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शासन प्रणाली (Governance System)

शासन प्रणाली (Governance System)-

  • 1. संसदीय शासन व्यवस्था (Parliamentary form of Governance)

  • 2. अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था (Presidential form of Government)


1. संसदीय शासन व्यवस्था (Parliamentary form of Governance)-

  • भारत में संसदीय शासन व्यवस्था को अपनाया गया है।
  • भारत में संसदीय शासन व्यवस्था को ब्रिटेन से लिया गया है।
  • संसदीय शासन व्यवस्था में कार्यपालिका के दो प्रमुख होते हैं। जैसे-
  • (I) एक नाममात्र का (Nominal)- जैसे- राष्ट्रपति
  • (II) दूसरा वास्तविक (Real)- जैसे- प्रधानमंत्री
  • संसदीय शासन व्यवस्था में राष्ट्रध्यक्ष व शासनाध्यक्ष अलग-अलग होते हैं।
  • संसदीय शासन व्यवस्था में कार्यपालिका का प्रमुख अप्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है वह बहुमत प्राप्त दल का नेता होता है।
  • संसदीय शासन व्यवस्था में स्पष्ट शक्ति पृथक्करण नहीं होता है क्योंकि कार्यपालिका विधायिका का भाग होती है।
  • संसदीय शासन व्यवस्था में मंत्री विधायिका के भी सदस्य होते हैं।
  • संसदीय शासन व्यवस्था में कार्यपालिका सामूहिक रूप से विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है अर्थात् विधायिका अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा कार्यपालिका को हटा सकती है।
  • संसदीय शासन व्यवस्था में सामूहिक उत्तरदायित्व होता है।


2. अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था (Presidential form of Government)-

  • अमेरिका में अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था को अपनाया गया है।
  • अध्यक्षात्मक सासन व्यवस्था में कार्यपालिक का एक ही प्रमुख होता है। जैसे-
  • (I) वास्तविक (Real)- जैसे- राष्ट्रपति
  • अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में राष्ट्राध्यक्ष ही शासनाध्यक्ष होता है।
  • अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका का प्रमुख सामान्यतः जनता के द्वारा प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित होता है। वह बहुमत प्राप्त दल का नेता नहीं होता है।
  • अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में स्पष्ट शक्ति पृथक्करण होता है क्योंकि कार्यपालिका व विधायिका पूर्णतः पृथक होते हैं।
  • अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में मंत्री विधायिका का सदस्य नहीं हो सकता है।
  • अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में कार्यपालिका सामूहिक रूप से विधायिका के प्रति उत्तरदायी नहीं होती है। अर्थात् विधायिका अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा कार्यपालिका को नहीं हटा सकती है।
  • अध्यक्षात्मक शासन व्यवस्था में केवल व्यक्तिगत उत्तरदायित्व होता है।

संसदीय शासन व्यवस्था के गुण (Merits of Parliamentary System)-

  • संसदीय शासन व्यवस्था के निम्नलिखित गुण है। जैसे-

  • (I) उत्तरदायित्व (Responsible Government)
  • (II) जवाबदेहिता (Accountability)
  • (III) कार्यपालिका तथा विधायिका के बीच बेहतर तालमेल (Harmony Between Executive and Legislature)


(I) उत्तरदायित्व (Responsible Government)-

  • कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी  होती है इसलिए विधायिका का कार्यपालिका पर नियंत्रण रहता है अतः कार्यपालिका निरंकुश नहीं हो पाती है।


(II) जवाबदेहिता (Accountability)-

  • विधायिका का कार्यपालिका के दैनिक कार्यों पर भी नियंत्रण होता है। कार्यपालिका को विधायिका के प्रश्नों के जबाव देने होते हैं। अतः कार्यपालिका अधिक जबावदेह होती है।


(III) कार्यपालिका तथा विधायिका के बीच बेहतर तालमेल (Harmony Between Executive and Legislature)-

  • कार्यपालिका को विधायिका में बहुमत प्राप्त होता है इसलिए कार्यपालिका तथा विधायिका के बीच बेहतर सामंजस्य होता है एवं कार्यपालिका तथा विधायिका में टकराव उत्पन्न नहीं होता, इससे सरकारी निर्णयन व विधि निर्माण सरल होते हैं।
  • इसमें अल्संख्यक वर्ग भी राजनैतिक रूप से संगठित हो सकते हैं एवं वे अपने हितों को संरक्षित कर सकते हैं।
  • इसमें विपक्षी दलों का महत्व होता है।
  • इसमें राजनीतिक दल अधिक होते हैं। राजनीतिक दलों के द्वारा जन आन्दोलन भी होते हैं जिससे जनता को राजनीतिक प्रशिक्षण मिलता है।


संसदीय शासन व्यवस्था के दोष (Demerits of Parliamentary System)-

  • (I) अस्थिरता (Unstable Government)
  • (II) अनिर्णय की स्थिति या त्वरित निर्णय का अभाव (Delayed Decision Making)
  • (III) विकल्पों की सीमितता (Government by Amateur)


(I) अस्थिरता (Unstable Government)-

  • कार्यपालिका विधायिका के प्रति उत्तरदायी होती है अतः विधायिका अविश्वास प्रस्ताव के द्वारा कार्यपालिका को हटा सकती है। प्रायः कार्यपालिका अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाती है और पुनः चुनाव करवाने पड़ते है जिससे धन व समय का अपव्यय होता है तथा राजनैतिक नीतियों में भी अस्थिरता बनी रहती है।


(II) अनिर्णय की स्थिति या त्वरित निर्णय का अभाव (Delayed Decision Making)-

  • कोई भी निर्णय लेने से पहले सभी सहयोगी दलों की सहमति लेनी पड़ती है। प्रायः सहयोगी दल सहमत नहीं होते हैं तो सरकार निर्णय नहीं ले पाती है।

  • इसमें स्पष्टतः शक्ति पृथक्करण नहीं होता है क्योंकि कार्यपालिका विधायिका का एक भाग होती है जो कि आदर्श लोकतंत्र के अनुरुप नहीं है।


(III) विकल्पों की सीमितता (Government by Amateur)-

  • मंत्री नियुक्त करने के लिए अधिक विकल्प नहीं होते हैं क्योंकि केवल विधायिका के सदस्यों में से ही मंत्री नियुक्त करने होते हैं इससे विशेषता को प्रोत्साहन नहीं मिलता है।

  • इसमें गठबंधन की सरकारें भी बनती है। इस कारण गठबंधन सरकारों के सभी दोष इसमें आ जाते हैं। जैसे- अस्थिरता, अनिर्णय, मंत्रियों पर पर्याप्त नियंत्रण का अभाव, भ्रष्टाचार, राष्ट्रीय मुद्दों की बजाय क्षेत्रीय मुद्दों को अधिक महत्व, अवसरवादिता, दल-बदल की प्रवृति, बेमेल गठबंधन आदि।

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