जैन धर्म (Jainism)
- जैन धर्म का संस्थापक-
- जैन धर्म की स्थापना ऋषभदेव (आदिनाथ) ने की थी।
- भगवान ऋषभदेव को ही आदिनाथ कहा जाता है।
- जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव है।
- भगवान ऋषभदेव का प्रतीक चिह्न सांड या बैल है।
जैन धर्म के तीर्थंकर-
- जैन धर्म के केवल 23वें एवं 24वें तीर्थंकर या गुरु की ऐतिहासिक जानकारियां मिलती है।
- वर्तमान तक जैन धर्म में कुल 24 तीर्थंकर है। जैसे-
- 1. ऋषभनाथ
- 2. अजितनाथ
- 3. संभवनाथ
- 4. अभिनंदननाथ
- 5. सुमतिनाथ
- 6. पद्मप्रभ
- 7. सुपार्श्वनाथ
- 8. चन्द्रप्रभ
- 9. पुष्पदंत
- 10. शीतलनाथ
- 11. श्रेयांसनाथ
- 12. वासुपूज्य
- 13. विमलनाथ
- 14. अनंतनाथ
- 15. धर्मनाथ
- 16. शांतिनाथ
- 17. कुंथुनाथ
- 18. अरहनाथ
- 19. मल्लिनाथ
- 20. मुनिस्रुव्रतनाथ
- 21. नमिनाथ
- 22. नेमिनाथ (अरिष्टनेमि)
- 23. पार्श्वनाथ जी
- 24. महावीर स्वामी
1. ऋषभनाथ जी (आदिनाथ)-
- भगवान ऋषभनाथ जी जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर या गुरु है।
- ऋषभनाथ जी ने जैन धर्म की स्थापना की थी अर्थात् जैन धर्म का संस्थापक ऋषभनाथ जी को माना जाता है।
- भगवान ऋषभनाथ जी को आदिनाथ भी कहा जाता है।
- ऋषभनाथ का प्रतीक चिह्न सांड या बैल है।
2. अजितनाथ-
- अजितनाथ जैन धर्म का दूसरा तीर्थंकर या गुरु है।
- अजितनाथ का प्रतीक चिह्न हाथी है।
3. संभवनाथ-
- संभवनाथ जैन धर्म का तीसरा तीर्थंकर या गुरु है।
- संभवनाथ का प्रतीक चिह्न घोड़ा (अश्व) है।
4. अभिनंदननाथ-
- अभिनंदननाथ जैन धर्म का चौथा तीर्थंकर या गुरु है।
- अभिनंदननाथ का प्रतीक चिह्न बंदर है।
5. सुमंतिनाथ-
- सुमंतिनाथ जैन धर्म का पांचवा तीर्थंकर या गुरु है।
- सुमंतिनाथ का प्रतीक चिह्न चकवा है।
6. पद्मप्रभा-
- पद्मप्रभा जैन धर्म का छठा तीर्थंकर या गुरु है।
- पद्मप्रभा का प्रतीक चिह्न कमल है।
7. सुपर्श्वनाथ-
- सुपर्श्वनाथ जैन धर्म का सातवा तीर्थंकर या गुरु है।
- सुपर्श्वनाथ का प्रतीक चिह्न साथिया (स्वस्तिक) है।
8. चन्द्रप्रभ (चन्द्रगुप्त)-
- चन्द्रप्रभ जैन धर्म का आठवा तीर्थंकर या गुरु है।
- चन्द्रप्रभ का प्रतीक चिह्न चन्द्रमा (वर्धमान चाँद) है।
9. पुष्पन्दाता-
- पुष्पन्दाता जैन धर्म का 9वां तीर्थंकर या गुरु है।
- पुष्पन्दाता का प्रतीक चिह्न मगर (मगरमच्छ) है।
10. शीतलनाथ-
- शीतलनाथ जैन धर्म का 10वां तीर्थंकर या गुरु है।
- शीतलनाथ का प्रतीक चिह्न कल्पवृक्ष (श्रीवालसा) है।
11. श्रेयांशनाथ-
- श्रेयांशनाथ जैन धर्म का 11वां तीर्थंकर या गुरु है।
- श्रेयांशनाथ का प्रतीक चिह्न गैंडा है।
12. वसुप्रिया-
- वसुप्रिया जैन धर्म का 12वां तीर्थंकर या गुरु है।
- वसुप्रिया का प्रतीक चिह्न भैंस है।
13. विमलनाथ-
- विमलनाथ जैन धर्म का 13वां तीर्थंकर या गुरु है।
- विमलनाथ का प्रतीक चिह्न शूकर (सूअर) है।
14. अनंतनाथ-
- अनंतनाथ जैन धर्म का 14वां तीर्थंकर या गुरु है।
- अनंतनाथ का प्रतीक चिह्न सेही (बाज) है।
15. धर्मनाथ-
- धर्मनाथ जैन धर्म का 15वां तीर्थंकर या गुरु है।
- धर्मनाथ का प्रतीक चिह्न वज्रदंड है।
16. शांतिनाथ-
- शांतिनाथ जैन धर्म का 16वां तीर्थंकर या गुरु है।
- शांतिनाथ का प्रतीक चिह्न मृग (हिरण) है।
17. कुंथुनाथ-
- कुंथुनाथ जैन धर्म का 17वां तीर्थंकर या गुरु है।
- कुंथुनाथ का प्रतीक चिह्न बकरा या बकरी है।
18. अरनाथ-
- अरनाथ जैन धर्म का 18वां तीर्थंकर या गुरु है।
- अरनाथ का प्रतीक चिह्न मछली या एंड्यावर्त है।
19. मल्लिनाथ-
- मल्लिनाथ जैन धर्म का 19वां तीर्थंकर या गुरु है।
- मल्लिनाथ का प्रतीक चिह्न कलश (कैलाश मिथिया) है।
20. मुनिसुव्रत-
- मुनिसुव्रत जैन धर्म का 20वां तीर्थंकर या गुरु है।
- मुनिसुव्रत का प्रतीक चिह्न कछुआ (कच्छप) है।
21. नामिनाथ-
- नामिनाथ जैन धर्म का 21वां तीर्थंकर या गुरु है।
- नामिनाथ का प्रतीक चिह्न नीलकमल है।
22. नेमिनाथ (अरिष्टनेमि)-
- नेमिनाथ या अरिष्टनेमि जैन धर्म का 22वां तीर्थंकर या गुरु है।
- नेमिनाथ का प्रतीक चिह्न शंख है।
23. पार्श्वनाथ जी-
- पार्श्वनाथ जी जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर या गुरु है।
- पार्श्वनाथ जी का जन्म पूर्व पौष कृष्ण एकादशी को हुआ था।
- पार्श्वनाथ जी का जन्म भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के वाराणसी में हुआ था।
- पार्श्वनाथ जी का प्रतीक चिह्न सर्प (सांप) है।
- पार्श्वनाथ जी के पिता का नाम राजा अश्वसेन था।
- पार्श्वनाथ जी के पिता अश्वसेन काशी के राजा थे।
- पार्श्वनाथ जी की माता का नाम रानी वामादेवी था।
- पार्श्वनाथ जी को श्रावण शुक्ला सप्तमी के दिन सम्मेद नामक पर्वत पर ज्ञान या मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।
- पार्श्वनाथ जी ने चार व्रत दिये थे जैसे-
- (I) सत्य
- (II) अहिंसा
- (III) अस्तेय
- (IV) अपरिग्रह
24. महावीर स्वामी-
- महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर या गुरु है।
- महावीर स्वामी का प्रतीक चिह्न सिंह (शेर) है।
- महावीर स्वामी के बचपन का नाम वर्धमान था।
- महावीर स्वामी का जन्म 540 ई.पू. में चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हुआ था।
- महावीर स्वामी का जन्म भारत के बिहार राज्य के कुंडग्राम (कुंडलपुर, वैशाली) में हुआ था।
- महावीर स्वामी को जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- महावीर स्वामी के पिता का नाम राजा सिद्धार्थ था।
- महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला देवी था।
- महावीर स्वामी की माता त्रिशला लिच्छवी शासक चेटक की बहन थी।
- महावीर स्वामी की पत्नि का नाम यशोदा था।
- महावीर स्वामी की पुत्री का नाम प्रियदर्शना था।
- महावीर स्वामी ज्ञातृक वंश के थे।
- महावीर स्वामी के भाई का नाम नंदीवर्धन था।
महावीर स्वामी को मोक्ष या ज्ञान की प्राप्ती-
- महावीर स्वामी ने अपने भाई नंदीवर्धन की अनुमती से गृहत्याग किया था।
- भद्रबाहु के कल्पसूत्र के अनुसार महावीर स्वामी ने गृहत्याग के 13 महीने बाद में अपने वस्त्र त्याग दिये थे।
- कल्पसूत्र की रचना भद्रबाहु ने की थी।
- भगवान महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में गृहत्याग किया था।
- 12 वर्ष की तपस्या के बाद 42 वर्ष की आयु में जुम्बिका ग्राम में रिजुपात्रिका नदी के तट पर सालवृक्ष के नीचे महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।
- जुम्बिका ग्राम भारत के बिहार राज्य में स्थित है।
महावीर स्वामी का प्रथम उपदेश-
- महावीर स्वामी ने अपना प्रथम उपदेश 11 ब्राह्मणों को पावा या पावापुरी में दिया था।
- महावीर स्वामी ने जिन 11 ब्राह्मणों को प्रथम उपदेश दिया था उन्हें जैन धर्म में गणधर कहा जाता है।
महावीर स्वामी की मृत्यु-
- 72 वर्ष की आयु में पावा या पावापुरी में महावीर स्वामी की मृत्यु हो गयी थी।
- पावा को ही पावापुरी कहा जाता है।
- पावापुरी नामक स्थान भारत के बिहार राज्य में स्थित है।
- महावीर स्वामी की मृत्यु के समय केवल एक गणधर सुधर्मन जीवित था।
- महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद सुधर्मन ने ही जैन धर्म का नैतृत्व किया था।
जामालि-
- जामालि महावीर स्वामी का दामाद था।
- महावीर स्वामी का प्रथम शिष्य जामालि था
महावीर स्वामी के विरुद्ध विद्रोह-
- महावीर स्वामी के विरुद्ध पहला विद्रोह महावीर स्वामी के दामाद जामालि ने ही किया था।
- महावीर स्वामी के विरुद्ध दूसरा विद्रोह तीसगुप्त ने किया था।
जैन धर्म की शिक्षाएं या सिद्धांत-
त्रिरत्न-
- जैन धर्म के त्रिरत्न जैसे-
- (I) सम्यक ज्ञान
- (II) सम्यक दर्शन
- (III) सम्यक आचरण या चरित्र
व्रत-
- महावीर स्वामी ने जैन धर्म में 5वें व्रत ब्रह्मचर्य को जोड़ा एवं व्रतों को दो भागों में विभाजित किया था। जैसे-
- (I) अणुव्रत- अणुव्रत गृहस्थ के लिए
- (II) महाव्रत- जैन मुनियों के लिए
ज्ञान के प्रकार-
- (I) मति
- (II) श्रुति
- (III) अवधि
- (IV) मन पर्यय ज्ञान
- (V) कैवल्य
(I) मति-
- जैन धर्म में इन्द्रि जनित ज्ञान को मति कहा जाता है। अर्थात् जो ज्ञान इन्द्रियों द्वारा प्राप्त होता है उसे जैन धर्म में मति कहा जाता है।
(II) श्रुति-
- जैन धर्म में सुनकर होने वाले ज्ञान श्रुति कहा जाता है। अर्थात् श्रवण से प्राप्त ज्ञान को जैन धर्म में श्रुति कहा जाता है।
(III) अवधि-
- जैन धर्म में दूर देश का ज्ञान या भूत एवं भविष्य के ज्ञान को अवधि कहा जाता है।
(IV) मन पर्यय ज्ञान-
- जैन धर्म में किसी के मन की बात को जान लेना ही मन पर्यय ज्ञान कहलाता है।
(V) कैवल्य-
- जैन धर्म में सम्पूर्ण ज्ञान को कैवल्य कहा जाता है।
जैन धर्म की शब्दावली-
- 1. जीव
- 2. पुद्गल
- 3. बंधन
- 4. आस्रव
- 5. संवर
- 6. निर्जरा
- 7. मोक्ष या मुक्ति
1. जीव-
- जैन धर्म में चेतन तत्व या आत्मा को जीव माना जाता है।
2. पुद्गल-
- जैन धर्म में जड़ तत्व या स्थूल भौतिक पदार्थ ही पुद्गल कहलाते है।
3. बंधन-
- जैन धर्म के अनुसार जब कर्म पुद्गल जीव से चिपक जाता है तो जीव बंधन में पड़ जाता है।
4. आस्रव-
- जैन धर्म में कर्म पुद्गलों का जीव की तरफ से होने वाला प्रवाह ही आस्रव कहलाता है।
5. संवर-
- जैन धर्म में जीव की तरफ से होने वाले कर्म पुद्गलों के प्रवाह का रुक जाना ही संवर कहलाता है।
6. निर्जरा-
- जैन धर्म में जीव से चिपके हुए कर्म पुद्गलों का झड़ना या अलग होना या पृथक होना ही निर्जरा कहलाता है।
7. मोक्ष या मुक्ति-
- जैन धर्म में जब अंतिम कर्म पुद्गल जीव से झड़ जाता है या अलग हो जाता है तब जीव को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है एवं जीव अनंत चतुष्टय की अवस्था को प्राप्त हो जाता है जिसे मोक्ष या मुक्ति कहा जाता है।
जैन धर्म के सिद्धांत-
- 1. अनंत चतुष्टय
- 2. अनेकांतवाद
- 3. स्यादवाद
1. अनंत चतुष्य-
- जैन धर्म में अनंत चतुष्य जैसे-
- (I) अनंत ज्ञान
- (II) अनंत दर्शन
- (III) अनंत वीर्य (बल)
- (IV) अनंत आनंद
सिद्धशिला-
- जैन धर्म के अनुसार जीव का विश्राम स्थल या मुक्त आत्माओं का घर ही सिद्धशिला है।
2. अनेकांतवाद-
- अनेकांतवाद जैन दर्शन का तत्वमीमांसीय सिद्धांत है।
- जैन धर्म के अनुसार इस जगत या संसार में अनेक वस्तुएं है और प्रत्येक वस्तु में अनेक गुण है।
- जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक वस्तु के गुणों में से कुछ गुण नित्य होते है और कुछ गुण परिवर्तनशील होते है।
3. स्यादवाद-
- स्यादवाद जैन दर्शन का ज्ञान मीमांसीय सिद्धांत है।
- स्यादवाद के अनुसार इस जगत या संसार में अनेक वस्तुएं है और प्रत्येक वस्तु में अनेक गुण है।
- जैन धर्म के स्यादवाद के अनुसार हम न तो इस जगत की सभी वस्तुओं को समझ सकते है और न ही किसी वस्तु के सभी गुणों को समझ सकते है।
- जैन धर्म के स्यादवाद के अनुसार हमारा ज्ञान सदैव देश, काल और परिस्थिति के सापेक्ष होता है। अतः यह ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत है।
- जैन धर्म में स्यादवाद को 7 जन्मांध के उदाहरण के द्वारा समझाया गया है।
अनिश्वरवादी धर्म-
- जैन धर्म अनिश्वरवादी धर्म है।
- जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक वस्तु में आत्मा होती है एवं एक वस्तु में एक से अधिक आत्माएं भी होती है।
- जैन धर्म कर्म सिद्धांत एवं पुनर्जन्म को मानता है।
जैन संगीतियां (बैठक)-
- जैन धर्म में दो संगीतियां हुई है। जैसे-
- (I) प्रथम संगीति
- (II) द्वितीय संगीति
(I) प्रथम संगीति-
- जैन धर्म की प्रथम संगीति 298 ई.पू. में हुई थी।
- जैन धर्म की प्रथम संगीति पाटलिपुत्र में की गई थी।
- पाटलिपुत्र को वर्तमान में पटना के नाम से जाना जाता है।
- पटना वर्तमान में भारत के बिहार राज्य की राजधानी है।
- प्रथम जैन संगीति के समय पाटलिपुत्र का शासक चन्द्रगुप्त मौर्य था।
- प्रथम जैन संगीति का अध्यक्ष स्थूलभद्र था।
- प्रथम जैन संगीति का उपाध्यक्ष भद्रबाहु था।
- प्रथम जैन संगीति के समय जैन धर्म दो शाखाओं में विभाजित हो गया था जैसे-
- (अ) दिगम्बर
- (ब) श्वेतांबर
(अ) दिगम्बर-
- जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के लोग भद्रबाहु के अनुयायी थे।
- जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के लोग रूढ़िवादी थे।
- जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के लोग मोक्ष प्राप्ती हेतु वस्त्र त्यागना आवश्यक मानते थे।
- जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के लोगों के अनुसार महिलाओं को इस जीवन में मोक्ष प्राप्त करना सम्भव नहीं है।
- जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के लोग जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ जी को पुरुष मानते है।
- जैन धर्म की दिगम्बर शाखा के लोग भगवान महावीर स्वामी को अविवाहित मानते है।
- जैन धर्म की दिगम्बर शाखा ती शाखाओं में विभाजीत हो गयी थी जैसे-
- (A) बीसपंथी
- (B) तारनपंथी
- (C) तेरापंथी या थेरापंथी
(ब) श्वेतांबर-
- जैन धर्म की श्वेतांबर शाखा के लोग स्थूलभद्र के अनुयायी थे।
- जैन धर्म की श्वेतांबर शाखा के लोग सुधारवादी थे।
- जैन धर्म की श्वेतांबर शाखा के लोग मोक्ष प्राप्ती हेतु वस्त्र त्यागना आवश्यक नहीं मानते थे।
- जैन धर्म की श्वेतांबर शाखा के लोगों के अनुसार महिलाओं को इस जीवन में मोक्ष प्राप्त होना सम्भव है।
- जैन धर्म की श्वेताबंर शाखा के लोग जैन धर्म के 19वें तीर्थंकर मल्लिनाथ जी को महिला मानते है।
- जैन धर्म की श्वेतांबर शाखा के लोग भगवान महावीर स्वामी को विवाहित मानते है।
- जैन धर्म की श्वेतांबर शाखा तीन शाखाओं में विभाजित हो गयी थी। जैसे-
- (A) मंदिरमार्गी या पूजेरा
- (B) ढंढिया या स्थानकवासी
- (C) तेरापंथी या थेरापंथी
(II) द्वितीय जैन संगीति-
- जैन धर्म की द्वितीय संगीति 512 ई. में हुई थी।
- द्वितीय जैन संगीति गुजरात के वल्लभी में हुई थी।
- द्वितीय जैन संगीति का अध्यक्ष देवर्धि क्षमा श्रमण था।
- जैन धर्म की द्वितीय संगीति के समय जैन साहित्य लिखा गया था।
- जैन साहित्य को आगम भी कहा जाता है।
- जैन साहित्य प्राकृत भाषा में लिखा गया था। अर्थात् जैन साहित्य स्थानीय भाषा में लिखा गया था।
जैन धर्म का योगदान-
- जैनों ने एक सरल एवं आडम्बर विहीन धर्म दिया है।
- जैनों ने धार्मिक आडम्बरों, कर्मकांड, अंधविश्वासों, वर्ण व्यवस्था आदि का विरोध किया।
- जैनों ने नैतिक मूल्यों पर अत्यधिक बल दिया जैसे- सत्य, अंहिसा आदि।
- जैनों के नैतिक मूल्यों से समाज का नैतिक उत्थान हुआ।
- जैनों ने स्यादवाद जैसा व्यावहारिक दर्शन दिया था।
- जैनों ने शिक्षा के केन्द्र विकसित किये थे।
- जैनों के शिक्षा केन्द्रों को उपासना या उपासरा कहा जाता है।
जैन धर्म का मूर्तिकला में योगदान-
- मथुरा एवं अमरावती शैलियों में जैन धर्म से संबंधित मूर्तियों का निर्माण हुआ है।
- गंग शासक के मंत्री चामुण्डराय ने श्रवणबेलागोला में भगवान बाहुबली की मूर्ति का निर्माण करवाया था।
- भगवान बाहुबली भगवान आदिनाथ (ऋषभदेव जी) के पुत्र थे।
- भगवान बाहुबली को गोमतेश्वर कहा जाता है।
- जैनों ने रणकपुर जैन मंदिर, दिलवाड़ा जैन मंदिर, ओसियां के जैन मंदिर, 72 जिनालय भीनमाल आदि जैसे सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया है।
- रणकपुर जैन मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के पाली जिले के रणकपुर नामक स्थान पर स्थित है।
- दिलवाड़ा जैन मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के सिरोही जिले के माउंट आबू नगर में स्थित है।
- ओसियां के जैन मंदिर भारत के राजस्थान राज्य के जोधपुर जिले के ओसियां नगर में स्थित है।
- 72 जिनालय भीनमाल भारत के राजस्थान राज्य के जालौर जिले के भिनमाल नगर में स्थित है।
जैन धर्म चित्रकला में योगदान-
- बाघ एवं एलोरा की गुफाओं से जैन धर्म से संबंधित चित्र मिलते है।
आर्थिक सुधार-
- जैनों ने आर्थिक सुधार किये जिसके कारण भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास हुआ।
श्रमण परम्परा-
- नास्तिक दर्शनों या नास्तिक धर्मों को श्रमण परम्परा भी कहा जाता है।