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न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism)

न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism)-

  • न्यायिक सक्रियता नागरिकों के अधिकारों की रक्षा में न्यायपालिका (Judiciary) की सक्रिय भूमिका को दर्शाती है।
  • न्यायिक सक्रियता की अवधारणा विश्व में सबसे पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न व विकसित हुई थी।
  • नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण एवं समाज में न्याय को बढ़ावा देने के लिए न्यायपालिका द्वारा निभाई गई सक्रिय भूमिका को ही न्यायिक सक्रियता कहते हैं।
  • न्यायिक सक्रियता को दो भागों में विभाजित किया गया है। जैसे-

    • 1. सकारात्मक न्यायिक सक्रियता (Positive Judicial Activism)
    • 2. नकारात्मक न्यायिक सक्रियता (Negative Judicial Activism)


1. सकारात्मक न्यायिक सक्रियता (Positive Judicial Activism)-

  • सकारात्मक न्यायिक सक्रियता के तहत न्यायपालिका (Judiciary) अतिरिक्त सक्रियता दिखाते हुए अपने कार्यों को अधिक कुशलता (Efficient) व तीव्रता के साथ संपादित करती है।
  • आरम्भ में न्यायपालिका के कुछ स्वघोषित सिद्धांत थे जैसे-
    • (I) न्याय मांगने हेतु व्यक्ति को न्यायपालिका के पास जाना होगा।
    • (II) प्रत्येक व्यक्ति स्वयं के लिए ही न्याय मांग सकता है।
    • (III) आंरम्भिक एवं अपीलीय मामलों में न्याय हेतु आवेदन की निश्चित प्रक्रिया का पालन करना होगा।
  • 1979 ई. में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पी.एन. भगवती (P. N. Bhagwati) और वी.आर. कृष्ण अय्यर (V. R. Krishna Iyer) ने पहली बार जनहित याचिका को स्वीकार किया अर्थात् जनता के हित में कोई भी जागरूक व्यक्ति याचिका दायर कर सकता है।
  • भारत में पुष्पा कपिला हिंगोरानी ने सर्वप्रथम जनहित याचिका दायर की (हुसैनआरा खातून बनाम बिहार राज्य वाद)

  • पुष्पा कपिला हिंगोरानी ने हुसैन आरा खातून बनाम बिहार राज्य वाद (Hussainara Khatoon Vs State of Bihar) में सर्वप्रथम जनहित याचिका दायर की थी।

  • भारत में 'जनहित याचिका की जननी' (Mother of PIL) पुष्पा कपिला हिंगोरानी (Pushpa Kapila Hingorani) को कहा जाता है।

  • पुष्पा कपिला हिंगोरानी पेशे से एक भारतीय वकील थी।
  • PIL का पूरा नाम अंग्रेजी में = Public Interest Litigation
  • PIL का पूरा नाम हिन्दी में = जनहित याचिका

  • जनहिन याचिका (PIL) न्यायिक सक्रियता का सबसे लोकप्रिय स्वरूप है।
  • कालांतर में सभी न्यायालयों द्वारा जनहित याचिकाओं को स्वीकार किया जाने लगा।
  • पोस्टकार्ड पर लिखी शिकायतों को भी जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया गया।
  • समाचार पत्रों में प्रकाशित समाचार को भी जनहित याचिका के रूप में स्वीकार किया गया अर्थात् न्यायाधीशों ने प्रसंज्ञान लेने हेतु जनहित याचिकाएं स्वीकार की।
  • इस प्रकार उपर्युक्त विवरण सकारात्मक न्यायिक सक्रियता है।

  • सकारात्मक न्यायिक सक्रियता का परिणाम- 
    • (I) विशाखा गाईडलाईन या विशाखा दिशा-निर्देश 1998 (Vishakha Guidelines)- भँवरी देवी केस में नैना कपूर ने जनहित याचिका (PIL) दायर की थी। जिसके बाद विशाखा दिशा निर्देश जारी किए गये थे। 
    • (II) एम. सी. मेहता बनाम भारत संघ (M. C. Mehta Vs Union of India)- यह विवाद पर्यावरण संरक्षण से संबंधित था।


2. नकारात्मक न्यायिक सक्रियता (Negative Judicial Activism)-

  • यदि न्यायपालिका अधिक सक्रिय हो जाए तथा न्यायलय, विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप करने लगे तो इसे नकारात्मक न्यायिक सक्रियता कहते हैं।
  • निम्नलिखित प्रावधानों के कारण नकारात्मक न्यायिक सक्रियता को प्रोत्साहन मिलता है।-
    • (I) संविधान की व्याख्या करने का अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास है।
    • (II) न्यायिक पुनरावलोकन की अवधारणा
    • (III) अनुच्छेद 142 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का प्रवर्तन
  • नकारात्मक न्यायिक सक्रियता के अनेक उदाहरण है। जैसे-
    • संविधान में संशोधन विधायिका (Legislature) कर सकती है किन्तु न्यायालय ने संविधान में अनेक संशोधन किए है। जैसे-

    • (I) अनुच्छेद 21 प्राण व दैहिक स्वतंत्रता को अत्यधिक व्यापक किया। 'विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया' को 'विधि की सम्यक प्रक्रिया' कर दिया।
    • (II) अनुच्छेद 124 में कॉलेजियम की व्यवस्था नहीं थी किन्तु न्यायालय ने कॉलेजियम जोड़ दिया।
    • (III) अनुच्छेद 368 में बुनियादी ढाँचे की अवधारणा का प्रावधान नहीं था किन्तु न्यायालय द्वारा इसे जोड़ दिया गया तथा संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को सीमित कर दिया गया।

    • (IV) अकाल नीति (Famine Policy)

    • (V) BCCI सुधार (BCCI Reforms)

  • न्यायपालिका (Judiciary) विधायिका (Legislature) के आंतरिक मामलों में भी हस्तक्षेप करती है। जैसे-

    • (I) विश्वास प्रस्ताव (Confidence Motion) के मामले में फ्लोर टेस्ट (Floor Test) के आदेश देना।
    • (II) सदन में कैमरे द्वारा लाइव कार्यवाही को लागू करना (झारखण्ड विधानसभा का मामला)
    • (III) न्यायपालिका कार्यपालिका के कार्यों को भी अपने हाथ में ले लेती है तथा कार्यपालिका को निर्देश देती है। जैसे-
      • (A) उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त की नियुक्ति करना।
      • (B) CBI को निर्देश देना।
      • (C) 2G लाइसेंस निरस्त करना।

      • (D) दिल्ली में पटाखों पर प्रतिबंध लगाना।


न्यायिक सक्रियता के लाभ (Advantages of Judicial Activism)-

  • 1. न्यायिक सक्रियता के कारण जनहित याचिका (PIL) की अवधारणा को स्वीकार किया गया है जिससे समाज के अशिक्षित व कमजोर वर्गों को न्याय प्राप्त करने में मदद मिलती है।
  • 2. विधायिका और कार्यपालिका की उदासीनता के कारण उत्पन्न रिक्त स्थान को न्यायपालिका ने भरा है।
  • 3. न्यायपालिका ने विधायिका और कार्यपालिका की निरंकुशता को नियंत्रित किया है। जैसे भारी बहुमत प्राप्त विधायिका दल अब मूलभूत ढाँचे की अवधारणा के कारण संविधान में मनमाना संशोधन नहीं कर सकता है। जैसे-
    • (I) नागरिकों के अधिकारों की रक्षा
    • (II) संविधान के आदर्शों की रक्षा

  • 4. न्यायपालिका की सक्रियता ने समाज के आधुनिकीकरण तथा सामाजिक सुधारों को प्रोत्साहन दिया है। जैसे- धारा-377 (Section-377), निजता का अधिकार (Right to Privacy), तीन तलाक (Triple Talaq), धारा-497 (Section 497)
  • 5. न्यायालय ने पर्यावरण संरक्षण के लिए अनेक प्रभावी उपाय किए है।
  • 6. न्यायिक सक्रियता के कारण लोगों की लोकतंत्र में आस्था बढ़ी है।
  • 7. चुनावों में पारदर्शिता बढ़ी है। अर्थात् प्रत्याशियों को सम्पूर्ण सूचना देनी होती है।
  • 8. न्यायपालिका की प्रक्रिया सरल हुई है। अर्थात् न्यायपालिका अधिक लोकतांत्रिक एवं भागीदारीपूर्ण हुई है।
  • 9. सर्वोच्च न्यायालय संविधान के रक्षक के रूप में उभरा।


न्यायिक सक्रियता की कमियाँ (Disadvantages of Judicial Activism)-

  • 1. न्यायिक सक्रियता में न्यायपालिका अधिक सक्रिय हो जाती है जो 'शक्ति पृथक्करण' (Separation of Power) (बुनियादी ढाँचा) तथा 'शक्ति संतुलन' (Balance of Power) के सिद्धांतों के विरुद्ध है। अर्थात् संविधान के विरुद्ध है।
  • 2. लोकतंत्र (Democracy) में वास्तविक शक्ति जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास  होनी चाहिए किन्तु न्यायिक सक्रियता से वास्तविक शक्ति न्यायपालिका के पास आ जाती है।
  • 3. न्यायिक सक्रियता द्वारा न्यायपालिका कार्यपालिका के कार्यों में अधिक हस्तक्षेप करती है जिससे कार्यपालिका की कुशलता में कमी आती है तथा कार्यों के निष्पादन की गति मंद हो जाती है।
  • 4. न्यायिक सक्रियता आर्थिक सुधारों को लागू करने में बाधा उत्पन्न करती है तथा पर्यावरण को आधार बनाकर अनेक आर्थिक परियोजनाओं पर न्यायपालिका द्वारा रोक लगाई गई है जिससे देश के आर्थिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है तथा इसके कारण बैंकों का NPA बढ़ता है।
  • 5. जनहित याचिकाओं (PIL) की अधिक संख्या के कारण न्यायालयों का कार्यभार बढ़ रहा है।
  • 6. सस्ती लोकप्रियता के लिए लोग जनहित याचिका (PIL) दायर कर देते है जिसमें महत्पूर्ण मुकदमों की उपेक्षा होती है।

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