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भारत में मृदा के प्रकार (Soil Types in India)

भारत में मिट्टी के प्रकार (Soil Types in India)-

  • 1. जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil)
  • 2. काली मृदा (Black Soil)
  • 3. लाल-पीली मृदा (Red-Yellow Soil)
  • 4. लैटेराइट मृदा (Laterite Soil)
  • 5. शुष्क मृदा (Arid Soil)
  • 6. लवणीय-क्षारीय मृदा (Saline-Alkaline Soil)
  • 7. पीटमय मृदा (Peaty Soil)
  • 8. वन एवं पर्वतीय मृदा (Forest and Montane Soil)


1. जलोढ़ मृदा (Alluvial Soil)-

  • निर्माण (Formation)- जलोढ़ मृदा का निर्माण जल द्वारा जमा किए गए अवसादों (Sediments) के कारण होता है इसलिए जलोढ़ मृदा को निक्षेपण मृदा (Deposition Soil) भी कहते हैं।
  • जलोढ़ मृदा अक्षेत्रीय मृदा (Azonal Soil) है।
  • अक्षेत्रीय मृदा होने के कारण जलोढ़ मृदा में मृदा परिच्छेदिका (Soil Profile) का निर्माण नहीं हो पाता है।
  • बारीक कणों के कारण जलोढ़ मृदा की जलग्रहण क्षमता अधिक (High Water Retention Capacity) होती है।
  • प्रचुरता (High Amount)- जलोढ़ मृदा में पोटाश (Potash) प्रचुर मात्रा (High Amount) में पाया जाता है।
  • कमी (Less Amount)- जलोढ़ मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen), फोस्फोरस (Phosphorous) व ह्यूमस (Humus) की मात्रा कम (Less Amount) पायी जाती है। अर्थात् N.P.H. की कमी पायी जाती है।
  • जलोढ़ मृदा उपजाऊ मृदा (Fertile Soil) है।
  • जलोढ़ मृदा कृषि के लिए उपयोगी मृदा (Useful for Agriculture) है।
  • जलोढ़ मृदा के दो उप प्रकार (Subtypes) है जैसे-
  • (I) खादर मृदा (Khadar Soil)
  • (II) बांगर मृदा (Bangar Soil)
  • विस्तार (Expansion)- भारत में जलोढ़ मृदा का विस्तार उत्तरी मैदानी प्रदेश (Northern Plain Region) तथा तटवर्ती मैदानी प्रदेश (Coastal Plain Region) में है।


2. काली मृदा (Black Soil)-

  • काली मृदा को रेगुर मृदा (Regur Soil) भी कहते हैं।
  • काली मृदा में कपास का उत्पादन होने के कारण काली मृदा को कपासी मृदा (Cotton Soil) भी कहा जाता है।
  • निर्माण (Formation)- काली मृदा का निर्माण बेसाल्ट लावा (Basaltic Lava) के अपक्षय (Weathering) से होता है।
  • काली मृदा मृण्मय मृदा (Clayey Soil) है जिसके कण बहुत बारीक होते हैं।
  • काली मृदा जल को अवशोषित (Absorb Water) करने तथा जल को छोड़ने (Release Water) में समय लेती है इसलिए काली मृदा की जल धारण क्षमता (Water Retention Capacity) अधिक होती है।
  • काली मृदा जल ग्रहण करने पर फूलती (Swell) है एवं जल छोड़ने पर सिकुड़ती (Shrink) है जिसके कारण शुष्क ऋतु में काली मृदा में दरारों (Crack) का निर्माण होता है इसलिए काली मृदा को स्वतः जुताई वाली मृदा (Self Ploughing Soil) कहते हैं।
  • काली मृदा में टाइटेनिफेरस मैग्नेटाइट (Titaniferous Magnetite) उपस्थित होने के कारण काली मृदा का रंग काला (Black Colour) दिखाई देता है।
  • प्रचुरता (High Amount)- काली मृदा में पोटाश (Potash) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • कमी (Less Amount)- काली मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen), फोस्फोरस (Phosphorus) व ह्यूमस (Humus) कम मात्रा में पाया जाता है।
  • काली मृदा में कुछ मात्रा में मैग्नीशिया (Magnesia), एल्युमिना (Alumina), चूना (Lime) व लौह तत्व (Iron Element) भी पाये जाते हैं।
  • विस्तार (Expansion)- भारत में काली मृदा का विस्तार प्रायद्वीपीय भारत (Peninsular India) के उत्तर पश्चिमी (North Western) भाग में है।


3. लाल-पीली मृदा (Red-Yellow Soil)-

  • निर्माण (Formation)- लाल पीली मृदा का निर्माण क्रिस्टलीकृत (Crystallized Rock) या आग्रेय (Igneous Rock) या कायांतरित चट्टानों (Metamorphic Rock) से होता है।
  • रंग (Color)- लाल पीली मृदा फेरस ऑक्साइड (Ferrous Oxide) के कारण लाल रंग (Red Color) की होती है लेकिन जल ग्रहण करने पर पीली रंग (Yellow Color) की दिखाई देती है।
  • प्रचुरता (High Amount)- लाल पीली मृदा में पोटाश (Potash) व लौह तत्व (Iron Element) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
  • कमी (Less Amount)- लाल पीली मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen), फोस्फोरस (Phosphorous) व ह्यूमस (Humus) कम मात्रा में पाये जाते हैं।
  • उच्च भूमि क्षेत्रों (Highland Area) में लाल पीली मृदा के कण मोटे (Coarse Grain) होते हैं।
  • घाटी क्षेत्रों (Valley Area) में लाल पीली मृदा के कण बारीक (Fine Grain) होते हैं।
  • बारीक कण (Fine Grain) वाली पीली मृदा उपजाऊ (Fertile) होती है।
  • विस्तार (Expansion)- भारत में लाल पीली मृदा का विस्तार प्रायद्वीपीय भारत (Peninsular India) के पूर्वी भाग (Eastern Part) में तथा उत्तर पूर्वी राज्यों (North Eastern States) में है।


4. लैटेराइट मृदा (Laterite Soil)-

  • निर्माण (Formation)- लैटेराइट मृदा का निर्माण उच्च तापमान (High Temperature) व उच्च वर्षा (High Rainfall) वाले क्षेत्रों में होता है।
  • लीचिंग (Leaching)- भारी वर्षा के कारण जल में घुलनशील पदार्थ (Soluble Particles) जैसे सिलिका (Silica) और चूना (Lime) वर्षा के जल के साथ रिसकर मृदा की निचली परतों में चला जाता है और ऊपरी परतों में आयरन ऑक्साइड (Iron Oxides) और एल्युमिनियम ऑक्साइड (Aluminum Oxides) अधिक मात्रा में पाए जाते हैं इस प्रक्रिया को निक्षालन या लीचिंग (Leaching) कहा जाात है।
  • प्रचुरता (High Amount)- लैटेराइट मृदा में प्रचुर मात्रा में लौह (Iron Oxide) एवं एल्युमीनियम (Aluminium Oxide) के ऑक्साइड पाये जाते हैं।
  • कमी (Less Amount)- लैटेराइट मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen), फोस्फोरस (Phosphorus), पोटाश (Potash) व ह्यूमस (Humus) कम मात्रा में पाये जाते हैं।
  • ऑक्साइडों की अधिकता के कारण लैटेराइट मृदा सूखने पर कठोर हो जाती है जिसके कारण लैटेराइट मृदा का उपयोग ईंट (Brick) बनाने के लिए किया जाता है।
  • नाम (Name)- लैटैरेइट मृदा का नाम लैटिन शब्द 'लेटर' (Later) से लिया गया है।
  • लेटर का अर्थ है- ईंट (Brick)
  • लैटेराइट मृदा कम उपजाऊ होने के कारण रोपण कृषि के लिए उपयोगी होती है।
  • विस्तार (Expansion)- भारत में लैटेराइट मृदा का विस्तार पश्चिमी तटवर्ती क्षेत्र (Western Coastal Region), पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल (Western Slopes of Western Ghats), मेघालय पठार (Meghalaya Plateau) में है।


5. शुष्क मृदा (Arid Soil)-

  • शुष्क मृदा उच्च तापमान (High Temperature) और कम वर्षा (Low Rainfall) वाले शुष्क (Arid) और अर्धशुष्क (Semi Arid) क्षेत्रों में पायी जाती है।
  • शुष्क मृदा बलुआ प्रकृति (Sandy Nature) की होती है इसलिए शुष्क मृदा की जल धारण क्षमता (Water Retention Capacity) कम होती है।
  • शुष्क मृदा के निचले भाग में चूने (Lime) की मात्रा बढ़ती जाती है तथा कंकर (Kankar) की एक परत पायी जाती है जिससे शुष्क मृदा में जल का रिसाव कम हो पाता है।
  • शुष्क मृदा नियमित सिंचाई (Regular Irrigation) से कृषि के लिए उपयोगी होती है।
  • प्रचुरता (High Amount)- शुष्क मृदा में फोस्फोरस (Phosphorous) व चूना (Lime) प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।
  • कमी (Less Amount)- शुष्क मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen), पोटाश (Potash), ह्यूमस (Humus) कम मात्रा में पाये जाते हैं।
  • विस्तार (Expansion)- भारत में शुष्क मृदा का विस्तार पश्चिमी राजस्थान (Western Rajasthan), पंजाब (Punjab), हरियाणा (Haryana) तथा गुजरात (Gujarat) में है।


6. लवणीय-क्षारीय मृदा (Saline-Alkaline Soil)-

  • लवणीय-क्षारीय मृदा अत्यधिक सिंचाई (Excessive Irrigation) और रासायनिक उर्वरकों (Chemical Fertilizers) के अधिक उपयोग वाले क्षेत्रों में पाई जाती है।
  • लवणीय-क्षारीय मृदा का निर्माण केशिकत्व क्रिया (Capillary Action) से होता है।
  • केशिकत्व क्रिया के कारण लवणीय-क्षारीय मृदा में सफेद परत नजर आती है।
  • प्रचुरता (High Amount)- लवणीय-क्षारीय मृदा में पोटाश (Potash) एवं अन्य लवण (Other Salts) जैसे सोडियम (Sodium) व मैग्नीशियम (Magnesium) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
  • कमी (Less Amount)- लवणीय-क्षारीय मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen), फोस्फोरस (Phosphorous) व ह्यूमस (Humus) कम मात्रा में पाये जाते हैं।
  • लवणीय-क्षारीय मृदा लवणों की अधिक सांद्रता के कारण अनुपजाऊ (Infertile) होती है इसलिए लवणीय-क्षारीय मृदा को रेह (Reh), कल्लर (Kallar) व ऊसर (Usar) भी कहते हैं।
  • लवणीय-क्षारीय मृदा की लवणता (Salinity) और क्षारीयता (Alkalinity) को कम करने के लिए जिप्सम (Gypsum) और रॉक फॉस्फेट (Rock Phosphate) का उपयोग किया जाता है।
  • विस्तार (Expansion)- भारत में लवणीय-क्षारीय मृदा का विस्तार हरित क्रांत से प्रभावित क्षेत्र (Regions affected by green revolution) व कच्छ का रण (Rann of Kutchh) में है।


7. पीटमय मृदा (Peaty Soil)-

  • अन्य नाम (Other Name)- दलदली मृदा (Swampy Soil)

  • पीटमय मृदा जलमग्न स्थिति (Waterlogged Condition) में पाई जाती है इसलिए पीटमय मृदा में सघन वनस्पति (Dense Vegetation) का विकास होता है।
  • ह्यूमस (Humus) की उपस्थिति के कारण पीटमय मृदा गहरे भूरे रंग (Dark Brown Color) की होती है।
  • प्रचुरता (High Amount)- पीटमय मृदा में जैव पदार्थ (Organic Matter), ह्यूमस (Humus) व पोटाश (Potash) की मात्रा अधिक पायी जाती है।
  • कमी (Less Amount)- पीटमय मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen) व फोस्फोरस (Phosphorous) कम मात्रा में पाये जाते हैं।
  • विस्तार (Expansion)- भारत में पीटमय मृदा का विस्तार केरल एवं पूर्वी तटवर्ती क्षेत्र (Kerala and East Coastal Region), बिहार (Bihar) व उत्तराखंड (Uttarakhand) के तराई क्षेत्रों (Terai Regions) में है।


8. वन एवं पर्वतीय मृदा (Forest and Montane Soil)-

  • प्रचुरता (High Amount)- वन एवं पर्वतीय मृदा में पोटाश (Potash) प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
  • कमी (Less Amount)- वन एवं पर्वतीय मृदा में नाइट्रोजन (Nitrogen) फोस्फोरस (Phosphorous) व ह्यूमस (Humus) कम मात्रा पाये जाते हैं।
  • पर्वतों के वनाच्छादित क्षेत्रों (Forest Covered Region) में वन एवं पर्वतीय मृदा में ह्यूमस पायी जाती है।
  • ऊँचे व कम तापमान वाले क्षेत्रों (Higher Cold Region) में वन एवं पर्वतीय मृदा में ह्युमिक अम्ल (Humic Acid) पाया जाता है।

  • विस्तार (Expansion)- भारत में वन एवं पर्वतीय मृदा का विस्तार उत्तर भारत (North India) तथा दक्षिण भारत (South India) के पर्वतीय क्षेत्रों (Mountain Region) में है।


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