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राजस्थान के प्रमुख संत एवं सम्प्रदाय

राजस्थान के प्रमुख सन्त एवं सम्प्रदाय (Major Saints and Sects of Rajasthan)-

    • राजस्थान के प्रमुख हिन्दू संत एवं सम्प्रदाय (Major Hindu Saint and Sects of Rajasthan)

    • 1. दादू दयाल जी (Dadu Dayal Ji)
    • 2. जाम्भोजी (Jambhoji)
    • 3. जसनाथ जी (Jasnath JI)
    • 4. चरणदास जी (Charandas Ji)
    • 5. हरिदास जी (Haridas Ji)
    • 6. संत मावजी (Saint Mavji)
    • 7. बालनन्दाचार्य (Balanandacharya)
    • 8. संत पीपा (Saint Pipa)
    • 9. संत धन्ना (Saint Dhanna)
    • 10. नवलदास जी (Navaldas ji)
    • 11. स्वामी लाल गिरि (Swami Lal Giri)
    • 12. संतदास जी (Saintdas Ji)
    • 13. राजाराम जी (Rajaram Ji)
    • 14. मलूकनाथ जी (Maluknath Ji)
    • 15. भक्त कवि दुर्लभ (Bhakta Kavi Durlabh)
    • 16. मीरा बाई (Meera Bai)
    • 17. रानाबाई (Ranabai)
    • 18. गवरी बाई (Gavari Bai)
    • 19. भूरी बाई अलख (Bhuri Bai Alakh)
    • 20. वल्लभ सम्प्रदाय (Vallabh Sect)
    • 21. गौड़ीय सम्प्रदाय (Gaudiya Sect)
    • 22. निम्बार्क सम्प्रदाय (Nimbark Sect)
    • 23. परनामी सम्प्रदाय (Pranami Sect)
    • 24. रामानन्दी सम्प्रदाय (Ramanandi Sect)
    • 25. रामस्नेही सम्प्रदाय (Ramsnehi Sect)
    • 26. नाथ सम्प्रदाय (Nath Sect)
    • 27. उंदरिया सम्प्रदाय (Undariya Sect)
    • 28. कामडिया सम्प्रदाय (Kamadiya Sect)
    • 29. कुंडा सम्प्रदाय (Kunda Sect)


    1. दादू दयाल जी (Dadu Dayal Ji)-

    • जन्म स्थान- अहमदाबाद, गुजरात
    • लोदीराम नामक ब्राह्मण ने दादूदयाल जी का पालन पोषण किया था।
    • गुरु- दादूदयाल जी के गुरु ब्रह्मानन्द जी थे।
    • दादूदयाल जी प्रारम्भ में सांभर (जयपुर) में रहते थे लेकिन बाद में आमेर (जयपुर) चले गये थे।
    • दादूदयाल जी ने अपना अंतिम समय नरैना (जयपुर) में बिताया था।
    • 1585 ई. में दादूदयाल जी ने आमेर के राजा भगवन्तदास के साथ फतेहपुर सीकरी (आगरा) में मुगल बादशाह अकबर से मुलाकात की थी।
    • दादूदयाल जी ने निर्गुण भक्ति का संदेश दिया था।
    • दादूदयाल जी को राजस्थान का कबीर कहा जाता है। क्योंकि जिस प्रकार निर्गुण भक्ति का संदेश कबीर दास जी ने दिया था उसी प्रकार निर्गुण भक्ति का संदेश दादूदायल जी ने दिया था।
    • दादूदयाल जी ने ढुंढाडी भाषा में अपने उपदेश दिए थे।
    • दादूदयाल जी के सत्संग स्थल को अलख दरीबा कहा जाता है।
    • दादूदयाल जी ने निपख आंदोलन चलाया था।
    • दादूदयाल जी के अनुसार शव को जलाना या दफना नहीं चाहिए बल्कि पशु पक्षियों के खाने के लिए खुले मैदान में छोड़ देना चाहिए।
    • दादूदयाल जी का शव भैराणा की पहाड़ी में रखा गया था।
    • भैराणा की पहाड़ी को दादू खोल या दादू पालका कहा जाता है।
    • दादूदयाल जी का मुख्य केंद्र नरैना (जयपुर) था।
    • राजस्थान के जयपुर जिले के नरैना में फाल्गुन शुक्ल पंचमी से फाल्गुन शुक्ल एकादशी तक दादूदयाल जी का मेला लगता है।
    • दादूदयाल जी के मंदिर को दादूद्वारा कहते हैं।
    • दादूदयाल जी के मंदिर दादूद्वारा में दादूदयाल जी की वाणी (पुस्तक) की पूजा की जाती है।
    • दादूदयाल जी के 52 प्रमुख शिष्य थे जिन्हें 52 स्तम्भ कहा जाता है।
    • दादूदयाल जी ने दादू सम्प्रदाय की स्थापना की थी।


    दादू सम्प्रदाय की शाखाएं (Branches of Dadu Sect)-

    • दादू सम्प्रदाय का विभाजन 5 शाखाओं में हो गया था। जैसे-
    • 1. खालसा (वे दादू पंथी जो नरैना को अपना मुख्य केंद्र मानते है वो खालसा कहलाते हैं। )
    • 2. विरक्त (वे दादू पंथी जो घरबार छोड़ वैरागय धारण कर ले वो विरक्त कहलाते हैं।)
    • 3. उतरादे (वे दादू पंथी जो हरियाणा चले गये उन्हें उतरादे कहा जाता है।
    • 4. खाकी (वे दादू पंथी जो खाकी कपड़े पहने लगे व शरीर पर राख लगाने लगे उन्हें खाकी कहा जाता है।
    • 5. नागा (वे दादू पंथी जिन्होंने कपड़ों का त्याग किया नागा कहलाते थे।)


    दादूदयाल जी के प्रमुख शिष्य-

    • दादू सम्प्रदाय के 5 प्रमुख शिष्य थे।
    • दादूदयाल जी के प्रमुख शिष्य जैसे-
    • (I) सुन्दरदास जी (बड़े)
    • (II) रज्जब जी
    • (III) सुन्दरदास जी (छोटे)
    • (IV) बालिन्द जी
    • (V) गरीब दास जी
    • (VI) मिस्किन दास जी
    • (VII) सन्त दास जी
    • (VIII) माधोदास जी
    • (IX) बखना जी 


    (I) सुन्दरदास जी (बड़े)-

    • वास्तविक नाम- भीमराज
    • सुन्दरदास जी बीकानेर महाराजा कल्याणमल के छोटे भाई थे।
    • उपाधी- गई भोम रो बाहड़ू
    • अलवर में घाटडा गाँव
    • मुख्य केंद्र- सुन्दरदास जी का मुख्य केंद्र घाटडा था।
    • घाटडा राजस्थान के अलवर जिले में स्थित है।
    • शाखा- सुन्दरदास जी ने दादू सम्प्रदाय की नागा शाखा की स्थापना की थी।
    • नागा साधु अपने साथ हथियार रखते थे।
    • नागा साधुओं के रहने के स्थान को छावनी कहा जाता था।
    • जयपुर के राजा सवाई जयसिंह ने नागा साधुओं को सेना में शामिल किया था।
    • मराठा आक्रमणों के दौरान नागा साधुओं ने जयपुर के राजा सवाई प्रतापसिंह की सहायता की थी।


    (II) रज्जब जी-

    • जन्म- सांगानेर के पठान परिवार में रज्जब जी का जन्म हुआ था।
    • सांगानेर राजस्थान के जयपुर जिले में स्थित है।
    • दादूदयाल जी के उपदेश सुनकर रज्जब जी ने विवाह नहीं किया था तथा आजीवन दूल्हे के वेश में रहे थे।
    • रज्जब जी की पुस्तकें-
    • (A) रज्जबवाणी
    • (B) सर्वंगी
    • मुख्य केंद्र- रज्जब जी का मुख्य केंद्र सांगानेर था।


    (III) सुन्दरदास जी (छोटे)-

    • जन्म- दौसा के खंडेलवाल परिवार में सुन्दरदास जी का जन्म हुआ था।
    • सुन्दरदास जी (छोटे) ने अपना अधिकतम समय फतेहपुर में बिताया था।
    • फतेहपुर राजस्थान के सीकर जिले में स्थित है।
    • सुन्दरदास जी (छोटे) ने 42 पुस्तकों की रचना की थी। जैसे-
    • (A) सुन्दर सागर
    • (B) सुन्दर विलास
    • (C) ज्ञान समुद्र
    • मुख्य केंद्र- सुन्दरदास जी (छोटे) का मुख्य केंद्र गेटोलाव था।
    • गेटोलाव राजस्थान के दौसा जिले में स्थित है।


    (IV) बालिन्द जी-

    • बालिन्द जी ने आरिलो नामक पुस्तक लिखी थी।


    (V) गरीब दास जी-

    • दादूदयाल जी के बाद नरैना वाली पीठ पर गरीब दास जी बैठे थे अर्थात् उनके उत्तराधिकारी गरीब दास जी थे।


    2. जाम्भोजी (Jambhoji)-

    • जाम्भोजी को गुरु जम्बेश्वर (Guru Jambheshwar) भी कहा जाता है।
    • जन्म स्थान- जाम्भोजी का जन्म राजस्थान नागौर जिले के पींपासर में पंवार (राजपूत) परिवार में हुआ था।
    • बचपन का नाम- जाम्भोजी का बचपन का नाम धनराज था।
    • मृत्यु- जाम्भोजी की मृत्यु राजस्थान के बीकानेर जिले के लालासर में हुई थी।
    • पिता- जाम्भौजी के पिता के पिता लोहट जी पंवार थे।
    • माता- जाम्भौजी की माता हंसाबाई थी।
    • उपदेश स्थल- जाम्भौजी जिस स्थान पर उपदेश देते थे उस स्थान को सांथरी कहा जाता था।
    • मुख्य केंद्र- जाम्भौजी का मुख्य केंद्र मुकाम था।
    • मुकाम राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है।
    • अन्य केंद्र- जाम्भौजी के अन्य केंद्र जैसे-
    • (I) जांगलू (बीकानेर)
    • (II) जाम्भा (जोधपुर)
    • (III) रामडाबास (जोधपुर)
    • मेले- जाम्भौजी के वर्ष में दो मेले लगते है। जैसे-
    • (I) आश्विन अमावस्या के दिन जाम्भौजी का मेला लगता है।
    • (II) फाल्गुन अमावस्या के दिन जाम्भौजी का मेला लगता है।
    • जाम्भौजी को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है।
    • जाम्भौजी को वैज्ञानिक सन्त कहा जाता है।
    • अकाल के दौरान जाम्भौजी के कहने पर दिल्ली के सुलतान सिकन्दर लोदी में पशुओं के लिए चारा भेजा था।
    • जोधपुर के राजा जोधा तथा बीकानेर के राजा बीका भी जाम्भौजी का सम्मान करते थे।
    • बीका जोधा का बेटा था।
    • समराथल नामक स्थान पर जाम्भौजी ने अपने अनुयायियों को 29 (20 + 9 = बिश्नोई) उपदेश दिये थे अतः जाम्भोजी के अनुयायियों को बिश्नोई कहा जाता है।
    • बिश्नोईयों का पवित्र वृक्ष खेजड़ी है।
    • बिश्नोईयों का पवित्र पशु हिरण है।
    • जाम्भौजी के प्रमुख उपदेश जैसे-
    • (I) हरे पेड़ पौधे नहीं काटे जाने चाहिए। (खेजड़ी)
    • (II) जीव हत्या नहीं की जानी चाहिए। (हिरण)
    • (III) नीले रंग के कपड़े नहीं पहने जाने चाहिए।
    • (IV) विधवा विवाह को प्रोत्साहन दिया। अर्थात् विधवाओं की शादी की जानी चाहिए।


    3. जसनाथ जी (Jasnath JI)-

    • जन्म स्थान- कतरियासर, बीकानेर जिला, राजस्थान
    • जसनाथ जी का जन्म ज्याणी जाट परिवार में हुआ था।
    • पिता- हम्मीर जी
    • माता- रुपादे
    • मुख्य केंद्र- कतरियासर (बीकानेर)
    • अन्य केंद्र-
    • (I) बम्बलू (बीकानेर)
    • (II) लिखमादेसर (बीकानेर)
    • (III) पूनरासर (बीकानेर)
    • (IV) मालासर (बीकानेर)- 
    • (V) पांचला सिद्धा (नागौर)- जसनाथी सम्प्रदाय की मथुरा
    • जसनाथी सम्प्रदाय के नागौर स्थित पांचला सिद्धा केंद्र को "जसनाथी सम्प्रदाय की मथुरा" कहा जाता है।
    • 1500 ई. में गोरख मालिया (बीकानेर) नामक स्थान पर जसनाथ जी ने जाम्भोजी से मुलाकात की थी।
    • सिकंदर लोदी ने जसनाथ जी को मालासर नामक गाँव दिया था।
    • जसनाथ जी ने अपने अनुयायियों को 36 उपदेश दिये थे।
    • जसनाथ जी के अनुयायी जाल वृक्ष तथा मोर पंख को पवित्र मानते है।
    • जसनाथ जी के अनुयायियों के द्वारा अग्नि नृत्य किया जाता है।
    • जसनाथ जी के अनुयायी गले में काली ऊन का धागा पहनते हैं।
    • जसनाथ जी के साथ इनकी पत्नी कालदे की भी पूजा की जाती है।
    • जसनाथ जी के वर्ष में तीन मेले लगते हैं। जैसे-
    • (I) चैत्र शुक्ल सप्तमी
    • (II) आश्विन शुक्ल सप्तमी
    • (III) माघ शुक्ल सप्तमी
    • जसनाथ जी (जसनाथी सम्प्रदाय) के ग्रंथ (पुस्तकें)-
    • (I) सिंभूदडा
    • (II) कोडां
    • जसनाथ जी के शिष्य-
    • (I) लालनाथ जी (जीव समझोतरी)
    • (II) रामनाथ जी (यशोनाथ पुराण)
    • (III) रुस्तम जी
    • जसनाथ जी के शिष्य लालनाथ जी ने "जीव समझोतरी" नामक पुस्तक लिखी थी।
    • जसनाथ जी के शिष्य रामनाथ जी ने "यशोनाथ पुराण" नाम पुस्तक लिखी थी।
    • यशोनाथ पुराण पुस्तक को जसनाथी सम्प्रदाय की बाइबल भी कहते हैं।
    • औरंगजेब ने जसनाथ जी के शिष्य रुस्तम जी को नगाडा व निशान (झंडा) देकर सम्मानित किया था।
    • जसनाथ जी ने जसनाथी सम्प्रदाय चलाया था।
    • बाड़ी- जसनाथी सम्प्रदाय में जहाँ संत समाधी लेते है उस स्थान को बाड़ी कहते हैं।
    • जसनाथी सम्प्रदाय में कुल 84 बाड़ियां है।


    4. चरणदास जी (Charandas Ji)-

    • जन्म स्थान- डेहरा, अलवर जिला, राजस्थान
    • बचपन का नाम- रणजीत
    • पिता- मुरलीधर
    • माता- कुंजोबाई
    • गुरु- शुकदेव
    • मुख्य केंद्र- दिल्ली
    • मेला- चरण दास जी का मेला बसन्त पंचमी के दिन लगता है।
    • चरण दास जी ने अपने अनुयायियों को 42 उपदेश दिये थे।
    • चरण दास जी के अनुयायी पीले रंग के कपड़े पहनते हैं।
    • चरण दास जी ने निर्गुण तथा सगुण दोनों प्रकार की भक्ति का संदेश दिया।
    • चरण दास जी मेवाती भाषा में अपने उपदेश दिये थे।
    • चरणदास जी ने चरणदासी सम्प्रदाय चलाया था।
    • चरणदासी सम्प्रदाय में भगवान श्री कृष्ण की पूजा सखी भाव से की जाती है।
    • चरण दास जी ने नादिरशाह के आक्रमण की भविष्यवाणी की थी।
    • 1739 ई. में ईरान के राजा नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया था।
    • जयपुर महाराजा प्रतापसिंह ने चरण दास जी को कोलीवाड़ा नामक गाँव दिया था।
    • चरण दास जी की मुख्य शिष्या-
    • (I) दयाबाई (दया बोध व विनय मलिका)
    • (II) सहजोबाई (सहज प्रकास)
    • चरणदास जी की शिष्या दयाबाई ने 'दया बोध' व 'विनय मलिका' नामक पुस्तक की रचना की थी।
    • चरणदास जी की शिष्या सहजोबाई ने 'सहज प्रकास' नामक पुस्तक की रचना की थी।


    5. हरिदास जी (Haridas Ji)-

    • जन्म स्थान- कापडोद, नागौर जिला, राजस्थान
    • मुख्य केंद्र- गाढ़ा (डीडवाना, नागौर)
    • वास्तविक नाम- हरिसिंह सांखला
    • हरिदास जी पहले डाकू थे लेकिन बाद में हरिदास जी संत बन गये थे।
    • हरिदास जी ने निर्गुण व सगुण दोनों प्रकार की भक्ति का संदेश दिया था।
    • हरिदास जी ने हरिदासी सम्प्रदाय चलाया था।
    • हरिदासी सम्प्रदाय को निरंजनी सम्प्रदाय भी कहते हैं।
    • हरिदास जी की पुस्तकें (ग्रंथ)-
    • (I) मन्त्र राज प्रकास
    • (II) हरि पुरुष जी की वाणी


    6. संत मावजी (Saint Mavji)-

    • जन्म स्थान- साबला, डूंगरपुर जिला, राजस्थान
    • मुख्य केंद्र- साबला (डूंगरपुर)
    • अन्य केंद्र-
    • (I) पुंजपुर (डूंगरपुर)
    • (II) पलोदा (बांसवाड़ा)
    • (III) शेषपुर (उदयपुर)
    • संत मावजी भगवान श्री कृष्ण की पूजा निष्कलंक अवतार के रूप में करते थे अतः सन्त मावजी ने निष्कलंकी सम्प्रदाय चलाया था।
    • संत मावजी के अनुयायी सन्त मावजी को भगवान विष्णु का कल्कि अवतार मानते हैं।
    • संत मावजी का ग्रंथ (पुस्तक)- चोपड़ा
    • चोपड़ा ग्रंथ के पांच भाग है। जैसे-
    • (I) प्रेम सागर
    • (II) मेघ सागर
    • (III) साम सागर
    • (IV) रतन सागर
    • (V) अनन्त सागर
    • चोपड़ा ग्रंथ वाद विवाद शैली में लिखा गया है
    • चोपड़ा ग्रंथ को दीपावली के दिन पढ़ा जाता है।
    • चोपड़ा ग्रंथ में भविष्यवाणियां की गई है।
    • चोपड़ा ग्रंथ में तीसरे विश्व युद्ध की भविष्यवाणी की गई है।
    • संत मावजी ने वागड़ी भाषा में अपने उपदेश दिये थे।


    7. बालनन्दाचार्य (Balanandacharya)-

    • मुख्य केंद्र- लोहार्गल, झुंझुनूं जिला, राजस्थान
    • बालनन्दा चार्य अपने साथ सेना रखते थे अतः बालनन्दा चार्य को 'लश्कर संत' कहा जाता है।
    • लश्कर = सेना
    • बालनन्दा चार्य ने 52 मूर्तियों की रक्षा की थी।
    • बालनन्दा चार्य ने अपनी सेना भेजकर औरगंजेब के खिलाफ मेवाड़ के राजसिंह तथा मारवाड़ के दुर्गादास राठौड़ की सहायता की थी।


    8. संत पीपा (Saint Pipa)-

    • वास्तविक नाम- प्रताप सिंह खींची
    • संत पींपा गागरोन के राजा थे।
    • गुरु- रामानन्द जी
    • अपनी द्वारिका (गुजरात) यात्रा के दौरान रामानन्द जी गागरोन रुके थे।
    • इस समय अपनी रानी सीता के साथ संत पींपा ने संन्यास धारण कर लिया था।
    • दर्जी समाज संत पीपा को अपना मुख्य देवता मानता है।
    • मंदिर- संत पीपा का मंदिर राजस्थान के बाड़मेर जिले के समदडी नामक स्थान पर स्थित है।
    • गुफा- संत पीपा की गुफा राजस्थान के टोंक जिले के टोडा नामक स्थान पर स्थित है।
    • मेला- संत पींपा का मेला चैत्र पूर्णिमा के दिन लगता है।
    • संत पींपा से प्रभावित होकर टोडा (टोंक) के राजा शूरसेन ने अपनी सारी संपत्ति गरीबों में बाट दी थी।


    9. संत धन्ना (Saint Dhanna)-

    • जन्म स्थान- धुआं कलां, टोंक जिला, राजस्थान
    • सन्त धन्ना का जन्म एक जाट परिवार में हुआ था।
    • गुरु- रामानन्द जी
    • सन्त धन्ना ने राजस्थान में भक्ति आंदोलन प्रारम्भ किया था।
    • पंजाब में भी सन्त धन्ना का प्रभाव दिखाई देता है।
    • मंदिर- बोरानाड़ा (जोधपुर)


    10. नवलदास जी (Navaldas ji)-

    • जन्म स्थान- हरसोलाव, नागौर जिला, राजस्थान
    • मुख्य केंद्र- जोधपुर
    • नवलदास जी ने नवल सम्प्रदाय चलाया था।
    • नवलदास जी का ग्रंथ (पुस्तक)- 'नवलेश्वर अनुभव वाणी'


    11. स्वामी लाल गिरि (Swami Lal Giri)-

    • जन्म स्थान- सुलखनिया, चुरू जिला, राजस्थान
    • मुख्य केंद्र- बीकानेर
    • स्वामी लाल गिरि ने अलखिया सम्प्रदाय चलाया था।
    • स्वामी लाल गिरि का ग्रंथ (पुस्तक)- 'अलख स्तुति प्रकास'


    12. संतदास जी (Saintdas Ji)-

    • मुख्य केंद्र- दाँतड़ा, भीलवाड़ा जिला, राजस्थान

    • सन्त दास जी ने गूदड सम्प्रदाय चलाया था।


    13. राजाराम जी (Rajaram Ji)-

    • मुख्य केंद्र- शिकारपुरा, जोधपुर जिला, राजस्थान

    • राजाराम जी ने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया था।
    • पटेल समाज के लोग राजाराम जी को अपना मुख्य देवता मानते है।


    14. मलूकनाथ जी (Maluknath Ji)-

    • मलूकनाथ जी अलवर के एक प्रमुख सन्त थे।

    • मलूक नाथ जी गरीबदासी सम्प्रदाय से संबंधित है।


    15. भक्त कवि दुर्लभ (Bhakta Kavi Durlabh)-

    • भक्त कवि दुर्लभ को "वागड़ का नृसिंह" कहा जाता है क्योंकि जिस प्रकार जिस प्रकार गुजरात में भगवान श्री कृष्ण के भगत नृसिंह (नरसी) हुए थे उसी प्रकार वागड़ में भगवान श्री कृष्ण के भगत भक्त कवि दुर्लभ थे।


    16. मीरा बाई (Meera Bai)-

    • जन्म स्थान- कुडकी, पाली जिला, राजस्थान
    • पिता- रतनसिंह [बाजोली (पाली) के सामंत]
    • माता- वीर कुंवर
    • दादा- दूदाजी (मेडता के राजा)
    • पति- भोजराज (महाराणा सांगा के पुत्र)
    • गुरु- रैदास
    • मीरा बाई के ग्रंथ (पुस्तकें)-
    • (I) गीत गोविन्द
    • (II) पदावली
    • (III) रुकमणी मंगल
    • (IV) सत्यभामा नूं रुसणो
    • (V) नरसी जी रो मायरो (रतना खाती के सहयोग से लिखी)
    • मीरा बाई का पालन पोषण मेडता (नागौर) में हुआ था।
    • मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण को अपना पति मानकर श्री कृष्ण की सगुण पूजा करती थी।
    • मीरा बाई के पिता रतनसिंह खानवा के युद्ध (1527) में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
    • द्वारिका (गुजरात) के रणछोड़ मंदिर में मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण की मूर्ति में विलीन हो गई थी या मूर्ति में समा गई थी।
    • मीरा बाई को "राजस्थान की राधा" कहा जाता है।
    • महात्मा गांधी के अनुसार मीरा बाई अन्याय के खिलाफ संघर्ष करने वाली सत्याग्राही महिला थी।


    17. रानाबाई (Ranabai)-

    • जन्म स्थान- हरनावा गाँव, परबतसर तहसील, नागौर जिला, राजस्थान
    • पिता- रामगोपाल
    • माता- गंगाबाई
    • गुरु- चतुरदास जी
    • मेला- रानाबाई का मेला भाद्रपद शुक्ल त्रयोदशी के दिन लगता है।
    • मंदिर- हरनावा गाँव (परबतसर तहसील, नागौर)
    • रानाबाई ने विवाह नहीं किया था।
    • रानाबाई ने समाधि ली थी।
    • रानाबाई भगवान श्री कृष्ण की भक्त थी।
    • रानाबाई को "राजस्थान की दूसरी मीरा" कहा जाता है।
    • अहमदाबाद युद्ध के दौरान रानाबाई ने जोधपुर के महाराजा अभय सिंह की रक्षा की थी।


    18. गवरी बाई (Gavari Bai)-

    • जन्म- डूंगरपुर जिला, राजस्थान
    • गवरी बाई का जन्म डूंगरपुर के नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
    • गवरी बाई को "वागड़ की मीरा" कहा जाता है।
    • डूंगरपुर के महारावल शिव सिंह ने गवरी बाई को बालमुकुन्द मंदिर बनवाकर दिया था।
    • डूंगरपुर के बालमुकुन्दर मंदिर को ही गवरी बाई का मंदिर कहते हैं।
    • बालमुकुन्द मंदिर भगवान श्री कृष्ण का मंदिर था।


    19. भूरी बाई अलख (Bhuri Bai Alakh)-

    • जन्म- सरदारगढ़ गाँव, राजसमंद जिला, राजस्थान 

    • भूरी बाई अलख मेवाड़ की प्रमुख महिला संत थी।


    20. वल्लभ सम्प्रदाय (Vallabh Sect)-

    • प्रवर्तक (संस्थापक)- वल्लभाचार्य
    • वल्लभ सम्प्रदाय की शुरुआत वल्लभाचार्य ने की थी।
    • वल्लभ सम्प्रदाय में भगवान श्री कृष्ण की पूजा बाल रूप में की जाती है।
    • वल्लभ सम्प्रदाय के मंदिर को हवेली कहा जाता है।
    • वल्लभ सम्प्रदाय के मंदिरों में हवेली संगीत गाया जाता है।
    • वल्लभ सम्प्रदाय के मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण के चित्र बनाये जाते हैं जिन्हें पिछवाई कहा जाता है।
    • राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय के 41 मंदिर है।
    • राजस्थान में वल्लभ सम्प्रदाय के प्रमुख मंदिर जैसे-
    • (I) मथुरेश जी (कोटा)
    • (II) श्रीनाथ जी (सिहाड़/ नाथद्वारा, राजसमंद)
    • (III) द्वारिकाधीश जी मंदिर (कांकरोली, राजसमंद)
    • (IV) गोकुलचन्द्र जी मंदिर (कामां, भरतपुर)
    • (V) मदन मोहन जी मंदिर (कामां, भरतपुर)


    21. गौड़ीय सम्प्रदाय (Gaudiya Sect)-

    • प्रवर्तक (संस्थापक)- चैतन्य महाप्रभु (गौड/ बंगाल)
    • गौड़ी सम्प्रदाय की शुरुआत चैतन्य महाप्रभु ने की थी।
    • गौड़ीय सम्प्रदाय में भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है।
    • राजस्थान में गौड़ीय सम्प्रदाय के प्रमुख मंदिर-
    • (I) गोविन्द देव जी मंदिर (जयपुर)
    • (II) मदनमोहन जी मंदिर (करौली)
    • करौली में मदनमोहन जी मंदिर का निर्माण गोपालपाल ने करवाया था।


    22. निम्बार्क सम्प्रदाय (Nimbark Sect)-

    • प्रवर्तक (संस्थापक)- निम्बार्काचार्य
    • निम्बार्क सम्प्रदाय की शुरुआत निम्बार्काचार्य ने की थी।
    • मुख्य केंद्र- सलेमाबाद गाँव, किशनगढ़ तहसील, अजमेर जिला, राजस्थान
    • परशुराम जी ने निम्बार्क सम्प्रदाय के सलेमाबाद स्थित मुख्य केंद्र की स्थापना की थी।
    • निम्बार्क सम्प्रदाय में राधा को भगवान श्री कृष्ण की पत्नी माना जाता है।
    • मेला- निम्बार्क सम्प्रदाय का मेला राधा अष्टमी (भाद्रपद शुक्ल अष्टमी) के दिन लगता है।
    • शेखावाटी क्षेत्र में निम्बार्क सम्प्रदाय का अधिक प्रभाव है।


    23. परनामी सम्प्रदाय (Pranami Sect)-

    • प्रवर्तक (संस्थापक)- प्राणनाथ जी
    • परनामी सम्प्रदाय की शुरुआत प्राणनाथ जी ने की थी।
    • मुख्य केंद्र- पन्ना (मध्य प्रदेश)
    • ग्रंथ (पुस्तक)- कुजलम स्वरुप
    • परनामी सम्प्रदाय में भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है।

    • जयपुर के आदर्श नगर में परनामी सम्प्रदाय का मंदिर है।


    24. रामानन्दी सम्प्रदाय (Ramanandi Sect)-

    • प्रवर्तक (संस्थापक)- रामानन्द जी
    • रामानन्दी सम्प्रदाय की शुरुआत रामानन्द जी ने की थी।
    • रामानन्दी सम्प्रदाय में भगवान श्री राम की पूजा रसिक नायक के रूप में की जाती है इसलिए रामानन्दी सम्प्रदाय को रसिक सम्प्रदाय भी कहा जाता है।
    • सवाई जयसिंह के शासन काल में कृष्ण भट्ट ने 'राम रासौ' नामक पुस्तक लिखी थी।
    • राम रासो पुस्तक में राम व सीता की प्रेम कहानी का वर्णन किया गया है।
    • राजस्थान में रामानन्दी सम्प्रदाय के केंद्र-
    • (I) गलता जी (जयपुर)- कृष्णदास पयहारी
    • (II) रैवासा (सीकर)- अग्रदास जी
    • रामानन्दी सम्प्रदाय के गलता जी स्थित केंद्र की स्थापना कृष्णदास पयहारी के द्वारा की गई थी।
    • रामानन्दी सम्प्रदाय के रैवासा स्थित केंद्र की स्थापना अग्रदास जी के द्वारा की गई थी।
    • आमेर का राजा पृथ्वीराज व उसकी रानी बालाबाई कृष्णदास पयहारी के शिष्य थे।


    गलता जी (जयपुर)-

    • स्थित- जयपुर जिला, राजस्थान
    • गलता जी में गालव ऋषि रहते थे तथा गालव ऋषि का आश्रम गलता जी में था।
    • गालव ऋषि के आश्रम के कारण ही गलता जी नाम गलता जी पड़ा है।
    • गलता जी सूर्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है।
    • रामानन्दी सम्प्रदाय के प्रवर्तक रामानन्द के गुरु रामानुज थे।
    • भक्ति आंदोलन की शुरुआत दक्षिण भारत से हुई थी
    • गलता जी में रामानुज सम्प्रदाय के लोग भी रहते हैं।
    • उत्तर भारत में रामानुज सम्प्रदाय का केंद्र गलता जी (जयपुर) है।
    • दक्षिण भारत में रामानुज सम्प्रदाय का केंद्र तोताद्रि (तमिलनाडु) है।
    • रामानुज तमिलनाडु के थे।
    • रामानुज सम्प्रदाय का दक्षिण भारत में प्रमुख केंद्र तोताद्रि (तमिलनाडु) है।
    • गलता जी को उत्तर भारत का तोताद्रि कहते हैं क्योंकि रामनुज सम्प्रदाय का दक्षिण भारत में प्रमुख केंद्र तोताद्रि है तथा उत्तर भारत में रामानुज सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र गलता जी है।
    • बंदरों की अधिकता के कारण गलता जी को मंकी वेली (Monkey Valley) के नाम से भी जाना जाता है।


    25. रामस्नेही सम्प्रदाय (Ramsnehi Sect)-

    • प्रवर्तक (संस्थापक)- स्वामी रामचरण जी महाराज
    • रामानन्द जी के वे चेले जो सगुण भक्ति की तरफ चले गये वे रामानन्दी सम्प्रदाय से जुड़ गये।
    • रामानन्द जी के वे चेले जो निर्गुण भक्ति की तरफ चले गये वे रामस्नेही सम्प्रदाय से जुड़ गये।
    • रामस्नेही सम्प्रदाय एक निर्गुण भक्ति का सम्प्रदाय है।
    • रामस्नेही सम्प्रदाय में दशरथ पुत्र राम की पूजा नहीं की जाती है। 
    • रामस्नेही सम्प्रदाय में निर्गुण राम की पूजा की जाती है।
    • रामस्नेही सम्प्रदाय में संत गुलाबी रंग के कपड़े पहनते हैं।
    • राजस्थान में रामस्नेही सम्प्रदाय के केंद्र-
    • (I) शाहपुरा (भीलवाड़ा)- रामचरण जी
    • (II) रैण (नागौर)- दरियाव जी
    • (III) सिंहथल (बीकानेर)- हरिरामदास जी
    • (IV) खेडापा (जोधपुर)- रामदास जी (हरिरामदास जी के शिष्य)
    • रामस्नेही सम्प्रदाय के शाहपुरा (भीलवाड़ा) स्थित केंद्र की स्थापना रामचरण जी ने की थी।
    • रामस्नेही सम्प्रदाय के रैण (नागौर) स्थित केंद्र की स्थापना दरियाव जी ने की थी। 
    • रामस्नेही सम्प्रदाय के सिंहथल (बीकानेर) स्थित केंद्र की स्थापना हरिरामदास जी ने की थी।
    • रामस्नेही सम्प्रदाय के खेडापा (जोधपुर) स्थित केंद्र की स्थापना रामदास जी ने की थी।
    • होली के अलगे दिन शाहपुरा (भीलवाड़ा) में फूलडोल मेले का आयोजन किया जाता है। अर्थात् चैत्र कृष्ण एकम् के दिन शाहपुरा (भीलवाड़ा) में फूलडोल मेले लगता है।
    • जैमलदास जी को रामस्नेही सम्प्रदाय की सिंहथल शाखा का 'आदि आचार्य' कहा जाता है क्योंकि सिंहथल शाखा के संस्थापक हरिरामदास जी का गुरु जैमलदास जी था।
    • जैमलदास जी को रामस्नेही सम्प्रदाय की खेडापा शाखा का 'आदि आचार्य' कहा जाता है क्योंकि खेडापा शाखा के संस्थापक रामदास जी के गुरु हरिरामदास थे और हरिरामदास जी का गुरु जैमलदास जी थे अतः जैमलदास जी रामदास जी के गुरु के गुरु थे।


    राम चरण जी (Ram Charan Ji)-

    • जन्म स्थान- सोडा, टोंक जिला, राजस्थान
    • रामचरण जी का जन्म विजयवर्गीय (वैश्य) परिवार में हुआ था।
    • बचपन का नाम- रामकिशन
    • पिता- बख्तराम
    • माता- देउ
    • गुरु- कृपाराम जी
    • पुस्तक- अणभैवाणी (रामचरण जी ने अणभैवाणी पुस्तक की रचना की थी।)
    • शाहपुरा के राजा रणसिंह ने रामचरण जी को छतरी व मठ बनवाकर दिये थे।
    • रामचरण जी ने रामस्नेही सम्प्रदाय की खेडापा शाखा की स्थापना की थी।


    दरियाव जी (Dariyavji)-

    • जन्म स्थान- जैतारण, पाली जिला, राजस्थान
    • दरियाव जी का जन्म धुनियां (पठान) परिवार में हुआ था।
    • दरियाव जी मुस्लिम थे।
    • पिता- मानसा
    • माता- गीगा
    • गुरु- पेमदास जी
    • दरियाव जी सबसे पूराने रामस्नेंही संत थे।


    हरिराम दास जी (Hariram Das JI)-

    • जन्म स्थान- सिंहथल, बीकानेर जिला, राजस्थान
    • हरिरामदास जी का जन्म ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
    • पिता- भागचन्द जोशी
    • माता- रामी
    • गुरु- जैमलदास जी
    • ग्रंथ- निशानी (योग ग्रंथ)
    • हरिरामदास जी ने निशानी नामक ग्रंथ की रचना की थी।
    • हरिरामदास जी का निशानी ग्रंथ योग से संबंधित था।
    • हरिरामदास जी ने रामस्नेही सम्प्रदाय की सिंहथल शाखा की स्थापना की थी।


    रामदास जी (Ramdas Ji)-

    • जन्म स्थान- भीकमकोर, जोधपुर जिला, राजस्थान
    • रामदास जी का जन्म मेघवाल परिवार में हुआ था।
    • पिता- सार्दुल
    • माता- अणभी
    • गुरु- हरिरामदास जी


    26. नाथ सम्प्रदाय (Nath Sect)-

    • प्रवर्तक (संस्थापक)- गोरखनाथ
    • नाथ सम्प्रदाय की दो शाखाएं है जैसे-
    • (I) मान नाथी- महामंदिर (जोधपुर)
    • (II) वैराग नाथी- राताडूंगा (नागौर)
    • नाथ सम्प्रदाय की मान नाथी शाखा का प्रमुख केंद्र महामंदिर (जोधपुर) है।
    • नाथ सम्प्रदाय की वैराग नाथी शाखा का प्रमुख केंद्र राताडूंगा (नागौर) है।
    • जालौर का 'सिरे मंदिर' नाथ सम्प्रदाय से संबंधित है।
    • योगी रतन नाथ ने देवराज को जैसलमेर का राजा बनने का आशीर्वाद दिया था।


    27. उंदरिया सम्प्रदाय (Undariya Sect)-

    • जयसमंद झील के आप-पास के क्षेत्र में भील जनजाति में उंदरिया सम्प्रदाय (ऊंदरिया पंथ) लोकप्रिय है।

    • जयसमंद झील राजस्थान के उदयपुर जिले में स्थित है।


    28. कामडिया सम्प्रदाय (Kamadiya Sect)-

    • प्रवर्तक (संस्थापक)- रामदेव जी

    • कामडिया सम्प्रदाय की शुरुआत रामदेव जी ने की थी।
    • रामदेव जी के मेले के दौरान कामड़िया सम्प्रदाय की महिलाएं तेरहताली नृत्य करती है।


    29. कुंडा सम्प्रदाय (Kunda Sect)-

    • प्रवर्तक- मल्लीनाथ जी

    • कुंडा सम्प्रदाय की शुरुआत मल्लीनाथ जी ने की थी।


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