वैदिक साहित्य (Vedic Literature) या वैदिक काल (Vedic Period)-
- वैदिक साहित्यों को श्रुति साहित्य भी कहा जाता है।
- श्रुति का अर्थ है आपने क्या सुना
निम्नलिखित वैदिक साहित्य है।-
- 1. वेद साहित्य
- 2. ब्राह्मण साहित्य
- 3. आरण्यक साहित्य
- 4. उपनिषद साहित्य
- उपर्युक्त सभी वैदिक साहित्य है।
निम्नलिखित वैदिक साहित्य नहीं है।-
- 1. वेदांग
- 2. स्मृति
- 3. पुराण
- 4. रामायण
- 5. महाभारत
- उपर्युक्त सभी वैदिक साहित्य नहीं है।
1. वेद या वेद साहित्य-
- वेद का शाब्दिक अर्थ ज्ञान है।
- वेदों का संकलन महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेदव्यास (महर्षि कृष्ण व्यास द्वैपाजन) ने किया था।
- वेदों की रचना आर्यों के द्वारा की गई थी।
- आर्य का शाब्दिक अर्थ श्रेष्ठ या कुलीन है।
- वेदों को नित्य, प्रामाणिक, अपौरुषेय भी कहा जाता है।
- वैदिक मंत्रों की रचना करने वाले ब्राह्मणों को दृष्टा कहा जाता है।
- वैदिक मंत्रों की रचना करने वाली महिलाओं को ऋषि कहा जाता है।
- वेद वैदिक साहित्य है।
- वेद चार प्रकार के होते है। जैसे-
- (I) ऋग्वेद (Rigveda)
- (II) यजुर्वेद (Yajurveda)
- (III) सामवेद (Samved)
- (IV) अथर्ववेद (Atharvaveda)
(I) ऋग्वेद (Rigveda)-
- ऋग्वेद सबसे प्राचीन वेद है।
- ऋग्वेद में 10 मंडल, 1028 सूक्त तथा 10552 (10600) मंत्र है।
- ऋग्वेद में पहला एवं 10वां मंडल बाद में जोड़े गये थे।
- ऋग्वेद में दूसरे से लेकर सातवें मंडल को वंश मंडल या परिवार मंडल कहा जाता है।
- ऋग्वेद से तीसरे मंडल में गायत्री मंत्र का उल्लेख मिलता है।
- गायत्री मंत्र की रचना विश्वामित्र ने की थी।
- गायत्री मंत्र सवितृ देव या सूर्य देव को समर्पित है।
- ऋग्वेद के 7वें मंडल में महामृत्युंजय मंत्र का उल्लेख किया गया है।
- ऋग्वेद के सातवें मंडल में दशराजन युद्ध या दशराज्ञ युद्ध की जानकारी मिलती है।
- दशराज्ञ युद्ध भरत कबीले तथा 10 कबीलों के मध्य लड़ा गया था।
- दशराज्ञ युद्ध में भरत कबीले की तरफ से राजा सुदास ने यह युद्ध लड़ा था।
- दशराज्ञ युद्ध में भरत कबीले की जीत हुई थी।
- दशराज्ञ युद्ध पुरोहित पद के लिए लड़ा गया था।
- दशराज्ञ युद्ध रावी नदी के तट पर लड़ा गया था।
- ऋग्वेद के 8वें मंडल में विदुषी महिलाओं के नामों का उल्लेख किया गया है। जैसे- घोषा, सिकता, अपाला, लोपामुद्रा, काक्षाव्रती, विश्वरा आदि।
- ऋग्वेद का 9वां मंडल सोम को समर्पित है।
- सोमरस का निवास स्थान मुजवंत पर्वत है।
- ऋग्वेद के 10वें मंडल के पुरुषसूक्त में चारों वर्णों का उल्लेख किया गया है।
- चार वर्ण- ब्राह्मण, क्षरिय, वैश्य और शूद्र
- शूद्र शब्द का प्रयोग पहली बार ऋग्वेद के 10वें मंडल में हुआ है।
- ऋग्वेद के 10वें मंडल के नासदीय सूक्त में निर्गुण भक्ति का उल्लेख मिलता है।
- ऋग्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति को होतृ कहते है।
- प्रत्येक वेद का एक उपवेद होता है।
- ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है।
(II) यजुर्वेद (Yajurveda)-
- यजुर्वेद में यज्ञ करने की विधियां एवं कर्मकांड का उल्लेख मिलता है।
- यजुर्वेद के दो भाग है। जैसे-
- (अ) कृष्ण यजुर्वेद- कृष्ण यजुर्वेद गद्य एवं पद्य दोनों में है।
- (ब) शुक्ल यजुर्वेद- शुक्ल यजुर्वेद को वाजसनेयी संहिता भी कहा जाता है।
- यजुर्वेद में शून्य का उल्लेख भी किया गया है।
- यजुर्वेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति को अध्वर्यु कहा जाता है।
- यजुर्वेद का उपवेद धनुर्वेद है।
(III) सामवेद (Samved)-
- सामवेद संगीत का सबसे प्राचीन स्त्रोत माना जाता है।
- साम का शाब्दिक अर्थ गायन है।
- सामवेद भगवान श्री कृष्ण का पसंदीदा वेद है।
- सामवेद के मंत्रों का उच्चारण करने वाले व्यक्ति को उद्गाता कहा जाता है।
- सामवेद का उपवेद गन्धर्ववेद है।
(IV) अथर्ववेद (Atharvaveda)-
- निम्नलिखित अथर्ववेद के अन्य नाम-
- 1. भैषज्य वेद (चिकित्सा)
- 2. अथर्वांगिरस वेद
- 3. मही वेद (पृथ्वी)
- 4. ब्रह्मवेद
- अथर्ववेद भौतिकवादी वेद है।
- अथर्ववेद में काला जादू या टोना (तंत्र और मंत्र) का उल्लेख मिलता है।
- अथर्ववेद में चिकत्सा पद्धतियों तथा औषधियों के बारे में उल्लेख मिलता है।
- अथर्ववेद में मंत्रों के उच्चारण करने वाले व्यक्ति को ब्रह्म कहा जाता है।
- अथर्ववेद का उपवेद शिल्पवेद है।
- अथर्ववेद सबसे अंत में लिखा गया वेद है। अर्थात् अथर्ववेद सबसे बाद में लिखा गया वेद है।
वेदत्रयी-
- ऋग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद को संयुक्त रूप से वेदत्रयी कहा जाता है।
- वेदत्रयी में अथर्ववेद शामिल नहीं है।
2. ब्राह्मण साहित्य-
- ब्राह्मण साहित्य वैदिक साहित्य है।
- वैदिक साहित्य को सरल भाषा समझने के लिए ब्राह्मण साहित्य की रचना की गई थी। जैसे-
- (I) ऋग्वेद
- (II) यजुर्वेद
- (III) सामवेद
- (IV) अथर्ववेद
(I) ऋग्वेद-
- ऋग्वेद को सरल बनाने के लिए दो ब्राह्मण साहित्यों की रचना की गई थी। जैसे-
- (अ) ऐतरेय ब्राह्मण
- (ब) कौषीतकि ब्राह्मण
(II) यजुर्वेद-
- यजुर्वेद को सरल बनाने के लिए दो ब्राह्मण साहित्यों की रचना की गई थी। जैसे-
- (अ) शतपथ ब्राह्मण
- (ब) तैत्तिरीय ब्राह्मण या तैत्तरेय ब्राह्मण
(III) सामवेद-
- सामवेद को सरल बनाने के लिए तीन ब्राह्मण साहित्यों की रचना की गई थी। जैसे-
- (अ) पंचविश ब्राह्मण
- (ब) षडविंश ब्राह्मण
- (स) जैमिनीय ब्राह्मण
(IV) अथर्ववेद-
- अथर्ववेद को सरल बनाने के लिए एक ब्राह्मण साहिय की रचना की गई थी। जैसे-
- (अ) गोपथ ब्राह्मण
3. आरण्यक साहित्य-
- आरण्यक साहित्य वैदिक साहित्य है।
- आरण्यक साहित्य की रचना आरण्य (वन) या जंगल में की गई थी।
- आरण्यक साहित्य की विषय वस्तु दार्शनिक तत्व या रहस्यात्मक ज्ञान है। अर्थात् आरण्यक साहित्य में दार्शनिक तत्व या रहस्यात्मक ज्ञान की जानकारी मिलती है।
- निम्नलिखित वेदों पर आरण्यक साहित्य लिखे गये है। जैसे-
- (I) ऋग्वेद
- (II) यजुर्वेद
- (III) सामवेद
- (III) अथर्ववेद
(I) ऋग्वेद-
- ऋग्वेद के दो आरण्यक साहित्य है। जैसे-
- (अ) ऐतरेय आरण्यक
- (ब) कोषितकी आरण्यक
(II) यजुर्वेद-
- यजुर्वेद के तीन आरण्यक साहित्व है। जैसे-
- (अ) मैत्रायणी आरण्यक
- (ब) तैत्तिरीय आरण्यक या तेतरेय आरण्यक
- (स) वृहदाराण्य
(III) सामवेद-
- सामवेद का एक आरण्यक साहित्य है। जैसे-
- (अ) तलवकार आरण्यक
(III) अथर्ववेद-
- अथर्ववेद का कोई आरण्यक साहित्य नहीं है।
4. उपनिषद साहित्य-
- उपनिषद साहित्य वैदिक साहित्य है।
- उपनिषद का शाब्दिक अर्थ है गुरु के पास निष्ठापूर्वक बैठना।
- उपनिषद साहित्य वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है। इसीलिए उपनिषद साहित्य को वेदांत (वेद + अंत) साहित्य भी कहा जाता है।
- उपनिषद साहित्य की विषय वस्तु दार्शनिक तत्व या रहस्यात्मक ज्ञान है। अर्थात् उपनिषद साहित्य में दार्शनिक तत्व या रहस्यात्मक ज्ञान की जानकारी मिलती है।
- उपनिषद साहित्य गद्य तथा पद्य दोनों में लिखे गये है।
- उपनिषद साहित्यों की संख्या 108 है। जिसमें से कुछ महत्वपूर्ण उपनिषद साहित्य निम्नलिखित है।-
- (I) कठ उपनिषद या कठोपनिषद
- (II) जाबाल उपनिषद
- (III) छान्दोग्य उपनिषद
- (IV) बृहदारण्यक उपनिषद
- (V) मुंडक उपनिषद या मुण्डकोपनिषद
- (VI) तैतरीय उपनिषद
(I) कठ उपनिषद या कठोपनिषद-
- कठ उपनिषद में यम और नचिकेता संवाद का उल्लेख मिलता है।
- कठ उपनिषद में अनुष्ठानों की आलोचना की गई है।
(II) जाबाल उपनिषद-
- जाबाल उपनिषद में चार आश्रमों का उल्लेख किया गया है।
(III) छान्दोग्य उपनिषद-
- भगवान श्री कृष्ण का पहली बार उल्लेख छान्दोग्य उपनिषद में मिलता है।
- छान्दोग्य उपनिषद में भगवान श्री कृष्ण को देवकी का पुत्र तथा गुरु अंगिरस का शिष्य बताया गया है।
- छान्दोग्य उपनिषद में भगवान श्री कृष्ण को वृष्णि वंश का बताया गया है।
- छान्दोग्य उपनिषद में सत्यकाम जाबाल की कहानी का उल्लेख किया गया है।
- छान्दोग्य उपनिषद में बौद्ध धर्म के पंचशील सिद्धांत का उल्लेख किया गया है।
(IV) बृहदारण्यक उपनिषद-
- बृहदारण्यक उपनिषद सबसे बड़ा उपनिषद है।
- बृहदारण्यक उपनिषद में गार्गी और याज्ञवल्क्य संवाद का उल्लेख किया गया है।
- गार्गी तथा याज्ञवल्क्य दोनों के द्वारा संवाद राजा जनक के दरबार में किया गया था।
- गार्गी तथा याज्ञवल्क्य के बीच आत्मा के प्रश्न पर संवाद किया गया था।
- बृहदारण्यक उपनिषद में पवमान मंत्र (असतो मा सद्गमय) का उल्लेख किया गया है।
(V) मुंडक उपनिषद या मुण्डकोपनिषद-
- सत्यमेव जयते शब्द मुंडक उपनिषद या मुण्डकोपनिषद से लिया गया है।
- सत्यमेव जयते का अर्थ है सत्य की ही जीत होती है।
(VI) तैतरीय उपनिषद या तैत्तिरीयोपनिषद-
- बौद्ध धर्म का अष्टांगिक मार्ग का उल्लेख तैतरीय उपनिषद में किया गया है।
- "अतिथि देवो भव" शब्द तैत्तरीय उपनिषद से लिया गया है।
प्रस्थानत्रयी-
- भगवत गीता (श्रीमद्भगवद्गीता), ब्रह्मसूत्र तथा उपनिषदों को संयुक्त रूप से प्रस्थानत्रयी कहा जाता है।
ब्रह्मसूत्र-
- ब्रह्मसूत्र नामक पुस्तक की रचना महर्षी बादरायण ने की है।
- ब्रह्मसूत्र पुस्तक में उपनिषदों का सार मिलता है।
- ब्रह्मसूत्र की व्याख्या सर्वप्रथम महर्षी बादरायण ने की थी।
- ब्रह्मसूत्र में चार अध्याय है।
निम्नलिखित वैदिक साहित्य नहीं है।-
- 1. वेदांग साहित्य
- 2. स्मृति साहित्य
- 3. पुराण साहित्य
- 4. रामायण साहित्य
- 5. महाभारत साहित्य
- उपर्युक्त सभी वैदिक साहित्य नहीं है।
1. वेदांग साहित्य-
- वेदांग साहित्य वैदिक साहित्य नहीं है।
- वैदिक साहित्य को समझने के लिए वेदांग साहित्य की रचना की गई थी।
- वेदांग साहित्यों की संख्या 6 है। जैसे-
- (I) शिक्षा वेदांग
- (II) व्याकरण वेदांग
- (III) ज्योतिष वेदांग
- (IV) छंद वेदांग
- (V) कल्प वेदांग
- (VI) निरुक्त वेदांग
(I) शिक्षा वेदांग-
- शिक्षा वेदांग में वैदिक साहित्य के शब्दों के उच्चारण की जानकारी मिलती है।
- प्रातिशाख्य शिक्षा वेदांग की प्रथम पुस्तक है।
(II) व्याकरण वेदांग-
- पाणिनि की अष्टाध्यायी व्याकरण वेदांग की प्रथम पुस्तक है।
(III) ज्योतिष वेदांग-
- लगध ऋषि या लगध मुनि ने वेदांग ज्योतिष नामक पुस्तक की रचना की थी।
- वेदांग ज्योतिष पुस्तक में वैदिक ज्योतिषशास्त्र की जानकारी मिलती है।
- वेदांग ज्योतिष ज्योतिषशास्त्र की प्रथम पुस्तक है।
- वेदांग ज्योतिष सबसे प्राचीन ज्योतिष ग्रंथ है।
(IV) छंद वेदांग-
- छंद वेदांग की रचना पिन्गल मुनि के द्वारा की गई थी।
(V) कल्प वेदांग-
- कल्प वेदांग में कर्मकांड की जानकारी मिलती है। अर्थात् कर्मकांड के उपदेशों का उल्लेख किया गया है।
(VI) निरुक्त वेदांग-
- निरुक्त वेदांग में निघण्टू शब्दों (मुश्किल शब्द) की जानकारी मिलती है।
2. स्मृति साहित्य-
- स्मृति साहित्य वैदिक साहित्य नहीं है।
- निम्नलिखित स्मृति साहित्य है।-
- (I) मनुस्मृति
- (II) याज्ञवल्क्य स्मृति
- (III) नारद स्मृति
- (IV) कात्यायन स्मृति
(I) मनुस्मृति-
- मनुस्मृति सबसे प्राचीन स्मृति साहित्य है।
- मनुस्मृति में सामाजिक नियमों का उल्लेख किया गया है।
- जर्मन दार्शनिक फ्रेडरिक नीत्शे कहता है की "बाइबल को जला दो, मनुस्मृति को अपनाओं"
- मनुस्मृति में शुंग वंश तथा सातवाहन वंश की जानकारी मिलती है।
- निम्नलिखित व्यक्तियों ने मनुस्मृति पर टीकाएं लिखी है। अर्थात् निम्नलिखित मनुस्मृति के टीकाकार है।-
- (I) भारुचि या भागुरि
- (II) मेधातिथि (मेघातिथि)
- (III) गोविंदराज
- (IV) कुल्लूक भट्ट (कुल्लक भट्ट)
(II) याज्ञवल्क्य स्मृति-
- याज्ञवल्क्य स्मृति दुसरी सबसे प्राचीन स्मृति साहित्य है।
- निम्नलिखित याज्ञवल्क्य स्मृति के टीकाकार है।-
- (I) अपरार्क
- (II) विश्वरूप
- (III) विज्ञानेश्वर
(III) नारद स्मृति-
- नारद स्मृति में दासों की मुक्ति का उल्लेख किया गया है।
(IV) कात्यायन स्मृति-
- कात्यायन स्मृति में आर्थिक गतिविधियों का उल्लेख किया गया है।
3. पुराण साहित्य-
- पुराण वैदिक साहित्य नहीं है।
- पुराण का शाब्दिक अर्थ है 'प्राचीन आख्यान' (प्राचीन घटना)
- पुराणों की रचना लोमहर्ष एवं उग्रश्रवा ने की थी।
- उग्रश्रवा लोमहर्ष का बेटा था।
- पुराणों का ऐतिहासिक महत्व है।
- सर्वप्रथम पार्जिटर ने पुराणों के ऐतिहासिक महत्व को बताया था।
- पुराणों की संख्या 18 है। जिसमें से कुछ महत्वपूर्ण पुराण निम्नलिखित है।-
- (I) मत्स्य पुराण
- (II) विष्णु पुराण
- (III) वायु पुराण
- (IV) मार्कण्डेय पुराण
- (V) स्कंद पुराण
- (VI) अग्नि पुराण
(I) मत्स्य पुराण-
- मत्स्य पुराण सबसे प्राचीन पुराण है।
- मत्स्य पुराण में शुंग वंश तथा सातवाहन वंश की जानकारी मिलती है।
(II) विष्णु पुराण-
- विष्णु पुराण में मौर्य वंश की जानकारी मिलती है।
(III) वायु पुराण-
- वायु पुराण में गुप्त वंश की जानकारी मिलती है।
(IV) मार्कण्डेय पुराण-
- मार्कण्डेय पुराण में दुर्गा सप्तशती पुस्तक का उल्लेख मिलती है।
- सप्तशती पुस्तक दुर्गा माता पर लिखी गई पुस्तक है।
- सप्तशती पुस्तक में 700 पाठ या श्लोक लिखे हुए है।
(V) स्कंद पुराण-
- स्कंद पुराण सबसे बड़ा पुराण है।
(VI) अग्नि पुराण-
- अग्नि पुराण में पूजा की जानकारी मिलती है।