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मुद्रास्फीति (Inflation)

मुद्रास्फीति या महँगाई (Inflation)-

  • वस्तु एवं सेवाओं की कीमतों का बढ़ना तथा मुद्रा का मूल्य कम  होना मुद्रास्फीति कहलाता है।
  • मुद्रास्फीति कुछ हद तक सकारात्मक होती है क्योंकि मुद्रास्फीति से उत्पादकों को लाभ होता है तथा निवेश में वृद्धि होती है। निवेश में वृद्धि होने से रोजगार के नये अवसर सर्जित होते है।


फिलिप्स वक्र (Phillips Curve)-

  • फिलिप्स वक्र मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी के बीच नकारात्मक संबंध को दर्शाता है। अर्थात् मुद्रास्फीति के बढ़ने से बेरोजगारी कम होती है तथा मुद्रास्फीति के कम होने से बेरोजगारी बढ़ जाती है।
  • एक सीमा तक मुद्रास्फीति तथा बेरोजगारी के बीच नकारात्मक संबंध बना रहता है।


मुद्रास्फीति की गणना (Inflation Calculation)-

  • मुद्रास्फीति की गणना प्रत्येक माह की जाती है।
  • मुद्रास्फीति में कीमतों की तुलना पिछले वर्ष की कीमतों से की जाती है। जैसे- जनवरी 2021 में किसी वस्तु की कीमत 100 रुपये थी तथा जनवरी 2022 में उसी वस्तु की कीमत 110 रुपये हो गई है इसका अर्थ है मुद्रास्फीति की दर 10% बढ़ गई है।


मुद्रास्फीति के प्रकार (Type of Inflation)-

  • 1. लक्षित मुद्रास्फीति (Trgate Inflation)
  • 2. रेंगती हुई मुद्रास्फीति (Crawling Inflation)
  • 3. चलती हुई मुद्रास्फीति (Walking Inflation)
  • 4. दौड़ती हुई मुद्रास्फीति (Runaway Inflation)
  • 5. गैलोपिंग मुद्रास्फीति (Galloping Inflation)
  • 6. अतिस्फीति (Hyper Inflation)
  • 7. विस्फीति (Disinflation)
  • 8. अपस्फीति (Deflation)
  • 9. स्टैगफ्लेशन (Stagflation)
  • 10. कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation)
  • 11. तिरछी मुद्रास्फीति (Skew Inflation)
  • 12. कारकों के आधार पर मुद्रास्फीति के दो प्रकार
  • (अ) लागत जनित मुद्रास्फीति (Cost Push Inflation)
  • (ब) मांग जनित मुद्रास्फीति (Demand Pull Inflation)


1. लक्षित मुद्रास्फीति (Trgate Inflation)-

  • प्रत्येक देश के द्वारा अपने विकासात्मक उद्देश्यों के आधार पर मुद्रास्फीति का लक्ष्य निर्धारित किया जाता है। जैसे- विकासशील देशों के लिए रोजगार के अवसर सर्जित करना मुख्य उद्देश्य होता है। इसीलिए मुद्रास्फीति का लक्ष्य बड़ा होता है। अर्थात् मुद्रास्फीति का लक्ष्य 3%  से 5% तक होता है।
  • भारत में मुद्रास्फीति का लक्ष्य 4% ± 2% है।
  • विकसित देशों में मुद्रास्फीति का लक्ष्य कम रखा जाता है। जैसे- लगभग 1 से 2% तक


2. रेंगती हुई मुद्रास्फीति (Crawling Inflation)-

  • यदि मुद्रास्फीति की दर 3% से कम है तो वह मुद्रास्फीति रेंगती हुई मुद्रास्फीति कहलाती है।
  • रेंगती हुई मुद्रास्फीति सभी देशों के लिए सकारात्मक होती है।


3. चलती हुई मुद्रास्फीति (Walking Inflation)-

  • यदि मुद्रास्फीति की दर 3% से 6% के बीच है तो वह मुद्रास्फीति चलती हुई मुद्रास्फीति कहलाती है।
  • चलती हुई मुद्रास्फीति विकासशील देशों के लिए सकारात्मक होती है।


4. दौड़ती हुई मुद्रास्फीति (Runaway Inflation)-

  • यदि मुद्रास्फीति की दर 6% से 10% के बीच है तो वह मुद्रास्फीति दौड़ती हुई मुद्रास्फीति कहलाती है।
  • दौड़ती हुई मुद्रास्फीति चिंता का विषय होती है।
  • दौड़ती हुई मुद्रास्फीति को कम करने या नियंत्रित करने के लिए सरकार तथा केंद्रीय बैंकों के द्वारा प्रयास किये जाते है।


5. गैलोपिंग मुद्रास्फीति (Galloping Inflation)-

  • यदि मुद्रास्फीति की दर 10% से भी अधिक है तो वह मुद्रास्फीति गैलोपिंग मुद्रास्फीति कहलाती है।
  • गैलोपिंग मुद्रास्फीति अत्यधिक चिंता का विषय है।
  • गैलोपिंग मुद्रास्फीति को रोकने के लिए अप्रत्याशित उपाय अपनाये जाते है।


6. अतिस्फीति (Hyper Inflation)-

  • यदि मुद्रास्फीति की दर 50% से भी अधिक है तो वह मुद्रास्फीति अतिस्फीति कहलाती है।
  • अति मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था के लिए सबसे खतरनाक स्थिति होती है। क्योंकि मुद्रा व्यवस्था पूर्ण रूप से ध्वस्त हो जाती है।


7. विस्फीति (Disinflation)-

  • यदि मुद्रास्फीति के बढ़ने की दर कम होने लगती है तो वह मुद्रास्फीति विस्फीति कहलाती है। जैसे- जनवरी में 8%, फरवरी में 7% तथा मार्च में 6%


8. अपस्फीति (Deflation)-

  • यदि मुद्रास्फीति की दर नकारात्मक हो जाती है तो वह मुद्रास्फीति अपस्फीति कहलाती है। अर्थात् मुद्रास्फीति की दर नकारात्मक होने का अर्थ है वस्तु और सेवाओं की कीमते कम होने लगी है।
  • अपस्फीति की स्थित में या वस्तु और सेवाओं की कीमते कम होने से उत्पादकों को नुकसान होने लगता है तथा ऐसी स्थित में उत्पादकों के द्वारा निवेश को कम कर दिया जाता है।
  • यदि अपस्फीति की स्थित कुछ समय तक बनी रहे तब अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में चली जाती है।
  • यदि मंदी लम्बे समय  तक बनी रहे तो अर्थव्यवस्था डिप्रेशन (Depression) में चली जाती है। जैसे- अमेरिका की अर्थव्यवस्था सन् 1929 में Great Depression में चली गई थी।


9. स्टैगफ्लेशन (Stagflation)-

  • Stagflation दो शब्दों Staynation + Inflation से मिलकर बना है।
  • स्टैगफ्लेशन की स्थित एक विशिष्ट परिस्थिति है।
  • स्टैगफ्लेशन में GDP में गिरावट देखी जाती है।
  • स्टैगफ्लेशन की स्थिति सामान्यतः नहीं होती है। यह कभी कभी देखी जा सकती है।
  • बेरोजगारी बढ़ रही होती है जिसके कारण मांग में भी कमी है परन्तु फिर भी मुद्रास्फीति की दर अधिक है तो ऐसी परिस्थिति स्टैगफ्लेशन कहलाती है।
  • स्टैगफ्लेशन केंद्रीय बैंक के लिए दुविधा की स्थिति होती है। क्योंकि यदि रेपो दर (Repo Rate) या नीतिगत दरों को बढ़ाया जाता है तब GDP में और अधिक कमी आयेगी।
  • यदि रेपो दर या नीतिगत दरों को कम कर दिया जाता है तब इससे मुद्रास्फीति और अधिक बढ़ेगी।
  • स्टैगफ्लेशन की स्थिति से बाहर निकलने के लिए केंद्रीय बैंक को सरकार का सहयोग आवश्यक होता है।


10. कोर मुद्रास्फीति (Core Inflation)-

  • मुद्रास्फीति का वह भाग जो तरलता के कारण है इसीलिए RBI के नियंत्रण में है इसे कोर मुद्रास्फीति कहा जाता है।
  • कोर मुद्रास्फीति में मुद्रास्फीति के अन्य कारकों को हटा दिया जाता है।
  • कोर मुद्रास्फीति = मुद्रास्फीति - अन्य कारक (Core Inflation = Inflation - Other factors)
  • अन्य कारक जैसे- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमते, कृषि को नुकसान , परिवहन में बाधा आदि।


11. तिरछी मुद्रास्फीति (Skew Inflation)-

  • तिरछी मुद्रास्फीति मुद्रास्फीति का एक विशिष्ट रूप है जिसमें कुछ उत्पादों की कीमतों में वृद्धि होती है जैसे-
  • प्रोटीन मुद्रास्फीति- प्रोटीन मुद्रास्फीति में सिर्फ प्रोटीन उत्पादों की कीमतों में वृद्धि होती है।
  • खाद्य मुद्रास्फीति- खाद्य मुद्रास्फीति में सिर्फ खाद्य पदार्थों की कीमतों में वृद्धि होती है।


12. मुद्रास्फीति कारकों के आधार पर दो प्रकार की होती है। जैसे-

  • (अ) लागत जनित मुद्रास्फीति (Cost Push Inflation)
  • (ब) मांग जनित मुद्रास्फीति (Demand Pull Inflation)


(अ) लागत जनित मुद्रास्फीति (Cost Push Inflation)-

  • लागत जनित मुद्रास्फीति लागत में वृद्धि के कारण होती है। जिसके निम्नलिखित कारण होते है-
  • (I) कच्चे माल की कीमतों में वृद्धि
  • (II) किराये में वृद्धि
  • (III) मजदूरी की दरों में वृद्धि
  • (IV) ब्याज दरों में वृद्धि
  • (V) अप्रत्यक्ष करों में वृद्धि (वस्तु एवं सेवाओं पर लगने वाला कर)
  • (VI) परिवहन की लागत बढ़ना
  • (VII) उद्यमी के लाभ में वृद्धि


(ब) मांग जनित मुद्रास्फीति (Demand Pull Inflation)-

  • मांग जनित मुद्रास्फीति मांग बढ़ने के कारण होती है जिसके निम्नलिखित कारण होते है-
  • (I) जनसंख्या में वृद्धि
  • (II) आय का स्तर बढ़ना
  • (III) बाजार में तरलता का बढ़ना
  • (IV) ब्याज दरों में कमी
  • (V) प्रत्यक्ष करों में कमी (लाभ या आय पर लगने वाला कर)
  • (VI) सरकारी व्यय में वृद्धी
  • (VII) बाजार में काला धन
  • (VIII) विदेशी पूंजी का अंतरप्रवाह


मुद्रास्फीति की गणना (Inflation Calculation)-

  • मुद्रास्फीति की गणना दो दृष्टिकोणों से की जा सकती है। जैसे-
  • 1. थोक विक्रेता के दृष्टिकोण से मुद्रास्फीति की गणना (Calculating Inflation from Wholesalers Point of View)
  • 2. उपभोक्ता के दृष्टिकोण से मुद्रास्फीति की गणना (Calculating Inflation from the Consumer Point of View)


1. थोक विक्रेता के दृष्टिकोण से मुद्रास्फीति की गणना (Calculating Inflation from Wholesalers Point of View)-

  • थोक विक्रेता के दृष्टिकोण से मुद्रास्फीति की गणना करने के लिए थोक मूल्य सूचकांक जारी किया जाता है।
  • थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय (Ministry of Commerce and Industry) के द्वारा जारी किया जाता है।
  • थोक मूल्य सूचकांक वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में भी आर्थिक सलाहकार कार्यलय (Office of Economic Adviser) के द्वारा जारी किया जाता है।
  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) के चार प्रकार होते है जैसे-
  • (I) WPI प्राथमिक वस्तुएं- 117 वस्तुएं
  • (II) WPI ईंधन और उर्जा- 16 वस्तुएं
  • (III) WPI विनिर्मित वस्तुएं- 564 वस्तुएं
  • (IV) WPI मुख्य- 697 वस्तुएं
  • पूरे भारत के लिए एक ही थोक मूल्य सूचकांक (WPI) की गणना की जाती है।
  • क्षेत्रिय थोक मूल्य सूचकांक (WPI) जारी नहीं किया जाता है।
  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में केवल वस्तुओं को शामिल किया जाता है।
  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में सेवाओं को शामिल नहीं किया जाता है।
  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में खाद्य पदार्थों का भार बहुत कम (लगभग 20%) है।
  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का आधार वर्ष 2021-12 है।
  • थोक मूल्य सूचकांक (WPI) प्रत्येक माह की 14 तारीख को जारी किया जाता है।
  • वर्ष 2014 से पहले मुद्रास्फीति की गणना का मुख्य सूचकांक थोक मूल्य सूचकांक (WPI) था।


2. उपभोक्ता के दृष्टिकोण से मुद्रास्फीति की गणना (Calculating Inflation from the Consumer Point of View)-

  • उपभोक्ता के दृष्टिकोण से मुद्रास्फीति की गणना करने के लिए उपभोक्ता मूल्य सूचकांक जारी किया जाता है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (Ministry of Statistics and Program Implementation) के द्वारा जारी किया जाता है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय में भी राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (National Statistical Office- NSO) के द्वारा जारी किया जाता है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के तीन प्रकार है जैसे-
  • (I) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) ग्रामीण- 448 वस्तुएं
  • (II) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) शहरी- 460 वस्तुएं
  • (III) उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) ग्रामीण व शहरी- 460 वस्तुएं
  • केन्द्र के साथ साथ राज्य तथा केन्द्रशासित प्रदेशों के लिए भी उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) जारी िया जाता है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में वस्तु तथा सेवा दोनों शामिल की जाती है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में खाद्य पदार्थों का भारांश लगभग 45% होता है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) का आधार वर्ष 2011-12 है।
  • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) प्रत्येक माह की 12 तारीख को जारी किया जाता है।
  • वर्ष 2014 के बाद वर्तमान तक मुद्रास्फीति की गणना करने का मुख्य सूचकांक उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) है।
  • श्रम ब्यूरों के द्वारा भी अन्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) जारी किया जाता है।


उत्पादक मूल्य सूचकांक (Producer Price Index- PPI)-

  • उत्पादक मूल्य सूचकांक के तहत कीमतों में वृद्धि की गणना उत्पादक के दृष्टिकोण से की जाती है।
  • उत्पादक मूल्य सूचकांक में वस्तु तथा सेवाएं दोनों को शामिल किया जाता है।
  • उत्पादक मूल्य सूचकांक का प्रयोग भारत में नहीं किया जाता है।
  • उत्पादक मूल्य सूचकांक का प्रयोग यूरोपिय देशों में किया जाता है।


आधार प्रभाव (Base Effect)-

  • मुद्रास्फीति की दर पर पिछले वर्ष की कीमतों का प्रभाव देखा जाता है इसी प्रभाव को आधार प्रभाव कहा जाता है।
  • यदि पिछले वर्ष कीमतों में अत्यधिक कमी हुई थी तो वर्तमान में कीमते या मुद्रास्फीति अधिक दिखाई देगी।
  • यदि पिछले वर्ष कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई थी तो वर्तमान में कीमते या मुद्रास्फीति में अत्यधिक कमी दिराई देगी।


मुद्रास्फीति के नकारात्मक प्रभाव (Negative Effects of Inflation)-

  • 1. मुद्रास्फीति के कारण ऋण देने वाले को नुकसान होता है तथा ऋण लेने वाले को लाभ होता है क्योंकि प्रभावि ब्याज = ब्याज दर - मुद्रास्फीति (Effective Interest Rate = Interest Rate - Inflation)
  • 2. मुद्रास्फीति के कारण बैंकों में जमाकर्ताओं को नुकसान होने लगता है इसीलिए जमाकर्ता अपनी जमाओं को बैंक से निकाल कर अन्य परिसम्पत्तियों में निवेश करते है। इससे बैंकों की ऋण क्षमता कम हो जाती है। तथा अर्थव्यवस्था में निवेश प्रभावि होता है।
  • 3. मुद्रास्फीति और अधिक मुद्रास्फीति का कारण बनती है।
  • 4. मुद्रास्फीति अधिक होने से कालाबाजारी की प्रवृतिया बढ़ती है। क्योंकि लोग वस्तुओं का संग्रहण परना शुरू कर देते है ताकी उन्हें उच्च कीमतों पर बेचा जा सके।
  • 5. मुद्रास्फीति का सबसे नकारात्मक प्रभाव गरीब व्यक्तियों पर पड़ता है क्योंकि मुद्रास्फीति के कारण जीवन यापन की लागत बढ़ जाती है।
  • 6. मुद्रास्फीति का अनौपचारिक (Informal) क्षेत्रों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है क्योंकि अनौपचारिक क्षेत्रों के कामगारों को महंगाई के अनुरूप महंगाई भत्ता नहीं दिया जाता है।
  • 7. औपचारिक (Formal) क्षेत्र के कामगारों को महंगाई के अनुरूप महंगाई भत्ता दिया जाता है। जिससे औपचारिक क्षेत्र के कामगारों की मौद्रिक आय तो बढ़ जाती है परन्तु वास्तविक आय में कोई परिवर्तन नहीं होता है। मौद्रिक आय के बढ़ने से जो लोग पहले आयकर के दायरे में नहीं आते थे वे लोग महंगाई भत्ता मिलने से आयकर के दायरे में आना शुरु हो जाते है इसे Fiscal Drag कहा जाता है।
  • 8. मुद्रास्फीति के कारण आयातों में वृद्धि होती है तथा निर्यातों में कमी होती है। जिससे चालू खाते का घाटा (Current Account Deficit) बढ़ जाता है।
  • 9. मुद्रास्फीति के कारण सरकारी खर्चा मंहगा हो जाता है जिससे राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit) बढ़ने लगता है। चाू खाते का घाटा तथा राजकोषीय घाटा संयुक्त रूप से Twin Deficit कहलाते है।
  • 10. मुद्रास्फीति के कारण अर्थव्यवस्था की विश्वनियता कम हो जाती है जिससे विदेशी निवेश प्रभावित होता है।

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