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औद्योगिक वित्त (Industrial Finance)

औद्योगिक वित्त (Industrial Finance)-

  • औद्योगिक क्षेत्र के विकास अर्थात् उद्योग की स्थापना से लेकर पुनर्जीवन (बीमार औद्योगिक इकाइयों के पुनः संचालन), आधुनिकीकरण (Modernization), यंत्रीकरण (Mechanization) आदि के लिए पूंजी संबंधी आवश्यकता की पूर्ति ही औद्योगिक वित्त कहलाता है।


औद्योगिक वित्त के प्रकार (Types of Industrial Finance)-

  • औद्योगिक वित्त (पूंजी) संबंधी आवश्यकताओं को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। जैसे-
  • 1. स्थिर पूंजी (Fixed Capital) या दीर्घकालीन पूंजी (Long Term Capital)
  • 2. कार्यशील पूंजी (Working Capital) या अल्पकालिक पूंजी (Short Term Capital)


1. स्थिर पूंजी (Fixed Capital) या दीर्घकालीन पूंजी (Long Term Capital)-

  • किसी नए उद्योग के प्रारम्भ में भूमि (Land), भवन (Building), मशीनों (Machines), औजार (Tools), फर्नीचर (Furniture) आदि स्थाई परिसंपतियों का क्रय करने के लिए आवश्यक पूंजी को दीर्घकालीन पूंजी कहते हैं।


2. कार्यशील पूंजी (Working Capital) या अल्पकालिक पूंजी (Short Term Capital)-

  • किसी उद्योग के दिन प्रतिदिन की आवश्यकताओं को पूरा करने, कच्चा माल खरीदने, मजदूरी का भुगतान करने एवं अन्य प्रशासनिक कार्यों को पूरा करने के लिए आवश्यक पूंजी को अल्पकालिक पूंजी कहते हैं।


औद्योगिक वित्त के स्रोत (Sources of Industrial Finance)-

  • औद्योगिक वित्त के स्रोतों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। जैसे-
  • 1. आंतरिक स्रोत (Internal Sources)
  • 2. बाह्य स्रोत (External Sources)


1. आंतरिक स्रोत (Internal Sources)-

  • औद्योगिक वित्त के आंतरिक स्रोत में निम्न शामिल है।
  • (I) शेयर पूंजी (Share Capital)
  • (II) ऋण पत्र (Debentures)
  • (III) लाभ का पुनर्निवेश (Reinvestment of Profit or Ploughing Back of Profit)


(I) शेयर पूंजी (Share Capital)-

  • कंपनी अधिनियम के अंतर्गत स्थापित कंपनी स्थाई पूंजी जुटाने के लिए इनिशियल पब्लिक ऑफर (IPO) और फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर (FPO) के माध्यम से प्रिफरेंशियल शेयर (Preferential Share) और इक्विटी शेयर (Equity Share) जारी करके पूंजी एकत्रित कर सकती है।
  • IPO Full Form = Initial Public Offer
  • IPO का पूरा नाम = इनिशियल पब्लिक ऑफर
  • FPO Full Form = Follow on Public Offer
  • FPO का पूरा नाम = फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर


(II) ऋण पत्र (Debentures)-

  • कंपनी ऋण पत्रों को जारी करके भी पूंजी एकत्र कर सकती है।
  • ऋण पत्रों में जोखिम की मात्रा कम होती है।
  • ऋण पत्र मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। जैसे-
  • (A) परिवर्तनीय ऋण पत्र (Convertible Debenture)
  • (B) अपरिवर्तनीय ऋण पत्र (Non Convertible Debenture)


(A) परिवर्तनीय ऋण पत्र (Convertible Debenture)-

  • वे ऋण पत्र जो मैच्योरिटी के बाद शेयर में बदले जा सके परिवर्तनीय ऋण पत्र कहलाते हैं।


(B) अपरिवर्तनीय ऋण पत्र (Non Convertible Debenture)-

  • वे ऋण पत्र जो मैच्योरिटी के बाद भी शेयर में नहीं बदले जा सके अपरिवर्तनीय ऋण पत्र कहलाते हैं।


(III) लाभ का पुनर्निवेश (Reinvestment of Profit or Ploughing Back of Profit)-

  • कंपनी लाभ के पुनर्निवेश के माध्यम से भी पूंजी प्राप्त कर सकती है।
  • कंपनी अपने लाभ के एक हिस्से को अपने शेयर धारकों में वितरीत न करके उसे उद्योग के विस्तार के लिए उद्योगों में निवेश कर सकती है।


2. बाह्य स्रोत (External Sources)-

  • औद्योगिक वित्त के बाह्य स्रोत में निम्न शामिल है।
  • (I) व्यापारिक बैंक (Commercial Banks)
  • (II) सार्वजनिक जमाएँ (Public Deposits)
  • (III) उद्योगों का संस्थागत वित् प्रबंधन (Institutional Finance Management of Industries)


(I) व्यापारिक बैंक (Commercial Banks)-

  • व्यापारिक बैंक उद्योगों की कार्यशील पूंजी (Working Capital) और अल्पकालिक आवश्यकताओं (Short Term Needs) की पूर्ति के लिए पूंजी उपलब्ध कराने में व्यापारिक बैंकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।


(II) सार्वजनिक जमाएँ (Public Deposits)-

  • भारतीय औद्योगिक कंपनियों के द्वारा अल्पकालीन (Short Term) एवं दीर्घकालीन (Long Term) दोनों प्रकार की सार्वजनिक जमाएं (Public Deposits) स्वीकार की जाती है।
  • सार्वजनिक जमाएँ कंपनी अधिनियम, 2013 (Company Act, 2013) की धारा 73 से 76 के माध्यम से संचालित (Regulate) होती है।
  • समयावधि- सार्वजनिक जमाओं की समयावधि न्यूनतम 6 माह, अधिकतम 36 माह (3 वर्ष)
  • निवेशक- सार्वजनिक जमाओं में केवल आम जनता निवेश कर सकती है।
  • पावती (Receipts)- सार्वजनिक जमाओं में पावती (रसीद) दी जाती है।


(III) उद्योगों का संस्थागत वित् प्रबंधन (Institutional Finance Management of Industries)-

  • उद्योगों की दीर्घकालीन आवश्यकताओं की पूर्ति विभिन्न वित्तीय संस्थाओं द्वारा की जाता है। जैसे-
  • (A) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (Small Industries Development Bank of India- SIDBI)
  • (B) भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटेड (Industrial Finance Corporation of India Limited- IFCI)
  • (C) राज्य वित्त निगम (State Finance Corporations- SFCs)
  • (D) भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (Industrial Development Bank of India- IDBI)

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