मौलिक अधिकार या मूल अधिकार
(Fundamental Rights)
मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)-
- भारतीय संविधान के भाग- 3 में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है।
- मौलिक अधिकार या मूल अधिकारों का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से लेकर अनुच्छेद 35 तक किया गया है।
- मूल अधिकार व मौलिक अधिकार एक ही है। मूल अधिकारों की ही मौलिक अधिकार कहा गया है।
- भारत के मूल संविधान में मौलिक अधिकारों की संख्या 7 थी।
- वर्तमान में भारतीय संविधान में कुल 6 मौलिक अधिकार दिये गये है। जैसे-
- (1) समता का अधिकार (Right to Equality)
- (2) स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
- (3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)
- (4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)
- (5) सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार (Culture and education Right)
- (6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)
(1) समता का अधिकार (Right to Equality)-
- समता का अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में समता के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)-
- स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से 22 में स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)-
- शोषण के विरुद्ध अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 तथा अनुच्छेद 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार का उल्लेख किया गया है।
(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)-
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
(5) सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार (Culture and education Right)-
- सांस्कतिक एवं शैक्षणिक अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 तथा अनुच्छेद 30 में सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार का उल्लेख किया गया है।
(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)-
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 12 (Article 12)-
- अनुच्छेद 12 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में उल्लेख किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 में राज्य की परिभाषा का उल्लेख किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 12 के अनुसार राज्य में निम्नलिखित शामिल है।-
- (1) संघ की विधायिका एवं संघ की कार्यपालिका
- (2) राज्यों की विधायिका एवं राज्यों की कार्यपालिका
- (3) अन्य प्राधिकारी जैसे-
- (I) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (Public Sector Undertaking- PSU)
- (II) राज्य निधि से पोषित संस्थान (Institutes Funded By State Fund)
- (III) स्थानीय निकाय (Local Bodies)
अनुच्छेद 13 (Article 13)-
- अनुच्छेद 13 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 में मूल अधिकारों से असंगत विधियों का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 13 (1) (Article 13-1)-
- अनुच्छेद 13 (1) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- संविधान पूर्व की विधि (कानून) जो मूल अधिकारों से अंसगत है वह असंगति की सीमा तक शून्य होगी इस बात का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (1) में किया गया है।
अनुच्छेद 13 (2) (Article 13-2)-
- अनुच्छेद 13 (2) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- संविधान पश्चात की विधि (कानून) जो मूल अधिकारों से असंगत है तो वह असंगति की सीमा तक शून्य होगी इस बात का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (2) में किया गया है।
अनुच्छेद 13 (3) (Article 13-3)-
- अनुच्छेद 13 (3) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 13 (3) में विधि को परिभाषित किया गया है। जैसे-
- (I) राष्ट्रपति या राज्यपाल के द्वारा जारी अध्यादेश
- (II) आदेश, उपविधि, नियम, विनियम, अधिसूचना
- (III) विधि का बल रखने वाली रूढ़ी या प्रथा
न्यायिक पुनरावलोकन (Judicial Review)-
- यदि विधायिका द्वारा पारित कोई कानून संविधान के उपबंधों या मूल भावना से असंगत है तो न्यायालय ऐसे कानून को असंवैधानिक घोषित करके उसके प्रवर्तन को रोक सकता है।
- संविधान के अनुच्छेद 13, अनुच्छेद 32, अनुच्छेद 226 से न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति प्राप्त होती है।
- संविधान में न्यायिक समीक्षा शब्द का स्पष्ट उल्लेख नहीं किया गया है।
(1) समता का अधिकार (Right to Equality)-
- समता का अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- निम्नलिखित अनुच्छेद धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।-
- अनुच्छेद 14 (Article-14)
- अनुच्छेद 15 (Article 15)
- अनुच्छेद 15 (1) (Article 15-1)
- अनुच्छेद 15 (2) (Article 15-2)
- अनुच्छेद 15 (3) (Article 15-3)
- अनुच्छेद 15 (4) (Article 15-4)
- अनुच्छेद 15 (5) (Article 15-5)
- अनुच्छेद 15 (6) (Article 15-6)
- अनुच्छेद 16 (Article 16)
- अनुच्छेद 16 (1) (Article 16-1)
- अनुच्छेद 16 (2) (Article 16-2)
- अनुच्छेद 16 (3) (Article 16-3)
- अनुच्छेद 16 (4) (Article 16-4)
- अनुच्छेद 16 (4) (A) (Article 16-4-A)
- अनुच्छेद 16 (4) (B) (Article 16-4-B)
- अनुच्छेद 16 (5) (Article 15-5)
- अनुच्छेद 16 (6) (Article 16-6)
- अनुच्छेद 17 (Article 17)
- अनुच्छेद 18/ (Article 18)
- अनुच्छेद 18 (1)/ (Article 18-1)
- अनुच्छेद 18 (2)/ (Article 18-2)
- अनुच्छेद 18 (3)/ (Article 18-3)
- अनुच्छेद 18 (4)/ (Article 18-4)
अनुच्छेद 14 (Article-14)-
- अनुच्छेद 14 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष समता व विधि का समान संरक्षण का उल्लेख किया गया है।
विधि के समक्ष समता-
- यह अवधारणा विधि के शासन की नकारात्मक व्याख्या है।
- कानून के समक्ष सभी समान है विधि किसी के साथ भी भेदभाव नहीं करेगी।
- कोई भी व्यक्ति कानून से बड़ा नहीं है। यहाँ व्यक्ति का अर्थ है विधिक व्यक्ति, कम्पनी, निगम आदि।
- भारतीय संविधान में यह अवधारणा (विधि के समक्ष समता) ब्रिटेन के संविधान से ली गई है।
विधि का समान संरक्षण-
- विधि का समान संरक्षण विधि के शासन की सकारात्मक व्याख्या करता है।
- समान परिस्थितियों में विधि समान व्यवहार करेगी।
- विधि युक्तिसंगत भेदभाव कर सकती है।
- भारतीय संविधान में यह अवधारणा (विधि का समान संरक्षण) अमेरिका के संविधान से ली गई है।
समता के अपवाद (Exceptions To Equality)-
- (1) राष्ट्रपति और राज्यपाल को प्राप्त विमुक्तियाँ जैसे-
- (I) अपने पदीय कार्यों के निर्वहन हेतु राष्ट्रपति और राज्यपाल किसी भी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं है।
- (II) राष्ट्रपति और राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उनके विरुद्ध कोई भी आपराधिक कार्यवाही या गिरफ्तारी की कार्यवाही नहीं की जा सकती है।
- (III) राष्ट्रपति या राज्यपाल के द्वारा व्यक्तिगत क्षमता में किये गए किसी भी कार्य के लिए उनके विरुद्ध सिविल कार्यवाही भी नोटिस देने का 2 महीने बाद ही की जा सकती है।
- (IV) राष्ट्रपति और राज्यपाल को प्राप्त विमुक्तियों का उल्लेख भारतीय संविधान के अनुच्छेद 361 में किया गया है।
- (2) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105 के तहत संसद सदस्यों के विशेषाधिकार का उल्लेख किया गया है।
- (3) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 194 के तहत राज्य विधानमण्डल के सदस्यों के विशेषाधिकार का उल्लेख किया गया है।
- (4) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 (C) के तहत अमीर और गरीब में सकारात्मक भेदभाव किया जा सकता है।
- (5) विदेशी शासकों और राजनयिकों (राजदूत, उच्चायुक्त) को सिविल एवं आपराधिक अधिकारिता से उन्मुक्ति।
- (6) संयुक्त राष्ट्र संघ एवं उसकी एजेंसियों में काम करने वाले लोगों को उन्मुक्ति।
अनुच्छेद 15 (Article 15)-
- अनुच्छेद 15 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 में कुछ आधारों पर विभेद का प्रतिषेध का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 15 (1) (Article 15-1)-
- अनुच्छेद 15 (1) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (1) के अनुसार राज्य धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग एवं जन्मस्थान के आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करेगा।
अनुच्छेद 15 (2) (Article 15-2)-
- अनुच्छेद 15 (2) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (2) के अनुसार निजी संस्थाओं, होटल, भोजनालय, सार्वजनिक कुएँ, बावड़ी, तालाब, मंदिर आदि स्थानों पर धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा।
अनुच्छेद 15 (3) (Article 15-3)-
- अनुच्छेद 15 (3) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (3) के अनुसार महिलाओं एवं बच्चों के कल्याण हेतु विशेष योजनाएँ व कार्यक्रम बनाए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 15 (4) (Article 15-4)-
- अनुच्छेद 15 (4) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (4) के अनुसार सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (SC/ST/OBC) के लिए राज्य विशेष योजनाएँ व कार्यक्रम बना सकता है।
अनुच्छेद 15 (5) (Article 15-5)-
- अनुच्छेद 15 (5) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (5) के अनुसार सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण दिया जा सकता है।
- यह आरक्षण सरकारी व निजी दोनों प्रकार के शिक्षण संस्थाओं में हो सकता है लेकिन अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों में आरक्षण नहीं हो सकता है।
अनुच्छेद 15 (6) (Article 15-6)-
- अनुच्छेद 15 (6) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 (6) के अनुसार आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश हेतु आरक्षण दिया जा सकता है।
- अनुच्छेद 15 (6) के तहत आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश हेतु विशेष योजनाएँ व कार्यक्रम बनाए जा सकते हैं।
- भारतीय संविधान के 103वें संविधान संशोधन के तहत भारतीय संविधान में अनुच्छेद 15 (6) जोड़ा गया था।
अनुच्छेद 16 (Article 16)-
- अनुच्छेद 16 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 में लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 16 (1) (Article 16-1)-
- अनुच्छेद 16 (1) का उल्लेख उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (1) के अनुसार राज्य लोक नियोजन में सभी नागरिकों को समान अवसर उपलब्ध करवायेगा।
अनुच्छेद 16 (2) (Article 16-2)-
- अनुच्छेद 16 (2) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार राज्य लोक नियोजन में किसी भी नागरिक को धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान, उद्भव या वंशानुगतता एवं निवास के आधार पर अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा।
अनुच्छेद 16 (3) (Article 16-3)-
- अनुच्छेद 16 (3) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (3) के अनुसार संसद किसी पिछड़े राज्य या केन्द्रशासित प्रदेश की स्थानीय नौकरियों में वहाँ का निवासी होने की बाध्यता रख सकती है।
अनुच्छेद 16 (4) (Article 16-4)-
- अनुच्छेद 16 (4) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (4) के अनुसार पिछड़े वर्ग जिनका सरकारी नौकरियों में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है उनके लिए स्थान आरक्षित रखे जाते हैं।
अनुच्छेद 16 (4) (A) (Article 16-4-A)-
- अनुच्छेद 16 (4) (A) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (4) (A) में पदोन्नति में आरक्षण का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 16 (4) (A) भारतीय संविधान में 77वें संविधान संशोधन 1995 के माध्यम से जोड़ा गया था।
- भारतीय संविधान में 77वां संविधान संशोधन सन् 1995 में किया गया था।
अनुच्छेद 16 (4) (B) (Article 16-4-B)-
- अनुच्छेद 16 (4) (B) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (4) (B) में बैकलॉग भरने में 50% से अधिक आरक्षण का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 16 (4) (B) भारतीय संविधान में 81वें संविधान संशोधन 2000 के माध्यम से जोड़ा गया था।
- भारतीय संविधान में 81वां संविधान संशोधन सन् 2000 में किया गया था।
अनुच्छेद 16 (5) (Article 15-5)-
- अनुच्छेद 16 (5) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (5) के अनुसार धार्मिक संस्थाओं में उसी धर्म के लिए स्थान आरक्षित किए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 16 (6) (Article 16-6)-
- अनुच्छेद 16 (6) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (6) में आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 16 (6) भारतीय संविधान में 103वें संविधान संशोधन 2019 के माध्यम से जोड़ा गया है।
- भारतीय संविधान में 103वां संविधान संशोधन वर्ष 2019 में किया गया है।
टिप्पणी- इंदिरा साहनी केस- 1992
- इंदिरा साहनी केस 1992 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया की आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती है।
- इंदिरा साहनी केश 1992 में उच्चतम न्यायालय ने O.B.C. में क्रीमिलेयर की अवधारणा दी अर्थात् क्रीमिलेयर वालों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता है।
- इंदिरा साहनी केस 1992 में उच्चतम न्यायालय ने पदोन्नति में आरक्षण लागू नहीं होने का निर्णय दिया था।
अनुच्छेद 17 (Article 17)-
- अनुच्छेद 17 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता के अन्त का उल्लेख किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसार राज्य सभी प्रकार की अस्पृश्यता को समाप्त करेगा।
अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955-
- सन् 1976 में भारतीय संविधान में संशोधन कर अस्पृश्यता अपराध अधिनियम का नाम बदलकर नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 कर दिया गया था।
अनुच्छेद 18/ (Article 18)-
- अनुच्छेद 18 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 में उपाधियों के अंत का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 18 (1)/ (Article 18-1)-
- अनुच्छेद 18 (1) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 (1) के अनुसार राज्य शिक्षा व सेना संबंधी सम्मान के अतिरिक्त कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा।
अनुच्छेद 18 (2)/ (Article 18-2)-
- अनुच्छेद 18 (2) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 (2) के अनुसार भारतीय नागरिक किसी अन्य देश से उपाधि प्राप्त नहीं कर सकता है।
अनुच्छेद 18 (3)/ (Article 18-3)-
- अनुच्छेद 18 (3) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 (3) के अनुसार विदेशी नागरिक जो भारत सरकार की सेवा में है वह राष्ट्रपति की अनुमति के बिना किसी अन्य देश में उपाधि नहीं ले सकता है।
अनुच्छेद 18 (4)/ (Article 18-4)-
- अनुच्छेद 18 (4) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 (4) के अनुसार सरकारी सेवा में नियुक्त भारतीय नागरिक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना किसी अन्य देश से सम्मान प्राप्त नहीं कर सकता है।
बालाजी राघवन बनाम भारत संघ 1995 (Balaji Raghavan Vs Union of India 1995)-
- सर्वोच्च न्यायालय ने बालाजी राघवन बनाम भारत संघ मामले में निर्णय सन् 1995 में दिया था।
- बालाजी राघवन बनाम भारत संघ केस में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया की भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण आदि उपाधियां नहीं है बल्कि सम्मान है। अतः ये समानता के सिद्धांत के प्रतिकूल नहीं है।
- हालांकि सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी व्यवस्था दी की पुरस्कार प्राप्तकर्ता इन सम्मानों का प्रयोग अपने नाम से पहले या नाम के बाद में ना करे अन्यथा उन्हें पुरस्कारों को त्यागना पड़ेगा।
नागरिक पुरस्कार-
- नागरिक पुरस्कार जैसे- भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्म श्री।
- भारत में नागरिक पुरस्कारों की शुरुआत सन् 1954 में की गई थी।
- भारत में नागरिक पुरस्कारों पर सन् 1977 में जनता पार्टी सरकार ने रोक लगा दी थी।
- भारत में नागरिक पुरस्कारों पर सन् 1980 में रोक हटाकर पुनः शुरुआत की गई थी।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)-
- स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक में स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- निम्नलिखित अनुच्छेद स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।-
- अनुच्छेद 19 (1) (a)/ (Article 19-1-a)
- अनुच्छेद 19 (1) (b)/ (Article 19-1-b)
- अनुच्छेद 19 (1) (c)/ (Article 19-1-c)
- अनुच्छेद 19 (1) (d)/ (Article 19-1-d)
- अनुच्छेद 19 (1) (e)/ (Article 19-1-e)
- अनुच्छेद 19 (1) (f)/ (Article 19-1-f)
- अनुच्छेद 19 (1) (g)/ (Article 19-1-g)
- अनुच्छेद 19 (2)/ (Article 19-2)
- अनुच्छेद 19 (3)/ (Article 19-3)
- अनुच्छेद 19 (4)/ (Article 19-4)
- अनुच्छेद 19 (5)/ (Article 19-5)
- अनुच्छेद 19 (6)/ (Article 19-6)
- अनुच्छेद 20/ (Article 20)
- अनुच्छेद 20 (1)/ (Article 20-1)
- अनुच्छेद 20 (2)/ (Article 20-2)
- अनुच्छेद 20 (3)/ (Article 20-3)
- अनुच्छेद 21/ (Article 21)
- अनुच्छेद 21 (A)/ (Article 21-A)
- अनुच्छेद 22/ (Article 22)
अनुच्छेद 19 (1) (a)/ (Article (1) 19-a)-
- अनुच्छेद 19 (1) (a) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (a) में विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 19 (1) (a) की व्याख्या में सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य कई अधिकारों को शामिल किया है। जैसे-
- चुप रहने का अधिकार
- फोन टैपिंग के विरुद्ध अधिकार
- सुचना का अधिकार (सुचना का अधिकार एक कानूनी अधिकार है जो 2005 में कानून बनाकर प्रदान किया गया था।)
- प्रेस की स्वतंत्रता
- विज्ञापन का अधिकार
- धरना प्रदर्शन का अधिकार (लेकिन हड़ताल का अधिकार नहीं)
- विचारों के प्रचार-प्रसार का अधिकार
अनुच्छेद 19 (1) (b)/ (Article 19-1-b)-
- अनुच्छेद 19 (1) (b) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (b) में शांतिपूर्ण सम्मेलन करने का अधिकार (बिना शस्त्र के) दिया गया है।
अनुच्छेद 19 (1) (c)/ (Article 19-1-c)-
- अनुच्छेद 19 (1) (c) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (c) में संघ (सभा, संघ, सहकारी समितियाँ) बनाने का अधिकार और उसे नियमित रूप से संचालित करने का अधिकार दिया गया है।
- संघ बनाने के अधिकार में निम्नलिखित शामिल है।-
- कम्पनी, ए.जी.ओ (NGO), राजनीतिक दल, समितियाँ, क्लब आदि।
अनुच्छेद 19 (1) (d)/ (Article 19-1-d)-
- अनुच्छेद 19 (1) (d) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (d) में अबाध विचरण करने के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 19 (1) (e)/ (Article 19-1-e)-
- अनुच्छेद 19 (1) (e) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (e) में आवास के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 19 (1) (f)/ (Article 19-1-f)-
- अनुच्छेद 19 (1) (f) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (f) में सम्पत्ति के अधिकार का उल्लेख किया गया था।
- वर्तमान में 44वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार के अधिकार को हटा दिया गया है।
अनुच्छेद 19 (1) (g)/ (Article 19-1-g)-
- अनुच्छेद 19 (1) (g) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) में आजीविका के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 19 (2)/ (Article 19-2)-
- अनुच्छेद 19 (2) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (2) में वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लेख किया गया है।
- वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाएं जैसे-
- 1. भारत की सम्प्रभुता एवं अखण्डता।
- 2. राज्य की सुरक्षा।
- 3. विदेशी राज्यों के साथ मित्रवत् संबंध।
- 4. न्यायलय की अमानना।
- 5. मानहानि।
- 6. नैतिकता।
- 7. लोक व्यवस्था।
- 8. अपराध उद्दीपन।
अनुच्छेद 19 (3)/ (Article 19-3)-
- अनुच्छेद 19 (3) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (3) में सम्मेलन की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लेख किया गया है।
- सम्मेलन की स्वतंत्रता की सीमाएँ जैसे-
- 1. भारत की सम्प्रभुता एवं अखण्डता।
- 2. लोक व्यवस्था (धारा 144/ CrPC Section 144, धारा 141/IPC Section 141)
- IPC- Indian Penal Code (भारतीय दंड संहिता)
- CrPC- Code of Criminal Procedure (दंड प्रक्रिया संहिता)
अनुच्छेद 19 (4)/ (Article 19-4)-
- अनुच्छेद 19 (4) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (4) में संघ बनाने की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लेख किया गया है।
- संघ बनाने की स्वतंत्रता की सीमाएँ जैसे-
- 1. भारती की सम्प्रभुता एवं अखण्डता।
- 2. लोक व्यवस्था।
- 3. नैतिकता।
अनुच्छेद 19 (5)/ (Article 19-5)-
- अनुच्छेद 19 (5) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (5) में अबाध संचरण व निवास की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लेख किया गया है।
- अबाध संचरण व निवास की स्वतंत्रता की सीमाएँ जैसे-
- 1. जन साधारण के हित में।
- 2. जनजातीय लोगों के हित में।
अनुच्छेद 19 (6)/ (Article 19-6)-
- अनुच्छेद 19 (6) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (6) में आजीविका की स्वतंत्रता की सीमाओं का उल्लेख किया गया है।
- आजीविका की स्वतंत्रता की सीमाएँ जैसे-
- 1. जनसाधारण के हित में (वेश्यावृत्ति, नशीले पदार्थ पर प्रतिबंध) लाइसेंस की अनिवार्यता।
अनुच्छेद 20/ (Article 20)-
- अनुच्छेद 20 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 में अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण का उल्लेख किया गया है।
अनुच्छेद 20 (1)/ (Article 20-1)-
- अनुच्छेद 20 (1) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (1) के अनुसार किसी भी व्यक्ति को उसी कानून के तहत दण्डित किया जा सकता है जो अपराध के समय लागू था। अर्थात् आपराधिक कानून का भूतलक्षी क्रियान्वयन नहीं किया जा सकता है।
- नागरिक कानून का भूतलक्षी क्रियान्वयन किया जा सकता है।
अनुच्छेद 20 (2)/ (Article 20-2)-
- अनुच्छेद 20 (2) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
अनुच्छेद 20 (3)/ (Article 20-3)-
- अनुच्छेद 20 (3) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के अनुसार किसी भी आरोपी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
- आरोपी व्यक्ति को स्वयं के विरुद्ध गवाही देने का अधिकार सशरीर उपस्थिति, अंगूठे का निशान, खून का नमूना, हस्ताक्षर आदि देने से संरक्षण नहीं देता है।
- सिविल मामलों में आरोपी व्यक्ति का स्वयं के विरुद्ध गवाही देने का अधिकार मान्य नहीं होता है।
अनुच्छेद 21/ (Article 21)-
- अनुच्छेद 21 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में प्राण व दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 21 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना प्राण व दैहिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है।
ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य 1950 (A.K. Gopalan Vs State of Madras 1950)-
- सर्वोच्च न्यायालय ने ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य केस का निर्णय सन् 1950 में दिया था।
- ए.के. गोपालन बनाम मद्रास राज्य केस में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 की संकीर्ण व्याख्या की थी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 की व्याख्या करते हुए बताया की विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया से तात्पर्य है कि न्यायपालिका केवल कार्यपालिका के स्वेच्छाचारी कार्यों की समीक्षा कर सकती है। लेकिन न्यायपालिका विधायिका के स्वेच्छाचारी कार्यों की समीक्षा नहीं कर सकती है।
- न्यायपालिका को कानून का अक्षरशः पालन करना होता है यदि कोई कानून अतार्किक, अन्यायपूर्ण, अनुचित और नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध भी है तब भी न्यायपालिका उनकी समीक्षा नहीं कर सकती है।
- इसी प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने प्राण व दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार की भी संकीर्ण व्याख्या की तथा माना की जीवन के अधिकार से तात्पर्य है की जीवित रहना तथा बंधक नहीं बनाया जाना अर्थात् किसी को भी जीवन से वंचित नहीं किया जा सकता है।
मेनका गांधी बनाम भारत संघ 1978 (Maneka Gandhi Vs Union of India 1978)-
- सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा मेनका गांधी बनाम भारत संघ मामले का निर्णन सन् 1978 में दिया गया था।
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ केस में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पूर्ववर्ती निर्णय को उलट दिया तथा अनुच्छेद 21 को व्यापक अर्थ में लिया।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया को विधि की सम्यक प्रक्रिया के अर्थ में लिया जाना चाहिए। जिसके तहत न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा विधायिका दोनों के स्वेच्छाचारी कार्यों की समीक्षा कर सकती है।
- विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया को ब्रिटेन और जापान के द्वारा अपनाया गया है जबकि विधि की सम्यक प्रक्रिया को अमेरिका के द्वारा अपनाया गया है।
- विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया का अर्थ है की न्यायपालिका, कार्यपालिका के कार्यों की समीक्षा कर सकती है लेकिन विधायिका के कार्यों की समीक्षा नहीं कर सकती है।
- विधि की सम्यक प्रक्रिया का अर्थ है की न्यायपालिका, कार्यपालिका तथा विधायिका दोनों के कार्यों की समीक्षा कर सकती है।
- यदि कोई कानून अतार्किक, अन्यायपूर्ण, अनुचित हो तथा यह नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध हो तो न्यायालय उसकी समीक्षा कर सकता है।
- न्यायालय किसी कानून के अक्षरशः पालन के लिए बाध्य नहीं है।
- इसी प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन के अधिकार की भी व्यापक व्याख्या की है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना की केवल जीवित रहना या साँस लेना ही जीवन नहीं है। अर्थात् पशुवत् जीवन जीने को जीवन नहीं कहा जा सकता है।
- जीवन का अर्थ है- मानवीय गरिमा से युक्त जीवन, यह सम्पूर्ण, गुणवत्तापूर्ण, मूल्यवान, अर्थपूर्ण जीवन होना चाहिए।
गरिमापूर्ण जीवन के लिए निम्नलिखित अधिकारों का होना अनिवार्य है।-
- 1. मानवीय प्रतिष्ठा के साथ जीने का अधिकार।
- 2. जीवन रक्षा का अधिकार।
- 3. स्वास्थ्य का अधिकार।
- 4. स्वच्छ पर्यावरण का अधिकार। (प्रदूषण रहित जल व वायु, हानिकारक उद्योगों से सुरक्षा)
- 5. निजता का अधिकार।
- 6. अमानवीय व्यवहार के विरुद्ध अधिकार।
- 7. आश्रय का अधिकार।
- 8. हथकड़ी लगाने के विरुद्ध अधिकार।
- 9. 14 वर्ष से कम आयु तक निशुल्क शिक्षा।
- 10. त्वरित सुनवाई का अधिकार।
- 11. निःशुल्क कानूनी सहायता का अधिकार।
- 12. एकांत कारावास के विरुद्ध अधिकार।
- 13. निष्पक्ष सुनावई का अधिकार।
- 14. प्रतिष्ठा का अधिकार।
- 15. देर के फाँसी के विरुद्ध अधिकार।
- 16. राज्य के बाहर ना जाने का अधिकार।
- 17. सूचना का अधिकार।
- 18. विदेश यात्रा करने का अधिकार।
- 19. सरकारी अस्पतालों में समय पर उचित इलाज का अधिकार।
- 20. पहाड़ी क्षेत्रों में मार्ग का अधिकार।
- 21. बंधुआ मजदूरी के विरुद्ध अधिकार।
- 22. सार्वजनिक फाँसी के विरुद्ध अधिकार।
- 23. हिरासत में शोषण के विरुद्ध अधिकार।
- 24. महिलाओं के साथ आदर व सम्मानपूर्ण व्यवहार का अधिकार।
- 25. आपातकालीन चिकित्सा सुविधा का अधिकार।
- 26. कैदी के लिए जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं का अधिकार।
- 27. सोने (नींद) का अधिकार।
- 28. सजा के फैसले पर अपील का अधिकार।
- 29. उचित जीवन बीमा पाॅलिसी का अधिकार।
- 30. सामाजिक सुरक्षा व परिवार की सुरक्षा का अधिकार।
- 31. बेड़ियों के खिलाफ अधिकार।
- 32. सामाजिक व आर्थिक न्याय व सशक्तीकरण का अधिकार।
- 33. अवसर का अधिकार।
- 34. ध्वनि प्रदूषण से मुक्ति का अधिकार।
- 35. संधारणीय विकास का अधिकार।
अनुच्छेद 21 (A)/ (Article 21-A)-
- अनुच्छेद 21 (A) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 (A) में शिक्षा के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- शिक्षा के अधिकार के तहत 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों को अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा उपलब्ध करवाई जानी चाहिए।
- अनुच्छेद 21 (A) भारतीय संविधान में 86वें संविधान संशोधन के द्वारा सन् 2002 में जोड़ा गया था।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम सन् 2009 में पारित हुआ था जो की 1 अप्रैल 2010 से लागू हुआ था।
- शिक्षा का अधिकार अधिनियम में यह प्रावधान था की सभी नीजि विद्यालयों में 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों को प्रवेश देना अनिवार्य है। तथा उन 25 प्रतिशत सीटों के शुल्क का भुगतान सरकार करेगी।
अनुच्छेद 22/ (Article 22)-
- अनुच्छेद 22 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 22 में कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध के विरुद्ध संरक्षण का उल्लेख किया गया है।
- गिरफ्तारी करते समय व्यक्ति को तीन अधिकार दिए गए है। जैसे-
- 1. गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार।
- 2. गिरफ्तारी के समय वकील से परामर्श लेने का अधिकार।
- 3. 24 घण्टे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किए जाने का अधिकार। (24 घण्टे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष प्रस्तुत किए जाने के अधिकार में यात्रा का समय शामिल नहीं है।)
- दो प्रकार के लोगों को उपर्युक्त तीनों अधिकार प्राप्त नहीं है। जैसे-
- 1. शत्रु देश के नागरिक को।
- 2. निवारक निरोध के तहत निरुद्ध किए गए व्यक्ति को।
- निवारक निरोध कानून के तहत निरुद्ध व्यक्ति को भी कुछ अधिकार दिए गए है। जैसे-
- 1. उसे अधिकतम 3 माह के लिए निरुद्ध किया जा सकता है इससे अधिक अवधि बढ़ाने के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से गठित सलाहकारी बोर्ड से सिफारिश आवश्यक है।
- 2. निरुद्ध व्यक्ति को गिरफ्तारी का कारण बताया जाना चाहिए हालांकि जनहित में तथ्य बताने से इंकार भी किया जा सकता है।
- 3. निरुद्ध व्यक्ति अपने प्रतिनिधि के माध्यम से निरोध के विरुद्ध न्यायालय में अपील कर सकता है।
संसद निम्न प्रावधान भी करती है।-
- विशेष प्रकार के केस व स्थितियाँ जिसमें निरोध की अवधि 3 माह से अधिक भी हो सकती है।
- निरोध किये जाने की अधिकतम अवधि का निर्धारण।
- सलाहकारी बोर्ड के लिए जाँच की प्रक्रिया।
- भारतीय संविधान के 44वें संविधान संशोधन 1978 के माध्यम से निरुद्ध करने की अवधि को 3 माह से घटाकर 2 माह कर दिया गया है। किन्तु अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है।
- संसद व राज्य विधानमण्डल दोनों निरोधक कानून बना सकते हैं।
- निम्नलिखित विषयों पर केवल संसद निवारक निरोध कानून बना सकती है।
- 1. रक्षा
- 2. विदेशी मामले
- 3. देश की सुरक्षा
- संसद और राज्य विधानमण्डल दोनों कानून बना सकते हैं। जैसे-
- 1. राज्य की सुरक्षा
- 2. लोक व्यवस्था
- 3. समुदाय हेतु आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं की आपूर्ति सुनिश्चित करवाना।
निवारक निरोधक कानूनों के उदाहरण जैसे-
- 1. निवारक निरोध अधिनियम 1950 (निवारक निरोध अधिनियम को सन् 1969 में समाप्त कर दिया गया था।)
- 2. आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम 1971 (MISA) (आंतरिक सुरक्षा अधिनियम को सन् 1978 में समाप्त कर दिया गया था।)
- 3. विदेशी मुद्रा का संरक्षण एवं तस्करी निवारण अधिनियम (COFEPOSA)- 1974
- 4. राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NASA)- 1980
- 5. आतंकवादी एवं विध्वंसक क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (TADA)- 1985 (आंतकवादी एवं विध्वंसक क्रियाकलाप अधिनियम को सन् 1995 में समाप्त कर दिया गया था।)
- 6. आतंकवाद निवारक अधिनियम (POTA)- 2002 (आतंकवाद निवार अधिनियम को सन् 2004 में समाप्त कर दिया गया था।)
(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)-
- शोषण के विरुद्ध अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 तथा अनुच्छेद 24 में शोषण के विरुद्ध अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- निम्नलिखित अनुच्छेद शोषण के विरुद्ध अधिकार से संबंधित है।-
- अनुच्छेद 23/ (Article 23)
- अनुच्छेद 24/ (Article 24)
अनुच्छेद 23/ (Article 23)-
- अनुच्छेद 23 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 में मानव दुर्व्यापार एवं बलात् श्रम के प्रतिषेध का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 23 के अनुसार मनुष्यों (पुरुष, महिला, बच्चे) की खरीद व बिक्री पर रोक। तथा दास प्रथा, वेश्यावृत्ति और देवदासी प्रथा का प्रतिबंध।
- इन कृत्यों पर दण्डित करने हेतु संसद ने 'अनैतिक दुर्व्यापार (निवारण) अधिनियम 1956' बनाया है।
- अनुच्छेद 23 बेगार प्रथा, बलात् श्रम तथा बंधुआ मजदूरी पर भी प्रतिबंध लगाता है। किन्तु जनहित में राज्य अनिवार्य सेवा ले सकता है लेकिन धर्म, नृजातीयता, वर्ग और जाति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
- बलात् श्रम में आर्थिक परिस्थितियों से उत्पन्न बाध्यता , न्यूनतम मजदूरी से कम पर कार्य करवाना आदि भी सम्मिलित है।
- बेगार से तात्पर्य है बिना पारिश्रमिक के कार्य करवाना।
अनुच्छेद 24/ (Article 24)-
- अनुच्छेद 24 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 24 में फेक्ट्री इत्यादि में बालकों के नियोजन के प्रतिषेध का उल्लेख किया गया है।
- बाल एवं किशोर श्रम अधिनियम 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि में नियोजन का निषेध करता है। किन्तु वे पारिवारिक व्यवसाय में हाथ बटा सकते हैं।
- बाल एवं किशोर श्रम अधिनियम 2016 किशोरों (14 से 18 वर्ष की आयु) के खतरनाक व्यवसायों में नियोजन का प्रतिषेध करता है।
- बाल एवं किशोर श्रम अधिनियम का उल्लघंन किए जाने पर 6 माह से लेकर 2 वर्ष तक की कारावास तथा 20,000 से 50,000 रुपये तक का जुर्माना है।
- अपराध दोहराने पर 1 से लेकर 3 वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है।
(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)-
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- निम्नलिखित अनुच्छेद धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार से संबंधित है।-
- अनुच्छेद 25/ (Article 25)
- अनुच्छेद 26/ (Article 26)
- अनुच्छेद 27/ (Article 27)
- अनुच्छेद 28/ (Article 28)
अनुच्छेद 25/ (Article 25)-
- अनुच्छेद 25 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 के अनुसार अन्तकरण की धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण करने तथा प्रचार प्रसार करने की समानता है।
- अनुच्छेद 25 की सीमाएँ-
- 1. लोक व्यवस्था
- 2. नैतिकता
- 3. स्वास्थ्य के आधार पर
- 4. अन्य मूल अधिकार
- अनुच्छेद 25 भारतीय नागरिकों के साथ-साथ गैर भारतीय नागरिकों को भी प्राप्त है।
- धार्मिक आचरण संबंधि विवादों के समाधान हेतु सर्वोच्च न्यायालय ने सन् 1954 में धर्म की अनिवार्यता का सिद्धांत रखा था। (शिरूर मठ केस में)
- हिन्दू धर्म में सिक्ख, जैन और बौद्ध को भी शामिल किया गया है।
- सिक्ख धर्म में करपाण रखना अनिवार्य अंग है।
अनुच्छेद 26/ (Article 26)-
- अनुच्छेद 26 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 26 में धार्मिक मामलों के प्रबंधन का उल्लेख किया गया है।
- धार्मिक एवं धर्मार्थ उद्देश्यों हेतु संस्थाओं की स्थापना व प्रशासन का अधिकार।
- धार्मिक संस्थान अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन स्वयं कर सकते हैं।
- धार्मिक उद्देश्य के लिए चल व अचल सम्पत्ति अर्जित करने का अधिकार।
- विधि के तहत सम्पत्ति का प्रशासन करने का अधिकार।
- जहाँ अनुच्छेद 25 व्यक्तिगत अधिकार देता है वहाँ अनुच्छेद 26 समुदाय को सामूहिक अधिकार प्रदान करता है।
अनुच्छेद 27/ (Article 27)-
- अनुच्छेद 27 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 27 के अनुसार राज्य को किसी धर्म विशेष के प्रोत्साहन हेतु कर लगाने का अधिकार नहीं है। लेकिन राज्य द्वारा किसी प्रकार का शुल्क लगाया जा सकता है।
अनुच्छेद 28/ (Article 28)-
- अनुच्छेद 28 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 28 में धार्मिक शिक्षा की कक्षा में उपस्थित ना होने के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- अनुच्छेद 28 के अनुसार सरकारी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जा सकती है।
- निजी विद्यालयों में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है। लेकिन इसके लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है।
- राज्य के द्वारा प्रशासित एवं धर्म विशेष के लिए स्थापित की गई संस्था में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती है।
(5) सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार (Culture and education Right)-
- सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 तथा अनुच्छेद 30 में सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- निम्नलिखित अनुच्छेद सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक अधिकार से संबंधित है।-
- अनुच्छेद 29/ (Article 29)
- अनुच्छेद 30/ (Article 30)
- अनुच्छेद 30 (1)/ (Article 30-1)
- अनुच्छेद 30 (1) (a)/ (Article 30-1-a)
भारतीय संविधान दो प्रकार के अल्पसंख्यको का उल्लेख करता है। जैसे-
- 1. धार्मिक अल्पसंख्यक
- 2. भाषायी अल्पसंख्यक
- लेकिन इन दोनों को ही भारतीय संविधान में परिभाषित नहीं किया गया है।
1. धार्मिक अल्पसंख्यक-
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिनियम 1992 के तहत केन्द्र सरकार किसी भी धर्म को अल्पसंख्यक धर्म का दर्जा दे सकती है।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिनियम 1992 के तहत 6 धर्मों को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है। जैसे-
- (I) मुस्लिम धर्म
- (II) सिक्ख धर्म
- (III) बौद्ध धर्म
- (IV) ईसाई धर्म
- (V) पारसी धर्म
- (VI) जैन धर्म
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिनियम 1992 के तहत उपर्युक्त 6 धर्मों में से सबसे अन्त में अल्पसंख्यक का दर्जा जैन धर्म को दिया गया है।
टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य 2002 (T.M.A Pai Foundation Vs State of Karnataka 2002)-
- सर्वोच्च न्यायालय ने टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य केस में निर्णय सन् 2002 में दिया था।
- टीएमए पाई फाउंडेशन बनाम कर्नाटक राज्य केस में सर्वोच्च न्यायालय ने अल्पसंख्यक दर्जा राज्य आधारित करने को कहा लेकिन अभी तक इसे लागू नहीं किया गया है।
2. भाषायी अल्पसंख्यक-
- भाषायी अल्पसंख्यक को संविधान या किसी कानून में स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
अनुच्छेद 29/ (Article 29)-
- अनुच्छेद 29 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 में अल्पसंख्यक वर्गों के हितों के संरक्षण का उल्लेख किया गया है।
- भारत के राज्य क्षेत्र के किसी भी भाग में निवास करने वाले नागरिकों को अपनी संस्कृति, भाषा, लिपि का संरक्षण करने का अधिकार है।
- राज्य के द्वारा वित्त पोषित संस्थाओं में किसी भी नागरिक को धर्म, मूलवंश, जाति तथा भाषा के आधार पर प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 30/ (Article 30)-
- अनुच्छेद 30 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करने का अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार है।
अनुच्छेद 30 (1)/ (Article 30-1)
- अनुच्छेद 30 (1) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के अनुसार भाषायी व धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपनी रुचि की शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन का अधिकार होगा।
अनुच्छेद 30 (1) (a)/ (Article 30-1-a)-
- अनुच्छेद 30 (1) (a) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 30 (1) (a) के अनुसार अल्पसंख्यक वर्ग के द्वारा स्थापित एवं प्रशासित शिक्षण संस्था की सम्पत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण के समय क्षतिपूर्ति की रकम इतनी हो जिससे अनुच्छेद 30 के द्वारा प्रदत्त अधिकारों में कोई कमी ना हो। (44वां संविधान संशोधन)
- राज्य जब शिक्षण संस्थाओं को वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाता है तो उपर्युक्त संस्थाओं के साथ किसी भी तरह का भेदभाव नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 31/ (Article 31)-
- अनुच्छेद 31 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 में सम्पत्ति के अधिकार का उल्लेख किया गया था।
- भारतीय संविधान के 44वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा सम्पत्ति के अधिकार को मूल अधिकारों से हटा दिया गया तथा संविधान के भाग-12 तथा अनुच्छेद 300 (A) में शामिल किया गया है।
- सम्पत्ति का अधिकार वर्तमान में मूल अधिकार नहीं है बल्कि एक संवैधानिक अधिकार है।
- अनुच्छेद के तहत कोई भी व्यक्ति कानून के बीना सम्पत्ति से बंचित नहीं किया जाएगा।
- भारतीय संविधान में 44वां सविधान संशोधन सन् 1978 में किया गया था।
अनुच्छेद 31 (A)/ (Article 31-A)-
- अनुच्छेद 31 (A) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 (A) के अनुसार राज्य जनहित में किसी भी निजी सम्पत्ति का अधिग्रहण कर सकता है तथा राज्य सभी प्रकार के निजी व्यापारों का राष्ट्रीयकरण कर सकता है।
- राज्य के द्वारा जनहित में किसी भी निजी सम्पत्ति का अधिग्रहण करने के लिए प्रदान की जाने वाली क्षतिपूर्ति राशि को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
अनुच्छेद 31 (B)/ (Article 31-B)-
- अनुच्छेद 31 (B) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 (B) के अनुसार जिन अधिनियमों को 9वीं अनुसूची में रख दिया गया है उनका न्यायिक पुनरावलोकन नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 31 (C)/ (Article 31-C)-
- अनुच्छेद 31 (C) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 31 (C) के तहत यदि अनुच्छेद 39 (B) व अनुच्छेद 39 (C) के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए संसद कोई कानून बनाती है और यह कानून अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 व अनुच्छेद 31 के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है तो इस कानून को असंवैधानिक घोषित नहीं किया जा सकता है।
- इस प्रकार की विधि को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)-
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार भारतीय संविधान के भाग-3 में दिया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों का अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- निम्नलिखित अनुच्छेद संवैधानिक उपचारों का अधिकार से संबंधित है।-
- अनुच्छेद 32/ (Article 32)
अनुच्छेद 32/ (Article 32)-
- अनुच्छेद 32 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 32 में संवैधानिक उपचारों के अधिकार का उल्लेख किया गया है।
- डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने संवैधानिक उपचारों के अधिकार अर्थात् अनुच्छेद 32 को संविधान की मूल आत्म तथा संविधान का हृदय कहा है।
- अनुच्छेद 32 के अनुसार मूल अधिकारों का हनन होने पर व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है।
- सर्वोच्च न्यायालय को नागरिकों के मूल अधिकारों का रक्षक एवं गारंटी देने वाला माना जाता है।
- यदि व्यक्तियों के मूल अधिकारों का हनन होता है तो सर्वोच्च न्यायालय 5 प्रकार की रिट जारी कर सकता है। जैसे-
- 1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
- 2. परमादेश (Mandamus)
- 3. प्रतिषेध (Prohibition)
- 4. उत्प्रेषण (Certiorari)
- 5. अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)-
- यदि किसी व्यक्ति को अवैधानिक तरीके से बंधक बनाया जाता है तो बंधक को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु न्यायालय के द्वारा एक रिट जारी की जाती है।
- बन्दी प्रत्यक्षीकरण की रिट सरकारी तथा निजी व्यक्ति अथवा संस्था दोनों के विरुद्ध जारी की जा सकती है।
- यदि सरकार के विरुद्ध बन्दी प्रत्यक्षीकरण की रिट जारी की जाती है तो यह रिट मुख्य सचिव को जारी की जाती है।
- बन्दी प्रत्यक्षीकरण लेटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- 'शरीर को प्रस्तुत किया जाए।'
2. परमादेश (Mandamus)-
- परमादेश का शाब्दिक अर्थ है- 'हम आदेश देते है।'
- यदि सार्वजनिक पद पर नियुक्त कोई व्यक्ति अपने कर्त्तव्य का पालन नहीं करता है तो उसके विरुद्ध परमादेश की रिट जारी कर उसे कर्त्तव्यपालन का आदेश दिया जाता है।
- यह रिट निष्क्रिय को सक्रिय करने के लिए होता है।
- परमादेश रिट केवल सार्वजनिक अधिकारियों तथा प्राधिकरणों के खिलाफ जारी की जा सकती है।
- निम्नलिखित के विरुद्ध परमादेश की रिट जारी नहीं की जा सकती है।-
- (I) राष्ट्रपति
- (II) राज्यपाल
- (III) निजी व्यक्ति या संस्था
- (IV) जब कर्त्तव्य विवेकाधीन शक्तियों के अधीन हो
- (V) संविदाओं से संबंधित कार्य
- (VI) उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश
3. प्रतिषेध (Prohibition)-
- प्रतिषेध का शाब्दि अर्थ है- 'रोकना'
- जब निम्नतर न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर कार्य करता है तब उच्चतर न्यायालय के द्वारा निम्नतर न्यायालय के विरुद्ध प्रतिषेध रिट जारी की जाती है।
- प्रतिषेध रिट उच्चतर न्यायालय के द्वारा निम्नतर न्यायालय के विरुद्ध जारी की जाती है।
- यह रिट सक्रिय को निष्क्रिय करती है।
- प्रतिषेध की रिट केवल न्यायपालिका के विरुद्ध जारी की जा सकती है।
- प्रशासनिक प्राधिकरणों, विधायी निकायों एवं निजी व्यक्ति या निकाय के विरुद्ध प्रतिषेध की रिट जारी नहीं की जा सकती है।
4. उत्प्रेषण (Certiorari)-
- उत्प्रेषण का शाब्दिक अर्थ है- 'प्रमाणित होना या सूचना देना'
- उत्प्रेषण की रिट उच्चतर न्यायालय के द्वारा निम्नतर न्यायालय के विरुद्ध जारी की जाती है।
- यदि निम्नतर न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कार्य करता है तब उच्चतर न्यायालय के द्वारा निम्नतर न्यायालय के विरुद्ध उत्प्रेषण रिट जारी की जाती है।
- उत्प्रेषण की रिट में उच्चतर न्यायालय मामले को अपने पास मंगवाता है और स्वयं सुनावई करता है।
- सन् 1991 में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया की उत्प्रेषण की रिट कार्यपालिका के विरुद्ध भी जारी की जा सकती है।
- विधायी निकायों तथा निजी व्यक्तियों या इकाइयों के विरुद्ध उत्प्रेषण की रिट उपलब्ध नहीं है।
प्रतिषेध तथा उत्प्रेषण में अन्तर (Difference Between Prohibition and Certiorari)-
- (I) प्रतिषेध (Prohibition)
- (II) उत्प्रेषण (Certiorari)
(I) प्रतिषेध (Prohibition)-
- प्रतिषेध में केवल निम्नतर न्यायालय को किसी कार्य को करने से रोका जाता है।
- प्रतिषेध रिट केवल निम्नतर न्यायालय में मामले की सुनवाई के दौरान जारी की जा सकती है।
- प्रतिषेध की रिट केवल न्यायपालिका के विरुद्ध जारी की जा सकती है।
(II) उत्प्रेषण (Certiorari)-
- उत्प्रेषण में निम्नतर न्यायालय को कार्य करने से रोका जाता है। तथा उच्चतर न्यायालय केस को उपने पास मंगवा लेता है।
- उत्प्रेषण की रिट मामले की सुनवाई के दौरान तथा सुनवाई के बाद भी जारी की जा सकती है।
- उत्प्रेषण की रिट न्यायपालिका व कार्यपालिका दोनों के विरुद्ध जारी की जा सकती है।
5. अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)-
- अधिकार पृच्छा का शाब्दिक अर्थ है- 'किसी प्राधिकृत या वारंट द्वारा'
- यदि कोई व्यक्ति ऐसे राजनीतिक व प्रशासनिक पद पर नियुक्त किया जाता है जिसके लिए वह योग्य नहीं है तो अधिकार पृच्छा की रिट जारी की जा सकती है।
- अधिकार पृच्छा की रिट नियुक्त व्यक्ति के विरुद्ध जारी की जाती है।
- अधिकार पृच्छा की रिट नियुक्ति करने वाले के विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती है।
- अधिकार पृच्छा रिट को मंत्रित्व कार्यालय या निजी कार्यालय के विरुद्ध जारी नहीं किया जा सकता है।
उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालय की रिट अधिकारिता की तुलना-
- (I) उच्चतम न्यायालय (अनुच्छेद 32)
- (II) उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226)
(I) उच्चतम न्यायालय (अनुच्छेद 32)-
- उच्चतम न्यायालय रिट जारी करने के लिए बाध्य है क्योंकि अनुच्छेद 32 हमारा मूल अधिकार है।
- सर्वोच्च न्यायालय केवल मूल अधिकारों के हनन के मामले में ही रिट जारी कर सकता है। अन्य मामलों में नहीं कर सकता है।
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान मूल अधिकार निलम्बित किये जा सकते हैं।
- यदि अनुच्छेद 32 को निलम्बित कर दिया जाता है तो सर्वोच्च न्यायालय रिट जारी नहीं कर सकता है।
(II) उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 226)-
- उच्च न्यायालय रिट जारी करने के लिए बाध्य नहीं है क्योंकि अनुच्छेद 226 हमारा मूल अधिकार नहीं है।
- उच्च न्यायालय मूल अधिकारों के हनन के साथ ही अन्य मामलों में भी रिट जारी कर सकता है।
- राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 226 को निलम्बित नहीं किया जा सकता है इसलिए राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति में भी उच्च न्यायालय की रिट जारी करने की शक्ति यथावत् बनी रहती है।
अनुच्छेद 33 (Article 33)-
- अनुच्छेद 33 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 33 के अनुसार संसद सशस्त्र बलों, अर्द्ध सैनिक बल, पुलिस, खुफिया एजेंसी एवं अन्य के मूल अधिकारों में कटौती कर सकती है।
अनुच्छेद 34 (Article 34)-
- अनुच्छेद 34 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 34 के अनुसार जिन क्षेत्रों में सैन्य विधि लागू हो उन क्षेत्रों में मूल अधिकारों में कटौती की जा सकती है।
- भारत के संविधान में सैन्य विधि को परिभाषित नहीं किया गया है।
अनुच्छेद 35 (Article 35)-
- अनुच्छेद 35 का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35 के अनुसार मूल अधिकारों में कटौती का अधिकार केवल संसद का है।
- अनुच्छेद 35 के अनुसार संसद उन्हीं मूल अधिकारों में कटौती कर सकती है जिन मूल अधिकारों में कटौती का प्रावधान है। जैसे- अनुच्छेद 33 और अनुच्छेद 34
अनुच्छेद 35 (A) (Article 35-A)-
- अनुच्छेद 35 (A) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग-3 में किया गया है।
- भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35 (A) सन् 1954 में राष्ट्रपति के आदेश पर जोड़ा गया।
- अनुच्छेद 35 (A) में जम्मू कश्मीर राज्य के लिए निम्नलिखित विशेष प्रावधान थे।-
- 1. स्थायी निवास का अधिकार
- 2. अचल सम्पत्ति खरीदने का अधिकार
- 3. राज्य की नौकरी के आवेदन
- सन् 2019 में राष्ट्रपति के आदेश के द्वारा अनुच्छेद 35 (A) को भारत के संविधान से हटा दिया गया है।
निम्नलिखित मूल अधिकार जो केवल भारतीय नागरिकों को ही प्राप्त है।-
- 1. अनुच्छेद 15
- 2. अनुच्छेद 16
- 3. अनुच्छेद 19
- 4. अनुच्छेद 29
- 5. अनुच्छेद 30
आपातकाल के दौरान मूल अधिकारों का निलम्बन-
- अनुच्छेद 358
- अनुच्छेद 359
अनुच्छेद 358-
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 358 के अनुसार राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 19 स्वतः ही निलम्बित हो जाता है।
44वां संविधान संशोधन 1978-
- भारतीय संविधान में 44वां संविधान संशोधन सन् 1978 में किया गया था।
- 44वें संविधान संशोधन 1978 में यह संशोधन किया गया की यदि सशस्त्र विद्रोह के कारण राष्ट्रीय आपातकाल लागू होता है तो अनुच्छेद 19 निलम्बित नहीं होगा।
- 44वें संविधान संशोधन 1978 में यह संशोधन किया गया की राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को निलम्बित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 359-
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 359 के अनुसार राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान राष्ट्रपति अन्य अनुच्छेदों को निलम्बित कर सकता है।
टिप्पणी- वर्तमान तक भारतीय संविधान में कुल 105 संविधान संशोधन किया गये है।
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