मेवाड़ का इतिहास-
- मेवाड़ में गुहिल वंश का शासन था।
मेवाड़ के प्राचीन नाम-
- 1. मेदपाट
- 2. प्राग्वाट
- 3. शिवि जनपद
मेवाड़ के गुहिल वंश के प्रमुख राजा-
- मेवाड़ के गुहिल वंश के राजाओं का क्रम-
- 1. बापा रावल
- 2. अल्लट
- 3. रावल जैत्रसिंह
- 4. रावल रतन सिंह (1302- 1303 ई.)
- मेवाड़ में गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा के प्रमुख राजा-
- 5. राणा हम्मीर (1326- 1364 ई.)
- 6. राणा लाखा (1382- 1421 ई.)
- 7. राणा मोकल (1421- 1433 ई.)
- 8. राणा कुम्भा या महाराणा कुम्भा (1433- 1468 ई.)
- 9. रायमल (1473-1509 ई.)
- 10. महाराणा सांगा (1509-1528 ई.)
- 11. विक्रमादित्य (1531-1536 ई.)
- 12. उदय सिंह (1537-1572 ई.)
- 13. महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.)
- 14. महाराणा अमर सिंह- I (1597-1620 ई.)
- 15. महाराणा कर्णसिंह (1620- 1628 ई.)
- 16. महाराणा जगत सिंह- I (1628- 1651 ई.)
- 17. महाराणा राजसिंह (1652- 1680 ई.)
- 18. महाराणा जयसिंह (1680- 1698 ई.)
- 19. महाराणा अमर सिंह- II (1698- 1710 ई.)
- 20. महाराणा संग्राम सिंह- II (1710- 1734 ई.)
- 21. महाराणा जगतसिंह- II (1734- 1751 ई.)
- 22. महाराणा भीमसिंह (1778- 1828 ई.)
1. बापा रावल-
➠बापा रावल का वास्तविक नाम कालभोज (Kalbhoj) था।
➠बापा रावल हारीत ऋषि का अनुयायी या शिष्य था।
➠734 ई. में बापा रावल ने मान मौर्य को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था।
➠मान मौर्य बापा रावल का मामा था।
➠बापा रावल ने चित्तौड़ पर अधिकार करने के बाद भी अपनी राजधानी नागदा को बनाया था।
➠नागदा राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠बापा रावल ने नागदा में एकलिंग मंदिर का निर्माण करवाया था।
➠नागदा का एकलिंग मंदिर भगवान शिव का मंदिर है।
➠मेवाड़ के राजा खुद को एकलिंग जी का दीवान मानते थे।
➠बापा रावल ने मेवाड़ में सोने के सिक्के चलाए थे।
➠बापा रावल के द्वारा मेवाड़ में चलाए गये सोने के सिक्के 115 ग्रेन के थे।
➠बापा रावल मुस्लिम सेना को हराते हुए गजनी (अफगानिस्तान) तक चला गया था।
➠बापा रावल ने गजनी के राजा सलीम को हराकर अपने भान्जे को गजनी का राजा बनाया था।
➠इतिहासकार सी.वी. वैद्य (C.V. Vaidya) ने बापा रावल की तुलना चार्ल्स मार्टेल (Charles Martel) से की जाती है। क्योंकि भारत में तुर्कों के आक्रमण को बापा रावल के द्वारा रोका जा रहा था तो यूरोप में तुर्कों के आक्रमण को चार्ल्स मार्टेल के द्वारा रोका जा रहा था।
➠चार्ल्स मार्टेल फ्रांस का निवासी था।
➠बापा रावल के सैन्य शिविर के कारण पाकिस्तान के रावल पिंडी शहर का नामकरण हुआ था। अर्थात् बापा रावल जब गजनी में तुर्कों से युद्ध करने गया था तब बापा रावल ने पाकिस्तान की जिस जगह अन्य सैन्य शिविर लगाया था उस जगह को बापा रावल के नाम से रावल पिंड कहा जाने लगा था तथा बाद में रावल पिंड को पावल पिंडी के नाम से जाना जाने लगा था।
बापा रावल की उपाधियां-
(I) हिन्दू सूरज (Hindu Suraj)
(II) राजगुरु (Rajguru)
(III) चक्कवै (Chakkavi)
2. अल्लट-
➠अल्लट का अन्य नाम आलुरावल है।
सारणेश्वर प्रशस्ति (953 ई.)-
➠राजस्थान के उदयपुर में स्थित सारणेश्वर मंदिर (शिव मंदिर) से सारणेश्वर अभिलेख मिला है।
➠सारणेश्वर अभिलेख में राजाओं के प्रशंसा की गई है इसलिए सारणेश्वर अभिलेख को राणेश्वर प्रशस्ति कहते हैं।
➠सारणेश्वर प्रशस्ति से गुहिल वंश के शासक अल्लट के बारे में जानकारी मिलती है।
➠सारणेश्वर प्रशस्ति 953 ई. की है।
➠सारणेश्वर प्रशस्ति के अनुसार अल्लट ने आहड़ को अपनी दुसरी राजधानी बनाया था।
➠मेवाड़ की मुख्य राजधानी नागदा थी।
➠आहड़ राजस्थान के उदयपुर जिले की एक जगह का नाम है।
➠सारणेश्वर प्रशस्ति के अनुसार अल्लट ने आहड़ में वराह मंदिर का निर्माण करवाया था।
➠अल्लट के द्वारा बनवाया गया वराह मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है।
➠सारणेश्वर प्रशस्ति अल्लट के समय की कर (Tax) व्यवस्था की जानकारी देती है।
➠सारणेश्वर प्रशस्ति अल्लट के समय की प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी भी देती है।
➠सारणेश्वर प्रशस्ति में मुख्य प्रशासनिक अधिकारियों के पद का भी उल्लेख किया गया है जैसे-
(I) अमात्य (Amatya)
(II) संधि विग्रहक (Sandhi Vigrahak)
(III) अक्षपटलिक (Akshapatalik)
(IV) भिषगाधिराज (Bhishagadhiraj)
(V) बन्दिपति (Bandipati)
(I) अमात्य (Amatya)-
➠राजा की तरफ से राजा के सभी मंत्रियों का ध्यान या निगरानी रखने वाले प्रशासनिक अधिकारी को अमात्य कहा जाता था।
(II) संधि विग्रहक (Sandhi Vigrahak)-
➠राजा की तरफ से राजा के द्वारा लड़े जाने वाले युद्ध तथा संधि की व्यवस्था को देखने वाले प्रशासनिक अधिकारी को संधि विग्रहक कहा जाता था।
(III) अक्षपटलिक (Akshapatalik)-
➠राजा की तरफ से राजा के आय तथा व्यय की निगरानी रखने वाले प्रशासनिक अधिकारी को अक्षपटलिक कहा जाता था।
(IV) भिषगाधिराज (Bhishagadhiraj)-
➠राजा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी या राज वैद्य को ही भिषगाधिरा कहा जाता था।
(V) बन्दिपति (Bandipati)-
➠राजा की प्रशंसा करने वाले व्यक्ति को बन्दिपति कहा जाता था।
आटपुर अभिलेख- 977 ई.
➠मेंवाड़ के राजा शक्तिकुमार के आटपुर (आहड़) अभिलेख के अनुसार अल्लट की हूण रानी हरियादेवी ने हर्षपुर नामक गाँव की स्थापना की थी।
➠आटपुर अभिलेख राजस्थान के उदयपुर जिले के आहड़ नामक स्थान से प्राप्त हुआ है।
➠आटपुर अभिलेख राजा शक्तिकुमार का है।
➠आटपुर अभिलेख 977 ई. का है।
3. रावल जैत्रसिंह-
भुताला का युद्ध (1227 ई.)-
➠भुताला का युद्ध 1227 ई. में मेवाड़ के राजा रावल जैत्रसिंह तथा दिल्ली के शासक इल्तुतमिश के मध्य हुआ था।
➠भुताला के युद्ध में मेवाड़ के राजा रावल जैत्रसिंह के जीत हुई थी। तथा इल्तुतमिश को हार का सामना करना पड़ा था।
➠भुताला के युद्ध में इल्तुतमिश की भागती हुई सेना ने मेवाड़ के नागदा को लुट लिया था इसके बाद रावल जैत्रसिंह ने अपनी राजधानी नागदा से हटाकर चित्तौड़ को अपनी राजधानी बना लिया था।
➠इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार रावल जैत्रसिंह का शासन काल मध्यकालिन मेवाड़ का स्वर्ण काल माना जाता है।
हम्मीर मद मर्दन-
➠जयसिंह सूरी की पुस्तक हम्मीर मद मर्दन से भुताला युद्ध की जानकारी प्राप्त होती है।
➠जयसिंह सूरी की पुस्तक हम्मीर मद मर्दन में इल्तुलमिश को हम्मीर कहा गया है।
➠हम्मीर मद मर्दन पुस्तक जयसिंह सूरी के द्वारा लिखी गयी थी।
भुताला के युद्ध में रावल जैत्रसिंह के सेनापति-
1. बालक (Balak)
2. मदन (Madan)
4. रावल रतन सिंह (1302- 1303)-
➠रावल रतन सिंह के पिता का नाम समर सिंह था।
➠रावल रतन सिंह मेवाड़ का अंतिम राजा था जिसने रावल की उपाधि धारण की थी।
कुम्भकर्ण-
➠कुम्भकर्ण रावल रतन सिंह का छोटा भाई था।
➠कुम्भकर्ण ने नेपाल में गुहिल वंश की राणा शाखा का शासन स्थापित किया था।
पद्मिनी-
➠पद्मिनी रावल रतन सिंह की रानी थी।
➠पद्मिनी सिंहल द्वीप की राजकुमारी थी।
➠पद्मिनी के पिता का नाम गंधर्वसेन था।
➠पद्मिनी की माता का नाम चम्पावती थी।
➠राघव चेतन ने दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी को पद्मिनी की सुंदरता के बारे में बताया था।
➠1540 ई. में मलिक मुहम्मद जायसी (उत्तर प्रदेश) ने पद्मावत नामक पुस्तक लिखी थी।
➠मलिक मुहम्मद जायसी के द्वारा लिखी गई पद्मावत पुस्तक अवधी भाषा में है।
अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ आक्रमण-
➠दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया था।
➠1303 ई. में चित्तौड़ का पहला साका हुआ था।
➠रानी पद्मिनी ने 1600 अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया था।
➠रावल रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया किया गया था।
➠25 अगस्त 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था।
➠अलाउद्दीन खिलजी ने युद्ध जितने के बाद चित्तौड़ में 30,000 लोगों का नरसंहार (कत्लेआम) करवाया था।
➠अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र खिज्र खाँ (खिज्र खान) को चित्तौड़ का राजा बना दिया था।
➠अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया था।
धाईबी पीर की दरगाह का अभिलेख-
➠धाईबी पीर की दरगाह का अभिलेख चित्तौड़ से प्राप्त हुआ था।
➠धाईबी पीर की दरगाह का अभिलेख 1325 ई. का है।
➠धाईबी पीर की दरगाह के अभिलेख में चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद दिया गया है।
खिज्र खाँ (खिज्र खान)-
➠चित्तौड़ का राजा बनने के बाद खिज्र खाँ ने चित्तौड़ में गम्भीरी नदी पर पुल बनवाया था।
➠खिज्र खाँ ने चित्तौड़ में एक मकबरे का निर्माण भी करवाया था।
➠खिज्र खाँ ने चित्तौड़ में मकबरे के पास एक अभिलेख लगवाया था।
➠खिज्र खाँ के द्वारा लगवाये गये चित्तौड़ के मकबरे के अभिलेख में दिल्ली के शासक अलाउद्दीन खिलजी को दूसरा सिकंदर, ईश्वर की छाया तथा संसार का रक्षक बताया गया है।
➠कुछ समय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का किला मालदेव सोनगरा को दे दिया था।
मालदेव सोनगरा-
➠अलाउद्दीन खिलजी ने अपने बेटे खिज्र खाँ को हटाकर चित्तौड़ का राजा मालदेव सोनगरा को बना दिया था।
➠मालदेव सोनगरा का मुँछाला मालदेव भी कहा जाता है।
➠मालदेव जालौर के चौहान वंश के राजा कान्हड़देव सोनगरा का छोटा भाई है।
अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ आक्रमण के दौरान रावल रतन सिंह के सेनापति-
1. गौरा
2. बादल
साका- जौहर तथा केसरिया दोनों एक साथ हो तब उसे साका कहा जाता है।
अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ आक्रमण के कारण-
1. अलाउद्दीन खिलजी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।
2. चित्तौड़ का किला दिल्ली से मालवा तथा गुजरात के व्यापारिक मार्ग पर स्थित था।
3. चित्तौड़ का किला अपने सामरिक महत्व के लिए प्रसिद्ध था।
4. अलाउद्दीन खिलजी जब गुजरात आक्रमण (1299) के लिए जा रहा था तब मेवाड़ के राजा समर सिंह ने अलाउद्दीन खिलजी से कर (Tax) वसूल किया था। अतः यह बात अलाउद्दीन खिलजी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था।
5. मेवाड़ की शक्तियां बढ़ रही थी तथा अलाउद्दीन खिलजी मेवाड़ की बढ़ती हुई शक्तियों को नियंत्रित करना चाहता था।
6. रानी पद्मिनी की सुंदरता।
मेवाड़ में गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा का शासन प्रारम्भ-
5. राणा हम्मीर (1326- 1364 ई.)-
➠राणा हम्मीर ने बनवीर सोनगरा को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था।
➠बनवीर सोनगरा मालदेव सोनगरा का बेटा था।
➠राणा हम्मीर को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है।
➠राणा हम्मीर सिसोदा गाँव का था अतः राणा हम्मीर से ही मेवाड़ में गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा का शासन प्रारम्भ होता है।
➠सिसोदा गाँव राजस्थान के राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ के पास स्थित है।
➠राणा हम्मीर ने राणा की उपाधि धारण की थी।
➠सिंगोली के युद्ध में राणा हम्मीर ने दिल्ली के शासक मुहम्मद बिन तुगलक को हराया था।
➠सिंगोली राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में स्थित एक जगह का नाम है।
➠राणा हम्मीर ने चित्तौड़ में बरवडी माता का मंदिर बनवाया था।
➠बरवडी माता को अन्नपूर्णा माता भी कहते है।
➠बरवडी माता मेवाड़ के गुहिल वंश की ईष्ट देवी है।
➠गुहिल वंश की कुल देवी बाण माता है।
राणा हम्मीर की उपाधियां-
(I) विषम घाटी पंचानन
(II) वीर राजा
(III) प्रबल हिन्दू
(I) बिषम घाटी पंचानन-
➠कुंभलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार राणा हम्मीर को विषण घाटी पंचानन की उपाधि दी गई थी।
(II) वीर राजा-
➠रसिक प्रिया के अनुसार राणा हम्मीर को वीर राजा की उपाधि दी गई थी।
(III) प्रबल हिन्दू-
➠कर्नल जेम्स टाॅड के अनुसार राणा हम्मीर को प्रबल हिन्दू की उपाधि दी गई थी।
राहप-
➠राहप सिसोदा का संस्थापक था।
➠राणा हम्मीर राहप का ही वंशज था।
6. राणा लाखा (1382- 1421 ई.)-
➠मेवाड़ के राजा राणा लाखा के समय जावर में चाँदी की खान प्राप्त हुई थी।
➠एक बंजारे ने उदयपुर के पिछोला गाँव में पिछोला झील का निर्माण करवाया था।
➠बंजार घूमकड़ व्यापारी होता है।
➠राणा लाखा के द्वारा पिछोला झील के पास नटनी का चबूतरा बनवाया गया था।
➠कुम्भा हाडा नकली बूंदी की रक्षा करते हुए मारा गया था।
➠कुम्भा हाडा राणा लाखा की रानी हाडी रानी का भाई था।
➠मारवाड़ के राजा राव चून्डा ने अपनी राजकुमारी हंसाबाई का विवाह मेवाड़ के राणा लाखा के साथ किया गया था।
➠राणा लाखा तथा हंसाबाई के विवाह के दौरान राणा लाखा के बेटे राणा चून्डा ने प्रतिज्ञा की की वह मेवाड़ का अगला राजा नहीं बनेगा बल्कि हंसाबाई का बेटा मेवाड़ का अगला राजा होगा।
➠राणा चून्डा के द्वारा ली गई इसी प्रतिज्ञा के कारण राणा चून्डा को मेवाड़ का भीष्म कहा जाता है।
➠राणा चून्डा के इस त्याग के कारण राणा चून्डा को सलूम्बर का ठिकाना दिया गया था।
➠सलूम्बर राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠सलूम्बर ठिकाना मेवाड़ रियासत का सबसे बड़ा ठिकाना था।
सलूम्बर के सामंत को विशेष अधिकार दिये गये थे। जैसे-
1. सलूम्बर का सामंत मेवाड़ के राजा का राजतिलक करेगा अर्थात् मेवाड़ के राजा का चयन सलूम्बर के सामंत के द्वारा ही किया जायेगा।
2. सलूम्बर का सामंत मेवाड़ के राणा या राजा के साथ सभी कागज पत्रों पर हस्ताक्षर करेगा।
3. मेवाड़ के राणा या राजा की अनुपस्थिति में सलूम्बर का सामंत मेवाड़ की राजधानी को संभालेगा। अर्थात् मेवाड़ के राजा की अनुपस्थित में राजा का कार्य सलूम्बर का सामंत करेगा।
4. सलूम्बर का सामंत हमेशा मेवाड़ की सेना (हरावल) का सेनापति होगा।
हरावल-
➠सेना के प्रथम भाग या सेना की सबसे आगे की टुकड़ी को हरावल कहा जाता है।
चन्दावल-
➠सेना के दूसरे भाग या सेना की आगे से दूसरी टुकड़ी को चन्दावल कहा जाता है।
7. राणा मोकल (1421- 1433)-
➠राणा मोकल के पिता का नाम राणा लाखा है।
➠राणा मोकल की माता का नाम हंसाबाई है।
➠राणा मोकल का पहला संरक्षक राणा चून्डा था।
➠राणा चून्डा राणा लाखा का बेटा था।
➠राणा मोकल का दूसरा संरक्षक राव रणमल था।
➠राव रणमल हंसाबाई का भाई था।
➠हंसाबाई के अविश्वास के कारण राणा चून्डा मालवा चला जाता है।
➠राणा चून्डा मालवा के सुलतान होशंगशाह के पास चला जाता है।
➠राणा मोकल ने बापा रावल के द्वारा नागदा में बनवाये गये एकलिंग मंदिर का प्रकोटा (चार दिवारी) बनवाया था।
➠राणा मोकल ने चित्तौड़ में समिद्धेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।
➠समिद्धेश्वर मंदिर को पहले त्रिभुवन नारायण मंदिर कहा जाता था।
➠त्रिभुवन नारायण (समिद्धेश्वर) मंदिर का निर्माण मालवा के राजा भोज परमार ने करवाया था।
➠मालवा के राजा भोज परमार की उपाधि त्रिभुवन के कारण मंदिर का नाम त्रिभुवन नारायण था।
➠त्रिभुवन नारायण (समिद्धेश्व) मंदिर भगवान शिव का मंदिर है।
➠1433 ई. में गुजरात के राजा अहमदशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था।
➠जीलवाड़ा नामक स्थान पर चाचा, मेरा, तथा महपा पंवार नामक तीन लोगों ने राणा मोकल की हत्या कर दी थी।
➠जीलवाड़ा राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित जगह का नाम है।
8. राणा कुम्भा या महाराणा कुम्भा (1433- 1468)-
➠महाराणा कुम्भा के पिता का नाम राणा मोकल था।
➠महाराणा कुम्भा की माता का नाम सौभाग्यवती परमार था।
➠महाराणा कुम्भा का संरक्षक राव रणमल था।
➠राव रणमल की सहायता से महाराणा कुम्भा ने अपने पिता राणा मोकल की हत्या का बदला लिया था।
➠मेवाड़ दरबार में राव रणमल का प्रभाव बढ़ने लगा था।
➠राव रणमल ने सिसोदियों के नेता राघवदेव को मरवा दिया था।
➠राघवदेव राणा चून्डा का भाई था।
➠राणा चून्डा को मालवा से वापस बुलाया गया था।
➠राणा चून्डा ने भारमली की सहायता से राव रणमल को मार दिया था।
➠राव रणमल के बेटे जोधा ने बीकानेर के पास काहुनी नामक गाँव में शरण ली थी।
➠राणा चून्डा ने राठौड़ों की राजधानी मंडौर पर अधिकार कर लिया था।
➠महाराणा कुम्भा एक धर्मनिरपेक्ष राजा था।
➠महाराणा कुम्भा ने जैनों (जैन समुदाय) का तीर्थ यात्रा कर समाप्त कर दिया था।
➠कुंभलगढ़ के किले में महाराणा कुम्भा की हत्या उसके बेटे उदा के द्वारा कर दी गई थी।
➠कुंभलगढ़ का किला राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है।
आंवल-बांवल की संधि (1453 ई.)-
➠आंवल-बांवल की संधि महाराणा कुम्भा (मेवाड़) तथा जोधा (मारवाड़) के बीच हुई थी।
➠आंवल-बांवल की संधि 1453 ई. में हुई थी।
➠आंवल-बांवल की संधि में सोजत को मेवाड़ तथा मारवाड़ की सीमा बनाया गया था।
➠सोजत राजस्थान के पाली जिले में स्थित जगह का नाम है।
सारंगपुर का युद्ध (1437 ई.)-
➠सारंगपुर मध्य प्रदेश में स्थित जगह का नाम है।
➠सारंगपुर का युद्ध महाराणा कुम्भा (मेवाड़) तथा महमूद खिलजी (मालवा) के मध्य हुआ था।
➠सांरगपुर का युद्ध 1437 ई. में मध्य प्रदेश के सारंगपुर नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠सारंगपुर युद्ध में महाराणा कुम्भा की जीत हुई थी।
➠सारंगपुर युद्ध की जीत की याद में महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया था।
सारंगपुर के युद्ध के कारण-
1. महाराणा कुम्भा तथा महमूद खिलजी दोनों अपने राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
2. महमूद खिलजी ने राणा मोकल के हत्यारों को शरण दी थी।
3. महाराणा कुम्भा महमूद खिलजी के विद्रोही उमर खाँ की सहायता कर रहा था तथा उमर खाँ ने सारंगपुर पर अधिकार कर लिया था।
नागौर का उत्तराधिकारी संघर्ष-
➠महाराणा कुम्भा ने मुजाहिद खाँ के खिलाफ शम्स खाँ की सहायता की लेकिन कुछ समय पश्चात शम्स खाँ महाराणा कुम्भा के खिलाफ विद्रोह कर देता है।
➠मुजाहिद खाँ नागौर के राजा फिरोज का भाई था।
➠शम्स खाँ नागौर के राजा फिरोज को बेटा था।
➠शम्स खाँ सहायता के लिए गुजरात के कुतुबद्दीन शाह के पास चला जाता है।
➠महाराणा कुम्भा ने शम्स खाँ तथा कुतुबद्दीन शाह दोनों को एक साथ हराया था।
चांपानेर की संधि (1456 ई.)-
➠चांपानेर गुजरात में स्थित एक जगह का नाम है।
➠चांपानेर की संधि कुतुबद्दीन शाह (गुजरात) तथा महमूद खिलजी (मालवा) के मध्य हुई थी।
चांपानेर संधि का उद्देश्य-
➠गुजरात का राजा कुतुबद्दीन शाह तथा मालवा का राजा महमूद खिलजी दोनों साथ मिलकर महाराणा कुम्भा को हराकर मेवाड़ का बटवारा करना चाहते थे।
बदनौर का युद्ध (1457 ई.)-
➠बदनौर राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित एक जगह का नाम है।
➠बदनौर का युद्ध गुजरात के राजा कुतुबद्दीन शाह व मालवा के राजा महमूद खिलजी ने साथ मिलकर मेवाड़ के राजा महाराणा कुम्भा के साथ किया था।
➠महाराणा कुम्भा ने मालवा तथा गुजरात की संयुक्त सेना को हराया था।
➠महाराणा कुम्भा ने सिरोही के सहसमल देवड़ा को भी हराया था।
महाराणा कुम्भा की सांस्कृति उपलब्धियां-
1. स्थापत्य कला
2. साहित्य कला
1. स्थापत्य काल-
➠महाराणा कुम्भा को राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है।
(अ) विजय स्तम्भ
(ब) किले
(स) मंदिर
(अ) विजय स्तम्भ-
➠विजय स्तम्भ का निर्माण महाराणा कुम्भा ने करवाया था।
➠विजय स्तम्भ 15वीं शताब्दी का है।
➠विजय स्तम्भ चित्तौड़ के किले में स्थित है।
➠विजय स्तम्भ की उच्चाई 122 फीट है।
➠विजय स्तम्भ की चौड़ाई 30 फीट है।
➠विजय स्तम्भ 9 मंजिला इमारत है।
➠विजय स्तम्भ की 8वीं मंजिल में कोई मूर्ति नहीं लगी हुई है।
➠विजय स्तम्भ की 5वीं मंजिल में वास्तुकारों की मूर्तियां लगी हुई है।
➠विजय स्तम्भ के वास्तुकार-
(I) जैता
(II) पूंजा
(III) पोमा
(IV) नापा
➠विजय स्तम्भ की तीसरी मंजिल में 9 बार अरबी भाषा में अल्लाह शब्द लिखा हुआ है।
➠महाराणा स्वरूप सिंह ने विजय स्तम्भ का पुनर्निर्माण करवाया था।
➠जेम्स टाॅड ने विजय स्तम्भ की तुलना कुतुब मीनार से की है।
➠कुतुब मीनार दिल्ली में स्थित है।
➠इतिहासकार फर्ग्यूसन ने विजय स्तम्भ की तुलना टाॅर्जन टाॅवर से की है।
➠टाॅर्जन टाॅवर इटली देश की राजधानी रोम में स्थित है।
➠विजय स्तम्भ राजस्थान की पहली इमारत है जिस पर भारत सरकार के द्वारा 1949 में 1 रुपये का डाक टिकट जारी किया था।
➠राजस्थान पुलिस के प्रतिक चिह्न में विजय स्तम्भ का प्रयोग किया गया है।
➠राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के प्रतीक चिह्न में विजय स्तम्भ का प्रयोग किया गया है।
➠वीर सावरकर के क्रांतिकारी संगठन अभिनव भारत के प्रतीक चिह्न में विजय स्तम्भ का प्रयोग किया गया है।
➠विजय स्तम्भ भगवान विष्णु को समर्पित है।
स्वरूप शाही सिक्के-
➠मेवाड़ में चलने वाले सिक्कों को स्वरूप शाही कहा जाता था।
➠मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह ने मेवाड़ के सिक्कों पर दोस्ती लंदन लिखवाया था।
विजय स्तम्भ के अन्य नाम या उपनाम-
(I) कीर्ति स्तम्भ
(II) विष्णु ध्वज
(III) गरुड ध्वज
(IV) मूर्तियों का अजायबघर
(V) भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष
(I) कीर्ति स्तम्भ-
➠विजय स्तम्भ विजय का प्रतीक होने के कारण विजय स्तम्भ को कीर्ति स्तम्भ भी कहा जाता है।
(II) विष्णु ध्वज-
➠विजय स्तम्भ भगवान विष्णु को समर्पित होने के कारण विजय स्तम्भ को विष्णु ध्वज भी कहा जाता है।
(III) गरुड ध्वज-
➠विजय स्तम्भ भगवान विष्णु को समर्पित है और भगवान विष्णु का वाहन गरुड होने के कारण विजय स्तम्भ को गरुड ध्वज कहा जाता है।
(IV) मूर्तियों का अजायबघर-
➠विजय स्तम्भ में सर्वाधिक मूर्तियां होने के कारण विजय स्तम्भ को मूर्तियों का अजायबघर कहा जाता है।
(V) भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष-
➠विजय स्तम्भ मे अनेक प्रकार की मूर्तियां होने के कारण विजय स्तम्भ को भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष कहा जाता है।
कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति (1460 ई.)-
➠कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति 1460 ई. की है।
➠कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति महाराणा कुम्भा के द्वारा लगवायी गई थी।
➠कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति कीर्ति स्तम्भ (विजय स्तम्भ) के पास चित्तौड़गढ़ के किले में लगी हुई है।
➠कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति के लेखक अत्रि भट्ट तथा महेश भट्ट है।
➠कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में महाराणा कुम्भा के विजय अभियान, साहित्य कला तथा उपाधियों की जानकारी मिलती है।
विशेष- कीर्ति स्तम्भ-
➠यह कीर्ति स्तम्भ महाराणा कुम्भा के समय का नहीं है।
➠कीर्ति स्तम्भ चित्तौड़गढ़ के किले में स्थित 7 मंजिला इमारत है।
➠कीर्ति स्तम्भ का निर्माण 12वीं शताब्दी में जैन व्यापारी जीजा शाह बघेरवाल के द्वारा करवाया गया था।
➠कीर्ति स्तम्भ का निर्माण राजा कुमार सिंह के शासन काल में करवाया गया था।
➠कीर्ति स्तम्भ भगवान आदिनाथ (ऋभदेव) को समर्पित है।
➠भगवान आदिनाथ को समर्पित होने के कारण कीर्ति स्तम्भ को आदिनाथ स्तम्भ भी कहा जाता है।
(ब) किले-
➠कविराजा श्यामलदास जी की पुस्तक वीर विनोद के अनुसार महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ के 84 किलों में से 34 किलो का निर्माण करवाया था।
महाराणा कुम्भा के द्वारा बनवाये गये 34 किलों में से प्रमुख किले-
(I) कुम्भलगढ़ का किला (राजसमंद, राजस्थान)
(II) अचलगढ़ का किला (सिरोही, राजस्थान)
(III) बसंतगढ़ का किला (सिरोही, राजस्थान)
(IV) मचान दुर्ग (सिरोही, राजस्थान)
(V) भोमट दुर्ग (उदयपुर, राजस्थान)
(I) कुम्भलगढ़ का किला (राजसमंद, राजस्थान)-
➠कुम्भलगढ़ के किले का निर्माण महाराणा कुम्भा के द्वारा करवाया गया था।
➠कुम्भलगढ़ का किला राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है।
➠कुम्भलगढ़ का किला मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी था।
➠कुम्भलगढ़ के किले को मेवाड़ तथा मारवाड़ की सीमा का प्रहरी कहा जाता है।
➠कुम्भलगढ़ के किले का वास्तुकार मंडन था।
➠कुम्भलगढ़ के किले में सबसे उपरी भाग को कटारगढ़ कहा जाता है।
➠कटारगढ़ महाराणा कुम्भा का निजी आवास था।
➠कटारगढ़ को मेवाड़ की आँख भी कहा जाता है क्योंकि कटारगढ़ से देखने पर पूरा मेवाड़ दिखाई देता था।
कुम्भलगढ़ प्रशस्ति (1460 ई.)-
➠कुम्भलगढ़ प्रशस्ति का लेखक महेश भट्ट है।
➠कुम्भलगढ़ प्रशस्ति में महाराणा कुम्भा को धर्म एवं पवित्रता का अवतार तथा कर्ण व राजा भोज के समान दानवीर बताया गया है।
(II) अचलगढ़ का किला (सिरोही, राजस्थान)-
➠अचलगढ़ के किले का निर्माण महाराणा कुम्भा के द्वारा करवाया गया था।
➠अचलगढ़ का किला राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है।
➠1451 ई. में महाराणा कुम्भा ने अचलगढ़ के किले का पुनर्निर्माण करवाया था।
➠अचलगढ़ के किले में महाराणा कुम्भा तथा उसके बेटे उदा की मूर्तियां लगी हुई है।
➠अचलगढ़ के किले में लगवायी गई महाराणा कुम्भा तथा उसके बेटे उदा की मूर्तियों को सावन-भादो कहा जाता है।
(III) बसंतगढ़ का किला (सिरोही, राजस्थान)-
➠बसंतगढ़ के किले का निर्माण महाराणा कुम्भा के द्वारा करवाया गया था।
➠बसंतगढ़ का किला राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है।
(IV) मचान दुर्ग (सिरोही, राजस्थान)-
➠मचान दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा के द्वारा करवाया गया था।
➠मचान दुर्ग को बनाने का मुख्य उद्देश्य 'मेर' जनजाति पर नियंत्रण करना था।
➠मचना दुर्ग राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है।
(V) भोमट दुर्ग (उदयपुर, राजस्थान)-
➠भोमट दुर्ग का निर्माण महाराणा कुम्भा के द्वारा करवाया गया था।
➠भोमट दुर्ग को बनाने का मुख्य उद्देश्य 'भील' जनजाति पर नियंत्रण करना था।
➠भोमट दुर्ग राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
(स) मंदिर-
महाराणा कुम्भा के द्वारा बनवाये गये प्रमुख मंदिर-
(I) कुम्भस्वामी मंदिर
(II) कुंथुनाथ जैन मंदिर (देलवाड़ा, सिरोही, राजस्थान)
(III) शांतिनाथ जैन मंदिर (चित्तौड़गढ़, राजस्थान)
(IV) रणकपुर जैन मंदिर (पाली, राजस्थान)
(I) कुम्भस्वामी मंदिर-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा कुम्भस्वामी का मंदिर राजस्थान में तीन स्थानों पर बनवाये गये थे जैसे-
(अ) चित्तौड़गढ़ के किले में
(ब) कुम्भलगढ़ के किले में
(स) अचलगढ़ के किले में
(II) कुंथुनाथ जैन मंदिर (देलवाड़ा, सिरोही, राजस्थान)-
➠कुंथुनाथ जैन मंदिर का निर्माण महाराणा कुम्भा के द्वारा देलवाड़ा (सिरोही, राजस्थान) में करवाया गया था।
(III) शांतिनाथ जैन मंदिर (चित्तौड़गढ़, राजस्थान)-
➠शांतिनाथ जैन मंदिर का निर्माण राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में वेल्का भंडारी ने करवाया था।
➠वेल्का भंडारी महाराणा कुम्भा का कोषाध्यक्ष था।
➠शांतिनाथ जैन मंदिर को शृंगार चंवरी मंदिर भी कहा जाता है।
(IV) रणकपुर जैन मंदिर (पाली, राजस्थान)-
➠रणकपुर जैन मंदिरों का निर्माण जैन व्यापारी धरणकशाह के द्वारा करवाया गया था।
➠रणकपुर जैन मंदिरों के लिए महाराणा कुम्भा ने जैन व्यापारी धरणकशाह को 99 बीघा जमीन दान में दी थी।
➠रणकपुर जैन मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर है जैसे-
(अ) चौमुखा मंदिर (रणकपुर जैन मंदिर, पाली, राजस्थान)
(अ) चौमुखा मंदिर(रणकपुर जैन मंदिर, पाली, राजस्थान)-
➠रणकपुर जैन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर चौमुखा मंदिर ही है।
➠चौमुखा मंदिर में भगवान आदिनाथ की मूर्ति लगी हुई है।
➠चौमुखा मंदिर में 1444 स्तम्भ लगे हुए है।
➠चौमुखा मंदिर का वास्तुकार देपाक था।
➠चौमुखा मंदिर को स्तम्भों का अजायबघर कहा जाता है।
➠चौमुखा मंदिर राजस्थान के पाली जिले में स्थित रणकपुर जैन मंदिर में से एक मंदिर है।
2. साहित्य कला-
➠महाराणा कुम्भा एक अच्छा संगीतज्ञ था।
➠महाराणा कुम्भा वीणा बजाया करता था।
➠महाराणा कुम्भा का संगीत गुरु सारंग व्यास था।
(अ) पुस्तक
(ब) टीकाएं
(स) नाटक
(अ) पुस्तक
महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखी गई पुस्तके-
(I) सुधा प्रबन्ध
(II) कामराज रतिसार
(III) संगीत सुधा
(IV) संगीत मीमांसा
(V) संगीत क्रम दीपिका
(VI) संगीत राज
(I) सुधा प्रबन्ध-
➠सुधा प्रबन्ध महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखी गई पुस्तक है।
➠सुधा प्रबन्ध संगीत से संबंधित पुस्तक है।
(II) कामराज रतिसार-
➠कामराज रतिसार महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखी गई पुस्तक है।
➠कामराज रतिसार संगीत से संबंधित पुस्तक नहीं है।
➠कामराज रतिसार पुस्तक के 7 भाग है।
(III) संगीत सुधा-
➠संगीत सुधा महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखी गई पुस्तक है।
➠संगीत सुधा संगीत से संबंधित पुस्तक है।
(IV) संगीत मीमांसा-
➠संगीत मीमांसा महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखी गई पुस्तक है।
➠संगीत मीमांसा संगीत से संबंधित पुस्तक है।
(V) संगीत क्रम दीपिका-
➠संगीत क्रम दीपिका महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखी गई पुस्तक है।
➠संगीत क्रम दीपिका संगीत से संबंधित पुस्तक है।
(VI) संगीत राज-
➠संगीत राज महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखी गई पुस्तक है।
➠संगीत राज संगीत से संबंधित पुस्तक है।
➠संगीत राज महाराणा कुम्भा की सबसे अच्छी पुस्तक मानी जाती है।
➠संगीत राज पुस्तक के 5 भाग है जैसे-
(I) पाठ्य रत्न कोष
(II) गीत रत्न कोष
(III) नृत्य रत्न कोष
(IV) वाद्य रत्न कोष
(V) रस रत्न कोष
(ब) टीकाएं-
महाराणा कुम्भा की टीकाएं (संक्षिप्त या छोटा रूप)-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा कुछ पुस्तकों को छोटे रूप (संक्षिप्त रूप) में लिखा था जिन्हे महाराणा कुम्भा की टीकाएं कहा जाता है। जैसे-
(I) गीत गोविन्द (जयदेव)
(II) संगीत रत्नाकर (सांरगधर)
(III) चंडी शतक (बाण भट्ट)
(I) गीत गोविन्द-
➠गीत गोविन्द पुस्तक जयदेव के द्वारा लिखी गई थी।
➠महाराणा कुम्भा ने जयदेव के द्वारा लिखी गई गीत गोविन्द पुस्तक को बाद में संक्षिप्त रूप (छोटा रूप) में लिखा था।
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखे गये गीत गोविन्द के छोटे रूप को रसिक प्रिया कहा जाता है।
(II) संगीत रत्नाकर-
➠संगीत रत्नाकर पुस्तक सांरगधर के द्वारा लिखी गई थी।
➠महाराणा कुम्भा ने सांरगधर के द्वारा लिखी गई पुस्तक संगीत रत्नाकर को बाद में संक्षिप्त रूप (छोटा रूप) में लिखा था।
(III) चंडी शतक-
➠चंडी शतक पुस्तक बाण भट्ट के द्वारा लिखी गई थी।
➠महाराणा कुम्भा ने बाण भट्ट के द्वारा लिखी गई पुस्तक चंडी शतक को बाद में संक्षिप्त रूप (छोटा रूप) में लिखा था।
(स) नाटक-
महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखे गये नाटक-
(I) अतुल्य चातुरी- संस्कृत भाषा
(II) मुरारि संगति- कनड भाषा
(III) नन्दिनी वृति- मराठी भाषा
(IV) रस नन्दिनी- मेवाड़ी भाषा
(I) अतुल्य चातुरी-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा अतुल्य चातुरी नामक नाटक लिखा गया था।
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखा गया नाटक अतुल्य चातुरी संस्कृत भाषा में लिखा गया था।
(II) मुरारि संगति-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा मुरारि संगति नामक नाटक लिखा गया था।
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखा गया नाटक मुरारि संगति कनड भाषा में लिखा गया था।
(III) नन्दिनी वृति-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा नन्दिनी वृति नामक नाटक लिखा गया था।
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखा गया नाटक नन्दिनी वृत मराठी भाषा में लिखा गया था।
(IV) रस नन्दिनी-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा रस नन्दिनी नामक नाटक लिखा गया था।
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखा गया नाटक रस नन्दिनी मेवाड़ी भाषा में लिखा गया था।
महाराणा कुम्भा के दरबारी विद्वान-
1. कान्ह व्यास
2. मेहाजी
3. मंडन
4. नाथा
5. गोविंद
6. हीरानंद मुनि
7. तिला भट्ट
1. कान्ह व्यास-
➠कान्ह व्यास के द्वारा एकलिंग महात्म्य नामक पुस्तक लिखी गई थी।
➠एकलिंग महात्म्य नामक पुस्तक का पहला भाग राजवर्णन कहलाता है।
➠एकलिंग महात्म्य नामक पुस्तक का पहला भाग राजवर्णन महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखा गया था।
2. मेहाजी-
➠मेहाजी के द्वारा तीर्थमाला नामक पुस्तक लिखी गई थी।
➠मेहाजी की तीर्थमाला पुस्तक में 120 तीर्थों की जानकारी मिलती है।
3. मंडन-
➠मंडन एक वैद्य भी था।
➠मंडन के द्वारा कुल 36 पुस्तके लिखी गई थी।
➠मंडन के द्वारा लिखी गई पुस्तकों में से प्रमुख पुस्तके-
(I) वास्तुसार
(II) देवमूर्ति प्रकरण
(III) राजवल्लभ
(IV) रूप मंडन
(V) कोदंड मंडन
(VI) वेद्य मंडन
(I) वास्तुसार-
➠मंडन के द्वारा लिखी गई पुस्तक वास्तुसार में वास्तु के बारे में जानकारी दी गई है।
(II) देवमूर्ति प्रकरण-
➠मंडन के द्वारा लिखी गई पुस्तक देवमूर्ति प्रकरण में देवताओं की मूर्तियों के बारे में जानकारी दी गई है।
(III) राजवल्लभ-
➠मंडन के द्वारा लिखी गई पुस्तक राजवल्लभ में राजाओं के महलों की जानकारी दी गई है।
(IV) रूप मंडन-
➠मंडन के द्वारा लिखी गई पुस्तक रूप मंडन में मूर्तिकला की जानकारी दी गई है।
(V) कोदंड मंडन-
➠मंडन के द्वारा लिखी गई पुस्तक कोदंड मंडन मेंं धनुष निर्माण की जानकारी दी गई है।
4. नाथा-
➠नाथा मंडन का भाई था।
➠नाथा के द्वारा वास्तु मंजरी नामक पुस्तक लिखी गई थी।
5. गोविंद-
➠गोविंद एक वैद्य भी था।
➠गोविंद के द्वारा लिखी गई पुस्तके-
(I) द्वार दीपिका
(II) उद्धार धोरिणी
(III) कलानिधि
(IV) सार समुच्चय
(I) द्वार दीपिका-
➠गोविंद के द्वारा लिखी गई पुस्तक द्वार दीपिका में दरवाजों के बारे में जानकारी मिलती है।
(II) उद्धार धोरिणी-
➠गोविंद के द्वारा लिखी गई पुस्तक उद्धार धोरिणी पुनर्निर्माण से संबंधित जानकारी मिलती है।
(III) कलानिधि-
➠गोविंद के द्वारा लिखी गई पुस्तक कलानिधि में मंदिर के शिखर निर्माण के बारे में जानकारी मिलती है।
➠गोविंद के द्वारा लिखी गई पुस्तक कलानिधि भारत की एकमात्र पुस्तक है जिसमें मंदिर के शिखर निर्माण के बारे में जानकारी दी गई है।
(IV) सार समुच्चय-
➠गोविंद के द्वारा लिखी गई पुस्तक सार समुच्चय में आयुर्वेदिक दवाइयों के बारे में जानकारी मिलती है।
6. हीरानंद मुनि-
➠हीरानंद मुनि महाराणा कुम्भा का गुरु था।
महारणा कुम्भा के जैन दरबारी विद्वान-
1. सुन्दर सूरी
2. सोमदेव सूरी
3. जयशेखर
4. भुवनकीर्ति
महारणा कुम्भा की उपाधियां-
1. हिन्दू सुरताण
2. अभिनव भरताचार्य या नव्य भरत
3. वीणा वादन प्रवीणेन
4. राणा रासौ
5. हाल गुरु
6. चाप गुरु
7. आदि वराह
8. परम भागवत
1. हिन्दू सुरताण-
➠मुस्लिम आक्रमणकारियों से भारत के हिन्दू धर्म की रक्षा करने के कारण महाराणा प्रताप को हिन्दू सुरताण की उपाधि दी गई है।
2. अभिनव भरताचार्य या नव्य भरत-
➠संगीत, नृत्य तथा नाटक की जानकारी होने के कारण महाराणा प्रताप को अभिनव भरताचार्य या नव्य भरत की उपाधि दी गई थी।
3. वीणा वादन-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा अत्यधिक अच्छी वीणा बजाये जाने के कारण महाराणा कुम्भा को वीणा वादन की उपाधि दी गई थी।
4. राणा रासौ-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा पुस्तके लिखने तथा लिखवाये जाने के कारण महाराणा कुम्भा को राणा रासौ की उपाधि दी गई थी।
5. हाल गुरु-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा पहाड़ों पर बनाये गये किलो के कारण महाराणा कुम्भा को हाल गुरु की उपाधि दी गई है।
6. चाप गुरु-
➠महाराणा कुम्भा के द्वारा अच्छा धनुष चलाये जाने के कारण महाराणा कुम्भा को चाप गुरु की उपाधि दी गई थी।
7. आदि वराह-
➠महाराणा कुम्भा को पहला विष्णु भक्त होने के कारण आदि वराह की उपाधि दी गई थी।
8. परम भागवत-
➠महाराणा कुम्भा को विष्णु का सबसे बड़ा भक्त होने के कारण परम भागवत की उपाधि दी गई है।
रमाबाई-
➠रमाबाई महाराणा कुम्भा की बेटी थी।
➠रमाबाई अपने पिता महाराणा कुम्भा की तरह संगीत में रुचि रखती थी।
➠रमाबई को वीगीश्वरी की उपाधि दी गई थी।
➠वागीश्वरी का अर्थ है सरस्वती
➠रमाबाई को जावर परगना दिया गया था।
➠रमाबाई ने जावर में रमास्वामी मंदिर का निर्माण करवाया था।
➠जावर राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
9. रायमल (1473-1509 ई.)-
➠रायमल महाराणा कुम्भा का बेटा था।
➠रायमल ने अपने भाई उदा को जावर तथा दाडिमपुर के युद्धों में हराया था।
➠रायमल ने मालव के गयासशाह को हराया था।
➠बापा रावल के द्वारा बनवाये गये एकलिंग मंदिर का वर्तमान स्वरूप रायमल के द्वारा बनवाया गया था।
➠रायमल ने चित्तौड़ में अद्भुत शिव मंदिर का निर्माण करवाया था।
➠अद्भुद शिव मंदिर को अदबद जी मंदिर भी कहा जाता है।
शृंगार कंवर-
➠शृंगार कंवर रायमल की रानी थी।
➠शृंगार कंवर मारवाड़ के राजा जोधा की पुत्री थी।
➠रायमल की रानी शृंगार कंवर ने धोसुंडी में एक बावड़ी का निर्माण करवाया था।
➠धोसुंडी राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में स्थित एक जगह का नाम है।
विशेष- धोसुंडी अभिलेख-
➠धोसुंडी अभिलेख दूसरी शताब्दी ई.पू. का एक अभिलेख है।
➠धोसुंडी अभिलेख राजस्थान का सबसे प्राचीनतम अभिलेख है।
➠धोसुंडी अभिलेख में भागवत संप्रदाय की जानकारी मिलती है।
➠धोसुंडी अभिलेख के अनुसार गज वंश के राजा सर्वतात ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया था।
पृथ्वीराज-
➠पृथ्वीराज रायमल का बेटा था।
➠तेजी से आक्रमण करने के कारण पृथ्वीराज को उडणा राजकुमार भी कहा जाता है।
➠पृथ्वीराज की रानी का नाम तारा था।
➠पृथ्वीराज की रानी तारा के कारण अजमेर किले का नाम तारागढ़ पड़ा था।
➠पृथ्वीराज की छतरी कुंभलगढ़ के किले में बनवायी गयी थी।
➠पृथ्वीराज की छतरी 12 खम्भों की छतरी है।
जयमल-
➠जयमल रायमल का बेटा था।
➠जयमल सोलंकियों के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया था।
10. महाराणा सांगा (1509-1528 ई.)-
➠महाराणा सांगा रायमल का बेटा था।
➠सेवन्त्री नामक गाँव में रुपनारायण मंदिर के पास बीदा जैतमालोत ने महाराणा सांगा की रक्षा की थी।
➠सेवन्त्री गाँव राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है।
➠श्रीनगर के कर्मचन्द पंवार ने महाराणा सांगा को शरण दी थी।
➠श्रीनगर राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित एक जगह का नाम है।
➠रायमल की मृत्यु के बाद महाराणा सांगा मेवाड़ का राजा बना था।
दिल्ली-
➠महाराणा सांगा के राजतिलक के समय दिल्ली का राजा सिकन्दर लोदी था।
मालवा (मध्य प्रदेश)-
➠महाराणा सांगा के राजतिलक के समय मालवा का राजा नासिरशाह था।
गुजरात-
➠महाराणा सांगा के राजतिलक के समय गुजरात का राजा महमूद बेगड़ा था।
खातोली का युद्ध (1517 ई.)-
➠खातोली का युद्ध महाराणा सांगा तथा दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी के बीच हुआ था।
➠खातोली का युद्ध 1517 ई. में खातोली नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠खातोली राजस्थान के कोटा जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠खातोली के युद्ध में महाराणा सांगा की जीत हुई।
बाड़ी का युद्ध (1518 ई.)-
➠बाड़ी का युद्ध महाराणा सांगा तथा दिल्ली के शासक इब्राहिम लोदी के बीच हुआ था।
➠बाड़ी का युद्ध 1518 ई. में बाड़ी नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠बाड़ी राजस्थान के धौलपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠बाड़ी के युद्ध में महाराणा सांगा की जीत हुई थी।
गागरौण का युद्ध (1519 ई.)-
➠गागरौण राजस्थान के झालावाड़ जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠गागरौण का युद्ध महाराणा सांगा तथा मालवा के राजा महमूद खिलजी-II के बीच होता है।
➠गागरौण का युद्ध 1519 ई. में गागरौण नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠गागरौण के युद्ध में महाराणा सांगा की जीत हुई थी।
➠हरिदास चारण ने महमूद खिलजी-II को गिरफ्तार कर लिया था।
➠महमूद खिलजी-II को गिरफ्तार करने के उपलक्ष्य में महाराणा सांगा ने हरिदास चारण को 12 गाँव भेट में दिये थे।
गागरौण युद्ध के कारण-
1. महाराणा सांगा तथा महमूद खिलजी-II दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
2. मेवाड़ तथा मालवा में लम्बे समय दुश्मनी चली आ रही थी।
3. महाराणा सांगा चंदेरी (मालवा) के मेदिनी राय की सहायता कर रहा था। मेदिनी राय महमूद खिलजी-II का विद्रोही था तथा महाराणा सांगा ने मेदिनी राय को झालावाड़ का गागरौण का किला दे दिया था।
ईडर का युद्ध (1520 ई.)-
➠ईडर गुजरात में स्थित जगह का नाम है।
➠ईडर का युद्ध 1520 ई. में गुजरात के ईडर नामक स्थान पर
➠ईडर का युद्ध महाराणा सांगा तथा मुजफ्फर शाह-II के मध्य हुआ था।
➠ईडर के युद्ध में महाराणा सांगा की जीत हुई थी।
ईडर युद्ध के कारण-
1. महाराणा सांगा तथा मुजफ्फर शाह-II दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
2. मेवाड़ तथा गुजरात में नागौर को लेकर लम्बे समय से दुश्मनी चली आ रही थी।
3. मुजफ्फर शाह-II महाराणा सांगा के खिलाफ महमूद खिलजी-II की सहायता कर रहा था।
4. ईडर का उत्तराधिकारी संघर्ष अर्थात् ईडर के उत्तराधिकारी संघर्ष के लिए महाराणा सांगा रायमल की सहायता कर रहा था तथा मुजफ्फर शाह-II भारमल की सहायता कर रहा था।
बयाना का युद्ध (1527 ई.)-
➠बयाना राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠बयाना का युद्ध 16 फरवरी 1527 ई. को बयाना नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠बयाना का युद्ध महाराणा सांगा तथा दिल्ली के शासक बाबर के मध्य हुआ था।
➠बयाना के युद्ध के समय बयाना का किला मेंहदी ख्वाजा के पास था।
➠बयाना का किला राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित है।
➠बयाना के युद्ध में महाराणा सांगा की जीत हुई।
➠बयाना के युद्ध में बाबर का सेनापति सुल्तान मिर्जा था।
खानवा का यु्द्ध (1527 ई.)-
➠खानवा राजस्थान के भरतपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527 ई. को खानवा नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠कविराज श्यामलदास जी की पुस्तक वीर विनोद के अनुसार खानवा का युद्ध 16 मार्च 1527 को हुआ था।
➠खानवा का युद्ध महाराणा सांगा तथा दिल्ली के शासक बाबर के मध्य हुआ था।
➠खानवा के युद्ध से पहले बाबर ने जिहाद की घोषणा की थी तथा मुस्लिम व्यापारियों का तमगा कर हटा दिया था।
➠खानवा के युद्ध से पहले बाबर ने शराब न पीने की प्रतिज्ञा (कस्म) ली थी।
➠महाराणा सांगा ने राजस्थान के लगभग सभी राजाओं को पत्र लिखे तथा सहायता की मांग की थी। जैसे-
1. आमेर- पृथ्वीराज
2. मारवाड़- मालदेव (राजा- गांगा)
3. बीकानेर- कल्याणमल (राजा- जैतसी)
4. मेडता- वीरमदेव
5. ईडर- भारमल
6. चंदेरी- मेदिनी राय
7. सिरोही- अखैराज देवड़ा
8. वागड़- उदयसिंह
9. देवलिया (प्रतापगढ़)- बाघसिंह
10. सलूम्बर- रतन सिंह चूंडावत
11. सादड़ी (चित्तौड़गढ़)- झाला अज्जा
12. मेवात (अलवर)- हसन खाँ मेवाती
➠खानवा के युद्ध में घायल होने के कारण महाराणा सांगा को युद्ध भूमि को छोड़कर जाना पड़ा अतः सादड़ी के झाला अज्जा ने युद्ध का नेतृत्व किया था।
➠खानवा के युद्ध में बाबर की जीत हुई।
➠खानवा के युद्ध की जीत के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण कर ली थी।
पाती परवन-
➠राजा के द्वारा युद्ध में अन्य राजाओं को सहायता के लिए पत्र भेजने की प्रक्रिया को पाती परवन कहा जाता है।
खानवा युद्ध के कारण-
1. महाराणा सांगा तथा बाबर दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
2. महाराणा सांगा ने बयाना के किले पर कब्जा कर लिया था।
3. महाराणा सांगा ने दिल्ली के आसपास के 200 गाँवों पर अधिकार कर लिया था।
4. महाराणा सांगा अफगानों के नेता महमूद लोदी के साथ गठबंधन बना रहा था।
➠महमूद लोदी इब्राहिम लोदी का भाई था।
5. बाबर ने महाराणा सांगा पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया था।
खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा की हार के कारण-
1. महाराणा सांगा की सेना में एकता की कमी थी तथा महाराणा सांगा की सेना अलग-अलग सेनापतियों के नेतृत्व में युद्ध लड़ रही थी।
2. बयाना युद्ध के बाद महाराणा सांगा ने बाबर को युद्ध की तैयारी का प्रयाप्त समय दे दिया था।
3. घायल होने के बावजूद भी महाराणा सांगा खुद युद्ध के मैदान में चला गया था।
4. महाराणा सांगा के कुछ साथियों ने खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा के साथ विश्वासघात किया तथा युद्ध के बीच में ही बाबर से मिल गये थे। जैसे रायसीन (मध्य प्रदेश) का सलहदी तंवर तथा नागौर के खानजादे मुस्लिम आदि।
5. बाबर का तोपखाना।
6. बाबर की तुलगुमा युद्ध पद्धति।
7. बाबर की सेना ने घोड़ों का प्रयोग किया था जबकि महाराणा सांगा की सेना ने हाथियों का प्रयोग किया था।
8. बाबर की सेना ने महाराणा सांगा की सेना की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया था।
खानवा के युद्ध में बाबर की जीत के कारण-
1. बाबर का तोपखाना।
2. बाबर की तुलगुमा युद्ध पद्धति।
3. बाबर की सेना ने घोड़ों का प्रयोग किया था जबकि महाराणा सांगा की सेना ने हाथियों का प्रयोग किया था।
4. बाबर की सेना ने महाराणा सांगा की सेना की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया था।
तुलगुमा युद्ध पद्धति-
➠तुलगुमा युद्ध पद्धति में सेना के द्वारा दुश्मन की सेना पर तीन तरफ से आक्रमण किया जाता है अतः आक्रमण करने की इसी पद्धति को तुलगुमा युद्ध पद्धति कहा जाता है।
खानवा युद्ध के महत्त्व या प्रभाव-
1. अफागानों तथा राजपूतों को हराने के बाद बाबर के लिए भारत में राज करना आसान हो गया था।
2. खानवा का युद्ध अंतिम युद्ध था जिसमें राजस्थान के राजपूत राजओं ने एकता दिखायी थी।
3. महाराणा सांगा अंतिम राजपूत राजा था जिसने दिल्ली को सीधे चुनौती दी थी।
4. महाराणा सांगा के बाद बड़े हिन्दू राजा नहीं बचे थे जिससे हिन्दू कला एवं संस्कृति को नुकसान हुआ था।
5. खानवा के युद्ध ने राजपूतों की सामरिक कमजोरियों को उजागर कर दिया था।
6. खानवा के युद्ध ने मुगलों की राजपूतों के प्रति भविष्य की नीति का निर्धारण किया था तथा बाद में अकबर ने संघर्ष के स्थान पर सहयोग की नीति अपनायी थी।
1. बसवा (दौसा)- दौसा जिले के बसवा नामक स्थान पर महाराणा सांगा का ईलाज किया गया था।
2. ईरिच (उत्तर प्रदेश)- उत्तर प्रदेश के ईरिच नामक स्थान पर महाराणा सांगा को जहर दिया गया था।
3. कालपी (उत्तर प्रदेश)- उत्तर प्रदेश के कालपी नामक स्थान पर 30 जनवरी 1528 को महाराणा सांगा की मृत्यु हुई थी।
4. मांडलगढ़ (भीलवाड़ा)- भीलवाड़ा के मांडलगढ़ में महाराणा सांगा की छतरी है।
महाराणा सांगार की उपाधियां-
1. हिन्दूपत
2. सेनिकों का भग्नावशेष
➠बाबरनामा के अनुसार महाराणा सांगा के दरबार में 7 राजा, 9 राव तथा 104 सरदार थे।
भोजराज-
➠भोजराज महाराणा सांगा का बेटा था।
➠भोजराज की रानी का नाम मीराबाई था।
रतनसिंह-
➠रतनसिंह महाराणा सांगा का बेटा था।
➠महाराणा सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ का राजा रतनसिंह को बनाया गया था।
➠रतनसिंह बूंदी के राजा सूरजमल के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया था।
11. विक्रमादित्य (1531-1536 ई.)-
➠विक्रमादित्य के पिता का नाम महाराणा सांगा था।
➠विक्रमादित्य की माता का नाम कर्मावती था।
➠विक्रमादित्य की संरक्षिका उसकी माँ कर्मावती थी।
➠1533 ई. में गुजरात के राजा बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था।
➠रानी कर्मावती ने बहादुर शाह के साथ संधि कर ली थी तथा बहादुर शाह को रणथम्भौर का किला दे दिया था।
➠1534-35 ई. में बहादुर शाह ने मेवाड़ पर पुनः आक्रमण कर दिया था।
➠बहादुर शाह से युद्ध लड़ने के लिए रानी कर्मावती ने मुगल बादशाह हुमायु के पास राखी भेजी तथा सहायता की मांग की थी।
चित्तौड़ का दूसरा साका (1535 ई.)-
➠1535 ई. में चित्तौड़ का दूसरा साका हुआ था।
➠रानी कर्मावती के नेतृत्व में जौहर किया गया था।
➠भीलवाड़ा से प्राप्त हुए पुर ताम्रपत्र से रानी कर्मावती के जौहर की जानकारी मिलती है।
➠देवलिया (वर्तमान प्रतापगढ़) के बाघसिंह के नेतृत्व में केसरिया किया गया था।
➠बाघसिंह को देवलिया दीवान भी कहा जाता है।
➠बाघसिंह की छतरी राजस्थान के चित्तौड़गढ़ किले में पाडुपोल (दरवाजा) के पास स्थित है।
➠बनवीर को मेवाड़ का प्रशासक बनाया गया था।
➠बनवीर उडणा राजकुमार पृथ्वीराज की दासी का बेटा था।
➠बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी थी।
➠पन्ना धाय ने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर महाराणा सांगा के बेटे उदयसिंह को बचाया था।
➠आशा देवपुरा ने कम्भलगढ़ के किले में पन्ना धाय तथा उदयसिंह को शरण दी थी।
12. उदय सिंह (1537-1572 ई.)-
➠मावली का युद्ध (1540 ई.)-
➠मावली राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠मावली का युद्ध 1540 ई. में उदयसिंह तथा बनवीर के बीच लड़ा गया था।
➠मालवी के युद्ध में उदयसिंह ने बनवीर को हराया था।
➠1559 ई. उदयसिंह के द्वारा उदयपुर की स्थापना की गई थी।
➠उदयपुर में उदयसिंह ने उदयसागर झील तथा मोती मगरी महल का निर्माण करवाया था।
➠1567-68 ई. में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया था।
➠उदयसिंह गिर्वा की पहाड़ियों में चला गया था।
➠गिर्वा की पहाड़ियां राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
➠जयमल तथा पत्ता ने चित्तौड़ के किले का मोर्चा संभाला था।
➠जयमल मेड़ता (नागौर) का राजा था। तथा 1562 ई. में अकबर ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया था।
➠पत्ता का वास्तविक नाम फतेह सिंह चूंडावत था।
➠पत्ता आमेट का सामन्त था।
➠आमेट मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी ठीकाना था।
चित्तौड़ का तीसरा साका (1568 ई.)-
➠1568 ई. में चित्तौड़ का तीसरा साका हुआ था।
➠फूल कंवर के नेतृत्व में जौहर किया गया था।
➠फूल कंवर पत्ता की रानी तथा जयमल की बहन थी।
➠जयमल तथा पत्ता के नेतृत्व में केसरियां किया गया था।
➠जयमल ने कल्ला राठौड़ के कंधो पर बैठकर युद्ध किया था इसीलिए कल्ला राठौड़ को चार हाथों वाला देवता कहा जाता है।
पत्ता की छतरी-
➠पत्ता की छतरी चित्तौड़गढ़ के किले में रामपोल (दरवाजा) के पास स्थित है।
जयमल तथा कल्ला राठौड़ की छतरियां-
➠जयमल तथा कल्ला राठौड़ की छतरियां चित्तौड़गढ़ के किले में हनुमानपोल से भेरवपोल के बीच स्थित है।
➠25 फरवरी 1568 ई. को अकबर ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया था।
➠चित्तौड़ पर अधिकार करने के बाद अकबर ने चित्तौड़ में 30.000 लोगों का कत्लेआम करवाया था।
➠चित्तौड़ विजय के बाद अकबर ने एलची नामक सिक्का चलाया था।
➠एलची का अर्थ है संदेश वाहक होता है।
➠अकबर ने जयमल तथा पत्ता की बहादुरी से प्रभावित होकर जयमल तथा पत्ता की मूर्तियां आगरा के किले में लगवायी थी।
➠आगरा के किले में लगी जयमल तथा पत्ता की मूर्तियों को औरंगजेब ने तुड़वा दिया था।
➠फ्रांसीसी यात्री बर्नियर ने आगरा के किले में लगी जयमल तथा पत्ता की मूर्तियों का वर्णन अपनी पुस्तक में किया था।
➠बर्नियर की पुस्तक का नाम Travels In Mughal Empire था।
➠बीकानेर के जूनागढ़ किले में जयमल तथा पत्ता की मूर्तियां लगी हुई है।
➠28 फरवरी 1572 ई. को गोगुन्दा नामक स्थान पर होली के दिन उदयसिंह की मृत्यु हो गयी थी।
➠गोगुन्दा राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
उदयसिंह की छतरी-
➠उदयसिंह की छतरी राजस्थान के उदयपुर जिले के गोगुन्दा नामक स्थान पर स्थित है।
संग्राम-
➠अकबर की बंदूक का नाम संग्राम था।
डाक टिकट-
➠भारत सरकार ने राव जयमल राठौड़ पर डाक टिकट जारी किया था।
➠राव जयमल राठौड़ पर 17 सितम्बर 2021 को डाक टिकट जारी किया गया था।
➠केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री देवुसिंह चौहान के द्वारा राव जयमल राठौड़ की 515वीं जयंती के अवसर पर राव जयमल राठौड़ के समान में राव जयमल राठौड़ पर डाक टिकट जारी किया था।
13. महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.)-
➠महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को कुम्भलगढ़ के किले में हुआ था।
➠महाराणा प्रताप के पिता का नाम उदयसिंह था।
➠महाराणा प्रताप की माता का नाम जयवन्ता बाई सोनगरा था।
➠महाराणा प्रताप का बचपन का नाम कीका था।
➠महाराणा प्रताप की रानी का नाम अजबदे पंवार था।
➠महाराणा प्रताप ने कुल 25 वर्षों तक शासक किया था।
➠उदयसिंह ने अपने बड़े बेटे महाराणा प्रताप को राजा नहीं बनाया था बल्कि अपने छोटे बेटे जगमाल को राजा बनाया था।
महाराणा प्रताप का राजतिलक-
➠सलूम्बर ठिकाने के कृष्णदास चूंडावत ने गोगुन्दा में महाराणा प्रताप का राजतिलक कर दिया था।
➠कुम्भलगढ़ में महाराणा प्रताप का राजतिलक समारोह आयोजित किया गया था।
➠महाराणा प्रताप के राजतिलक समारोह में मारवाड़ के चन्द्रसेन ने भी भाग लिया था।
जगमाल-
➠महाराणा प्रताप के राजतिलक के बाद जगमाल अकबर के पास चला गया था।
➠अकबर ने जगमाल को झालावाड़ का जहाजपुर परगना दे दिया था।
➠कुछ समय बाद अकबर ने जगमाल को सिरोही का आधा भाग दे दिया था।
➠जगमाल दत्ताणी के युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया था।
➠महाराणा प्रताप से संधि करने या महाराणा प्रताप को समझाने के लिए अकबर ने चार दुत भेजे थे। जैसे-
1. जलाल खाँ कोरची
2. मानसिंह
3. भगवनन्तदास
4. टोडरमल
1. जलाल खाँ कोरची-
➠अकबर में 1572 ई. में महाराणा प्रताप से संधि करने के लिए जलाल खाँ कोरची को भेजा था।
➠जलाल खाँ कोरची के समझाने पर महाराणा प्रताप ने अकबर से संधि करने से मना कर दिया था।
2. मानसिंह-
➠मानसिंह आमेर का राजकुमार तथा आमेर के राजा भगवनन्तदास का बेटा था।
➠अकबर ने 1573 ई. में महाराणा प्रताप से संधि करने के लिए मानसिंह को भेजा था।
➠संधि करने आये मानसिंह से महाराणा प्रताप की तरफ से महाराणा प्रताप का बेटा अमर सिंह मिला था।
➠मानसिंह के समझाने पर महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने अकबर से संधि करने से मना कर दिया था। अर्थात् महाराणा प्रताप ने अकबर से संधि करने से मना कर दिया था।
3. भगवनन्तदास-
➠भगवनन्तदास आमेर का राजा था।
➠अकबर ने 1573 ई. में महाराणा प्रताप से संधि करने के लिए भगवनन्तदास को भेजा था।
➠भगवनन्तदास के समझाने पर महाराणा प्रताप ने अकबर से संधि करने से मना कर दिया था।
4. टोडरमल-
➠अकबर ने 1573 ई. में महाराणा प्रताप से संधि करने के लिए टोडरमल को भेजा था।
➠टोडरमल के समझाने पर महाराणा प्रताप ने अकबर ने संधि करने से मना कर दिया था।
हल्दी घाटी का युद्ध (1576 ई.)-
➠हल्दी घाटी का युद्ध 18 जून 1576 को लड़ा गया था।
➠गोपीनाथ शर्मा के अनुसार हल्दी घाटी का युद्ध 21 जून 1576 को लड़ा गया था।
➠हल्दी घाटी का युद्ध राजस्थान के राजसमंद जिले के हल्दी घाटी नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠राजस्थान के राजसमंद जिले में गोगुन्दा तथा खमनौर की पहाड़ियों के बीच हल्दी घाटी का मैदान स्थित है।
➠हल्दी घाटी का युद्ध महाराणा प्रताप तथा अकबर के मध्य लड़ा गया था।
➠मिहतर खाँ नामक मुगल सेनिक ने हल्दी घाटी के युद्ध में अकबर के आने की झुठी सुचना दी थी।
➠चेतक के घायल होने के कारण महाराणा प्रताप को युद्ध भूमि से बाहर जाना पड़ा था।
➠महाराणा प्रताप के युद्ध भूमि से बाहर जाने पर झाला बीदा ने युद्ध का नेतृत्व किया था।
➠महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था।
➠अकबर का सेनापति मानसिंह महाराणा प्रताप को अकबर की अधिनता स्वीकार करवाने में असफल रहा था।
➠मानसिंह तथा आसफ खाँ महाराणा प्रताप को अकबर की अधिनता स्वीकार करवाने में असफल हुए इसी कारण से अकबर ने मानसिंह तथा आसफ खाँ का दरबार में प्रवेश बंद कर दिया था।
हल्ली घाटी के युद्ध में अकबर के सेनापति-
1. मानसिंह- (पहली बार मानसिंह को किसी युद्ध में सेनापति बनाया गया था। अर्थात् पहली बार स्वतंत्र सेनापति बनाया गया था।)
2. आसफ खाँ
हल्दी घाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप के सेनापति-
1. रामशाह तोमर (ग्वानियर, मध्य प्रदेश)
2. हाकिम खाँ सूर (अफगानी सेना लेकर आये)
3. कृष्णदास चूंडावत (सलूम्बर से)
4. राणा पूंजा (भील सेना लेकर आये)
हल्दीघाटी युद्ध में सैन्य शिविर-
➠हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना ने अपना सैन्य शिविर राजसमंद जिले की मोलेला नामक स्थान पर लगाये थे।
➠हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ सेना ने अपना सैन्य शिविर राजसमंद जिले की लोसिंग नामक स्थान पर लगाये थे।
बदायूंनी-
➠बदायूंनी इतिहासकार था।
➠बदायूंनी एकमात्र इतिहासकार था जिसने हल्दीघाटी के युद्ध में भाग लिया था।
➠बदायूंनी ह्ल्दीघाटी युद्ध में अकबर की तरफ से आया था।
➠इतिहासकार बदायूंनी के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना के पास 5000 सेनिक थे जबकि मेवाड़ सेना के पास 3000 सेनिक थे।
➠इतिहासकार बदायूंनी की पुस्तक का नाम मुन्तखब-उत-तवारीख है।
➠इतिहासकार बदायूंनी की पुस्तक मुन्तखब-उत-तवारीख में हल्दीघाटी के युद्ध का वर्णन मिलता है।
श्यामलदास जी-
➠श्यामलदास जी इतिहासकार था।
➠इतिहासकार श्यामलदास जी के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना के पास 80,000 सैनिक थे जबकि मेवाड़ सेना के पास 20,000 सैनिक थे।
हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना के प्रमुख हाथी-
➠हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना के पास दो प्रमुख हाथी थे जैसे-
1. मरदाना
2. गजमुक्ता
हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ के प्रमुख हाथी
➠हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना के पास दो प्रमुख हाथी थे जैसे-
1. लूणा
2. रामप्रसाद
रामप्रसाद
➠रामप्रसाद नामक हाथी हल्दीघाटी के युद्ध में मेवाड़ की सेना में था।
➠रामप्रसाद नामक हाथी को अकबर की सेना अपने साथ ले जाती है।
➠अकबर रामप्रसाद नामक हाथी का नाम बदलकर पीरप्रसाद कर देता है।
इतिहासकारों के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध के अन्य नाम-
1. गोगुन्दा का युद्ध
2. खमनौर का युद्ध
3. बादशाह बाग का युद्ध
4. मेवाड़ का थर्मोपोली
1. गोगुन्दा का युद्ध-
➠इतिहासकार बदायूंनी ने हल्दीघाटी के युद्ध को गोगुन्दा का युद्ध कहा है। क्योंकि हल्दीघाटी नामक स्थान गोगुन्दा के पास स्थित है।
2. खमनौर का युद्ध-
➠इतिहासकार अबुल फजल ने हल्दीघाटी के युद्ध को खमनौर का युद्ध कहा है। क्योंकि हल्दीघाटी नामक स्थान खमनौर के पास स्थित है।
3. बादशाह बाग का युद्ध-
➠इतिहासकार आदर्शीलाल श्रीवास्तव ने हल्दीघाटी के युद्ध को बादशाह बाग का युद्ध कहा है। क्योंकि हल्दीघाटी बादशाह बाग नामक स्थान के पास स्थित है।
4. मेवाड़ का थर्मोपोली-
➠इतिहासकार कर्नल जेम्स टोड ने हल्दीघाटी के युद्ध को मेवाड़ का थर्मोपोली कहा है। क्योंकी कर्नल जेम्स टोड ने हल्दीघाटी युद्ध की तुलना यूरोप के थर्मोपोली युद्ध से की है।
हल्दीघाटी युद्ध के महत्व या परिणाम या प्रभाव-
1. हल्दीघाटी का युद्ध अकबर की साम्राज्यवादी शक्ति एवं महाराणा प्रताप की प्रादेशिक स्वतंत्रता के बीच का संघर्ष था।
2. हल्दीघाटी के युद्ध में मुगलों की अजेयता की छवि को तोड़ दिया था।
3. कम संसाधनों के बावजुद महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर का सामना किया था। जिससे मेवाड़ की जनता में आशा व नैतिकता का संचार हुआ था।
4. हल्दीघाटी का युद्ध मेवाड़ की जनता तथा जनजातियों में राष्ट्रवादी भावना का संचार करता है।
5. हल्दीघाटी का युद्ध आज भी राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करता है।
➠अकटूबर 1576 ई. में अकबर स्वयम् मेवाड़ पर आक्रमण करता है।
➠इस आक्रमण के बाद अकबर उदयपुर पर अधिकार कर लेता है तथा अकबर ने उदयपुर का नाम बदलकर मुहम्मदाबाद कर दिया था।
➠अकबर ने उदयपुर पर अधिकार कर जगन्नाथ कछवाह तथा सैय्यद फखरूद्दीन को उदयपुर सौंप देता है।
➠मुगल सेनापति शाहबाज खाँ ने कुम्भलगढ़ पर तीन बार आक्रमण किया था। जैसे-
1. 1577 ई.
2. 1578 ई.
3. 1579 ई.
शेरपुर घटना (1580 ई.)-
➠महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने मुगल सेनापति अब्दुल रहीम की बेगमों को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन महाराणा प्रताप ने अब्दुल रहीम की बेगमों को ससम्मान वापस पहुँचाया था।
दिवेर का युद्ध (1582 ई.)-
➠दिवेर राजस्थान के राजसमंद जिल में स्थित जगह का नाम है।
➠दिवेर का युद्ध 1582 ई. में दिवेर नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠दिवेर के युद्ध में दशहरे के दिन महाराणा प्रताप ने मुगल सेना को हराया था।
➠महाराणा प्रताप के बेटे अमर सिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खाँ को मार दिया था।
➠बासवाड़ा, प्रतापगढ़ तथा ईडर रियासतों नें दिवेर के युद्ध में मेवाड़ का साथ दिया था।
➠कर्नल जेम्स टाॅड ने दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा है। क्योंकि कर्नल जेम्स टाॅड ने दिवेर के युद्ध की तुलना यूरोप के मैराथन युद्ध से की है।
जगन्नाथ कछवाह-
➠1585 ई. में अकबर की तरफ से जगन्नाथ कछवाह ने मेवाड़ पर आक्रमण किया लेकिन जगन्नाथ कछवाह को सफलता नहीं मिली थी।
➠जगन्नाथ कछवाह के द्वारा मेवाड़ पर किया गया आक्रमण अकबर का महाराणा प्रताप पर अंतिम आक्रमण था।
मालपुरा (टोंक)-
➠महाराणा प्रताप ने आमेर रियासत पर आक्रमण किया तथा मालपुरा पर अधिकार कर लिया था।
➠मालपुरा राजस्थान के टोंक जिले में स्थित एक जगह का नाम है।
चावंड (उदयपुर)-
➠महाराणा प्रताप ने चावंड को अपनी राजधानी बनाया था।
➠चावंड राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित जगह का नाम है।
➠19 जनवरी 1597 ई. में चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गयी थी।
महाराणा प्रताप की छतरी-
➠महाराणा प्रताप की छतरी बांडोली में स्थित है।
➠बांडोली राजस्थान के उदयपुर जिले में चावंड के पास स्थित जगह है।
चेतक की छतरी-
➠महाराणा प्रताप के घोड़े का नाम चेतक था।
➠चेतक की छतरी बलीचा में स्थित है।
➠बलीचा राजस्थान के राजसमंद जिले में हल्दीघाटी के पास स्थित जगह है।
➠चित्तौड़गढ़ तथा मांडलगढ़ को छोड़कर महाराणा प्रताप ने सम्पूर्ण मेवाड़ पर पुनः अधिकार कर लिया था।
महाराणा प्रताप की सांस्कृतिक उपलब्धियां-
➠महाराणा प्रताप ने मालपुरा (टोंक) में नीलकंठ महादेव मंदिर तथा झालरा तालाब का निर्माण करवाया था।
➠नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव का मंदिर है।
➠महाराणा प्रताप ने चावंड में चामुंडा माता मंदिर, महल तथा बावड़ी का निर्माण करवाया था।
➠महाराणा प्रताप के शासक काल में चावंड से मेवाड़ चित्रकला की शुरुआत हुई थी।
➠महाराणा प्रताप के शासक काल में मेवाड़ का प्रमुख चित्रकार नासिरूद्दीन था।
महाराणा प्रताप के दरबारी विद्वान-
1. चक्रपाणि मिश्र
2. मेहरत्न सूरि
3. सादुलनाथ त्रिवेदी
4. माला सांदू
5. रामा सांदू
1. चक्रपाणि मिश्र-
➠चक्रपाणि मिश्र महाराणा प्रताप का दरबारी विद्वान था।
➠चक्रपाणि मिश्र ने निम्नलिखित पुस्तके लिखी थी। जैसे-
(I) राज्याभिषेक
(II) मुहुर्तमाला
(III) विश्व वल्लभ
(I) राज्याभिषेक-
➠चक्रपाणि मिश्र की पुस्तक राज्याभिषेक में विधिवत रूप से राज्याभिषेक करने की जानकारी दी गई है।
(II) मुहुर्तमाला-
➠चक्रपाणि मिश्र की पुस्तक मुहुर्तमाला में मुहुर्त से संबंधित जानकारी दी गई है।
(III) विश्व वल्लभ-
➠चक्रपाणि मिश्र की पुस्तक विश्व वल्लभ में उद्यान (गारडन) विज्ञान की जानकारी दी गई है।
2. हेमरत्न सूरि-
➠हेमरत्न सूरि महाराणा प्रताप का दरबारी विद्वान था।
➠हेमरत्न सूरि के द्वारा गौरा बादल पद्मिनी चौपाई नामक पुस्तक लिखी गई थी।
➠हेमरत्न सूरि की पुस्तक गौरा बादल पद्मिनी चौपाई में चित्तौड़ के पहले साके की जानकारी मिलती है।
3. सादुलनाथ त्रिवेदी-
➠सादुलनाथ त्रिवेदी महाराणा प्रताप का दरबारी विद्वान था।
➠महाराणा प्रताप ने सादुलनाथ त्रिवेदी को मंडेर नामक जागीर दी थी।
➠महाराणा प्रताप के द्वारा सादुलनाथ त्रिवेदी को मंडेर जागीर देने की जानकारी 1588 ई. के उदयपुर अभिलेख से मिलती है।
➠मंडेर नामक जागीर राजस्थान के राजसमंद जिले में हल्दीघाटी नामक स्थान के पास स्थित है।
4. माला सांदू-
➠माला सांदू महाराणा प्रताप का दरबारी विद्वान था।
➠माला सांदू चारण कवि था।
5. रामा सांदू-
➠रामा सांदू महाराणा प्रताप का दरबारी विद्वान था।
➠माला सांगू चारण कवि था।
भामाशाह तथा ताराचन्द-
➠भामाशाह तथा ताराचन्द ने गुजरात के पास चूलिया नामक गाँव में महाराणा प्रताप से मुलाकात की थी। तथा महाराणा प्रताप को आर्थिक सहायता दी थी।
➠भामाशाह तथा ताराचन्द के द्वारा महाराणा प्रताप को दी गई सहायता से महाराणा प्रताप 25000 सैनिकों को 12 वर्ष तक रख सकता था।
➠भामाशाह को मेवाड़ का उद्धारक कहा जाता है।
➠महाराणा प्रताप ने भामाशाह को अपना प्रधानमंत्री बनाया था।
आवरगढ़ (उदयपुर)-
➠महाराणा प्रताप ने चावंड को राजधानी बनाने से पहले आवरगढ़ को अपनी अस्थाई राजधानी बनाया था।
मायरा की गुफा-
➠मायरा की गुफा में महाराणा प्रताप का शस्त्रागार था।
➠मायरा की गुफा राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
14. महाराणा अमर सिंह- I (1597-1620 ई.)-
➠अमर सिंह के पिता का नाम महाराणा प्रताप था।
➠अमर सिंह ने मुगल मेवाड़ संधि युवराज (राजकुमार) कर्णसिंह के दबाव में की थी।
➠अमर सिंह के बेटे का नाम कर्णसिंह था।
➠अमर सिंह मुगल मेवाड़ संधि से बहुत निराश था तथा अमर सिंह नौ चौकी नामक स्थान पर जाकर रहने लगा था।
➠नौ चौकी नामक स्थान राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है।
➠बाद में अमर सिंह ने राजसमंद जिले की नौ चौकी नामक स्थान पर राजसमंद झील का निर्माण करवाया था।
➠मेवाड़ की तरफ से हरिदास तथा शुभकरण मुगल मेवाड़ संधि का प्रस्ताव लेकर मुगल दरबार में गये थे।
➠मुगलों की तरफ से मुगल बादशाह जहाँगीर के बेटे खुर्रम (शाहजहाँ) ने मुगल मेवाड़ संधि की थी।
➠युवराव (राजकुमार) कर्णसिंह मुगल बादशाह जहाँगीर के दरबार में गया था।
➠जहाँगीर ने युवराज कर्णसिंह को 5000 का मनसबदार बनाया था।
➠मनसब का अर्थ पद होता है।
➠जहाँगीर ने अमर सिंह तथा कर्णसिंह की मूर्तियां आगरा के किले में लगवायी थी।
मुगल मेवाड़ संधि (5 फरवरी 1615 ई.)-
➠मुगल मेवाड़ संधि 5 फरवरी 1615 ई. को हुई थी।
➠मुगल मेवाड़ संधि मुगल शासक जहाँगीर तथा मेवाड़ के राजा अमर सिंह के मध्य हुई थी।
मुगल मेवाड़ संधि की शर्ते-
1. मेवाड़ का राजा या राणा मुगल दरबार में नहीं जायेगा।
2. मेवाड़ का युवराज (राजकुमार) मेवाड़ के राजा के स्थान पर मुगल दरबार में शामिल होगा।
3. मेवाड़ की तरफ से मुगलों को 1000 घुड़सवार सेनिकों की सहायता देगा।
4. मुगल के द्वारा मेवाड़ को चित्तौड़ का किला वापस दिया जायेगा लेकिन मेवाड़ चित्तौड़ के किले का पुनर्निर्माण नहीं करवा सकता है।
5. मेवाड़ के द्वारा मुगलों से वैवाहिक संबंधि स्थापित नहीं किये जायेंगे।
मुगल मेवाड़ संधि का महत्व या प्रभाव-
1. महाराणा सांगा तथा महाराणा प्रताप के समय से चली आ रही स्वतंत्रता की भावना को आघात लगा था।
2. युद्ध बंद होने से मेवाड़ में शांति व्यवस्था सुनिश्चित हुई जिसके कारण कलात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिला था।
मुगल मेवाड़ संधि के जानकारी के स्रोत-
1. जहाँगीर के पुष्कर महल का अभिलेख (1615 ई.)
2. शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख (1637 ई.)
3. सर टाॅमस रो (थाॅमस रो- Thomas Roe)
1. जहाँगीर के पुष्कर महल का अभिलेख (1615 ई.)-
➠जहाँगीर के पुष्कर महल का अभिलेख 1615 ई. का है।
➠जहाँगीर के पुष्कर महल का अभिलेख राजस्थान के अजमेर जिले के पुष्कर नामक स्थान से प्राप्त हुआ था।
➠मुगल बादशाह जहाँगीर ने पुष्कर में महल का निर्माण करवाया था तथा महल के बाहर अभिलेख लगवाया था जिसे पुष्कर महल का अभिलेख कहा जाता है।
➠जहाँगीर के पुष्कर महल के अभिलेख से मुगल मेवाड़ संधि की जानकारी मिलती है।
2. शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख (1637 ई.)-
➠शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख 1637 ई. का है।
➠शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख राजस्थान के अजमेर जिले से प्राप्त हुआ था।
➠मुगल बादशाह शाहजहाँ के द्वारा अजमेर में मस्जिद का निर्माण करवाया था।
➠शाहजहाँ के द्वारा अजमेर में बनवायी गई मस्जिद को शाहजहाँनी मस्जिद कहा जाता है।
➠शाहजहाँ ने शाहजहाँनी मस्जिद के बाहर अभिलेख लगवाया था जिसे शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख कहा जाता है।
➠शाहजहाँनी मस्जिद के अभिलेख से मुगल मेवाड़ संधि की जानकारी मिलती है।
3. सर टाॅमस रो (थाॅमस रो- Thomas Roe)-
➠अंग्रेज राजदूत सर थाॅमस रो (टाॅमस रो) के अनुसार "मुगल बादशाह ने मेवाड़ के राणा को बुद्धि से अधिन किया था ताकत से नहीं"
15. महाराणा कर्णसिंह (1620- 1628 ई.)-
➠महाराणा कर्णसिंह के पिता का नाम महाराणा अमर सिंह- I था।
➠महाराणा कर्णसिंह ने उदयपुर में कर्णविलास तथा दिलखुश महलों का निर्माण करवाया था।
➠महाराणा कर्णसिंह ने उदयपुर की पिछोला झील में जगमंदिर महल का निर्माण शुरू करवाया था।
➠विद्रौह या उत्तराधिकारी संघर्ष के दौरान खुर्रम (शाहजहाँ) उदयपुर के जगमंदिर महल में रुका था।
16. महाराणा जगत सिंह- I (1628- 1651 ई.)-
➠महाराणा जगत सिंह-I ने उदयपुर की पिछोला झील में महाराणा कर्णसिंह के द्वारा शुरू करवाया गया जगमंदिर महल का निर्माण पुरा करवाया था।
➠महाराणा जगत सिंह अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था।
जगदीश मंदिर-
➠जगदीश मंदिर राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
➠महाराणा जगत सिंह ने उदयपुर में जगदीश मंदिर का निर्माण करवाया था।
➠जगदीश मंदिर को जगन्नाथ राय मंदिर भी कहा जाता है।
➠जगदीश मंदिर को सपने में बना मंदिर भी कहा जाता है।
➠जगदीश मंदिर नागर शैली की पंचायतन शैली में बना हुआ है।
➠जगदीश मंदिर के वास्तुकार निम्नलिखित है-
1. अर्जुन
2. भाणा (भाण)
3. मुकुन्द
जगन्नाथ राय प्रशस्ति-
➠जगन्नाथ राय प्रशस्ति उदयपुर के जगन्नाथ राय मंदिर में लगवायी गई थी।
➠जगन्नाथा राय प्रशस्ति का लेखक कृष्ण भट्ट था।
➠जगन्नाथा राय प्रशस्ति में हल्दीघाटी युद्ध की जानकारी मिलती है।
नौजू बाई का मंदिर-
➠नौजू बाई महाराणा जगत सिंह की धाय माँ थी।
➠महाराणा जगत सिंह ने उदयपुर में नौजू बाई के लिए मंदिर बनवाया था जिसे नौजू बाई का मंदिर भी कहा जाता है।
➠नौजू बाई का मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है।
17. महाराणा राजसिंह (1652- 1680 ई.)-
➠महाराणा राजसिंह ने मुगल बादशाह शाहजहाँ के खिलाफ आक्रामक नीति अपनायी तथा चित्तौड़ के किले का पुनर्निर्माण शुरू करवा दिया था।
➠मुगलों के बीच उत्तराधिकार संघर्ष में महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब की सहायता की थी।
➠मुगलों के बीच उत्तराधिकारी संघर्ष के दौरान महाराणा राजसिंह ने टीका दौड़ का आयोजन करवाया तथा कई मुगल क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था।
➠महाराणा राजसिंह ने मुगल बादशाह औरंगजेब के द्वारा लगाये गये जजिया कर का विरोध किया था।
➠महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब के खिलाफ मारवाड़ के राजा अजीत सिंह की सहायता की थी। जिसे राठौड़ सिसोदिया गठबंधन कहा जाता है।
➠महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब के खिलाफ हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां बचायी थी।
➠महाराणा राजसिंह ने औरंगजेब के खिलाफ हिन्दू राजकुमारियों की रक्षा की थी जैसे- रूपनगढ़ की राजकुमारी चारूमती की रक्षा की थी।
➠रूपनगढ़ राजस्थान के अजमेर जिले में स्थित है।
टीका दौड़-
➠टीका दौड़ दशहरे के दिन शुरू की जाती थी।
➠टीका दौड़ में हथियारों की पूजा की जाती थी तथा आस पास के क्षेत्र में युद्ध किये जाते थे।
सहल कंवर-
➠सहल कंवर सलूम्बर (उदयपुर) के सामन्त रावत रतनसिंह चूण्डावत की हाडी रानी थी।
➠सहल कंवर बूँदी के राजा संग्रामसिंह की पुत्री थी।
➠सहल कंवर ने अपने पति रावत रतनसिंह चूण्डावत के निशानी मांगने पर सहल कंवर ने अपना सर काट कर दे दिया था।
सैनाणी-
➠सैनाणी का अर्थ निशीनी होता है।
➠सैनाणी नामक कविता मेघराज मुकुल के द्वारा लिखी गई थी।
➠सैनाणी नामक कविता हाडी रानी (सहल कंवर) के बलिदान पर लिखी गई थी।
महाराणा राजसिंह की सांस्कृतिक उपलब्धियां-
1. मंदिर
2. जल स्रोत
1. मंदिर-
(I) श्रीनाथ मंदिर (सिहाड/ नाथद्वारा, राजसमंद)
(II) द्वारिकाधीश मंदिर (कांकरोली, राजसमंद)
(III) अम्बा माता मंदिर (उदयपुर)
(I) श्रीनाथ मंदिर (सिहाड़/ नाथद्वारास, राजसमंद)-
➠श्रीनाथ मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले में (सिहाड) नाथद्वारा में स्थित है।
➠नाथद्वारा का पुराना नाम सिहाड था।
➠श्रीनाथ मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह ने करवाया था।
➠1672 ई. में गोवन्द दास तथा दामोदर दास श्रीनाथ जी की मूर्ति मथुरा से लेकर आये थे।
(II) द्वारिकाधीश मंदिर (कांकरोली, राजसमंद)-
➠द्वारिकाधीश मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले के कांकरोली नामक स्थान पर स्थित है।
➠द्वारिकाधीश मंदिर का निर्माण महाराणा राजसिंह ने करवाया था।
(III) अम्बा माता मंदिर (उदयपुर)-
➠अम्बा माता का मंदिर राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
➠अम्बा माता का मंदिर निर्माण महाराणा राजसिंह ने करवाया था।
2. जल स्रोत-
(I) त्रिमुखी बावड़ी (उदयपुर)
(II) जाना सागर तालाब (उदयपुर)
(III) राजसमंद झील (राजसमंद)
(I) त्रिमुखी बावड़ी (उदयपुर)-
➠त्रिमुखी बावड़ी को जया बावड़ी भी कहा जाता है।
➠त्रिमुखी बावड़ी राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
➠त्रिमुखी बावड़ी का निर्माण महाराणा राजसिंह की रानी रामरसदे के द्वारा करवाया गया था।
(II) जाना सागर तालाब (उदयपुर)-
➠जाना सागर तालाब राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।
➠जाना सागर तालाब का निर्माण महाराणा राजसिंह की माता जानादे राठौड़ ने करवाया था।
(III) राजसमंद झील (राजसमंद)-
➠राजसमंद झील राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है।
➠राजसमंद झील का निर्माण महाराणा राजसिंह के द्वारा करवाया गया था।
➠राजसमंद झील का निर्माण अकाल राहत कार्यों के लिए करवाया गया था।
➠राजसमंद झील का निर्माण 1662 ई. से 1676 ई. तक हुआ था।
➠राजसमंद झील के निर्माण में लगभग 14 वर्ष का समय लगा था।
महाराणा राजसिंह के दरबार में दरबारी विद्वान-
1. किशोर दास
2. सदाशिव भट्ट
3. कवि मान
4. रणछोड़ भट्ट तैलंग
5. गिरधर आसिया
6. कल्याणदास
1. किशोर दास-
➠किशोर दास महाराणा राजसिंह का दरबारी विद्वान था।
➠किशोर दास के द्वारा राज प्रकास नामक पुस्तक लिखी गई थी।
2. सदाशिव भट्ट-
➠सदाशिव भट्ट महाराणा राजसिंह का दरबारी विद्वान था।
➠सदाशिव भट्ट के द्वारा राज रत्नाकर नामक पुस्तक लिखी गई थी।
3. कवि मान-
➠कवि मान महाराणा राजसिंह का दरबारी विद्वान था।
➠कवि मान के द्वारा राजविलास नामक पुस्तक लिखी गई थी।
4. रणछोड़ भट्ट तैलंग-
➠रणछोड़ भट्ट तैलंग महाराणा राजसिंह का दरबारी विद्वान था।
➠रणछोड़ भट्ट के द्वारा निम्नलिखित पुस्तके लिखी गई थी
(I) राज प्रशस्ति
(II) अमर काव्य वंशावली
(I) राज प्रशस्ति-
➠राज प्रशस्ति राजसमंद झील के पास नौ चौकी नामक स्थान पर स्थित है।
➠राज प्रशस्ति संस्कृत भाषा में लिखी गई थी।
➠राज प्रशस्ति 25 पत्थरों पर लिखी गई थी।
➠राज प्रशस्ति में निम्नलिखित जानकारियां मिलती है-
(A) बापा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक मेवाड़ के राजाओं की उपलब्धियां मिलती है।
(B) हल्दीघाटी के युद्ध की जानकारी मिलती है।
(C) महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह की जानकारी मिलती है।
(D) मुगल मेवाड़ संधि की जानकारी मिलती है।
(E) महाराणा राजसिंह के समय (1662-1676 ई.) के अकाल राहत कार्यों की जानकारी मिलती है।
(II) अमर काव्य वंशावली-
➠अमर काव्य वंशावली नामक पुस्तक महाराणा अमर सिंह के शासन काल में रणछोड़ भट्ट तैलंग के द्वारा लिखी गई थी।
➠अमर काव्य वंशावली में महारणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह तथा महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक की जानकारी मिलती है।
5. गिरधर आसिया-
➠गिरधर आसिया महाराणा राजसिंह का दरबारी विद्वान था।
➠गिरधर आसिया के द्वारा सगत सिघ रासौ नामक पुस्तक लिखी गई थी।
➠सगत सिघ रासौ में महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह की जानकारी मिलती है।
6. कल्याणदास-
➠कल्याणदास महाराणा राजसिंह का दरबारी विद्वान था।
➠कल्याणदास के द्वारा गुण गोविन्द नामक पुस्तक लिखी गई थी।
महाराणा राजसिंह की उपाधियां-
1. विजयकटकातु (कटक का अर्थ- सेना)
2. हाइड्रोलिक रूलर
18. महाराणा जयसिंह (1680- 1698 ई.)-
➠महाराणा जयसिंह के द्वारा उदयपुर में जयसमंद झील का निर्माण करवाया गया था।
➠महाराणा जयसिंह ने जयसमंद झील के पास नर्मदेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया था।
➠नर्मदेश्वर मंदिर भगवान शिव का मंदिर है।
➠महाराणा जयसिंह ने अपनी परमार रानी कोमला देवी के लिए जयसमंद झील के पास महल का निर्माण करवाया था जिसे रूठी का महल कहा जाता है।
➠महाराणा जयसिंह ने मुगल बादशाह औरंगजेब के साथ संधि कर ली थी।
➠महाराणा जयसिंह राठौड़ सिसोदिया गठबंधन से अलग हो गया था। अर्थात् महाराणा जयसिंह ने राठौड़ सिसोदिया गठबंधन तोड़ दिया था।
➠महाराणा जयसिंह ने जजिया कर के बदले में मुगलों को भीलवाड़ा के पुर, मांडल तथा बदनौर परगने दिये थे।
19. महाराणा अमर सिंह- II (1698- 1710 ई.)-
➠महाराणा अमर सिंह द्वितीय के शासन काल में मेवाड़ में अमर शाही पगड़ियां लोकप्रिय हुई थी।
➠अमर शाही पगड़ी को अटपटी पगड़ी भी कहा जाता है।
➠महाराणा अमर सिंह द्वितीय के शासक काल से राजस्थान में पगड़ियों की शुरुआत मानी जाती है।
देबारी समझौता (1708 ई.)-
➠देबारी समझौता 1708 ई. में हुआ था।
➠देबारी समझौता मुगल बादशाह बहादुर शाह- I के खिलाफ तथा राजस्थान की तीन रियासतों के मध्य हुआ था।
➠देबारी समझौते में राजस्थान की तीन रियासते जैसे-
1. मेवाड़ रियासत (राजा- महाराणा अमरसिंह- II)
2. मारवाड़ रियासत (राजा- अजीत सिंह)
3. आमेर रियासत (राजा- सवाई जयसिंह)
देबारी समझौते की शर्ते-
1. मारवाड़ के राजा अजीत सिंह तथा आमेर के राजा सवाई जयसिंह को उनके राज्य वापस दिलाने में सहायता की जायेगी।
2. मेवाड़ का राजा अमरसिंह- II ने अपनी राजकुमारी चन्द्र कंवर का विवाह आमेर के राजा सवाई जयसिंह के साथ किया गया तथा यह निर्धारित किया गया की चन्द्र कंवर का बेटा ही आमेर का अगला राजा होगा।
20. महाराणा संग्राम सिंह- II (1710- 1734 ई.)-
➠महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी का निर्माण करवाया था।
➠महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने उदयपुर के सीसारमा नामक स्थान पर वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था।
➠महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय के शासन काल में मराठों ने मेवाड़ से चौथ वसूल किया था।
वैद्यनाथ प्रशस्ति-
➠वैद्यनाथ प्रशस्ति सीसारमा (उदयपुर) के वैद्यनाथ मंदिर के बाहर से प्राप्त हुई थी।
➠वैद्यनाथ प्रशस्ति रूप भट्ट के द्वारा लिखी गई थी।
➠वैद्यनाथ प्रशस्ति से बांदनवाड़ा युद्ध की जानकारी मिलती है।
बांदनवाड़ा का युद्ध (अजमेर- 1711 ई.)-
➠बांदनवाड़ा का युद्ध अजमेर जिले के बांदनवाड़ा नामक स्थान पर लड़ा गया था।
➠बांदनवाड़ा का युद्ध 1711 ई. में हुआ था।
➠बांदनवाड़ा का युद्ध मेवाड़ के महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय तथा मुगलों के बीच लड़ा गया था।
➠बांदनवाड़ा के युद्ध में मुगल सेना को हरा दिया गया था।
➠बादनवाड़ा के युद्ध में मुगलों की तरफ से मुगल सेनापति रणबाज खाँ आया था।
बांदनवाड़ा युद्ध का कारण-
➠बांदनवाड़ा युद्ध का कारण भीलवाड़ा के पुर, मांडल तथा बदनौर तीन परगने थे।
21. महाराणा जगतसिंह- II (1734- 1751 ई.)-
➠महाराणा जगतसिंह ने उदयपुर में जगत निवास महल का निर्माण करवाया था।
हुरडा सम्मेलन-
➠हुरडा सम्मेलन 17 जुलाई 1734 को हुआ था।
➠हुरडा सम्मेलन की शुरुआत महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय के शासन काल में हुई थी परन्तु हुरडा सम्मेलन महाराणा जगतसिंह द्वितीय के शासन काल में सम्पन करवाया गया था। अर्थात् महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय के शासन काल में हुरडा सम्मेलन का आयोजन करने के लिए राजस्थान के राजाओं को आमंत्रण भेजा गया था परन्तु महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु हो जाने के कारण हुरडा सम्मेलन महाराणा जगतसिंह के शासन का में सम्पन हुआ था।
➠हुरडा नामक स्थान राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में स्थित है।
➠हुरडा सम्मेलन राजस्थान के राजपूत राजाओं का मराठों के खिलाफ किया गया सम्मेलन था।
➠हुरडा सम्मेलन में राजस्थान के निम्नलिखित राजा शामिल हुए थे-
1. जगतसिंह द्वितीय (मेवाड़)
2. सवाई जयसिंह (आमेर या जयपुर)
3. उभय सिंह (मारवाड़)
4. बख्त सिंह (नागौर)
5. जोराव सिंह (बीकानेर)
6. दलेल सिंह (बूँदी)
7. राजसिंह (किशनगढ़)
8. दुर्जनसाल (कोटा)
9. गोपालपाल (करौली)
➠हुरडा सम्मेलन का अध्यक्ष मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह द्वितीय को बनाया गया था।
➠हुरडा सम्मेलन का आयोजन आमेर (जयपुर) के राजा सवाई जयसिंह की सिफारिश पर किया गया था।
हुरडा सम्मेलन में लिये गये निर्णय-
1. राजस्थान के सभी राजा मराठों के खिलाफ एक दुसरे की सहायता करेंगे।
2. वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद रामपुरा (मालवा) में मराठों के खिलाफ युद्ध किया जायेगा।
हुरडा सम्मेलन के प्रभाव या परिणाम या महत्व-
1. राजाओं के आपसी मतभेदों के कारण हुरडा सम्मेलन असफल हो गया था।
2. खानवा युद्ध के बाद पहली बार राजस्थान के राजपूत राजाओं ने किसी दुसरी शक्ति के खिलाफ एकता दिखायी थी।
महाराणा जगतसिंह द्वितीय का दरबारी विद्वान-
1. नेकराम
1. नेकराम-
➠नेकराम महाराणा जगतसिंह द्वितीय का दरबारी विद्वान था।
➠नेकराम के द्वारा जगत विलास नामक पुस्तक लिखी गई थी।
22. महाराणा भीमसिंह (1778- 1828 ई.)-
➠13 जनवरी 1818 ई. में मेवाड़ का राजा भीमसिंह अंग्रेजों के साथ संधि कर लेता है।
गिंगोली या परबतसर का युद्ध (नागौर- 1807 ई.)-
➠गिंगोली के युद्ध को ही परबतरस का युद्ध कहते है।
➠गिंगोली का युद्ध जयपुर के राजा जगतसिंह द्वितीय तथा मारवाड़ के राजा मानसिंह के मध्य हुआ था।
➠गिंगोली का युद्ध 13 मार्च 1807 ई. को नागौर के परबतसर में हुआ था।
➠गिंगोलीत के युद्ध में जयपुर के राजा जगतसिंह द्वितीय की जीत हुई थी।
➠अमीर खाँ पिंडारी तथा अजीत सिंह चूंडावत की सलाह पर कृष्णा कुमारी को जहर दे दिया गया था।
गिंगोली या परबतसर युद्ध का कारण-
1. मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णाकुमारी की सगाई पहले मारवाड़ के राजा भीमसिंह के साथ कर दी थी लेकिन विवाह से पूर्व मारवाड़ के राजा भीमसिंह की मृत्यु हो गई थी तथा बाद में मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह ने अपनी बेटी कृष्णाकुमारी की सगाई जयपुर के राजा जगतसिंह द्वितीय के साथ कर दी थी। लेकिन मारवाड़ का राजा मानसिंह कृष्णाकुमारी का विवाह मारवाड़ में ही करवाना चाहता था।