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जल प्रदूषण (Water Pollution)

जल प्रदूषण (Water Pollution)-

  • जल में बाहरी कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों के मिलने के कारण जल के भौतिक, रसायनिक तथा जैविक संगठन में होने वाला अवांछनीय परिवर्तन जल प्रदूषण कहलाता  है।
  • केवल 0.1% अशुद्धियों के कारण ही घरेलू जल मानव के उपयोग के लायक नहीं रहता है।
  • जल प्रदूषण की जाँच जल में उपस्थित या घुलित ऑक्सीजन की मात्रा के आधार पर की जाती है।
  • यदि जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 8 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम होती है तो वह जल प्रदूषित माना जाता है।
  • यदि जल में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा 4 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम हो जाती है तो वह अत्यधिक प्रदूषित जल कहलाता है।
  • डेफनिया, ट्राउट मछलियां तथा स्टोन फलाई के लार्वा स्वच्छ जल के संकेत होते हैं जबकि टयूबीफेक्स, काइटोनोमस लार्वा, ईकोलाई, सीवेज फंगस, स्लज वर्म, ब्लड वर्म इत्यादि प्रदूषित जल के सूचक होते हैं।


जल प्रदूषण जांचने की विधियां (Methods to check water pollution)-

  • 1. बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand- B.O.D.)
  • 2. केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Chemical Oxygen Demand- C.O.D.)


1. बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand- B.O.D.)-

  • जल में उपस्थित कार्बनिक प्रदूषकों के अपघटन हेतु वायवीय जीवाणुओं को जितनी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है उसे बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (B.O.D.) कहते हैं।
  • बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड को मिलीग्राम ऑक्सीजन प्रतिलीटर जल से दर्शाया जाता है।
  • बायोकेनिकल ऑक्सीजन डिमांड विधि कार्बनिक पदार्थों के कारण होने वाले जल प्रदूषण को मापने के लिए काम में ली जाती है।


2. केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (Chemical Oxygen Demand- C.O.D.)-

  • जल में उपस्थित जैव निम्नीकरणीय तथा जैव अनिम्नीकरणीय प्रदूषकों के अपघटन (ऑक्सीकरण) हेतु पोटेशियम डाइक्रोमेट (K2Cr2O7) को आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (C.O.D.) कहलाती है।
  • पोटेशियम डाइक्रोमेट (K2Cr2O7) द्वारा दोनों प्रकार के प्रदूषकों का अपघटन किया जाता है जबकि वायवीय जीवाणुओं द्वारा केवल कार्बनिक प्रदूषकों का अपघटन किया जाता है अतः एक ही स्त्रोत से प्राप्त जल का बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (B.O.D.) तथा केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (C.O.D.) निकाला जाता है तो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (C.O.D.) का मान हमेशा बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (B.O.D.) से अधिक होता है।
  • अतः जल प्रदूषण मापने हेतु केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (C.O.D.) विधि बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (B.O.D.) विधि की तुलना में ज्यादा बेहतर है।


जल प्रदूषण के कारण (Sources of Water Pollution)-

  • 1. घरेलू अपशिष्ट, वाहित मल तथा डिटर्जेंट (Domestic Waste/ Sewage Water/ Detergent)
  • 2. औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial Waste)
  • 3. रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक (Fertilizer and Pesticides)
  • 4. तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution)
  • 5. समुद्र में तेल का रिसाव (Oil Spill at Sea)


1. घरेलू अपशिष्ट, वाहित मल तथा डिटरजेंट (Domestic Waste/ Sewerage Water/ Detergent)-

  • घरेलू अपशिष्ट तथा वाहित मल जल की बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (B.O.D.) बढ़ाते है जबकि डिटरजेन्ट जैव आवर्धन (Biomagnification) का कारण बनता है।


2. औद्योगिक अपशिष्ट (Industrial Waste)-

  • उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थों में अनेक रसायन जैसे- सीसी, पारा, सल्फर, नाइट्रोजन इत्यादि के ऑक्साइड उपस्थित रहते हैं इन रसायनों में जैव आवर्धन की प्रवृति पायी जाती है।


3. रासायनिक उर्वरक तथा कीटनाशक (Fertilizer and Pesticides)-

  • वर्षा के जल के साथ ये उर्वरक तथा कीटनाशक तालाब तथा झील में पहुंचकर सुपोषण या जैव आवर्धन का कारण बनते हैं। 


4. तापीय प्रदूषण (Thermal Pollution)-

  • नाभिकीय तथा तापीय ऊर्जा संयंत्रों से निकलने वाला गर्म पानी जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाता है।


5. समुद्र में तेल का रिसाव (Oil Spill at Sea)-

  • समुद्रों में होने वाला तेल का रिसाव समुद्री जल में ऑक्सीजन के विसरण को रोक देता है।


जल प्रदूषण के कारण होने वाले रोग एवं अन्य दुष्प्रभाव (Diseases Caused by Water Pollution)-

  • 1. मिनामाटा रोग (Minamata Disease)
  • 2. इटाई-इटाई रोग (Itai-Itai Disease)
  • 3. ब्लैकफुट (Blackfoot Disease)
  • 4. फ्लोरोसिस रोग (Fluorosis Disease)
  • 5. मेथेमोग्लोबिनेमिया रोग  (Methemoglobinemia Disease)
  • 6. जीवाणु जनित रोग (Bacterial Diseases)
  • 7. विषाणु जनित रोग (Viral Diseases)
  • 8. प्रोटोजोआ जनित रोग (Protozoan Diseases)


1. मिनामाटा रोग (Minamata Disease)-

  • पारे (Hg) की विषाक्तता से मिनामाटा रोग (Minamata Disease) होता है।

  • मिनामाटा रोग विश्व में पहली बार सन् 1956 में जापान में खोजा गया था।

  • मिनामाटा रोग एक स्नायविक सिंड्रोम है।


2. इटाई-इटाई रोग (Itai-Itai Disease)-

  • केडमियम (Cadmium-Cd) की विषाक्तता से इटाई-इटाई रोग (Itai-Itai Disease) होता है।

  • इटाई-इटाई रोग को ही आउच-आउच रोग (Ouch-Ouch Disease) कहा जाता है।


3. ब्लैकफुट (Blackfoot Disease)-

  • आर्सनिक (Arsenic) की विषाक्तता से ब्लैकफुट रोग (Blackfoot Disease) होता है।


4. फ्लोरोसिस रोग (Fluorosis Disease)-

  • फ्लोराइड (Fluoride) की अधिकता से फ्लोरोसिस रोग (Fluorosis Disease) होता है। अर्थात् ज्यादा फ्लोराइड वाला पानी पीने से फ्लोरोसिस रोग होता है।

  • फ्लोरोसिस रोग को नॉक नी सिंड्रोम (Knock Knee Syndrome) भी कहते हैं।


5. मेथेमोग्लोबिनेमिया रोग  (Methemoglobinemia Disease)-

  • नाइट्रेट (Nitrate) की विषाक्तता से मेथेमोग्लोबिनेमिया रोग  (Methemoglobinemia Disease) होता है।

  • मेथेमोग्लोबिनेमिया रोग  (Methemoglobinemia Disease) को ब्लू बेबी सिंड्रोम (Blue Baby Syndrome) भी कहते हैं।


6. जीवाणु जनित रोग (Bacterial Diseases)-

  • जीवाणु जनित रोग (Bacterial Diseases) जैसे- हैजा (Cholera), टायफाइड (Typhoid)


7. विषाणु जनित रोग (Viral Diseases)-

  • विषाणु जनित रोग (Viral Diseases) जैसे- हीपेटाइटिस ए. (Hepatitis A), हीपेटाइटिस ई. (Hepatitis E), पोलियो (Polio), रोटा वायरस (Rota Virus)


8. प्रोटोजोआ जनित रोग (Protozoan Diseases)-

  • प्रोटोजोआ जनित रोग (Protozoan Diseases) जैसे- अमीबिएसिस (Amoebiasis), जिआर्डिएसिस (Giardiasis)


जल प्रदूषण के अन्य दुष्प्रभाव (Other side effects of water pollution)-

  • 1. मृदा की उत्पादकता पर प्रतिकुत प्रभाव।
  • 2. जल में घुलित ऑक्सीजन में कमी।
  • 3. जैव आवर्द्धन (Biological Magnification)
  • 4. सुपोषण (Eutrophication)


जल प्रदूषण नियंत्रण (Water Pollution Control)-

    •  1. सीवेज उपचार (Sewage Treatment)


     1. सीवेज उपचार (Sewage Treatment)-

    • सीवेज का उपचार दो चरणों में किया जाता है। जैसे-
    • (I) प्राथमिक उपचार (Primary Treatment)
    • (II) द्वितीयक उपचार (Secondary Treatment)


    (I) प्राथमिक उपचार (Primary Treatment)-

    • उपचार के प्रथम चरण में  प्रदूषकों को फिल्ट्रेशन (Filtration) तथा अवसादन (Sedimentation) द्वारा भौतिक रूप से अलग कर लिया जाता है।
    • प्राथमिक उपचार का कार्य विभिन्न चरणों में सम्पन्न होता है।
    • प्राथमिक उपचार के पश्चात सीवेज का द्वितीयक उपचार किया जाता है।


    (II) द्वितीयक उपचार (Secondary Treatment)-

    • द्वितीयक उपचार में सीवेज को बड़े वायवीय टेंकों में रखा जाता है जहाँ पर सीवेज को यांत्रिक रूप से गतिशील रखने के साथ-साथ वायु पम्प की सहायता से ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाई जाती है।
    • जिसके कारण वायवीय जीवाणुओं की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है तथा ये जीवाणु कार्बनिक प्रदूषकों का अपघटन करके पानी को साफ कर देते हैं।
    • इसके पश्चात अंतिम चरण में अवसादन किया जाता है जिसमें अपघटित कार्बनिक प्रदूषक टेंक के तल में जमा हो जाते हैं जिन्हें सक्रिय स्लज (Activated Sludge) कहते हैं।
    • इस सक्रिय स्लज तथा प्राथमिक चरण में प्राप्त की गई स्लज को पाचन टेंकों में भेजा जाता है जहाँ अवायवीय जीवाणु इसका पाचन या अपघटन कर देते है जिससे बायोगैस तथा कार्बनिक खाद प्राप्त होती है।
    • द्वितीयक उपचार के पश्चात जल को प्राकृतिक स्त्रोतों में छोड़ दिया जाता है।


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