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मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020

किसान (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवा अधिनियम 2020 [Farmers (Empowerment in protection) price Assurance contract and agriculture service act 2020]-

  • इस अधिनियम को अनुबंध खेती अधिनियम 2020 (Contract Farming Act 2020) भी कहा जाता है।
  • इस अधिनियम को मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम, 2020 (Price Assurance and Farm Services Act, 2020) भी कहा जाता है।
  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम संविदा कृषि (Contract Farming) को बढ़ावा देता है।
  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अध्यादेश 5 जून 2020 को जारी किया गया था।
  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम के तहत 1 वर्ष से 5 वर्ष तक कृषि अनुबंध (Contract Farming) किए जा सकते हैं।


त्रिस्तरीय तंत्र (Three Tier System)-

  • मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम के तहत विवाद निपटारे के लिए त्रिस्तरीय तंत्र होता है। जैसे-
  • 1. एसडीएम के द्वारा बनाई गई समिति (Committee Formed by SDM)
  • 2. एसडीएम (SDM)
  • 3. डी.एम. (DM) या भारत सरकार का संयुक्त सचिव स्तर का अधिकारी (Joint Secretary Level Officer of Government of India)


मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम के लाभ [Benefits of Price Assurance and Farm Services Act]-

  • 1. पूर्व निर्धारित कीमत के कारण किसानों को बाजार की अनिश्चितता (Uncertainty) से बचाया जा सकता है।
  • 2. निश्चित आय (Fix Income)
  • 3. बेहतर तकनीक (Technology) तथा गुणवत्तापूर्वक (Quality) कृषि आगते (Input) किसानों को उपलब्ध होंगी।
  • 4. लघु एवं सीमांत किसान (Small and Marginal Farmer) समूह बनाकर बेहतर अनुबंध कर सकते हैं।
  • 5. मध्यस्थी की समाप्ति (Elimination of Intermediate)
  • 6. कृषि विपणन (Marketing) की लागत कम होगी जिससे किसानों की आय बढ़ेगी।
  • 7. किसी भी परिस्थिति में किसानों की भूमि पर कब्जा (Occupied) नहीं किया जा सकता है।


मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा अधिनियम की चुनौतियां (Challenges to the Price Assurance and Farm Services Act)-

  • 1. किसानों की आशंका यह थी कि ऐसे अनुबंधों (Contract) में किसानों का पक्ष कमजोर होगा अर्थात् यह अनुबंध निजी कंपनियों (Private Company) की ओर झुके होंगे।
  • 2. निजी कंपनियों का पक्ष विवाद निपटारे (Dispute Settlement) में अधिक मजबूत होगा।
  • 3. विवाद निपटारे में न्यायालय का प्रावधान नहीं होना।
  • 4. कंपनियों के द्वारा भू-जल के अत्यधिक दोहन की आशंका।
  • 5. कंपनियों के द्वारा अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों की आशंका।

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