्तु की कीमत के बढ़ने से मांग कम होती है और वस्तु की कीमत के कम होने से मांग बढ़ जाती है।
- मांग का नियम उपभोक्ता के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
मांग के नियम के अपवाद (Exceptions of Law of Demand)-
- (I) आवश्यक वस्तुएं (Essential Commodities)
- (II) गिफिन वस्तुएं (Giffin Items)
- (III) वेबलेन वस्तुएं (Veblen Items)
- (IV) फैशन की वस्तुएं (Fashion Items)
- (V) नशीले पदार्थ (Narcotics)
(I) आवश्यक वस्तुएं (Essential Commodities)-
- आवश्यक वस्तुएं जैसे- नमक, जीवन रक्षक दवायें आदि।
(II) गिफिन वस्तुएं (Giffin Items)-
- गिफिन वस्तुएं कम गुणवत्ता की होती है गिफिन वस्तुओं की प्रतिस्थापन वस्तुओं की कीमते अत्यधिक बढ़ गई है इसीलिए गिफिन वस्तुओं की कीमत तथा मांग दोनों बढ़ रही है।
(III) वेबलेन वस्तुएं (Veblen Items)-
- वेबलेन वस्तुएं सामजिक प्रतिष्ठा और विलासिता से जुड़ी होती है इसीलिए वेबलेन वस्तुओं की कीमत अधिक होने के बावजूद वेबलेन वस्तुओं की मांग में कमी नहीं आती है।
(IV) फैशन की वस्तुएं (Fashion Items)-
- जो वस्तुएं फैशन में है उनकी मांग अधिक होती है। परन्तु यदि कोई वस्तु फैशन में नहीं है तब उसकी कीमते कम होने पर भी उन वस्तुओं की मांग में वृद्धि नहीं होती है।
(V) नशीले पदार्थ (Narcotics)-
- नसीले पदार्थ जैसे- शराब, सिगरेट आदि।
आपूर्ति की परिभाषा (Definition of Supply)-
- वस्तु या सेवा की वह मात्रा जो की कोई विक्रेता या उत्पादक एक निश्चित समय के अनुसार विभिन्न कीमतों पर उपलब्ध करवाने के लिए तैयार है आपूर्ति कहलाती है।
आपूर्ति को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Supply)-
- 1. कीमत (Price)
- 2. भविष्य की कीमतों के प्रति अपेक्षा (Expectation of Future Prices)
- 3. उत्पादन की लागत (Cost of Production)
- 4. कच्चे माल की उपलब्धता (Raw Material Availability)
- 5. परिवहन के साधन (Means of Transport)
- 6. प्राकृतिक घटनाएं (Natural Phenomena)
- 7. वस्तु की प्रकृति (Nature of Object)
- 8. तकनीक (Technology)
- 9. सरकारी नीति (Government Policies)
1. कीमत (Price)-
- वस्तु या सेवा की कीमतों के बढ़ने से विक्रेता या उत्पादक को लाभ होता है जिससे विक्रेता या उत्पादक ओर अधिक निवेश करते है तथा आपूर्ति बढ़ती है।
2. भविष्य की कीमतों के प्रति अपेक्षा (Expectation of Future Prices)-
- यदि विक्रेता या उत्पादक को लगता है की भविष्य में कीमते बढ़ने वाली है तब विक्रेता या उत्पादक वर्तमान में आपूर्ति को कम कर देता है।
- यदि विक्रेता या उत्पादक को लगता है की भविष्य में कीमते कम होने वाली है तब विक्रेता या उत्पादक वर्तमान में आपूर्ति को बढ़ा देता है।
3. उत्पादन की लागत (Cost of Production)-
- यदि उत्पादन की लागत बढ़ जाती है तब आपूर्ति को कम कर दिया जाता है।
4. कच्चे माल की उपलब्धता (Raw Material Availability)-
- यदि कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो जाता है तब आपूर्ति को आसानी से बढ़ाया जा सकता है।
5. परिवहन के साधन (Means of Transport)-
- यदि परिवहन के साधन विकसित है तब आपूर्ति करना आसान हो जाता है।
6. प्राकृतिक घटनाएं (Natural Phenomena)-
- यदि प्राकृतिक घटनाएं प्रतिकुल है तब आपूर्ति को बनाये रख पाना अत्यधिक मुश्किल हो जाता है।
7. वस्तु की प्रकृति (Nature of Object)-
- यदि कोई वस्तु जल्द खराब होने वाली हो तब उस वस्तु की आपूर्ति को वर्षभर बनाये नहीं रखा जा सकता है। जैसे- प्याज
8. तकनीक (Technology)-
- तकनिक में सुधार के साथ साथ आपूर्ति को भी बढ़ाया जा सकता है।
9. सरकारी नीतियां (Government Policies)-
- सरकारी नीतियां भी आपूर्ति को प्रभावि करती है जैसे- लाॅकडाउन
आपूर्ति को प्रकार (Types of Supply)-
- 1. बाजार आपूर्ति (Market Supply)
- 2. अल्पकालिक आपूर्ति (Short Term Supply)
- 3. दीर्घकालिक आपूर्ति (Long Term Supply)
- 4. संयुक्त आपूर्ति (Joint Supply)
- 5. समग्र आपूर्ति (Overall Supply)
1. बाजार आपूर्ति (Market Supply)-
- बाजार आपूर्ति ही दैनिक आपूर्ति है। जैसे- सब्जियां, दूध, मच्छली आदि
2. अल्पकालिक आपूर्ति (Short Term Supply)-
- वह वस्तु या सेवा जिसकी आपूर्ति में समय कम लगता हो अल्पकालिक आपूर्ति कहलाती है।
3. दीर्घकालिक आपूर्ति (Long Term Supply)-
- वह वस्तु या सेवा जिसकी आपूर्ति में सयम अधिक लगता हो दीर्घकालिक आपूर्ति कहलाती है।
4. संयुक्त आपूर्ति (Joint Supply)-
- जब दो या दो से अधिक वस्तुओं की आपूर्ति एक साथ की जाती है संयुक्त आपूर्ति कहलाती है। इसमें अन्य उत्पाद सह उत्पाद होते है।
5. समग्र आपूर्ति (Overall Supply)-
- जब एक ही वस्तु की आपूर्ति विभिन्न स्रोतों से की जा सके समग्र आपूर्ति कहलाती है।
आपूर्ति का नियम (Law of Supply)-
- आपूर्ति का नियम कीमतों और आपूर्ति के बीच सकारात्मक संबंध को दर्शाता है जैसे-जैसे वस्तु की कीमते बढ़ती है आपूर्ति में भी वृद्धि होती है।
- आपूर्ति का नियम विक्रेता या उत्पादक के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
आपूर्ति के नियम के अपवाद (Exceptions of Rule of Supply)-
- 1. एकाधिकार (Monopoly)
- 2. प्राकृतिक परिस्थितियां (Natural Conditions)
- 3. सरकारी प्रतिबंध (Government Restrictions)
- 4. प्रतिस्पर्धा (Competition)
- 5. व्यवसाय में परिवर्तन (Change in Business)
1. एकाधिकार (Monopoly)-
- यदि बाजार में एक ही विक्रेता या उत्पादक हो तब कीमतों के बढ़ने के बाद भी आपूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता है।
2. प्राकृतिक परिस्थितियां (Natural Conditions)-
- प्राकृतिक परिस्थितियां जैसे- सूखा, बाढ़ आदि के कारण फसल का उत्पादन प्रभावित होता है। जिससे उन वस्तुओं की कीमते बढ़ने के बाद भी वस्तुओं की आपूर्ति को नहीं बढ़ाया जा सकता है।
3. सरकारी प्रतिबंध (Government Restrictions)-
- यदि किसी वस्तु पर सरकार के द्वारा प्रतिबंध लगा दिया जाये तब कीमते बढ़ने के बाद भी उन वस्तुओं की आपूर्ति नहीं की जा सकता है।
4. प्रतिस्पर्धा (Competition)-
- यदि दो या दो से अधिक व्यवसाय आपस में प्रतिस्पर्धा (Competition) कर रहे है तब कम कीमतों पर भी अधिक वस्तुएं उपलब्ध करवायी जाती है।
5. व्यवसाय में परिवर्तन (Change in Business)-
- यदि कोई व्यक्ति पूराने व्यवसाय को छोड़कर नया व्यवसाय अपना रहा है तब वह पूराने व्यवसाय की वस्तुओं को कम कीमतों पर भी बेचने के लिए तैयार हो जाता है।
मूल्य या कीमत का निर्धारण (Assessment of Value or Price)-
- वह बिन्दू जिस पर उपभोक्ता व विक्रेता या उत्पादक दोनों सहमत होते है मूल्य या कीमत कहलाती है।
उत्पादन के कारक (Factors of production)-
- (I) भूमि
- (II) श्रम
- (III) पूंजी
- (IV) उद्यमिता
साधन लागत (Factor Cost)-
- साधन लागत = किराया + मजदुरी + ब्याज + लाभ
बाजार मूल्य (Market Value)-
- बाजार मूल्य = साधन लागत + अप्रत्यक्ष कर + सब्सिडी
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र (Sectors of Economy)-
- अर्थव्यवस्था के तीन मुख्य क्षेत्र है जैसे-
- 1. प्राथमिक क्षेत्र
- 2. द्वितीयक क्षेत्र
- 3. तृतीयक क्षेत्र-
- (I) चतुर्थक क्षेत्र
- (II) पंचक क्षेत्र
1. प्राथमिक क्षेत्र-
- प्राथमिक क्षेत्र में ऐसी वस्तुओं को रखा जाता है जो की मुख्यतः प्रकृति से प्राप्त होती है। जैसे- कृषि, पशुपालन, मच्छली पालन आदि।
- प्राथमिक क्षेत्र में सर्वाधिक योगदान कृषि का होता है इसीलिए प्राथमिक क्षेत्र को कृषि क्षेत्र भी कहा जाता है।
2. द्वितीयक क्षेत्र-
- द्वितीयक क्षेत्र में निर्माण व विनिर्माण उद्योगों को रखा जाता है जैसे- मोटरवाहन उद्योग, वस्त्र उद्योग, इलेक्ट्रोनिक उद्योग, फर्निचर उद्योग आदि।
- भारत में खनन को द्वितीयक क्षेत्र में रखा गया है।
- द्वितीयक क्षेत्र को उद्योग क्षेत्र भी कहा जाता है।
3. तृतीयक क्षेत्र-
- तृतीयक क्षेत्र में सेवाओं को रखा गया है जैसे- बैंकिंग सेवा, परिवहन सेवा, दूरसंचार सेवा, चिकित्सा सेवा, विधिक सेवा आदि।
- तृतीयक क्षेत्र को सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।
- तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र को दो अन्य क्षेत्रों में भी बाटा गया है जैसे-
- (I) चतुर्थक क्षेत्र
- (II) पंचक क्षेत्र
(I) चतुर्थक क्षेत्र-
- चतुर्थक क्षेत्र में ज्ञान आधारित सेवाओं को रखा जाता है जैसे- विधिक सेवा, चिकित्सा सेवा, अनुसंधान सेवा, वैज्ञानिक सेवा आदि।
(II) पंचक क्षेत्र-
- पंचक क्षेत्र में उस सेवाओं को रखा जाता है जो सेवाएं निर्णय लेने का कार्य करती है जैसे- सिविल सेवाएं (IAS, RAS), राजनीतिक सेवाएं, कम्पनी के उच्च प्रबंधन की सेवाएं आदि।
अर्थव्यवस्था (Economy)-
- जब भी किसी देश की अर्थव्यवस्था विकसित होती है तब उस देश की अर्थव्यवस्था सर्वप्रथम कृषि आधारित अर्थव्यवस्था होती है। कृषि क्षेत्र के बाद उद्योगिक क्षेत्र विकसित होते है। उद्योगिक क्षेत्र के बाद सेवा क्षेत्र विकसित होते है।
- भारतीय अर्थव्यवस्था प्रारम्भ में कृषि आधारित थी।
- स्वतंत्रता के समय भारत की GDP में कृषि का योगदान लगभग 55% था।
- भारतीय अर्थव्यवस्था वर्तमान में सेवा आधारित है क्योंकि भारत की GDP में सेवाओं का योगदान लगभग 55% है तथा कृषि का योगदान 17% है।
- वर्तमान में भारत में लगभग 50% जनसंख्या प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार के लिए कृषि पर निर्भर है।