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भारत में उद्योगों के प्रकार (Types of Industries in India)

उद्योगों के प्रकार (Types of Industry)-

    • 1. कुटीर उद्योग (Cottage Industries)
    • 2. ग्राम उद्योग (Village Industries)
    •  MSME की परिभाषा या MSME उद्योगों की परिभाषा (Definition of MSME Industries)
    • MSME उद्योगों की नई परिभाषा (New definition of MSME industries)
    • लघु एवं कुटीर उद्योगों का अर्थव्यवस्था में महत्व (Importance of Small and Cottage Industries in Economy)
    • लोकेशनल एडवांटेज (Locational Advantage)


              1. कुटीर उद्योग (Cottage Industries)-

              • कुटीर उद्योग पारिवारिक स्तर पर लगाए जाते हैं।
              • कुटीर उद्योगों का स्वामित्व (Owned) परिवार के पास ही होता है।
              • कुटीर उद्योगों में निवेश (Investment) बहुत कम किया जाता है।
              • कुटीर उद्योगों में तकनीक (Technology) का प्रयोग नाममात्र का होता है।
              • कुटीर उद्योगों में काम करने वाले श्रमिक वेतन भोगी नहीं होते हैं बल्कि परिवार के ही सदस्य ही काम करते हैं।
              • कुटीर उद्योग जैसे- पेंटिंग (Painting), रुई की धुनाई (Cotton Washing), कुम्हार (Potter), बढई (Carpenter), लोहार (Blacksmith work) आदि का काम, गुड (Jaggery), अचार (Pickles), पापड़ (Papad), जैम (Jam) एवं मसाले (Spices) आदि खाद्य वस्तुएं (Food Items), चमड़े के उत्पाद (Leather Products), ईंट-भट्टी का काम (Brick-Kiln Work), कागज के थैले (Paper Bags), बॉस की टोकरियों का निर्माण (Manufacturing of Bamboo Baskets) आदि।


              2. ग्राम उद्योग (Village Industries)-

              • ग्राम उद्योग ग्राम स्तर पर लगाए जाते हैं।
              • जिन गाँवों की जनसंख्या 10,000 से कम हो उन गाँवों में ग्राम उद्योग लगाये जाते हैं।
              • ग्राम उद्योग में निवेश लगभग 15,000 रुपये तक होता है।
              • कुटीर उद्योग और ग्राम उद्योग के विकास के लिए सन् 1956 में "खादी और ग्रामोद्योग आयोग" (Khadi and Village Industries Commission) की स्थापना की गई थी।


               MSME की परिभाषा या MSME उद्योगों की परिभाषा (Definition of MSME Industries)-

              • MSME उद्योगों की परिभाषा के लिए सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (Micro, Small, Medium Enterprises Development Act, 2006) बनाया गया था।
              • सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग विकास अधिनियम, 2006 (Micro, Small, Medium Enterprises Development Act, 2006) के अनुसार MSME उद्योगों की परिभषा प्लांट या संयंत्र (Plant) तथा मशीनरी (Machinery) में किए गए निवेश के आधार पर दी गई थी।
              • सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योग विकास अधिनियम, 2006 (Micro, Small, Medium Enterprises Development Act, 2006) के अनुसार MSME उद्योगों को दो भागों में बांटा गया था। जैसे-
              • (I) विनिर्माण से संबंधित MSMEs (MSMEs Related to Manufacturing)
              • (II) सेवा क्षेत्र से संबंधित MSMEs (MSMEs Related to Service Sector)


              (I) विनिर्माण से संबंधित MSMEs (MSMEs Related to Manufacturing)-

              • (A) सूक्ष्म उद्योग (Micro Industries)- 25 लाख से कम निवेश
              • (B) लघु उद्योग (Small Scale Industries)- 25 लाख से 5 करोड़ तक निवेश
              • (C) मध्यम उद्योग (Medium Industries)- 5 करोड़ से 10 करोड़ तक निवेश


              (II) सेवा क्षेत्र से संबंधित MSMEs (MSMEs Related to Service Sector)-

              • (A) सूक्ष्म उद्योग (Micro Industries)- 10 लाख से कम निवेश
              • (B) लघु उद्योग (Small Scale Industries)- 10 लाख से 2 करोड़ तक निवेश
              • (C) मध्यम उद्योग (Medium Industries)- 2 करोड़ से 5 करोड़ तक निवेश


              MSME उद्योगों की नई परिभाषा (New definition of MSME industries)-

              • सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 (Micro, Small, Medium Enterprises Development Act, 2006) के तहत दी गई परिभाषा में 1 जुलाई 2020 को संशोधित किया गया है।
              • इस संशोधन में वस्तु और सेवा वाला विभाजन समाप्त कर दिया गया और दोनों के लिए एक ही सीमा तय की गई है साथ ही वार्षिक कारोबार की शर्त भी जोड़ दी गई।
              • 1 जुलाई 2020 के संशोधन के अनुसार-
              • (I) सूक्ष्म उद्योग (Micro Industries)
              • (II) लघु उद्योग (Small Scale Industries)
              • (III) मध्यम उद्योग (Medium Industries)
              • (IV) वृहद उद्योग (Heavy Industries)


              (I) सूक्ष्म उद्योग (Micro Industries)-

              • 1 जुलाई 2020 से सूक्ष्म उद्योग वो होंगे जिसकी प्लांट (Plant) एवं मशीनरी (Machinery) में निवेश (Investment) 1 करोड़ रुपये तक किया गया हो तथा उद्यम का वार्षिक टर्नओवर (Annual Turnover) 5 करोड़ रुपये तक हो।


              (II) लघु उद्योग (Small Scale Industries)-

              • 1 जुलाई 2020 से लघु उद्योग वो होंगे जिसकी प्लांट (Plant) एवं मशीनरी (Machinery) में निवेश (Investment) 1 करोड़ से 10 करोड़ रुपये तक किया गया हो तथा उद्यम का वार्षिक टर्नओवर (Annual Turnover) 5 करोड़ से 50 करोड़ रुपये तक हो।


              (III) मध्यम उद्योग (Medium Industries)-

              • 1 जुलाई 2020 से मध्यम उद्योग वो होंगे जिसकी प्लांट (Plant) एवं मशीनरी (Machinery) में निवेश (Investment) 10 करोड़ से 50 करोड़ रुपये तक किया गया हो तथा उद्यम का वार्षिक टर्नओवर (Annual Turnover) 50 करोड़ से 250 करोड़ रुपये तक हो।


              (IV) वृहद उद्योग (Heavy Industries)-

              • 1 जुलाई 2020 से वृहद उद्योग वो होंगे जिसकी प्लांट (Plant) एवं मशीनरी (Machinery) में निवेश (Investment) 50 करोड़ रुपये से अधिक किया गया हो तथा उद्यम का वार्षिक टर्नओवर (Annual Turnover) 250 करोड़ रुपये से अधिक हो।


              लघु एवं कुटीर उद्योगों का अर्थव्यवस्था में महत्व (Importance of Small and Cottage Industries in Economy)-

              • भारतीय अर्थव्यवस्था का एक बड़ा उद्देश्य समावेशी समृद्धि (Inclusive Growth) है।
              • समावेशी समृद्धि तभी हो सकती है जब समाज के निचले तबको तक संवृद्धि का लाभ पहुंचे।
              • समावेशी विकास में इन MSME उद्योगों का बहुत ज्यादा योगदान होता है क्योंकि लघु एवं कुटीर उद्योग श्रम प्रधान उद्योग (Labor Intensive Industries) होते हैं।
              • बेरोजगारी (Unemployment) के संकट (Crisis) को समाप्त करने में लघु एवं कुटीर उद्योगों का महत्वपूर्ण योगदान है क्योंकि लघु एवं कुटीर उद्योगों में रोजगार (Employment) बहुत ज्यादा मात्रा में उत्पन्न होते हैं।

              • लघु एवं कुटीर उद्योगों में ज्यादा कुशलता (Skill) की मांग भी नहीं होती है इसलिए अकुशल (Unskilled) गरीब लोगों को कृषि (Agriculture) के बाद सबसे ज्यादा रोजगार (Employment) लघु एवं कुटीर उद्योगों में प्राप्त होता है।
              • लघु एवं कुटीर उद्योग शहरों में ग्रामीण प्रवसन (Migration) को रोकता है, जिससे शहरों में ट्रैफिक (Traffic), झुग्गी-झोपड़ियों (Slums), लूट (Robbery), अपहरण (Kidnapping) जैसी समस्याओं में कमी आती है तो वही ग्रामीणों का शहरों में शोषण (Exploited) नहीं होगा।
              • लघु एवं कुटीर उद्योग निर्यात संभावनाओं (Export Potential) को भी विकसित करते हैं। अर्थात् लघु एवं कुटीर उद्योग निर्यात में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जैसे- भारत में निर्यातित वस्तुओं में कपड़े (Clothes), हीरे-जवाहरात (Diamonds-Gems), हस्तशिल्प (Handicrafts), चमडा (Leather) जैसे उत्पाद भी महत्वपूर्ण है। इनमें से अधिकांश का उत्पादन लघु एवं कुटीर उद्योगों से ही होता है।
              • लघु एवं कुटीर उद्योग कीमत नियंत्रण (Price Control) में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
              • वर्ष 2019-20 के कुल GVA (Current Price) में MSME GVA की हिस्सेदारी (Share) 33.08% थी।
              • लघु एवं कुटीर उद्योग भारत के औद्योगिक विकास (Industrial Development) में 45% भागीदारी निभाते हैं।
              • लघु एवं कुटीर उद्योग भारत के निर्यात (Export) में 40-45% भागीदारी निभाते हैं।
              • लघु एवं कुटीर उद्योग भारत के कुल रोजगार में कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार (Employment) उपलब्ध कराते हैं।


              लोकेशनल एडवांटेज (Locational Advantage)-

              • लघु और कुटीर उद्योगों के माध्यम से हम स्थानीय स्तर पर संसाधनों (Resources) का दोहन (Exploiting) करके छोटे-छोटे उद्योग बना सकते हैं। जिससे हर क्षेत्र में रोजगार (Employment) उत्पन्न होंगे, उद्योगों का विकेंद्रीकरण (Decentralization) होगा तथा उत्पादकता बढ़ेगी और क्षेत्रीय विषमता (Disparity) समाप्त होगी।
              • लोकेशनल एडवांटेज कुशल (Skilled) एवं अकुशल (Unskilled) श्रमिकों (Workers) की विषमताओं (Inequalities) को समाप्त करता है।
              • लोकेशनल एडवांटेज शहरी (Urban) एवं ग्रामीण (Rural) विषमता (Disparity) को समाप्त करता है।


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