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प्ली बारगेनिंग (Plea Bargaining)

प्ली बारगेनिंग (Plea Bargaining)-

  • प्ली बारगेनिंग की परिभाषा (Definition of Plea Bargaining)

  • प्ली बार्गेनिंग की मुख्य विशेषताएं (Salient Features of Plea Bargaining)
  • प्ली बार्गेनिंग के लाभ (Advantages of Plea Bargaining)


प्ली बारगेनिंग की परिभाषा (Definition of Plea Bargaining)-

  • प्ली बारगेनिंग एक अमेरिकी अवधारणा है।
  • प्ली बारगेनिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी दंडनीय अपराध के लिए आरोपित व्यक्ति द्वारा अपना अपराध स्वीकार कर लेने पर 'प्ली बारगेनिंग' (Plea Bargaining) के माध्यम से कानून के तहत निर्धारित सजा से कम सजा प्राप्त करने के लिए अभियुक्त (Accused) अभियोजन (Prosecutor) से सहायता लेता है। अर्थात् प्ली बार्गेनिंग समझौते का एक तरीका है जिसके अंतर्गत अभियुक्त कम सजा के बदले में अपने द्वारा किए गए अपराध को स्वीकार करके और पीड़ित व्यक्ति को हुए नुकसान और मुकदमें के दौरान हुए खर्चे की क्षतिपूर्ति करके कठोर सजा से बच सकता है।
  • प्ली बारगेनिंग में अभियुक्त (Accused) और अभियोजक (Prosecutor) दोनों के बीच ट्रायल के पूर्व वार्ता (Pre-trial Negotiations) को भी शामिल किया जाता है।
  • प्ली बारगेनिंग में न्यायालय के बाहर ही दोनों पक्षों में समझौता करवाया जाता है।
  • सन् 2005 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता या भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC) में संसोधन करके भारत में प्ली बारगेनिंग को वैधानिक बनाया गया था।

  • प्ली बार्गेनिंग प्रक्रिया 5 जुलाई 2006 से प्रभावी हुई है।

  • सन् 2005 से पहले भारत में 'प्ली बारगेनिंग' की अवधारणा कानून का हिस्सा नहीं थी।

  • निम्नलिखित मामलों में प्ली बारगेनिंक की अनुमति नहीं है-
    • (I) जिनमें 7 वर्ष या अधिक की सजा का प्रावधान हो।
    • (II) महिलाओं के विरुद्ध किए गए अपराध पर
    • (III) 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के विरुद्ध किए गए अपराध पर
    • (IV) सामाजिक व आर्थिक सुधारों के विरुद्ध अपराध


प्ली बार्गेनिंग की मुख्य विशेषताएं (Salient Features of Plea Bargaining)-

  • प्ली बार्गेनिंग केवल उन अपराधों पर लागू होता है जिनके लिए कानून में 7 वर्ष से अधिक कैद की सजा का प्रावधान नहीं है।
  • राष्ट्र की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों को प्रभावित करने वाले अपराधों पर और किसी महिला व 14 वर्ष से कम आयु के बच्चे के विरुद्ध किये गये अपराधों पर प्ली बार्गेनिंग लागू नहीं होता है।
  • किसी किशोर या बच्चे पर प्ली बार्गेनिंग लागू नहीं होगा जिसे बाल न्याय (बच्चे की देखभाल एवं सुरक्षा) अधिनियम 2000 की धारा (2) के खंड (K) में पारिभाषित किया गया है।
  • अभियुक्त प्ली बार्गेनिंग के लिए आवेदन उसी न्यायालय में दाखिल कर सकता है जिसमें उसके द्वारा किए गए अपराध से संबंधिक मुकदमा विचाराधीन है।
  • प्ली बार्गेनिंग के लिए आवेदन में मुकदमें व अभियुक्त के द्वारा किए गए अपराध से संबंधित तथ्यों का संक्षिप्त वर्णन करना चाहिए।
  • प्ली बार्गेनिंग के आवेदन के साथ अभियुक्त का शपथ पत्र भी होगा जिसमें लिखा होगा की कानून के द्वारा उसके अपराध के लिए दी गई सजा की प्रकृति एवं समयावधि को समझने के बाद अपनी इच्छा से प्ली बार्गेनिंग का चुनाव किया है और अभियुक्त किसी भी न्यायालय के द्वारा इस अपराध के लिए पहले दोषी नहीं ठहराया गया है।
  • न्यायालय यह सुनिश्चित करने के लिए कि अभियुक्त ने प्ली बार्गेनिंग का आवेदन अपनी इच्छा से किया है उससे एकान्त में पूछताछ करेगा जहां पर दूसरा पक्ष उपस्थित नहीं होगा।
  • यदि न्यायालय संतुष्ट है कि यह आवेदन अभियुक्त ने स्वेच्छा से दाखिल किया है और अभियुक्त इसी अपराध के लिए किसी न्यायालय के द्वारा पहले दोषी नहीं पाया गया है तो न्यायालय जन-अभियोजक, अभियुक्त एवं शिकायतकर्त्ता को मुकदमें का आपसी समझौते से निपटारा करने को कहती है। जिसमें अभियुक्त के द्वारा पीड़ित को हुए नुकसान और मुकदमें के दौरान हुए खर्चे की क्षतिपूर्ति भी शामिल होती है।
  • यदि मुकदमें का संतोषजनक हल हो जाता है तो न्यायालय उसकी एक रिपोर्ट तैयार करेगा जिस पर न्यायालय के पीठासीन अधिकारी और समझौते की प्रक्रिया में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के हस्ताक्षर होते हैं। न्यायालय के पीठासीन अधिकारी और समझौते की प्रक्रिया में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के हस्ताक्षर होते हैं।
  • न्यायालय पीड़िता के पक्ष में समझौते के अनुसार निश्चित मुआवजे को देने का आदेश देता है और सभी पक्षों की सजा की मात्रा पर सुनवाई करता है।
  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 360 और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम, 1958 के अंतर्गत न्यायालय अभियुक्त को नेक चलनी पर या भर्त्सना करने के पश्चात् या कम सजा पर छोड़ सकता है।
  • यदि अभियुक्त के द्वारा किए गए अपराध के लिए कानून में न्यूनतम सजा का प्रवाधान है तो न्यायालय अभियुक्त को उस न्यूनतम सजा की आधी सजा तक दे सकता है।
  • यदि अभियुक्त को अच्छे चाल-चलन पर अथवा भर्त्सना के पश्चात् छोड़ा नहीं जा सकता तो न्यायालय अभियुक्त को कानून के द्वारा उसके अपराध के लिए दी गई अधिकतम सजा की एक चौथाई सजा तक दे सकता है।
  • प्ली बार्गेनिंग में न्यायालय के द्वारा दिया गया निर्णय अन्तिम होगा और उस निर्णय के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती है। अपवादस्वरूप भारत के संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका या अनुच्छेद 226 व 227 के तहत उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की जा सकती है।
  • यदि अभियुक्त ने प्ली बार्गेनिंग का आवेदन स्वेच्छा से नहीं दिया है या अभियुक्त उस अपराध के लिए किसी न्यायालय के द्वारा पहले ही दोषी ठहराया गया है या आपसी सहमति से मुकदमें का निपटारा नहीं होता है तो प्ली बार्गेनिंग के आवेदन के लिए दिए गए तथ्य और बयान का इस्तेमाल प्ली बार्गेनिंग के अतिरिक्त अन्य किसी उद्देश्य के लिए नहीं किया जाता है।


प्ली बार्गेनिंग के लाभ (Advantages of Plea Bargaining)-

  • प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया जेलो में बंद विचाराधीन कैदियों की सहायता करती है जो कि लम्बे समय से जेलों में बंद है। प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया उनके लिए वरदान है।
  • प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया जेलों में बंद विचाराधीन कैदियों को अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करने का अवसर प्रदान करती है और जेलों में भीड़-भाड़ को कम करती है।
  • प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया अभियुक्त और पीड़ित को लम्बे, महंगे तथा तकनीकी अदालती प्रक्रिया को सहे बिना जल्दी न्याय दिलावाती है।
  • प्ली बार्गेनिंग प्रक्रिया न्यायालयों व अभियोजकों को मुकदमों के भार के प्रबंधन में और न्यायालय के भार को कम करने में सहायता करती है।
  • प्ली बार्गेनिंग अपराधिक मुकदमों का कम समय में निपटारा निश्चित करती है जो कि बहुत समय से विचाराधीन है और आरोपी, पीड़ित व गवाहों के अत्पीड़न का कारक है।
  • प्ली बार्गेनिंग की प्रक्रिया में आपराधिक मुकदमों का निपटारा शीघ्रता से होता है क्योंकि प्ली बार्गेनिंग में न्यायालय के द्वारा दिए गए निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती है और वह निर्णय अंतिम होता है।

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