राजस्थान के प्रमुख लोक देवता (Major Folk Deities of Rajasthan)-
- 1. रामदेव जी (Ramdev Ji)
- 2. गोगाजी (Gogaji)
- 3. पाबूजी (PabuJi)
- 4. मेहाजी मांगलिया (Mehaji Mangalia)
- 5. हडबू जी सांखला (Hadbu Ji Sankhala)
- 6. तेजाजी (Tejaji)
- 7. देवनारायण जी (Devnarayan Ji)
- 8. मल्लीनाथ जी (Mallinath Ji)
- 9. तल्लीनाथ जी (Tallinath Ji)
- 10. बिग्गा जी या वीर बग्गाजी (Bigga Ji)
- 11. हरिराम जी (Hariram Ji)
- 12. केसरिया कुंवर जी (Kesariya Kunwar Ji)
- 13. झरड़ा जी (Jharda Ji)
- 14. जुंझार जी (Junjhar Ji)
- 15. मामादेव (Mamadev)
- 16. आलम जी (Alam Ji)
- 17. खेतला जी (Khetla Ji)
- 18. डूंगजी-जवाहर जी (Doong Ji-Jawahar Ji)
- 19. वीर फत्ता जी (Veer Fatta Ji)
- 20. देव बाबा (Dev Baba)
- 21. कल्ला जी राठौड़ (Kallaji Rathore)
- 22. खेतरपाल जी या क्षेत्रपला जी (Khetarpal Ji)
- 23. भूरिया बाबा (Bhuriya Baba)
- 24. भोमिया बाबा (Bhomia Baba)
- 25. हरिमन बाबा (Hariman Baba)
- 26. ओम बन्ना जी (Om Banna Ji)
- 27. दशरथ मेघवाल जी (Dashrath Meghwal Ji)
- 28. फत्ता जी (Fatta Ji)
- 29. पनराज जी (Panraj Ji)
- 30. पत्तर जी (Pattar Ji)
- 31. ईलोजी (Eulogy)
निम्नलिखित
5 लोक देवताओं को पंच पीर कहते हैं।-
- 1. रामदेव जी (Ramdev Ji)
- 2. गोगाजी (Gogaji)
- 3. पाबूजी (PabuJi)
- 4. मेहाजी मांगलिया (Mehaji Mangalia)
- 5. हडबू जी सांखला (Hadbu Ji Sankhala)
- उपर्युक्त 5 लोक देवताओं को हिन्दू तथा मूस्लिम दोनों धर्मों के लोग पूजते हैं या मानते हैं।
1. रामदेव जी (Ramdev Ji)-
- पूरा नाम- रामदेव जी तंवर
- जन्म स्थान- उण्डू काश्मीर, बाड़मेर जिला, राजस्थान
- जन्म दिन- 1409 ई.
- पिता- अजमल जी तंवर या अजमाल जी
- अजमाल जी पोकरण के सामन्त थे।
- पोकरण राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है।
- माता- मैणा दे
- पत्नी- नेतल दे
- नेतलदे अमरकोट (पाकिस्तान) के दलेल सिंह सोढ़ा की राजकुमारी थी।
- धर्म- हिन्दू
- जाति- राजपूत
- गुरु- बालीनाथ
- बालीनाथ का मंदिर जोधपुर की मसूरिया पहाड़ी पर स्थित है।
- घोड़ा- लीला घोड़ा या नीला घोड़ा (लीलो)
- भाई- वीरमदेव (बलराम का अवतार)
- बहन- सुगना बाई
- धर्म बहन- डाली बाई (जाती- मेघवाल)
- अवतार- रामदेव जी को भगवान विष्णु (श्री कृष्ण) का अवतार माना जाता है।
- वंश- अर्जुन
- गौत्र- तंवर
- उपाधि- पीरो का पीर (रामदेव जी को पीरो का पीर कहते हैं।)
- झंडा- नेजा
- परचा- लोक देवताओं के चमत्कार को परचा कहा जाता है।
- मंदिर (रामदेवरा)- रुणिचा, पोकरण, जैसलमेर जिला (राजस्थान)
- रामदेव जी के अन्य प्रमुख मंदिर-
- (I) रूणिचा (रामदेवरा)- जैसलमेर जिला, राजस्थान
- (II) पोकरण- जैसलमेर जिला, राजस्थान
- (III) मसूरिया पहाड़ी- जोधपुर जिला, राजस्थान
- (IV) हलदिना- अलवर जिला, राजस्थान
- (V) छोटा रामदेवरा- गुजरात
- (VI) बिरांटिया खुर्द- पाली जिला, राजस्थान
- रामदेवजी के व्यक्तित्व की विशेषताएँ-
- (I) कवि
- (II) प्रजारक्षक
- (III) कष्ट निवारक देवता (कुष्ठ रोग)
- (IV) अछूतोद्धारक
- (V) सांप्रदायिक सौहर्द्ध के प्रेरक
- रामदेवजी के आध्यात्मिक उपदेश-
- (I) मूर्तिपूजा का विरोध किया था।
- (II) तीर्थयात्रा का विरोध किया था।
- (III) हर प्राणी में ईश्वर का वास होता है।
- (IV) नाम स्मरण पर बल दिया।
- (V) कर्मवाद पर बल दिया।
- (VI) सत्संग पर बल दिया।
- (VII) गुरु की महत्ता पर बल दिया था।
- (VIII) मनुष्य को अपने भ्रम तथा अहम का त्याग करना चाहिए।
- भारत का छोटा रामदेवरा (मिनी रामदेवरा) जूनागढ़, गुजरात में स्थित है।
- राजस्थान का छोटा रामदेवरा (मिनी रामदेवरा) खुंडियास, नागौर में स्थित है।
- खुंडियास राजस्थान के नागौर तथा अजमेर जिलों की सीमा पर स्थित है।
- रामदेव जी ने पोकरण (जैसलमेर) से भैरव नामक साहूकार को निकाल दिया था।
- रामदेव जी राजस्थान के एकमात्र ऐसे लोक है जिन्होंने मूर्ति पूजा का विरोध किया था इसीलिए रामदेव जी के मंदिर में पगल्ये की पूजा की जाती है।
- रामदेव जी एक कवि भी थे।
- रामदेव जी के उपदेश चौबीस वाणियाँ ग्रंथ में मिलते हैं।
- रामदेव जी का प्रमुख ग्रंथ चौबीस वाणियाँ या चौबीस बाणियां है।
- रामदेव जी के प्रमुख ग्रंथ चौबीस वाणियाँ को बाबारी पर्ची भी कहा जाता है।
- रामदेव जी साम्प्रदायिक सद्भाव के लिये जाने जाते हैं।
- हिन्दू लोग रामदेव जी को भगवान श्री कृष्ण का अवतार मानते हैं।
- मुस्लिम लोग रामदेव जी को रामसा पीर के रूप में पूजते हैं।
- रामदेव जी ने साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए कामड़िया पंथ की स्थापना की थी।
- कामड़ जाति की महिलाओं के द्वारा तेरहताली नृत्य किया जाता है।
- तेरहताली नृत्य रामदेव जी के मेले का प्रमुख आकर्षण नृत्य है।
- रामदेव जी ने शुद्धि आन्दोलन भी चलाया था।
- मेघवाल जाति की डाली बाई को रामदेव जी ने अपनी धर्म बहन बनाया था।
- रामदेव जी ने अपनी बहन सुगना बाई का विवाह पूगल गढ़ के निवासी विजय सिंह के साथ किया तथा रामदेव जी ने दहेज के रूप में पोकरण क्षेत्र विजय सिंह को दिया था।
- डाली बाई ने रामदेव जी से एक दिन पहले ही समाधि ली थी।
- डाली बाई मेघवाल ने भाद्रपद शुक्ल दशमी के दिन रुणीचा (रामदेवरा) में जीवित समाधि ली थी।
- रामदेवजी ने भाद्रपद शुक्ल एकादशी के दिन रुणीचा (रामदेवरा) में जीवित समाधि ली थी।
- रुणीचा राजस्थान के जैसलमेर जिले में स्थित है।
- आई माता रामदेव जी की शिष्या थी।
- रामदेवजी के मंदिर को देवरा कहा जाता है।
- रामदेवजी के मंदिर में पूजा करने वाले मेघवाल जाति के पुजारी को रिखिया कहा जाता है। अर्थात् रामदेव जी के मेघवाल भक्त रिखिया कहलते हैं।
- रामदेवजी के मंदिर में पूजा करने वाला पुजारी मेघवाल जाति का होता है।
- रामदेव जी के मंदिर में लगने वाले पंचरगी झंडे को नेजा कहा जाता है।
- रामदेव जी के मंदिर में किये जाने वाले रात्री जागरण को जम्मा (जमो) कहा जाता है।
- रामदेव जी के मंदिर में गाये जाने वाले गीतों को ब्यावले कहा जाता है।
- रामदेव जी के मंदिर में आने वाले पदयात्री को जातरू कहा जाता है।
- लोक देवताओं में सबसे लम्बा गीत रामदेव जी का है।
- भाद्रपद शक्ल एकादशी को लोक देवता रामदेव जी का जन्म हुआ था जिसे बाबे री बीज भी कहते हैं।
- भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से लेकर भाद्रपद शुक्ल एकादशी तक रुणिचा में रामदेवजी का मेला लगता है।
- रामदेव जी ने रुणिचा शहर (पोकरण, जैसलमेर) की स्थापना की थी।
- रामदेव जी ने रुणिचा में राम सरोवर का निर्माण करवाया था।
- रामदेव जी के द्वारा रुणिचा में बनवाये गये राम सरोवर का पुनर्निर्माण या जीर्णोद्धार बीकानेर के शासक गंगा सिंह ने करवाया था।
- रुणिचा में राम सरोवर के किनारे परचा बावड़ी भी स्थित है।
- परचा बावड़ी रुणीचा (रामदेवरा) में स्थित है।
- रुणिचा में लगने वाला रामदेव जी का मेला राजस्थान में साम्प्रदायिक सद्भाव का सबसे बड़ा मेला है।
- रामदेव जी ने पंच पिपली नामक स्थान पर मक्का के पाँच पीरों को चमत्कार दिखाया था।
- रामदेव जी के चमत्कार को परचा कहा जाता है।
- रामदेव जी ने कुष्ठ रोग का निवारण किया था।
- रामदेव जी ने अपने चमत्कार से परचा बावड़ी का निर्माण किया था।
टिप्पणी-
- लोक देवता में सबसे लम्बा गीत रामदेव जी का है।
- लोक देवियों में सबसे लम्बा गीत जीण माता का है।
- राजस्थान में साम्प्रदायिक सद्भाव का पहला सबसे बड़ा मेला रामदेव जी का है।
- राजस्थान में साम्प्रदायिक सद्भाव का दूसरा सबसे बड़ा मेला ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती का है।
2. गोगाजी (Gogaji)-
- पूरा नाम- गोगाजी चौहान
- जन्म स्थान- ददरेवा, चुरू जिला, राजस्थान
- पिता- जेवर सिंह
- माता- बाछल दे
- पत्नी- केलम दे या मेनलदे
- जाति- राजपूत
- गौत्र- चौहान
- घोड़ी- नीली धोड़ी
- ध्वज- श्वेत
- गुरु- गोरखनाथ जी
- मंदिर- गोगाजी के मंदिर खेजड़ी वृक्ष के नीचे बनाये जाते हैं। (गाँव-गाँव खेजड़ी, गाँव-गाँव गोगा)
- गोगाजी के अन्य प्रमुख मंदिर-
- (I) ददरेवा- चुरू जिला, राजस्थान
- (II) गोगामेड़ी- हनुमानगढ़ जिला, राजस्थान
- (III) खिलेरियों की ढाणी- सांचौर, जालौर जिला, राजस्थान
- गोगाजी के अन्य नाम-
- (I) गायों का देवता
- (II) सापों का देवता
- मेला- भाद्रपद कृष्ण नवमी के दिन गोगामेड़ी स्थित मंदिर में मेला लगता है।
- गोगाजी ददरेवा (चुरू) के राजा थे।
- अरजन-सरजन ने महमूद गजनवी को बुलाया था।
- गोगाजी ने महमूद गजनवी के साथ युद्ध किया तथा गायों की रक्षा की थी।
- महमूद गजनवी ने गोगाजी को 'जाहिर पीर' या जाहर पीर कहा था।
- जाहर पीर या जाहिर पीर = साक्षात देवता
- मुस्लिम धर्म के लोग पाबूजी को जाहर पीर के रूप में पूजते हैं।
- गायों की रक्षा के लिए गोगाजी अपने मौसेर भाईयों अरजन व सरजन के खिलाफ युद्ध करते हुये वीरगति का प्राप्त हुए थे।
- गोगाजी के ददरेवा (चुरू) में स्थित मंदिर को शीर्षमेडी कहते हैं क्योंकि ददरेवा में गोगाजी का सिर कट कर गिरा था।
- गोगाज के गोगामेडी (हनुमानगढ़) में स्थित मंदिर को धूरमेडी कहते हैं क्योंकि गोगामेडी में गोगाजी का धड़ कट कर गिरा था।
- गोगामेड़ी में गोगाजी का मंदिर मकबरा शैली में बना हुआ है। अर्थात् गोगामेड़ी में गोगाजी का मंदिर मकबरेनुमा बनाया गया है।
- गोगामेड़ी में बने गोगाजी के मंदिर में 'अल्लाह बिस्मिल्लाह' शब्द लिखा हुआ है।
- गोगामेड़ी में गोगाजी के मंदिर का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने करवाया था।
- गोगामेड़ी का वर्तमान स्वरूप गंगासिंह ने तैयार करवाया था।
- गोगाजी के मंदिर को मेडी कहा जाता है।
- गोगाजी के मंदिर खेजड़ी के वृक्ष के नीचे बनाये जाते हैं।
- खिलेरियों की ढाणी (सांचौर, जालौर जिला, राजस्थान) में गोगाजी की ओल्डी बनी हुई है।
- खिलेरियों की ढाणी में गोगाजी की ओल्डी का निर्माण राजाराम कुम्हार ने करवाया था।
- किसान गोगाजी के मेले में से गोगाराखी लेकर जाते हैं तथा किसान गोगाराखी को अपने हल व हाली के बांधते है।
- गोगाजी का प्रमुख वाद्य यंत्र डेरू है।
- गोगाजी को "सर्प रक्षक देवता" के रूप में पूजा जाता है।
- बीठू मेहाजी (कवि मेह) ने गोगाजी पर 'गोगाजी रा रसावला' नामक पुस्तक लिखी है।
3. पाबूजी (PabuJi)-
- पूरा नाम- पाबूजी राठौड़
- जन्म स्थान- कोलुमण्ड, फलौद या फलौदी के समीप कोळू गाँव (जोधपुर जिला, राजस्थान)
- पिता- धाँधल जी
- धाँधल जी जोधपुर के राठौड़ों के मूल पुरुष राव सीहा के पौत्र तथा राव आसथान के पुत्र थे।
- धाँधल जी राव धूहड़ के छोटे भाई थे।
- राव धूहड़ मारवाड़ में राठौड़ वंश के राजा थे।
- माता- कमलादे
- लोकमान्यता है कि पाबूजी का जन्म एक अप्सरा की कोख से हुआ था। अप्सरा के स्वर्गलोक गमन करने के बाद रानी कमलादे ने पाबूजी का पुत्रवत् लालन-पालन किया था।
- पत्नी- फूलमदे या सुप्यार दे या सुपियारदे
- फूलमदे या सुप्यार दे अमरकोट के राजा सूरजमल सोढा की राजकुमारी थी।
- घोड़ी- केसर कालमी (देवल नामक चारण महिला की घोड़ी)
- जाति- राजपुत
- गौत्र- राठौड़
- घोड़ी- केसर कालमी
- अवतार- पाबूजी को लक्ष्मण का अवतार माना जाता है।
- मेला- कोलुमण्ड में चैत्र अमावस्या के दिन आयोजित किया जाता है।
- अपने विवाह के दौरान तीन फेरों के बाद पाबूजी देवल नामक चारण महिला की गायों की रक्षा के लिए वापस आ गये थे।
- पाबूजी जोधपुर के देचू नामक गाँव में जींदराव खींची के खिलाफ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए।
- जींदराव खींची जायल का राजा था।
- जायल राजस्थान के नागौर जिले में स्थित है।
- मारवाड़ में पहली बार ऊँट लाने का श्रेय पाबूजी को जाता है। अर्थात् मारवाड़ में पहली बार ऊँट पाबूजी लेकर आये थे।
- पाबूजी को 'ऊँट रक्षक देवता' भी कहा जाता है।
- ऊँट पालने वाली जातियां (राईका/ रैबारी/ दैवासी) पाबूजी को अपना मुख्य देवता या आराध्य देव मानते हैं।
- पाबूजी थोरी तथा भील जाति के भी आराध्य देव है।
- पाबूजी को 'प्लेग रक्षक देवता' भी कहा जाता है।
- पाबूजी ने गुजरात के 7 थोरी जाति के भाइयों को शरण दी या रक्षा की थी।
- पाबूजी की फड राजस्थान में सबसे लोकप्रिय फड है।
- भील जाति के भोपे (पूजारी) पाबूजी की फड को गाते समय 'रावणहत्था' नामक वाद्य यंत्र बजाते हैं।
- ऊँट के बीमार होने पर पाबूजी की फड़ बांची जाती है तथा ऊँट के सही हो जाने पर नायक जाति के भोपों के द्वारा रावण हत्था वाद्ययंत्र से बांधी जाती है।
- पाबूजी के गीतों को पाबूजी के पावड़े कहते हैं।
- पाबूजी की वीरगाथा (लोक गाथा) गीत पवाड़े (भजन) 'माट/माठ' वाद्य यंत्र के साथ गाये जाते हैं।
- पाबूजी से संबंधित पुस्तकें-
- (I) पाबू प्रकाश (लेखक- आशिया मोडजी, आशिया मोडजी के अनुसार पाबूजी का जन्म बाडमेर जिले के जूना नामक गाँव में हुआ था।)
- (II) पाबूजी रा दूहा (लेखक- लघराज)
- (III) पाबूजी रा छन्द (लेखक- बीठू मेहाजी)
- (IV) पाबूजी रा रुपक (लेखक- मोतीसर बगतावर)
- (V) पाबूजी रा सोरठा (लेखक- रामनाथ)
- पाबूजी के व्यक्तित्व की विशेषताएं-
- (I) गौरक्षक देवता
- (II) वीरता
- (III) ऊँट रक्षक देवता
- (IV) त्यागशील
- (V) प्लेग रक्षक देवता
- (VI) वचनबद्धता
- (VII) अछूतोद्धारक
- (VIII) शरणागत रक्षक
- (IX) हाड़-फाड का देवता
- (X) बायीं ओर झुकी हुई पोग पाबूजी की विशेषता है।
- थोरी जाति के लोग के द्वारा पाबूजी का यशोगान सारंगी वाद्य यंत्र के साथ किया जाता है। जिसे पाबूजी री वचनिका कहते हैं।
- पाबूजी ने अपने बहनोई जिंदराज खींची (जायल, नागौर) से देंचु गाँव, जोधपुर में देवल चारणी की गायों की रक्षा की थी।
- पाबूजी के साथी या सहयोगी चांदा, डामा, हरमल, सांवत थे। (चाँदा व डामा दोनों भील भाई थे)
- पाबूजी की जीवनी पाबू प्रकाश नामक ग्रंथ में मिलती है।
4. मेहाजी मांगलिया (Mehaji Mangalia)-
- मुख्य मंदिर- बापीणी या बापणी, जोधपुर जिला, राजस्थान
- पिता- कीतु करणोत या गोपालराज
- माता- मायड़ दे
- मेला- मेहाजी मांगलिया का मेला कृष्ण जन्माष्टमी के दिन लगता है।
- घोड़ा- किरड काबरा
- अन्य नाम- गौरक्षक देवता
- मेहाजी मांगलिया पाना गुजरी की गायों की रक्षा के लिए जैसलमेर के राणगदेव भाटी के खिलाफ युद्ध में लड़ते हुए मारे गये थे।
- मेहाजी मांगलिया के भोपों (पूजारी) के वंश में वृद्धि नहीं होती है। अर्थात् मेहाजी मांगलिया के भोपों की वंश वृद्धि नहीं होता है।
- मेहाजी मांगलिया के भोपे (पूजारी) सन्तान को गोद लेकर वंश आगे बढ़ाते हैं।
- मेहाजी मांगलिया मारवाड़ के राजा राव चूंडा के समकालीन थे।
5. हडबू जी सांखला (Hadbu Ji Sankhala)-
- जन्म स्थान- भूंडेल या भूंडोल गाँव, नागौर जिला, राजस्थान
- जाति- राजपूत
- गोत्र- सांखला
- सवारी (वाहन)- सियार
- पिता- मेहराज जी सांखला (मेहाजी)
- माता- सोभागदे
- गुरू- बालीनाथ जी
- मंदिर- बेंगटी गाँव, फलोदी, जोधपुर
- हडबू जी शकुनशास्त्र या शगुन शास्त्र के ज्ञाता थे। अर्थात हडबूजी भविष्य वक्ता थे।
- हडबूजी राव जोधा के समकालीन थे।
- हडबू जी ने राव जोधा को मण्डोर जीतने का आशीर्वाद दिया तथा अपनी कटार भेंट की थी।
- राव जोधा हडबूजी के आशीर्वाद से राजा बना था।
- मण्डोर जीतने के बाद राव जोधा ने हडबू जी को बेंगटी गाँव दिया था।
- बेंगटी गाँव राजस्थान के जोधपुर जिले के फलोदी में स्थित है।
- बेंगटी (फलोदी, जोधपुर) में हडबूजी बूढी तथा विकलांग गायों की सेवा करते थे।
- हडबू जी रामदेव जी के मौसेरे भाई थे।
- अपने पिता की मृत्यु के बाद हडबू जी जोधपुर के हरभमजाल नामक स्थान पर रहने लगे थे।
- जोधपुर महाराजा अजीतसिंह ने जोधपुर के बेंगटी गाँव में हडबू जी के मंदिर का निर्माण करवाया था।
- जोधपुर के बेंगटी गाँव में स्थित हडबूजी के मंदिर में हडबूजी की बैलगाडी की पूजा की जाती है। क्योंकि हडबूजी अपनी बैलगाड़ी में पंगु गायों के लिए चारा भरकर लाते थे।
6. तेजाजी (Tejaji)-
- जन्म स्थान- खरनाल गाँव (नागौर जिला, राजस्थान)
- तेजाजी का जन्म एक जाट परिवार में हुआ था।
- पिता- ताहड़ जी
- माता- रामकुँवरी
- पत्नी- पेमलदे (पनेर, अजमेर)
- जाति- जाट
- गौत्र- धौलिया या धोल्या
- कर्मस्थली- बांसी दुगारी, बूंदी
- बहन- बुंगरी माता
- घोड़ी- लीलण या सिणगारी
- तेजाजी के अन्य नाम-
- (I) गायों का देवता
- (II) सापों का देवता
- (III) कृषि का उपकारक देवता (काला-बाला का देवता)
- (IV) नाडू रोग का देवता
- तेजाजी के पुजारी (भोपा) को घोड़ला कहा जाता है।
- मेला- परबतसर (नागौर), भाद्रपद शुक्ल दशमी
- मुख्य मंदिर- परबतसर (नागौर जिला, राजस्थान)
- परबतरसर (नागौर) स्थित तेजाजी का मंदिर जोधपुर के महाराजा अभयसिंह के शासन काल में बनवाया गया था।
- तेजाजी के अन्य मंदिर-
- (I) सैंदरिया (अजमेर जिला, राजस्थान)
- (II) भांवता (अजमेर जिला, राजस्थान)
- (III) पनेर (अजमेर जिला, राजस्थान)
- (IV) बासी दुगारी (बूंदी जिला, राजस्थान)
- (V) सुरसुरा (अजमेर जिला, राजस्थान)
- (VI) खरनाल (नागौर जिला, राजस्थान)
- तेजाजी को "सर्प रक्षक देवता" के रूप में पूजा जाता है।
- तेजाजी अपनी पत्नी को लाने अपने ससुराल पनेर (अजमेर) जा रहे थे तब अजमेर के सुरसुरा नामक गाँव में मेर जाति के आक्रमणकारियों से लाछा नामक गुर्जर महिला की गायों को बचाते हुए घायल हुए थे।
- तेजाजी को सैदरिया नामक स्थान पर एक साँप ने काट लिया था।
- साँप के काटने पर तेजाजी की मृत्यु अजमेर के सुरसुरा गाँव में हुई थी।
- तेजाजी की मृत्यु का समाचार तेजाजी की घोड़ी लीलण ने दिया था।
- तेजाजी की मृत्यु पर उसके साथ तेजाजी की पत्नी भी सत्ती हुई थी।
- तेजाजी को काला-बाला का देवता भी कहा जाता है।
- कालाबाला एक बीमारी का नाम है।
- खेत में हल चलाते समय किसान तेजाजी के गीत गाते हैं जिन्हें तेजा टेर या तेजा गीत भी कहते हैं।
- 2010-11 में तेजाजी पर राजस्थान सरकार ने डाक टिकट जारी किया था।
- तेजाजी की घोड़ी लीलण के नाम पर राजस्थान में एक रेलगाड़ी भी चलती है।
- तेजाजी पर निम्नलिखित पुस्तकें लिखी गई है।-
- (I) जुंझार तेजा (लेखक- लज्जाराम मेहता)
- (II) तेजाजी रा ब्यावला (लेखक- वंशीधर शर्मा)
राजल बाई (Rajal Bai)-
- राजल बाई तेजाजी की बहन थी।
- राजल बाई का मंदिर खरनाल (नागौर जिला, राजस्थान) में स्थित है।
- राजल बाई को बूंगरी माता भी कहा जाता है। अर्थात् बूंगरी माता का मंदिर खरनाल (नागौर) में स्थित है।
7. देवनारायण जी (Devnarayan Ji)-
- जन्म स्थान- आसीन्द, भीलवाड़ा जिला, राजस्थान
- देवनारायण जी का जन्म बगडावत (गुर्जर) परिवार में हुआ था।
- बचपन का नाम- उदयसिंह
- जाति- गुर्जर
- गौत्र- बगड़ावत
- घोड़ा- लीलागर
- पिता- सवाई भोज
- माता- सेढू या सेद खटानी
- पत्नी- पीपलदे
- पीपलदे धार के राजा जयसिंह परमार की पुत्री थी।
- मेला- देवनारायण जी का मेला भाद्रपद शुक्ल सप्तमी के दिन लगता है।
- अवतार- देवनारायण जी को भगवान विष्णु भगवान का अवतार माना जाता है।
- अन्य नाम- औषधि का देवता
- देवनारायण जी के मंदिर में नीम के वृक्ष के पत्ते चढ़ाये जाते हैं। इसीलिए गुर्जर जाति के लोग नीम के पेड़ की लकड़ियों को नहीं जलाते हैं।
- देवनारायण जी के मंदिर में मूर्ति नहीं होती है।
- देवनारायण जी के मंदिर में ईंट की पूजा की जाती है।
- देवनारायण जी की फड राजस्थान में सबसे लम्बी फड है।
- गुर्जर भोपो के द्वारा देवनारायण जी की फड को जन्तर वाद्य यंत्र के साथ गाया जाता या बाँची जाती है।
- देवनारायण जी की फड राजस्थान में सबसे लम्बी फड़ है।
- देवनारायण जी की फड़ पर सन् 1992 में 5 रुपये का डाक टिकट जारी हो चुका है।
- सन् 2010-11 में देवनारायण जी पर भी डाक टिकट जारी हो चुका है।
- देवनारायण जी के मंदिर-
- (I) आसीन्द (भीलवाड़ा जिला, राजस्थान)
- (II) देवमाली- ब्यावर (अजमेर जिला, राजस्थान)
- (III) देवधाम- जोधपुरिया (टोंक जिला, राजस्थान)
- जोधपुरिया- टोंक
- जोधपुरा- जयपुर
- जोधपुर- जोधपुर
- (IV) देवडूंगरी- (चित्तौड़गढ़ जिला, राजस्थान)
- देवडूंगरी में स्थित देवनारायण जी के मंदिर का निर्माण राणा सांगा के द्वारा करवाया गया था।
- देवनारायण जी का बचपन देवास (मध्य प्रदेश) में बीता है।
- देवनारायण जी को राज्य क्रांति का जनक कहते हैं।
- देवनारायण जी गुर्जर जाति के आराध्य देव है।
- गुर्जर जाति के लोग देवनारायण जी की झुठी कसम नहीं खाते हैं।
- देवनारायण जी के मंदिर में छाछ-राबड़ी चढ़ाई जाती है इसीलिए भाद्रपद शुक्ल छठ को गुर्जर जाति के लोग दूध का व्यापार नहीं करते हैं।
- देवनारायण जी ने भिनाय (अजमेर) के राजा को मारकर अपने पिता सवाई भोज की हत्या का बदला लिया था।
- देवनारायण जी से संबंधित पुस्तक-
- (I) बगडावत (लेखक- लक्ष्मी कुमारी चूंडावत)
8. मल्लीनाथ जी (Mallinath Ji)-
- पत्नी- रूपादे
- गुरु- उगम सिंह भाटी या उगमासी भाटी
- मुख्य मंदिर- तिलवाड़ा (बाड़मेर, राजस्थान)
- मल्लीनाथ जी मारवाड़ के राठौड़ राजा थे।
- मेला- मल्लीनाथ जी का मेला चैत्र कृष्णा एकादशी से चैत्र शुक्ल एकादशी तक (15 दिन) तिलवाड़ा (बाड़मेर) में लगता है।
- मल्लीनाथ जी के मेले में मालाणी नस्ल के पशु का क्रय-विक्रय किया जाता है।
- मल्लीनाथ जी का मेला राजस्थान का सबसे प्राचीन पशु मेला माना जाता है।
- मल्लीनाथ जी के पशु मेले की शुरुआत मोटाराजा उदयसिंह के शासन काल में हुई थी।
- मल्लीनाथ जी के रानी रूपादे एक लोक देवी है।
- मल्लीनाथ जी की पत्नी रूपादे को बरसात की देवी कहा जाता है।
- रूपादे का मंदिर नाकोड़ा (बाड़मेर) में स्थित है।
- मल्लीनाथ जी मारवाड के राठौड़ राजा थे।
- मल्लीनाथ जी ने दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक के मालवा के गवर्नर निजामुद्दीन को पराजित किया था।
- मल्लीनाथ जी की रानी रूपादे लोक देवी है।
- लोक देवी रूपादे का मंदिर मालाजल (बाड़मेर जिला, राजस्थान) में है।
- मल्लीनाथ जी भविष्य वक्ता थे। अर्थात् मल्लीनाथ जी चमत्कारी और भविष्यदृष्टा व्यक्ति थे।
- मल्लीनाथ जी तथा इनकी पत्नी रूपादे ने मिलकर समाज में छुआछूत एवं भेदभाव को मिटाने का प्रयास किया था।
- मल्लीनाथ जी में 1399 ई. में मारवाड़ में हरि कीर्तन का आयोजन करवाया था।
- मल्लीनाथ जी के नाम पर ही मालानी क्षेत्र का नाम पड़ा था।
- मल्लीनाथ जी ने कुडा पंथ की स्थापना की थी।
9. तल्लीनाथ जी (Tallinath Ji)-
- वास्तविक नाम- गोगादेव राठौड़ या गोगदेव राठौड़
- गुरु- जलंधर नाथ या जालन्धर नाथ
- तपोभूमि- सिरे मंदिर, जालौर
- तल्लीनाथ जी को ओरण का देवता कहा जाता है।
- मुख्य मंदिर- पांचोटा या पांचौट पहाड़ी (जालौर जिला, राजस्थान)
- ओरण- मंदिर के आस-पास छोड़ी गई जमीन जहाँ से पेड़ पौधे नहीं काट सकते।
- तल्लीनाथ जी मारवाड़ के राव चूंडा के छोटे भाई थे।
- तल्लीनाथ जी शेरगढ़ के सामंत (ठिकानेदार) थे।
- शेरगढ़ राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित है।
- तल्लीनाथ जी प्रकृति प्रेमी देवता थे।
- तल्लीनाथ जी के यहाँ आज भी हरे पेड़ नहीं काटे जाते हैं।
- विषेला कीड़ा काटने पर तल्लीनाथ जी के थान (मंदिर) पर लेकर जाते हैं।
- तल्लीनाथ जी ने जोईयो से अपने पिता वीरमदेव की हत्या का बदला लिया था।
- तल्लीनाथ जी से संबंधित पुस्तक-
- (I) वीरमायण (लेखक- बादर ढ़ाढ़ी)
10. बिग्गा जी या वीर बग्गाजी (Bigga Ji)-
- मुख्य मंदिर- रीड़ी, बीकानेर जिला, राजस्थान
- बिग्गा जी गायों की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
- बिग्गा जी जाखड़ समाज के कुल देवता है।
11. हरिराम जी (Hariram Ji)-
- मुख्य मंदिर- झोरडा गाँव, नागौर जिला, राजस्थान
- मेला- हरिराम जी का मेला भाद्रपद शुक्ल पंचमी (ऋषी पंचमी) के दिन लगता है।
- हरिमार जी की पूजा सर्प रक्षक देवता के रूप में की जाती
है।
- हरिराम जी के मंदिर में सांप की बांबी की पूजा की जाती
है।
- सांप की बांबी = सांप का बिल
12. केसरिया कुंवर जी (Kesariya Kunwar Ji)-
- केसरिया कुंवर जी गोगाजी के पुत्र थे।
- अन्य नाम- सांपों का देवता
- घोड़ी- नीली घोड़ी
- ध्वजा- सफेद
- केसरिया कुंवरजी का थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे मिलता है।
- केसरिया कुंवर जी को भी सर्प रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।
13. झरड़ा जी (Jharda Ji)-
- झरडा जी पाबूजी के भतीजे थे।
- जींदराव खींची को मारकर झरडा जी ने अपने पिता व चाचा की हत्या का बदला लिया था।
- जींदराव खींची जायल (नागौर) का राजा था।
- झरड़ा जी के मंदिर-
- (I) कोलूमंड (जोधपुर जिला, राजस्थान)
- (II) सिंभूदडा (बीकानेर जिला, राजस्थान)
- झरड़ा जी के अन्य नाम-
- (I) रूपनाथ
- (II) बालकनाथ (हिमाचल प्रदेश में कहा जाता है।)
- हिमाचल प्रदेश में झरडा जी को बालकनाथ के रूप में पूजा जाता है।
14. जुंझार जी (Junjhar Ji)-
- जन्म स्थान- इमलोहा, सीकर जिला, राजस्थान
- मंदिर- स्यालोदडा गाँव, सीकर जिला, राजस्थान
- जुन्झार जी सीकर जिले के स्यालोदड़ा गाँव में गायों की रक्षा करते हुए मारे गये थे।
- जुंझार जी के मंदिर में दुल्हा-दुल्हन (जुंझार जी तथा उनकी पत्नी) तथा जुन्झार जी के 3 भाईयों की मूर्तियाँ बनी हुई है।
- जुन्झार जी (झुंझार जी) की मूर्ति दुल्हे के वेश में लगी हुई है।
- मेला- रामनवमी के दिन सीकर जिले के स्यालोदड़ा गाँव में जुन्झार जी का मेला लगता है।
15. मामादेव (Mamadev)-
- मामादेव बरसात के देवता है।
- मामादेव का कोई मंदिर नहीं होता है।
- मामादेव का थान दक्षिण राजस्थान में मिलता है।
- गाँव के बाहर मामादेव के तोरण की पूजा की जाती है।
- मामादेव का तोरण लकड़ी का बना होता है।
- मामादेव का खुश करने के लिए भैंसे की बलि दी जाती है।
16. आलम जी (Alam Ji)-
- मुख्य मंदिर- धोरीमन्ना, बाड़मेर जिला, राजस्थान
- धोरीमन्ना को आलम जी का धौर भी कहा जाता है।
- आलम जी को अश्व रक्षक देवता भी कहा जाता है।
- आलम जी को गोरक्षक देवता भी कहा जाता है।
- आलम जी राठौड़ो की जैतमालोत शाखा से संंबंधित थे।
- मेला- आलम जी का मेला भाद्रपद शुक्ल द्वितीया (बाबे री बीज) के दिन लगता है।
17. खेतला जी (Khetla Ji)-
- मुख्य मंदिर- सोनाणा, पाली जिला, राजस्थान
- मेला- खेतला जी का मेला चैत्र शुक्ल एकम् को लगता है।
- खेतला जी के सोनाणा मंदिर में हकलाने वाले बच्चों का इलाज किया जाता है।
18. डूंगजी-जवाहर जी (Doong Ji-Jawahar Ji)-
- डूंगजी-जवाहर जी चाचा भतीजा थे।
- डूंगजी बाठोठ गाँव (सीकर) के सामंत थे।
- जवाहर जी पाटोदा गाँव (सीकर) के सामंत थे।
- कालांतर में डूंगजी-जवाहर जी डाकू बन गये थे।
- डूंगजी-जवाहर जी अमीरों को लूट कर उनका धन गरीबों में बाँट दिया करते थे।
- डूंगजी-जवाहर जी के प्रमुख सहयोगी-
- (I) लोहट जी जाट या लोठूजी निठारवाल
- (II) करणा जी मीणा
- (III) बालू जी नाई
- (IV) सांखू जी लोहार
- डूंगजी-जवाहर जी ने अंग्रेजों की आगरा जेल तथा नसीराबाद छावनी को लूट लिया था।
- डूंगजी-जवाहर जी 1857 की क्रांति के समय थे।
- डूंगजी-जवाहर जी ने जोधपुर व बीकानेर की सेना से युद्ध किया था।
- जोधपुर के महाराजा तख्त सिंह ने डूंगजी को गिरफ्तार किया तथा मेहरानगढ़ किले में रखा।
- मेहरानगढ़ किला राजस्थान के जोधपुर जिले में स्थित है।
- बीकानेर के महाराजा रतन सिंह ने जावहर जी को गिरफ्तार किया तथा जूनागढ़ किले में रखा।
- जूनागढ़ किला राजस्थान के बीकानेर जिले में स्थित है।
19. वीर फत्ता जी (Veer Fatta Ji)-
- मुख्य मंदिर- सांथू, जालौर जिला, राजस्थान
- मेला- वीर भत्ता जी का मेला भाद्रपद शुक्ल नवमी के दिन लगता है।
- वीर फत्ता जी गायों की रक्षा के लिए लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
20. देव बाबा (Dev Baba)-
- मुख्य मंदिर- नंगला जहाज. भरतपुर जिला, राजस्थान
- सवारी- भैंसा या पाडा
- मेले-
- (I) भाद्रपद शुक्ल पंचमी (ऋषि पंचमी)
- (II) चैत्र शुक्ल पचंमी
- देव बाबा का मेला वर्ष में दो बार लगता है।
- देव बाबा पशु चिकित्सक थे।
- देव बाबा को खुश करने के लिए 7 ग्वालों को भोजन करवाना पड़ता है।
21. कल्ला जी राठौड़ (Kallaji Rathore)-
- जन्म स्थान- साभियाना गाँव, मेड़ता सिटी, नागौर
- पिता- अचलसिंह
- माता- श्वेत कँवर
- पत्नी- कृष्णा कँवर
- जाति- राजपूत
- गोत्र- राठौड़
- अवतार- शेषनाग का
- कल्ला जी राठौड़ का संबंध मेवाड़ के तीसरे साके से है।
- अन्य नाम-
- (I) चार हाथों वाला लोकदेवता
- (II) दो सिर वाला लोकदेवता
- (III) मेवाड़ मणी भुषण
- कल्ला जी की छत्तरी भैरवपोल (चित्तौड़गढ़) में स्थित है।
- मंदिर-
- (I) सामलिया, डूंगरपुर
- (II) नरेला, चित्तौड़गढ़
- कल्ला जी के मंदिर में अफीम और केसर का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
22. खेतरपाल जी या क्षेत्रपला जी (Khetarpal Ji)-
- खेतरपाल जी को सीमा सुरक्षा का देवता कहा जाता है।
- शादी के अवसर पर काकन-डोरा खेतरपाल जी के नाम के बाँधे
जाते हैं।
23. भूरिया बाबा (Bhuriya Baba)-
- मंदिर- प्रतापगढ़, पाली तथा सिरोही
- भुरिया बाबा मीणा जाति के आराध्य देव है।
- मीणा जाति के लोग भुरिया बाबा की झुठी कसम नहीं खाते हैं।
- भुरिया बाबा को शोर्य का प्रतिक माना जाता है।
24. भोमिया बाबा (Bhomia Baba)-
- अन्य नाम- भूमि रक्षक देवता
25. हरिमन बाबा (Hariman Baba)-
- मंदिर- छोकरवाड़ा, भरतपुर
- हरिमन बाबा के मंदिर में सर्पदंश का इलाज होता है।
26. ओम बन्ना जी (Om Banna Ji)-
- मंदिर- पाली जिला, राजस्थान
- अन्य नाम-
- (I) बुलट वाले देवता
- (II) यातायात रक्षा का देवता
27. दशरथ मेघवाल जी (Dashrath Meghwal Ji)-
- मंदिर- देशनोक, बीकानेर
- दशरथ मेघवाल जी करणी माता के शिष्य थे।
28. फत्ता जी (Fatta Ji)-
- जन्म- सांथु गाँव, जालौर जिला, राजस्थान
- मंदिर- सांथु गाँव,
जालौर जिला, राजस्थान
- अन्य नाम- गौरक्षक देवता
29. पनराज जी (Panraj Ji)-
- जन्म- नया गाँव, पनराजसर, जैसलमेर जिला, राजस्थान
- मंदिर- नया गाँव, पनराजसर, जैसलमेर जिला, राजस्थान
- अन्य नाम- गौरक्षक देवता
30. पित्तर जी (Pattar Ji)-
- पित्तर जी का प्रसाद अमावस्या को चढ़ता है।
31. ईलोजी (Eulogy)-
- मंदिर- मारवाड़
- अन्य नाम-
- (I) छेड़छाड़ का देवता
- (II) नवदम्पत्ति का देवता
- धुलंडी के दिन जालौर, बाड़मेर में ईलोजी की सवारी निकाली जाती है।