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राजस्थान की प्रमुख जनजातियां (Major Tribes of Rajasthan)

राजस्थान की जनजातियां (Tribes of Rajasthan)-

  • राजस्थान में सबसे बड़ी जनजाति मीणा है।
  • राजस्थान में दूसरी सबसे बड़ी जनजाति भील है।
  • राजस्थान में तीसरी सबसे बड़ी जनजाति गरासिया है।


राजस्थान की प्रमुख जनजातियां (Major Tribes of Rajasthan)-

  • 1. कंजर जनजाति (Kanjar Tribe)
  • 2. कथौड़ी जनजाति (Kathauri Tribe)
  • 3. डामोर जनजाति (Damor Tribe)
  • 4. सांसी जनजाति (Sansi Tribe)
  • 5. सहरिया जनजाति (Sahariya Tribe)
  • 6. गरासिया जनजाति (Garasiya Tribe)
  • 7. भील जनजाति (Bhil Tribe)
  • 8. मीणा जनजाति (Meena Tribe)


1. कंजर जनजाति (Kanjar Tribe)-

  • कंजर शब्द काननचार से बना है जिसका अर्थ होता है- जंगल में रहने वाला
  • मुख्य क्षेत्र- हाड़ौती
  • मुख्य व्यवसाय- अपराध करना
  • कंजर जनजाति के लोक अपराध करने से पहले देवताओं से आशीर्वाद लेते हैं जिसे "पाती मांगना" कहते हैं।
  • मुख्य देवता- कंजर जनजाति के मुख्य देवता निम्नलिखित है।
  • (I) जोगणिया माता (Jogniya Mata)
  • (II) चौथ माता (Chauth Mata)
  • (III) रक्तदंजी माता (Raktadanji Mata)
  • (IV) हनुमान जी (Hanuman Ji)
  • जोगणिया माता का मंदिर राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित है।
  • जोगणिया माता कंजन जनजाति के कुल देवी है।
  • चौथ माता का मंदिर चौथ का बरबाड़ा (सवाई माधोपुर) में स्थित है।
  • रक्तदंजी माता का मंदिर संतूर में स्थित है।
  • संतूर राजस्थान के बूंदी जिले में स्थित है।
  • कंजर जनजाति में घरों में पीछे की तरफ खिड़की रखना अनिवार्य होता है।
  • हाकम राजा का प्याला पीने के बाद कंजर जनजाति के लोग झूठ नहीं बोलते हैं।
  • कंजर जनजाति के लोग मोर का मांस खाते हैं।
  • मुखिया- कंजर जनजाति के मुख्यिया को पटेल कहा जाता है।

  • कंजर जनजाति में व्यक्ति के मरने के बाद उसके शव को दफनाया जाता है।


2. कथौड़ी जनजाति (Kathauri Tribe)-

  • कथौड़ी मूल रूप से महाराष्ट्र की जनजाति है।
  • कथौड़ी जनजाति के लोग खैर के पेड़ से कत्था प्राप्त करते हैं इसलिए इन्हें कथौड़ी कहा जाता है।
  • मुख्य क्षेत्र- उदयपुर
  • कथौड़ी एक संकटग्रस्थ जनजाति है। (40 परिवार)
  • मनरेगा योजना में राजस्थान सरकार कथौड़ी जनजाति के लोगों को 100 दिन का अतिरिक्त रोजगार देती है।
  • कथौड़ी जनजाति के लोग दूध नहीं पीते हैं।
  • कथौड़ी जनजाति के लोग शराब अधिक पीते हैं।
  • कथौड़ी जनजाति में महिलाएं भी पुरुषों के साथ बैठकर शराब पीती है।
  • कथौड़ी जनजाति के लोग बंदर का मांस खाते हैं।
  • कथौड़ी जनजाति में महिलाएं गहने नहीं पहनती है।
  • कथौड़ी जनजाति में महिलाएं गोदना गुदवाती है।
  • कथौड़ी जनजाति के लोग झोंपड़ी को खोलरा कहा जाता है।
  • मुखिया- कथौड़ी जनजाति में मुखिया को 'नायक' कहा जाता है।
  • मुख्य देवता- कथौड़ी जनजाति के मुख्य देवता निम्नलिखित है।
  • (I) डूंगर देव (Dungar Dev)
  • (II) गाम देव (Gam Dev)
  • (III) वाद्य देव (Vadya Dev)
  • (IV) भारी माता (Bhari Mata)
  • (V) कंसारी माता (Kansari Mata)


3. डामोर जनजाति (Damor Tribe)-

  • मुख्य क्षेत्र- सीमलवाडा पंचायत समिति, डूंगरपुर जिला, राजस्थान
  • डूंगरपुर जिले के सीमलवाडा पंचायत समिति क्षेत्र को डामरिया कहा जाता है।
  • डामोर जनजाति वनों पर आश्रित नहीं है बल्कि खेती व पशुपालन करते हैं।
  • डामोरी जनजाति की भाषा पर गुजराती प्रभाव दिखाई देता है।
  • डामोरी जनजाति में पुरुष भी महिलाओं की तरह गहने पहनते हैं।
  • डामोरी जनजाति में पुरुष बहुविवाह करते हैं।
  • दापा- वधू मूल्य (डामोरी जनजाति में विवाह के दौरान दूल्हन को मूल्य चुकाया जाता है जिसे दापा कहा जाता है।)
  • चाड़िया- डामोरी जनजाति में होली पर किये जाने वाले कार्यक्रम को चाड़िया कहते हैं।
  • मुखिया- डामोरी जनजाति में मुखिया को मुखी कहा जाता है।
  • मेले- डामोरी जनजाति के मेले
  • (I) छैला बावजी का मेला- पंचमहल, गुजरात
  • (II) ग्यारस की रेवड़ी का मेला- डूंगरपुर जिला, राजस्थान


4. सांसी जनजाति (Sansi Tribe)-

  • मुख्य क्षेत्र- भरतपुर तथा अजमेर
  • सांसी जनजाति में मुख्यतः दो वर्ग होते हैं। जैसे-
  • (I) बीजा (Bija)
  • (II) माला (Mala)
  • भाखर बावजी की कसम लेने के बाद सांसी जनजाति के लोग झूठ नहीं बोलते हैं।
  • भाखर बावजी की कसम लेते समय सांसी जनजाति के लोग एक हाथ में कुल्हाड़ी तथा दूसरे हाथ में पीपल का पत्ता रखते हैं।
  • सांसी जनजाति के लोक सिकोदरी माता की पूजा करते हैं।
  • सांसी जनजाति में विधवा विवाह नहीं किया जाता हैं।
  • कूकड़ी- सांसी जनजाति में विवाह के दौरान महिलाओं की एक रसम है।


5. सहरिया जनजाति (Sahariya Tribe)-

  • मुख्य क्षेत्र- किशनगंज तहसील व शाहबाद तहसील, बारां जिला, राजस्थान
  • सहरिया शब्द 'सहर' से बना है जिसका अर्थ होता है 'जंगल'
  • सहरिया जनजाति राजस्थान की एकमात्र आदिम जनजाति है।
  • मनरेगा योजना में राजस्थान सरकार सहरिया जनजाति के लोगो को 100 दिन का अतिरिक्त रोजगार देती है।
  • सहरिया जनजाति में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था होती है। जैसे-
  • (I) पंचताई (Panchtai)- 5 गाँव की पंचायत
  • (II) एकदसिया (Ekadasiya)- 11 गाँव की पंचायत
  • (III) चौरासी (Chaurasi)- सभी सहरियों की या 84 गाँवों की पंचायत
  • सहरिया जनजाति के लोगों की चौरासी पंचायत (84 गाँव की पंचायत) वाल्मीकि मंदिर (सीताबाड़ी) में होती है।
  • वाल्मीकि मंदिर राजस्थान के बारां जिले के सीताबाड़ी में स्थित है।
  • सहरिया जनजाति के लोग वाल्मीकि जी को अपना आदि पुरुष मानते हैं।
  • कुल देवी- सहरिया जनजाति के लोगों की कुल देवी कोडिया माता है।
  • सहरिया जनजाति के लोग तेजाजी तथा भैरुंजी की पूजा भी कहते हैं।
  • सहरिया जनजाति के लोग वर्षा ऋतु में आल्हा तथा लंहगी नामक गीत गाते हैं।
  • सहरिया जनजाति के लोगो के द्वारा दीपावली पर हीड़ नामक गीत गाया जाता है।
  • सहरिया जनजाति के लोग होली के त्योहार पर लठ्ठमार होली खेलते हैं।
  • सहरिया जनजाति के लोग मकर संक्रांति पर लकड़ी के डंडों से लेंगी खेलते हैं।
  • मुखिया- सहरिया जनजाति में मुखिया को कोतवाल कहते हैं।
  • सहरोल- सहरिया जनजाति में गाँव को सहरोल कहते हैं।
  • बस्ती- सहरिया जनजाति में बस्ती को सहराना कहते हैं।
  • सहरिया जनजाति में सामुदायिक केंद्र को बंगला या हथाई या ढालिया कहते हैं।
  • सहरिया जनजाति में पेड़ो पर बनाये जाने वाले घरों को गोपना या टोपा या कोरुआ कहते हैं।
  • सहरिया जनजाति में महिलाएं गोदना गुदवाती है लेकिन पुरुष नहीं करवा सकते हैं।
  • सहरिया जनजाति में महिलाएं घर में घूंघट रखती है लेकिन घर से बाहर घूंघट नहीं रखती है।
  • सहरिया जनजाति में दहेज प्रथा नहीं है।
  • सहरिया जनजाति में युगल नृत्य नहीं किया जाता है।
  • सहरिया जनजाति में श्राद्ध नहीं किया जाता है।
  • सहरिया जनजाति में धारी संस्कार किया जाता है।


6. गरासिया जनजाति (Garasiya Tribe)-

  • मुख्य क्षेत्र-
  • (I) आबू, सिरोही जिला, राजस्थान
  • (II) पिंडवाडा, सिरोही जिला, राजस्थान
  • (III) बाली, पाली जिला, राजस्थान
  • (IV) गोगुन्दा, उदयपुर जिला, राजस्थान
  • गरासिया शब्द 'गरास' से बना है जिसका अर्थ है- 'टुकड़ा'
  • गरासिया जनजाति में संयुक्त परिवार व्यवस्था नहीं है।
  • गरासिया जनजाति में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था होती है।
  • (I) मोटी न्यात (Moti Nyat)- बड़ी पंचायत या उच्च पंचायत
  • (II) नेनकी न्यात (Nenaki Nyat)- मध्यम पंचायत
  • (III) निचली न्यात (Nichali Nyat)- निम्न पंचायत
  • गरासिया जनजाति में मोटी न्यात के सदस्य को बाबोर हाईया कहते हैं।
  • गरासिया जनजाति में नेनकी न्यात के सदस्य को माडेरिया कहते हैं।
  • नक्की झील गरासिया जनजाति का पवित्र स्थान माना जाता है।
  • नक्की झील राजस्थान की सिरोही जिले के माउंट आबू में स्थित है।
  • गरासिया जनजाति के लोग नक्की झील में अस्थियों का विसर्जन करते हैं।
  • गरासिया जनजाति के लोग मोर तथा सफेद पशु को पवित्र मानते हैं।
  • मेले- गरासिया जनजाति के मेले
  • (I) कोटेश्वर मेला- अम्बाजी, गुजरात
  • (II) चेतर विचितर मेला- देलवाडा, सिरोही, राजस्थान
  • (III) गणगौर मेला- सियावा, सिरोही, राजस्थान
  • गणगौर मेले में गरासिया जनजाति के लोगो द्वारा प्रेम विवाह अधिक किये जाते हैं।
  • विवाह के प्रकार- गरासिया जनजाति में विवाह के प्रकार
  • (I) मोरबंधिया (Morbandhiya)- 
  • (II) ताणना (Tanana)
  • (III) पहरावणा (Pahravana)
  • (IV) मेलबो (Melabo)
  • (V) खेवणो (माता) Khevano (Mata)
  • (VI) सेवा (Seva)
  • भील गरासिया- गरासिया पुरुष भील महिला से विवाह कर ले तो ऐसे परिवार को भील गरासिया कहते हैं।
  • गमेती गरासिया- गरासिया महिला भील पुरुष से विवाह कर ले तो ऐसे परिवार को गमेती गरासिया कहते हैं।
  • मुखिया- गरासिया जनजाति में मुखिया को सहलोत या पालवी कहते हैं।
  • सहकारी समिति- गरासिया जनजाति में सहकारी समिति को हेलरु कहते हैं।
  • स्मारक- गरासिया जनजाति में स्मारक (छतरी) को हूरे कहते हैं।
  • बरामदा- गरासिया जनजाति में बरामदे को को ओसरा कहते हैं।
  • अनाज भंडारण- गरासिया जनजाति में जहाँ अनाज का भंडारण किया जाता है उसे सोहरी कहते हैं।


7. भील जनजाति (Bhil Tribe)-

  • मुख्य क्षेत्र- उदयपुर
  • भील राजस्थान की प्राचीनतम जनजाति मानी जाती है।
  • भील राजस्थान की दूसरी सबसे बड़ी जनजाती मानी जाती है।
  • भील शब्द वील से बना है जिसका अर्थ होता है- तीर-कमान
  • कर्नल जेम्स टोड ने भीलों को वनपुत्र कहा था।
  • विलियम रोने ने अपनी पुस्तक "Wild Tribes of India" में भीलों का उत्पत्ति स्थल मारवाड़ बताया है। अर्थात् विलियम रोने के अनुसार मारवाड़ भीलों का उत्पत्ति स्थल था।
  • विलियम रोने एक लेखक थे।
  • विलियम रोने की पुस्तक "Wild Tribes of India" है।
  • घर- भील जनजाति में घर को टापरा या कू कहते हैं।
  • मोहल्ला- भील जनजाति में मोहल्ले को फला कहते हैं।
  • गाँव- भील जनजाति में गाँव को पाल कहते हैं।
  • भील जनजाति में गाँव के प्रमुख को पालवी या तदवी कहते हैं।
  • मुखिया- भील जनजाति में मुखिया को गमेती कहा जाता है।
  • कुल देवता- भील जनजाति में कुल देवता को टोटम कहा जाता है।
  • भील जनजाति में पेड़-पौधों को टोटम का प्रतीक मानते हैं।
  • भील जनजाति में पेड़-पौधों को साक्षी मानकर विवाह किया जाता है।
  • भील जनजाति में पेड़-पौधों को साक्षी मानकर किये गये विवाह को "हाथीवेंडो विवाह" कहते हैं।
  • भील जनजाति में विवाह की देवी को भराडी माता कहते हैं।
  • भील जनजाति में दूल्हें को ससुराल में भराडी माता का चित्र बनाना पड़ता है।
  • भील जनजाति में बाल विवाह नहीं किया जाता है।
  • वधू मूल्य- भील जनजाति में विवाह के दौरान दिये जाने वाले वधू मूल्य को दापा कहते हैं।
  • तलाक- भील जनजाति में तलाक को छेड़ा फाड़ना कहते हैं।
  • झगड़ा- भील जनजाति में यदि कोई महिला अन्य पुरुष के साथ रहने लग जाती है तो वह व्यक्ति उसके पूर्व पति को धन देता है जिसे झगड़ा कहते हैं।
  • रक्त मूल्य- भील जनजाति में मोत के बदले में जो धन लिया जाता है उसे मौताणा कहते हैं।
  • रणघोष- भील जनजाति का रणघोष "फाइरे-फाइरे" होता है।
  • यदि कोई भील व्यक्ति किसी घुड़सवार सैनिक को मार देता है तो उसे पाखरिया कहा जाता है।
  • भील जनजाति के द्वारा स्थानान्तरित कृषि की जाती है।
  • भील जनजाति में स्थानान्तरित कृषि को वालरा कहा जाता है।
  • भील जनजाति के द्वारा जब पहाड़ी भाग में स्थानान्तरित कृषि की जाती है तब उसे चिमाता कहते हैं।
  • भील जनजाति के द्वारा जब समतल मैदान में स्थानान्तरित कृषि की जाती है तब उसे दजिया कहते हैं।
  • भील जनजाति में सामुहिक कृषि कार्य को हेलमो कहते हैं। अर्थात् भील जनजाति के लोग जब सामुहिक रूप से कृषि कार्य करते है उसे हेलमो कहा जाता है।
  • मेले- भील जनजाति के मेले
  • (I) बेणेश्वर मेला- डूंगरपुर, राजस्थान (यहाँ शिव मंदिर बना हुआ है।)
  • (II) घोटिया अम्बा मेला- बांसवाड़ा, राजस्थान (यहाँ पर कुंती तथा 5 पांडवों के मंदिर बने हुए है।)
  • वेशभूषा- भील जनजाति की वेशभूषा
  • (I) ठेपाडा या ढेपाड़ा (Thepara/ Dhepara)-
  • (II) खोयतू (Khoyatu)
  • (III) पिरिया (Piriya)
  • (IV) सिन्दूरी (Sinduri)
  • (V) परिजनी (Parijani)
  • (VI) कछाबू (Kachhabu)
  • भील जनजाति में पुरुषों की तंग धोती को ठेपाडा या ढेपाड़ा कहते हैं।
  • भील जनजाति में पुरुषों की सामान्य धोती को खोयतू कहते हैं।
  • भील जनजाति में दुल्हन की पीले रंग की साड़ी को पिरिया कहते हैं।
  • भील जनजाति में लाल रंग की सामान्य साड़ी को सिन्दूरी कहा जाता है।
  • भील जनजाति में महिलाओं के द्वारा पेरो में पहने जाने वाले पीतल के कड़े को परिजनी कहा जाता है।
  • कछाबू भील जनजाति में महिलाओं का आभूषण (घाघरा या लहंगा) है।


8. मीणा जनजाति (Meena Tribe)-

  • मीणा राजस्थान की सर्वाधिक जनसंख्या वाली जनजाति है।
  • मुख्य क्षेत्र- जयपुर, राजस्थान
  • मीणा जनजाति में मुख्यतः दो वर्ग होते हैं। जैसे-
  • (I) जमींदार मीणा (Jamindar Meena)
  • (II) चौकीदार मीणा (Chaukidar Meena)
  • मुख्य देवता- मीणा जनजाति का मुख्य देवता भूरिया बाबा होता है।
  • मोरनी मांडना- मोरनी मांडना मीणा जनजाति में विवाह की एक रसम होती है।
  • मीणा जनजाति राजस्थान की सर्वाधिक शिक्षित जनजाति है।

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