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निर्वनीकरण (Deforestation)

निर्वनीकरण (Deforestation)-

  • मानवीय सुविधा के लिए वनों, जंगल या अन्य भूमि से बड़े पैमाने पर पेड़ों को हटाने के प्रक्रिया निर्वनीकरण कहलाती है।
  • निर्वनीकरण एक गंभीर पर्यावरणीय चिंता है क्योंकि इसके परिणामस्वरुर प्राकृतिक आवासों का नुकसान, जैव विविधता की क्षति, जल चक्र में अनियमितता तथा भूमि का क्षरण होता है।
  • वनों की कटाई से ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों में तेजी आती है।


वनों का महत्व (Forests Importance)-

  • वनों के द्वारा ग्रीन हाऊस गैसों (जैसे- कार्बन डाइ ऑक्साइड- CO2) को अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में योगदान दिया जाता है।
  • वन, ऑक्सीजन, भोजन, स्वच्छ जल तथा औषधि इत्यादि संसाधनों के स्रोत होते हैं।
  • वन जल चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे- वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया के माध्यम से पेड़ों द्वारा वायुमण्डल में जलवाष्प की मात्रा को नियमित रखा जाता है।
  • वनों के द्वारा बाढ़ के पानी को संग्रहीत करने का कार्य किया जाता है जिससे कारण इससे विनाशकारी प्रभावों में कमी आती है।
  • वन क्षेत्रों में पापदों की जड़ों द्वारा मिट्टी को यांत्रिक सामर्थय प्रदान किया जाता है जिसके कारण मिट्टी का कटाव नहीं हो पाता है।
  • पृथ्वी पर ज्ञात सभी वन्य प्रजातियों का 50% से अधिक भाग वन क्षेत्रों में पाया जाता है। अतः वन उनके लिए प्राकृतिक आवास का कार्य करते हैं।
  • अनेक उद्योगों जैसे- लकड़ी, कागज, कपड़े इत्यादि के लिए कच्चे माल की आपूर्ति वनों द्वारा की जाती है।
  • विश्व में लगभग 1.6 अरब रोजगार वनों पर निर्भर है।


निर्वनीकरण के कारण (Causes of Deforestation)-

    • 1. निर्वनीकरण के प्राकृतिक कारण (Natural Causes of Deforestation) या प्राकृतिक कारणों से निर्वनीकरण (Deforestation due to Natural Causes)
    • 2. निर्वनीकरण के मानवजनित कारण (Anthropogenic Causes of Deforestation) या मानवजनित कारणों से निर्वनीकरण (Deforestation due to anthropogenic causes)



      1. निर्वनीकरण के प्राकृतिक कारण (Natural Causes of Deforestation) या प्राकृतिक कारणों से निर्वनीकरण (Deforestation due to Natural Causes)-

      • ज्वालामुखी विस्फोट के कारण इसके आप-पास की वन भूमि नष्ट हो जाती है।
      • तूफान, बाढ़ तथा अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण वनों का विनाश होता रहता है।
      • पेड़ों को नष्ट करने वाले परजीवियों के आक्रमण से भी वन क्षेत्रों का नुकसान होता रहता है।
      • वनों में प्राकृतिक कारणों से लगने वाली आग के कारण बड़े पैमाने पर वन क्षेत्र जल जाते हैं।
      • उपर्युक्त कारणों के साथ यह तथ्य भी महत्वपूर्ण है की वनों के विनाश में प्राकृतिक कारणों की भूमिका अत्यंत सीमित होती है।


      2. निर्वनीकरण के मानवजनित कारण (Anthropogenic Causes of Deforestation) या मानवजनित कारणों से निर्वनीकरण (Deforestation due to anthropogenic causes)-

      • वनों के विनाश में योगदान देने वाली प्रमुख मानवीय गतिविधियां निम्न है।-
      • (I) कृषि (Agriculture)- छोटे तथा बड़े पैमाने पर की जाने वाली स्थानांतरित कृषि
      • (II) लॉगिंग (Logging)- कच्चे माल की प्राप्ति हेतु वनों को काटा जाता है।
      • (III) खनन एवं नगरीय विस्तार (Mining and Urban Expansion)- अवसंरचना निर्माण हेतु वन क्षेत्रों को लगातार साफ किया जा रहा है।
      • (IV) UNFCCC (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन) के सचिवालय के अनुसार विश्व में कृषि के लिए 80%, लॉगिंग के लिए 14% तथा लकड़ी को ईंधन के रूप में जलाने के लिए 5% वनों की कटाई की जाती है।


      निर्वनीकरण के दुष्प्रभाव (Adverse Effect Caused By Deforestation)-

      • वनों द्वारा प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) का अवशोषण किया जाता है। क्योंकि कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) एक ग्रीन हाऊस गैस है। अतः वनों की अत्यधिक कटाई से ग्लोबल वार्मिंग का दुष्प्रभाव बढ़ जाएगा।
      • वनों के द्वारा जल चक्र को नियमित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जाती है। अतः निर्वनीकरण के कारण वाष्पोत्सर्जन की प्रक्रिया कम हो जाएगी जिसके कारण वायुमण्डल में आद्रता कम हो जाती है तथा जल चक्र अनियमित हो जाता है।
      • पेड़ पौधों की मृत सामग्रियां (पत्तियां और टहनियां) जब भूमि पर गिरती है तो मिट्टी को कई गुण जैसे- जल धारण क्षमता तथा उर्वरता प्रदान करती है। अतः निर्वनीकरण के कारण मिट्टी की जल धारण क्षमता तथा उर्वरता घटती है।
      • निर्वनीकरण वाले क्षेत्रों में शुष्क जलवायु अनुभव करना बहुत सामान्य होता है। तथा यह सुखे एवं मरुस्थलीकरण का कारण बनता है।
      • वनों की कटाई से मृदा अपरदन बढ़ जाता है तथा प्राकृतिक आपदाओं जैसे- बाढ़ इत्यादि का परकोप भी तीव्र हो जाता है।
      • ढलान वाले भूमि क्षेत्रों में वनों की कटाई के कारण भूस्खलन की घटनाओं में तेजी आ जाती है।
      • वन, वन्य जीवों के प्राकृतिक आवास होते हैं तथा उन्हें रहने के लिए सुरक्षित आवास एवं भोजन उपलब्ध करवाते हैं।
      • उष्णकटिबंधीय वर्षा वन पृथ्वी पर सबसे अधिक जैव विविधता वाले क्षेत्र है। अतः इनकी कटाई से जैव विविधता को गंभीर खतरा उत्पन्न होता है तथा अनेक वन्य जीवों की प्रजातियां विलुप्त हो जाती है।
      • वनों के द्वारा अनेक उद्योगों के लिए कच्चे माल की आपूर्ति की जाती है। जैसे- लकड़ी उद्योग (Wood Industry), कृषि उद्योग (Agriculture Industry), निर्माण उद्योग (Construction Industry) इत्यादि।
      • अतः वनों की कटाई से अर्थव्यवस्था में अल्पकालिक लाभ तो होता है परन्तु दीर्घकालिक उत्पादकता एवं आर्थिक लाभ कम हो जाता है।


      निर्वनीकरण को नियंत्रित करने के उपाय (Measures to Control Deforestation)-

        • 1. व्यक्तिगत स्तर पर या व्यक्तियों की भूमिका (Role of Individuals)
        • 2. सरकार के स्तर पर या सरकार की भूमिका (Role of Government)
        • 3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर या अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका (International Role)


        1. व्यक्तिगत स्तर पर या व्यक्तियों की भूमिका (Role of Individuals)-

        • एक व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में 3R (Reduce, Reuse, Recycle) के सिद्धांत को अपनाकर वनों की कटाई को रोकने में अपना योगदान दे सकता है।
        • निर्वनीकरण के नकारात्म प्रभावों के बारे में जागरुकता फैलाकर तथा वृक्षारोपण अभियानों में भाग लेकर एक व्यक्ति निर्वनीकरण को कम करने में सहयोग दे सकता है।


        2. सरकार के स्तर पर या सरकार की भूमिका (Role of Government)-

        • वनों की कटाई को नियंत्रित करने के लिए सरकार द्वारा निम्न रणनीतियां अपनाई जा सकती है।
        • (I) वनों की अवैध कटाई को रोकने के लिए सुरक्षा उपाय बढ़ाये जाए तथा कानूनों का क्रियान्वयन शक्ति से किया जाए।
        • (II) सरकारी संरक्षित वनों की संख्या एवं क्षेत्रफल बढ़ाये जाने चाहिए।
        • (III) सरकार द्वारा बुनियादी ढांचे के निर्माण की योजनाओं में वन क्षेत्रों का नुकसान कम से कम किया जाना चाहिए।
        • (IV) सरकार को नये कृषि उद्योग (जैसे- हाइड्रोपोनिक्स) में निवेश तथा तकनीकी को बढ़ावा दिया जाना चाहिए तथा किसानों को पर्यावरण के अनुकूल कृषि पद्धतियां अपनाने हेतु प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
        • (V) अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियों (जैसे- स्थानांतरित कृषि) पर प्रतिबंध लगाकर वनों का प्रबंधन किया जाना चाहिए।
        • (VI) लकड़ी की मांग को कम करने के लिए इसके विकल्पों का उत्पादन तथा उपयोग सुगम बनाया जाना चाहिए। जैसे- बांस की लकड़ी को ईंधन के विकल्प के रूप में उपयोग में लाना।
        • (VII) जिन क्षेत्रों में निर्वनीकरण हो चुका है वहाँ पर वनीकरण अभियान शुरू किये जाए।


        3. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर या अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका (International Role)-

        • (I) UN REDD कार्यक्रम (UN REDD Programme)
        • (II) REDD कार्यक्रम (REDD Programme)
        • (III) REDD+ कार्यक्रम (REDD+ Programme)


        (I) UN REDD कार्यक्रम (UN REDD Programme)-

        • UNREDD Full Form = United Nation Programme on Reducing Emission From Deforestation and Forest Degradation
        • UNREDD का पूरा नाम = वनों की कटाई और वन क्षरण से उत्सर्जन कम करने पर संयुक्त राष्ट्र कार्यक्रम
        • UN REDD कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र का सहयोगात्मक कार्यक्रम है जिसके तहत विकासशील देशों में निर्वनीकरण तथा वन निम्नीकरण में कमी लाकर उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सके।
        • UN REDD कार्यक्रम का मुख्यालय जेनेवा स्विटजरलैण्ड में स्थित है।
        • UN REDD कार्यक्रम बाली एक्शन प्लान 2007 में लिए गये निर्णय की अनुपालना में 2008 से आरम्भ हुआ था।


        (II) REDD कार्यक्रम (REDD Programme)-

        • REDD कार्यक्रम को खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) तथा संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के सहयोग तथा इनकी निश्चित भूमिका के आधार पर बनाया गया है।
        • REDD कार्यक्रम में विकासशील देशों में REDD+ को लागू करने के लिए आवश्यक तकनीकी क्षमताओं की स्थापना में उनका सहयोग करता है। तथा REDD+ के दौरान परिणाण आधारित भूगतान के लिए UN-FCCC की आवश्यकताओं को पूरा करने में सहयोग करता है।


        (III) REDD+ कार्यक्रम (REDD+ Programme)-

        • REDD+ कार्यक्रम का उद्देश्य विकासशील देशों में निर्वनीकरण तथा वन निम्नीकरण में कमी लाकर तथा कार्बन अवशोषण बढ़ाकर वनों का सतत् प्रबंधन करना है।
        • REDD+ एक प्रक्रिया है जिसको UNFCCC के सदस्यों द्वारा विकसित किया गया है।
        • REDD+ कार्यक्रम के तहत वनों द्वारा संग्रहित किये गये कार्बन का वित्तीय मूल्य प्रदान किया जाता है।
        • REDD+ कार्यक्रम के अंतर्गत परिणाम आधारित कार्यवाही के लिए परिणाम आधारित भूगतान किया जाता है।
        • REDD+ कार्यक्रम विकासशील देशों में वन भूमि के माध्यम से उत्सर्जन नियंत्रित करने के लिए प्रोत्साहन देता है तथा कार्बन उत्सर्जन कम करने वाली तकनीक में निवेश बढ़ाकर सतत् विकास को बढ़ावा देता है।

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