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संसदीय समितियां (Parliamentary Committees)

संसदीय समितियां (Parliamentary Committees)-

  • संसदीय समितियों का उद्भव ब्रिटेन में हुआ था लेकिन वर्तमान में संसदीय समितियों का प्रयोग अमेरिका में ज्यादा किया जाता है।
  • भारत सरकार अधिनियम 1919 से भारत में संसदीय समितियों का आरम्भ हुआ था।
  • सन् 1921 ई. में भारत में पहली बार संसदीय समितियों का गठन किया गया था।
  • संसदीय समितियां दो प्रकार की होती है। जैसे-
  • 1. स्थायी समिति (Standing Committee)
  • 2. अस्थाई समिति (Ad-Hoc Committee / Temporary Committee)
  • संसदीय समितियों में कोरम (गणपूर्ति) के लिए एक तिहाई (⅓) सदस्य उपस्थित होने चाहिए।


संसदीय समितियों का महत्व (Importance of Parliamentary Committees)-

  • 1. संसदीय समितियां कार्य विभाजन के सिद्धान्त पर आधारित है। संसद के पास कार्य अधिक होते हैं जबकि समय का अभाव होता है अतः विभिन्न कार्यों को समितियों में बाँट दिया जाता है।
  • 2. विशेषज्ञता को प्रोत्साहन मिलता है क्योंकि विषय के विशेषज्ञों को ही उस समिति में सदस्य बनाया जाता है।
  • 3. गोपनीयता रखने में सहायक (Helps in Maintaining Confidentiality)-
  • संसद को राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित अनेक संवेदनशील मुद्दों पर निर्णय लेना होता है जिन पर खुले सदन में चर्चा नहीं की जा सकती है इसलिए गोपनीयता को बनाए रखने के लिए संसदीय समितियां इस पर विचार करती है।
  • 4. संसदीय समितियों के माध्यम से विधायिका का कार्यपालिका पर नियंत्रण बढ़ता है।
  • 5. संसदीय समितियां लोकसभा व राज्यसभा के मध्य सहयोग व सामंजस्य को बढ़ावा देती है।
  • 6. संसदीय समितियां सत्ता पक्ष व विपक्ष के मध्य सहयोग व सामंजस्य को बढ़ावा देती है।

1. स्थायी समितियां (Standing Committees)-

  • (I) प्राक्कलन समिति (Estimates Committee)-
  • (II) लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)
  • (III) लोक उपक्रम समिति (Committee on Public Undertakings)
  • (IV) विभागीय स्थायी समितियां (Departmental Standing Committee)
  • (V) कार्य मंत्रणा समिति (Business Advisory Committee)


(I) प्राक्कलन समिति (Estimates Committee)-

  • प्राक्कलन समिति की शुरुआत सन् 1950 में की गई थी।
  • प्राक्कलन समिति में 30 सदस्य होते हैं।
  • प्राक्कलन समिति में मूलतः 25 सदस्य होते थे। लेकिन सन् 1956 में प्राक्कलन समिति के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 30 कर दी गई थी।
  • प्राक्कलन समिति में सभी (30) सदस्य लोकसभा से ही होते हैं।
  • आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति (Proportional Representation Method- PRS) से प्राक्कलन समिति के सदस्यों का निर्वाचन होता है।
  • प्राक्कलन समिति के सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष होता है।
  • मंत्री प्राक्कलन समिति का सदस्य नहीं बन सकता है।
  • प्राक्कलन समिति को मितव्ययिता समिति भी कहते हैं।


प्राक्कलन समिति के कार्य (Functions of Estimates Committee)-

  • बजट प्रावधानों की समीक्षा करना।
  • कार्यकुशलता के लिए वैकल्पिक नीतियों का सुझाव देना।
  • प्राक्कलन में नीति के अनुसार राशि के समुचित प्रावधान की जाँच करना।
  • बजट प्रावधानों की कमियों और अनियमितताओं को दूर करना।


(II) लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)-

  • लोक लेखा समिति की शुरुआत सन् 1921 में हुई थी।
  • लोक लेखा समिति में 22 सदस्य होते हैं जिसमें से 15 सदस्य लोकसभा से तथा 7 सदस्य राज्यसभा से होते हैं।
  • आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से लोक लेखा समिति के सदस्यों का निर्वाचन होता है।
  • सामान्यतः लोक लेखा समिति का अध्यक्ष विपक्षी दल से होता है।
  • लोक लेखा समिति का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है।
  • लोक लेखा समिति को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) का मित्र या दार्शनिक कहा जाता है।


लोक लेखा समिति के कार्य (Functions of Public Accounts Committee)-

  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) के सामान्य प्रतिवेदन (Audit Report) की समीक्षा करना।
  • अधिक अनुदान के लिए लोक लेखा समिति की अनुमति आवश्यक है।


(III) लोक उपक्रम समिति (Committee on Public Undertakings)-

  • लोक उपक्रम समिति की शुरुआत 1 मई 1964 में हुई थी।
  • लोक उपक्रम समिति की शुरुआत कृष्णा मेनन समिति की सिफारिश पर की गई थी।
  • मूल रूप से लोक उपक्रम समिति में 15 सदस्य थे जिसमें से 10 लोकसभा से तथा 5 राज्यसभा से थे लेकिन सन् 1974 में लोक उपक्रम समिति के सदस्यों की संख्या बढ़ाकर 22 कर दी गई हैं जिसमें से 15 सदस्य लोकसभा में 7 सदस्य राज्यसभा से होते हैं।
  • आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत (SVT) से लोक उपक्रम समिति के सदस्यों का निर्वाचन होता है।
  • लोक उपक्रम समिति के सदस्यों का कार्यकाल 1 वर्ष का होता है।
  • मंत्री लोक उपक्रम समिति का सदस्य नहीं बन सकता है।


लोक उपक्रम समिति के कार्य (Functions of Public Undertakings Committee)-

  • नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General- CAG) के लोक उपक्रम प्रतिवेदन की जाँच करना।


(IV) विभागीय स्थायी समितियां (Departmental Standing Committee)-

  • विभागीय स्थायी समितियों का आरम्भ अमेरिका से हुआ है।
  • सन् 1993 में 17 विभागीय समितियों की स्थापना की गई।
  • सन् 2004 में विभागीय समितियों की संख्या बढ़ाकर 24 कर दी गई है।
  • प्रत्येक विभागीय स्थायी समिति में 31 सदस्य होते हैं जिसमें से 21 सदस्य लोकसभा से तथा 10 सदस्य राज्यसभा से होते हैं।
  • 16 विभागीय स्थायी समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा की जाती है तथा 8 विभागीय स्थायी समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति राज्यसभा सभापति के द्वारा की जाती है।


विभागीय स्थायी समितियों के कार्य (Functions of Departmental Standing Committee)-

  • वित्त मंत्री के द्वारा बजट पेश करने के बाद बजट विभागीय समितियों को सौंप दिया जाता है।

  • एक विभागीय स्थायी समिति एक से अधिक विभागों के बजट की समीक्षा करती है।


(V) कार्य मंत्रणा समिति (Business Advisory Committee)-

  • कार्य मंत्रणा समिति लोकसभा तथा राज्यसभा दोनों के लिए अलग-अलग होती है।
  • लोकसभा में कार्य मंत्रणा समिति में 15 सदस्य होते हैं।
  • लोकसभा में कार्य मंत्रणा समिति की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष के द्वारा की जाती है।
  • राज्यसभा में कार्य मंत्रणा समिति में 11 सदस्य होते हैं।
  • राज्यसभा में कार्य मंत्रणा समिति की अध्यक्षता राज्यसभा सभापति के द्वारा की जाती है।


कार्य मंत्रणा समिति के कार्य (Functions of Business Advisory Committee)-

  • सदन के दैनिक कार्यक्रम का निर्धारण करना। अर्थात् लोकसभा में लोकसभा के दैनिक कार्यक्रम का निर्धारण करना तथा राज्यसभा में राज्यसभा के दैनिक कार्यक्रम का निर्धारण करना।


2. अस्थाई समितियां (Ad-Hoc Committees / Temporary Committees)-

  • उद्देश्य विशेष के लिए अस्थाई समितियों का गठन किया जाता है तथा उद्देश्य प्राप्ति के बाद अस्थाई समितियां स्वतः ही समाप्त हो जाती है।
  • अस्थाई समितियां-
  • (I) प्रवर समिति (Select Committee)
  • (II) संयुक्त समिति (Joint Committee)
  • (III) संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee- JPC)


(I) प्रवर समिति (Select Committee)-

  • किसी विधेयक के लिए प्रवर समिति का गठन किया जाता है।


(II) संयुक्त समिति (Joint Committee)-

  • किसी विधेयक के लिए संयुक्त समिति का गठन किया जाता है।


(III) संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee- JPC)-

  • उद्देश्य विशेष के लिए संयुक्त संसदीय समिति (Joint Parliamentary Committee- JPC) का गठन किया जाता है।

  • संयुक्त संसदीय समिति में 31 सदस्य होते हैं जिसमें से 21 सदस्य लोकसभा से तथा 10 सदस्य राज्यसभा से होते हैं।


अभी तक गठित संयुक्त संसदीय समितियां (Joint Parliamentary Committees Constituted so far)-

  • 1. बोफोर्स घोटाला (Bofors Scam)
  • 2. हर्षद मेहता घोटाला- शेयर बाजार (Harshad Mehta Scam- Stock Market)
  • 3. शीतल पेय पदार्थों में कीटनाशक (Pesticides in Soft Drinks)
  • 4. केतन पारेख शेयर बाजार घोटाला (Ketan Parekh Stock Market Scam)
  • 5. 2G घोटाला-पी.सी. चाको (2G Scam- P.C. Chako)
  • 6. वी.वी.आई.पी. हेलिकॉप्टर घोटाला (V.V.I.P Helicopter Scam)- इसमें निर्णय लिया गया था  लेकिन संयुक्त संसदीय समिति का गठन नहीं किया गया था।)

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