मध्यकालीन राजस्थान की प्रशासनिक एवं राजस्व व्यवस्था-
- (अ) मध्यकालीन राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था
- (ब) मध्यकालीन राजस्थान की राजस्व व्यवस्था
(अ) मध्यकालीन राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था-
- मध्यकालीन राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था को सामन्ती व्यवस्था कहा जाता है।
- मध्यकालीन राजस्थान की सामन्ती व्यवस्था टैन्ट के समान थी।
- मुगल मनसबदारी व्यवस्था सीढ़ी के समान थी।
- अतः मनसबदारी व्यवस्था के कारण मध्यकालीन राजस्थान की सामन्ती व्यवस्था में भी परिवर्तन आये थे। लेकिन फिर भी मध्यकालीन राजस्थान की सामन्ती व्यवस्था का मूल ढ़ाँचा टैन्ट के समान बना रहा।
- मध्यकालीन राजस्थान की सामन्ती व्यवस्था बंधुत्व पर आधारित थी।
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार यूरोप की प्रशासनिक व्यवस्था में राजा तथा सामन्त, स्वामी तथा सेवक के रूप में थे।
- मध्यकालीन राजस्थान की प्रशासनिक व्यवस्था में राजा व सामन्तों के संबंध समान व कर्त्तव्य पर आधारित थे।
मध्यकालीन राजस्थान में सामन्तों द्वारा राजा को दिये जाने वाले कर-
- 1.रेख
- 2.उत्तराधिकार शुल्क या उत्तराधिकार कर
- 3.चाकरी
- 4.नजराना
- 5. न्यौत कर
- 6. गनीम बराड़
1. रेख-
- भू-राजस्व को रेख कहते थे अर्थात् वह भू-राजस्व जो सामन्त द्वारा राजा को दिया जाता था उसे रेख कहते थे।
- रेख दो प्रकार का होता था। जैसे-
- (I) पट्टा रेख- अनुमानित भू-राजस्व को पट्टा रेख कहते थे।
- (II) भरतु रेख- वास्तविक भू-राजस्व को भरतु रेख कहते थे।
2.उत्तराधिकार शुल्क या उत्तराधिकार कर-
- यह सामन्त के उत्तराधिकारी द्वारा राजा को दिया जाने वाला कर है अर्थात् यह नये सामन्त द्वारा राजा को दिया जाने वाला कर था।
- मेवाड़ में इस कर को तलवार बंधाई या कैद खालसा या नजराना कहते थे।
- मारवाड़ा में इस कर को हुकमनामा या पेशकशी कहते थे।
- जैसलमेर रियासत में सामन्त यह कर नहीं देते थे।
3.चाकरी-
- सामन्तों द्वारा राजा को सेवाएं प्रदान की जाती थी जिसे चाकरी कहते थे।
- जैसलमेर रियासत में राजा सामन्तों को चाकरी के बदले धन देता था।
4. नजराना-
- यह युवराज के प्रथम विवाह के समय सामन्तों द्वारा राजा को दिया जाने वाला कर था।
5. न्यौत कर-
- यह राजकुमारियों के विवाह के समय सामन्तों द्वारा राजा को दिया जाने वाला कर था।
6. गनीम बराड़-
- यह युद्ध के समय सामन्तों द्वारा राजा को दिया जाने वाला कर था।
मध्यकालीन राजस्थान में सामन्तों के विशेषाधिकार-
- 1.ताजीम
- 2.बाँह पसाव
- 3.हाथ कुरब
1.ताजीम-
- जब सामन्त दरबार में आता था तब राजा खड़े होकर उसका स्वागत करता था।
- यह दो प्रकार की होती थी। जैसे-
- (I) इकेवडी ताजीम- सामन्त के दरबार में आने पर राजा द्वारा उसके सम्मान में खड़ा होना।
- (II) दोवड़ी ताजीम- सामन्त के दरबार में आने व जाने दोनों स्थित में राजा द्वारा उसके सम्मान में खड़ा होना।
2.बाँह पसाव-
- राजा द्वारा सामन्त के कंधों पर हाथ रखना बाँह पसाव कहलाता था।
3.हाथ कुरब-
- राजा द्वारा सामन्त के कंधों को थपथपाना तथा अपने दिल से लगा लेना हाथ कुरब कहलाता था।
मध्यकालीन राजस्थान में राज्य के प्रमुख अधिकारी-
- 1. प्रधान
- 2. दीवान
- 3. बक्षी
- 4. नायब बक्षी
- 5. खानसामा
- 6. मुंशी
- 7. वकील
- 8. शिकदार
- 9. नैमितिक
1. प्रधान-
- यह अन्य मंत्रियों पर नियंत्रण रखता था।
- यह राजा को प्रशासनिक सलाह देता था।
- कोटा व बूंदी रियासत में इसे दीवान या फौजदार कहते थे।
- जयपुर रिसासत में इसे मुसाहिब कहते थे।
- बीकानेर व भरतपुर रियासत में इसे मुख्त्यार कहते थे।
- मेवाड़, मारवाड़ व जैसलमेर रियासत में इसे प्रधान ही कहते थे।
2. दीवान-
- राजा को वित्त एवं राजस्व की सलाह देने वाला अधिकारी।
- यह राजा की अनुपस्थिति में राज्य संभालता था।
- यह परगनों में हाकिम की नियुक्ति करता था।
3. बक्षी-
- यह सैनिक मामलों को अधिकारी था अर्थात् सेना इसके नियंत्रण में रहती थी।
4. नायब बक्षी-
- यह सैना को वेतन देने वाला अधिकारी था।
- यह रेख का हिसाब किताब रखता था।
5. खानसामा-
- यह राजकीय महल की आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला अधिकारी था।
- यह राजकीय उद्योगों को संभालता था।
- कालांतर में इसे ही दीवान बनाया जाता था।
6. मुंशी-
- यह राजा की तरफ से पत्र व्यवहार करने वाला अधिकारी था अर्थात् राजा की तरफ से पत्र लिखने का कार्य करता था।
7. वकील-
- यह राजधानी में सामन्तों का प्रतिनिधि करने वाला अधिकारी था।
8. शिकदार-
- यह नगर की कानून व्यवस्था को देखने वाला अधिकारी था।
9. नैमितिक-
- यह राज ज्योतिषी था।
मध्यकालीन राजस्थान में जागीर के प्रकार-
- 1. सामन्त जागीर
- 2. हुकूमत जागीर
- 3. भौम जागीर
- 4. सासण जागीर
1. सामन्त जागीर-
- राजाओं द्वारा अपने भाईयों को यह जागीर दी जाती थी।
- यह जागीर वंशानुगत होती थी।
2. हुकूमत जागीर-
- राजाओं द्वारा कर्मचारी को यह जागीर दी जाती थी।
- यह जागीर अवंशानुगत होती थी।
3. भौम जागीर-
- राजाओं द्वारा सेवा के बदले सैनिकों को यह जागीर दी जाती थी।
- यह जागीर वंशानुगत व अवंशानुगत दोनों प्रकार की होती थी।
4. सासण जागीर-
- यह धार्मिक अनुदान होता था।
- यह जागीर मंदिर, मस्जिद, समाधि, चारण कवि, ब्राह्मण आदि को दी जाती थी।
- यह जागीर कर मुक्त (माफी जागीर) होती थी।
मध्यकालीन राजस्थान में सामंतों की श्रेणियां-
- 1. मेवाड़ रियासत
- 2. मारवाड़ रियासत
- 3. बीकानेर रियासत
- 4. जैसलमेर रियासत
- 5. जयपुर रियासत
- 6. कोटा रियासत
1. मेवाड़ रियासत-
- मेवाड़ रियासत में सामंतों की 3 श्रेणियां थी। जैसे-
- (I) प्रथम श्रेणी- 16 सामन्त
- (II) द्वितीय श्रेणी- 32 सामन्त
- (III) तृतीय श्रेणी- 100+ सामन्त
- प्रथम श्रेणी में 16 सामन्त थे जिन्हें उमराव कहा जाता था।
- प्रथम श्रेणी के 16 सामन्तों में सबसे प्रमुख 'सलूम्बर' का सामन्त था।
- द्वितीय श्रेणी में 32 सामन्त थे।
- तृतीय श्रेणी में 100 से अधिक सामन्त थे जिन्हें 'गोल का सामन्त' कहा जाता था।
2. मारवाड़ रियासत-
- मारवाड़ रियासत में सामन्तों की 4 श्रेणियां थी। जैसे-
- (I) राजवी श्रेणी
- (II) सिरदार श्रेणी- इसमें
- (III) गिनायत श्रेणी- इसमें राजा के संबंधियों को सामन्त बनाया जाता था।
- (IV) मुत्सद्दी श्रेणी- इसमें कर्मचारियों को सामन्त बनाया जाता था।
- राजवी श्रेणी में राजा के निकट तीन पीढ़ी के व्यक्ति सामन्त बनते थे। जैसे- राजा का चाचा, राजा का भाई, राजा के बेटे
- राजवी श्रेणी के सामन्त रेख, हुक्मनामा, चाकरी नहीं देते थे।
- सिरदार श्रेणी में राजा के निकट तीन पीढ़ी के अलावा अन्य भाई बंधु सामन्त बनते थे।
- गिनायत श्रेणी में राजा के संबंधी (विवाह) सामन्त बनते थे।
- मुत्सद्दी श्रेणी में कर्मचारी सामन्त बनते थे।
3. बीकानेर रियासत-
- बीकानेर रियासत में सामन्तों की 3 श्रेणियां थी। जैसे-
- (I) प्रथम श्रेणी- इस श्रेणी में बीका के वंशज सामन्त बनते थे।
- (II) द्वितीय श्रेणी- इस श्रेणी में बीका के वंशज के अलावा अन्य राठौड़ सामन्त बनते थे।
- (III) तृतीय श्रेणी- इस श्रेणी में बीका से पूर्व के व्यक्ति सामन्त बनते थे।
4. जैसलमेर रियासत-
- जैसलमेर रियासत में सामन्तों की 2 श्रेणियां थी। जैसे-
- (I) डावी- जो सामन्त राजा के बांयी ओर बैठते थे वो डावी श्रेणी के सामन्त होते थे।
- (II) जीवणी- जो सामन्त राजा के दांयी ओर बैठते थे वो जीवणी श्रेणी के सामन्त होते थे।
- जैसलमेर के राजा हरराज ने जैसलमेर रियासत में सामन्तों की 2 श्रेणियां बनायी थी।
5. जयपुर रियासत-
- पृथ्वीराज ने बारह कोटडी व्यवस्था बनायी थी जिसमें 12 सामन्त शामिल थे।
6. कोटा रियासत-
- कोटा रियासत में सामन्तों की 2 श्रेणियां थी। जैसे-
- (I) देशथी श्रेणी- इस श्रेणी के सामन्त कोटा के अंदर रहते थे।
- (II) हजूरथी श्रेणी- इस श्रेणी के सामन्त राजा के साथ कोटा से बाहर रहते थे।
- कोटा रियासत में सामन्तों की 2 श्रेणियों में कुल 30 सामन्त थे।
मध्यकालीन राजस्थान में न्याय व्यवस्था-
- राजा सबसे बड़ा न्यायिक अधिकारी था।
- राजा बड़े मामले तथा मृत्युदंड के मामले देखता था।
- राजा के अधीन दो प्रकार की जमीन होती थी। जैसे-
- (I) खालसा क्षेत्र- यह राजा के स्वयं के नियंत्रण में रहता था।
- (II) जागीर क्षेत्र- यह सामन्तों के नियंत्रण में रहता था।
- खालसा क्षेत्र में न्याय का काम हाकिम करता था।
- जागीर क्षेत्र में न्याय का काम सामन्त करता था।
- ग्राम पंचायत छोटे मामले देखती थी।
(ब) मध्यकालीन राजस्थान की राजस्व व्यवस्था-
- भूमि दो प्रकार की होती थी। जैसे-
- (I) कृषि भूमि- कृषि भूमि दो प्रकार की होती थी। जैसे-
- (A) उन्नाव या पीवल (सिंचित)- जिसमें सिंचाई होती थी उसे उन्नाव या पीवल कहते थे।
- (B) बारानी (असिंचित)- जिसमें सिंचाई नहीं होती थी उसे बारानी कहते थे।
- (II) चरणोता भूमि या गोचर भूमि- यह सार्वजनिक भूमि होती थी जिस पर राजा भी अधिकार नहीं कर सकता था।
भू-स्वामी-
- भूमि का सैद्धान्तिक भू-स्वामी राजा होता था।
- भूमि का वास्तविक भू-स्वामी किसान होता था।
किसान-
- किसान दो प्रकार के होते थे। जैसे-
- (I) बापीदार- वे किसान जिनके पास खुद की जमीन होती थी।
- (II) गैर बापीदार- वे किसान जिनके पास खुद की जमीन नहीं होती थी।
- गैर बापीदार किसानों को शिकमी भी कहते थे।
- बापीदार किसानों के पास पट्टा (दाखिला) होता था।
भू-राजस्व के कर्मचारी-
- राज्य की तरफ से भू-राजस्व लेने वाला कर्मचारी पटवारी होता था।
- गाँव की तरफ से भू-राजस्व लेने में पटवारी की सहायता करने वाला चौधरी या पटेल होता था।
भू-राजस्व के निर्धारण में तीन बातों का ध्यान रखा जाता था। जैसे-
- (I) भूमि की उत्पादकता
- (III) फसल का बाजार भाव
- (III) किसान की जाती