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प्रवाल भित्ति (Coral Reef)

प्रवाल भित्ति (Coral Reef)-

  • प्रवाल भित्ति का विकास कोरल पोलिप (Coral Polyps) या मूंगा के बाह्य कंकाल के समायोजन से होता है।
  • कोरल पोलिप निडेरिया संघ का जीव है जो मुख्यतः उष्ण कटिबंधीय महासागरों (Tropical Oceans) में पाया जाता है तथा अपने विकास के लिए कैल्शियम कार्बोनेट (Calcium Carbonate- CaCO3) का उपयोग करता है।
  • कोरल पोलिप समूह में पाया जाने वाला जीव व तथा ये अपने चारों ओर कैल्शियम कार्बोनेट (Calcium Carbonate- CaCO3) का सुरक्षित आवरण बनाते हैं।
  • जब किसी कोरल पोलिप की मृत्यु होती है तो दूसरा जीव उसके उपर आकर स्थापित हो जाता है तथा इस प्रक्रिया में लम्बे समय के दौरान एक भित्ति का निर्माण हो जाता है जिसे प्रवाल भित्ति कहते हैं।


प्रवाल भित्तियों की विशेषताएं (Features of Coral Reef)-

  • प्रवाल भित्तियों का निर्माण 30° उत्तरी अक्षांश से 30° दक्षिणी अक्षांशों के मध्य होता है।
  • प्रवाल भित्ति के निर्माण के लिए एक निश्चित तापमान (26-27℃) की आवश्यकता होती है। इससे अधिक या कम तापमान होने पर कोरल की मृत्यु हो जाती है।
  • समुद्रों में कोरल लगभग 200-250 फीट की गहराई तक ही पाये जाते हैं क्योंकि इससे अधिक गहराई पर प्रकाश तथा ऑक्सीजन की उपलब्धता कम हो जाती है।
  • कोरल के विकास के लिए साफ जल की आवश्यकता होती है क्योंकि अवसाद युक्त जल (Sediment Water) के कारण कोरल का मुँह बंद हो जाता है तथा कोरल की मृत्यु हो जाती है।
  • कोरल के विकास के लिए एक निश्चित लवणता (25-30%) की आवश्यकता होती है। अतः ताजा जल में कभी भी कोरल का विकास नहीं होता है।
  • कोरल के निर्माण के लिए एक उपयुक्त प्लेटफोर्म की आवश्यकता होती है।
  • कोरल का विकास महासागरीय धाराओं (Oceanic Currents) के क्षेत्रों में होता है जिसके कारण ऑक्सीजन तथा पोषक तत्वों की उपलब्धता अधिक रहती है।
  • कोरल पोलिप तथा जूजेंथेली (Zooxanthellae) शैवाल के मध्य सहजीवी संबंध होता है। जिसमें शैवाल, कोरल को भोजन उपलब्ध करवाता है तथा बदले में कोरल, शैवाल को रहने हेतु स्थान तथा कार्बन डाई ऑक्साइड (CO2) उपलब्ध करवाता है।
  • प्रवाल भित्तियों का रंग शैवाल में पाये जाने वाले वर्णक प्रोटीन (Pigmented Proteins) पर निर्भर करता है।


प्रवाल भित्तियों का महत्व (Importance of Coral Reefs)-

    • 1. जैव विविधता (Biodiversity)
    • 2. उत्पादकता (Productivity)
    • 3. संसाधन (Resources)
    • 4. रंग (Colour)
    • 5. तटीय सुरक्षा (Coastal Protection)


            1. जैव विविधता (Biodiversity)-

            • प्रवाल भित्ति क्षेत्रों में पोषक तत्वों की मात्रा अधिक होती है जिसके कारण इन क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की प्रजातियों का विकास आसानी से होता है अतः जैव विविधता की दृष्टि से ये क्षेत्र महत्वपूर्ण होते हैं।
            • प्रवाल भित्तियां विश्व के कुल समुद्री भाग के 1% से कम क्षेत्र में मिलती है जबकि यहाँ पर कुल समुद्री प्रजातियों का 25% भाग पाया जाता है। अर्थात् यहाँ की जैव विविधता अत्यधिक होती है।
            • इन क्षेत्रों की अधिक जैव विविधता का कारण यहाँ पर शेवालों की अत्यधिक उपलब्धता एवं उत्पादकता का होना है इसी कारण प्रवाल भित्तियों को "महासागरों का वर्षा वन" (Rain Forest of Sea) भी कहा जाता है।


            2. उत्पादकता (Productivity)-

            • पोषक तत्वों की अत्यधिक उपलब्धता के कारण इन क्षेत्रों में मत्स्य उत्पादन (Pisciculture) की संभावनाएं अधिक होती है।


            3. संसाधन (Resources)-

            • प्रवाल भित्तियों से अनेक संसाधन जैसे- खाद्य पदार्थ, औषधियां, मूंगा पत्थर एवं अन्य संसाधन उपलब्ध होते हैं।


            4. रंग (Colour)-

            • प्रवाल भित्तियां प्राकृतिक रूप से सुन्दर होती है अतः पर्यटकों को आकर्षित करती है जिससे आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है।


            5. तटीय सुरक्षा (Coastal Protection)-

            • प्रवाल भित्तियां तटीय क्षेत्रों को समुद्रीय तुफानों से सुरक्षा प्रदान करती है।


            प्रवाल भित्ति के प्रकार (Types of Coral Reef)-

            • प्रवाल भित्ति तीन प्रकार की होती है। जैसे-
            • 1. तटीय भित्ति (Fringing Reef)
            • 2. अवरोधक (Barrier Reef)
            • 3. प्रवाल वलय (Atoll)


            1. तटीय भित्ति (Fringing Reef)-

            • ये प्रवाल भित्तियां महासागरीय तटीय क्षेत्रों से जुड़ी होती है।

            • भारत में अंडमान क्षेत्रों में पायी जाने वाली प्रवाल भित्तियां इसी प्रकार की है।


            2. अवरोधक (Barrier Reef)-

            • ये प्रवाल भित्तियां समुद्र के किनारों से कुछ अंदर की ओर तथा इनके समानांतर बनती है।
            • ये प्रवाल भित्तियां सर्वाधिक लम्बी, चौड़ी तथा ऊँचाई वाली होती है एवं लैगून (Lagoon) का निर्माण करती है।
            • विश्व की सबसे लम्बी प्रवाल भित्ति आस्ट्रेलिया की ग्रेट बैरियर रीफ (Great Barrier Reef) है।
            • ग्रेट बैरियर रीफ (Great Barrier Reef) की लम्बाई लगभग 2300 किलोमीटर है।


            3. प्रवाल वलय (Atoll)-

            • प्रवाल वलय वृत्ताकार या अर्द्धवृत्ताकार आकृति की होती है जो किसी द्वीप या जलमग्न पठार के चारो ओर बनती है। जैसे- भारत की लक्षद्वीप की प्रवाल भित्तियां।


            भारत में प्रवाल भित्तियां (Coral Reef in India)-

            • भारत में 5790 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में प्रवाल भित्तियां पायी जाती है।
            • संरक्षण एवं प्रबंधन की दृष्टि से भारत की प्रवाल भित्तियों को 4 भागों में बाटा गया है। जैसे-
            • (I) कच्छ का रण (Rann of Kutchh)
            • (II) लक्षद्वीप (Lakshadweep)
            • (III) मन्नार की खाड़ी (Gulf or Mannar)
            • (IV) अण्डमान निकोबार क्षेत्र (Andaman and Nicobar)


            कोरल ब्लीचिंग (Coral Bleaching)-

            • कोरल पोलिप तथा जूजैंथिली शैवाल जब विभिन्न पर्यावरणीय कारणों से एक दूसरे से पृथक हो जाते हैं या जूजैंथिली शैवाल अपने वर्णकों की मात्रा को कम कर देते हैं।

            • उपर्युक्त दोनों ही परिस्थितियों में प्रवाल में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है तथा वह अपने वास्तविक रंग (सफेद) में आ जाता है इसे ही कोरल ब्लीचिंग कहते हैं।

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