भारतीय दर्शन (Indian Philosophy)-
- भारतीय दर्शन को दो भागों में विभाजित किया गया है। जैसे-
- 1. आस्तिक दर्शन (Orthodox Philosophy)
- 2. नास्तिक दर्शन (Unorthodox Philosophy)
1. आस्तिक दर्शन (Orthodox Philosophy)-
- आस्तिक दर्शन या आस्तिक दार्शनिक वेदों को नित्य और प्रामाणिक मानते है। अर्थात् वेदों को नित्य और प्रामाणिक मानने वाले दर्शन को आस्तिक दर्शन कहा जाता है।
- आस्तिक दर्शनों की संख्या 6 है। अतः आस्तिक दर्शनों को षड्दर्शन कहा जाता है।
- षड्दर्शन का पूर्णतः विकास गुप्त काल में हुआ था।
- आस्तिक दर्शन में 6 दर्शन है जैसे-
- (I) पूर्व मीमांसा दर्शन
- (II) उत्तर मीमांसा दर्शन
- (III) सांख्य दर्शन
- (IV) योग दर्शन
- (V) न्याय दर्शन
- (VI) वैशेषिक दर्शन
(I) पूर्व मीमांसा दर्शन-
- पूर्व मीमांसा दर्शन आस्तिक दर्शन का ही भाग है अर्थात् पूर्व मीमांसा दर्शन एक आस्तिक दर्शन है।
- पूर्व मीमांसा दर्शन का संस्थापक जैमिनी मुनि है।
- जैमिनी मुनि वेदव्यास के शिष्य थे।
- पूर्व मीमांसा दर्शन अनिश्वरवादी दर्शन है अर्थात् पूर्व मीमांसा दर्शन ईश्वर को नहीं मानता है।
- पूर्व मीमांसा दर्शन में कर्मकाण्ड या कर्म में विश्वास करते है।
- पूर्व मीमांसा दर्शन के अनुसार यदि कोई सही विधि विधान से कर्मकाण्ड करता है तो उसे उसका फल अवश्य मिलता है।
- पूर्व मीमांसा दर्शन वेदों एवं ब्राह्मण साहित्य पर आधारित है।
- पूर्व मीमांसा दर्शन का विषय यज्ञ और धार्मिक कृत्य है।
पूर्व मीमांसा दर्शन के प्रमुख आचार्य-
- (अ) कुमारिल भट्ट
- (ब) प्रभाकर
(II) उत्तर मीमांसा दर्शन-
- उत्तर मीमांसा दर्शन आस्तिक दर्शन का ही भाग है। अर्थात् उत्तर मीमांसा दर्शन आस्तिक दर्शन है।
- उत्तर मीमांसा दर्शन को वेदांत दर्शन तथा शारीरिक मीमांसा दर्शन भी कहा जाता है।
- उत्तर मीमांसा दर्शन में वेद के अंतिम भाग के वाक्यों के विषयों का समन्वय किया गया है जिसके कारण उत्तर मीमांसा दर्शन को वेदांत दर्शन कहा जाता है।
- उत्तर मीमांसा दर्शन का संस्थापक बादरायण है।
- उत्तर मीमांसा दर्शन के संस्थापक बादरायण के द्वारा ब्रह्मसूत्र नामक पुस्तक लिखी गई थी।
- ब्रह्मसूत्र, भगवत गीता तथा उपनिषदों को संयुक्त रूप से प्रस्थानत्रयी कहा जाता है।
- उत्तर मीमांसा दर्शन ज्ञान मार्ग में विश्वास करता है।
- उत्तर मीमांसा दर्शन आरण्यक और उपनिषदों पर आधारित है।
- उत्तर मीमांसा दर्शन में रहस्यात्मक ज्ञान एवं दार्शनिक तत्वों पर बल दिया गया है।
- उत्तर मीमांसा दर्शन का विषय ब्रह्म और ब्रह्म के स्वरूप की मीमांसा है।
उत्तर मीमांसा दर्शन के प्रमुख आचार्य-
- (अ) शंकराचार्य
- (ब) रामानुजाचार्य
(अ) शंकराचार्य-
- शंकराचार्य उत्तर मीमांसा दर्शन के प्रमुख आचार्य थे।
- शंकराचार्य ने अद्वैतवाद दर्शन का प्रतिपादन किया था।
- शंकराचार्य के अनुसार ब्रह्म निर्गुण, निराकार, निर्विशेष एवं निर्वचनीय है।
- शंकराचार्य के अनुसार ब्रह्म सच्चिदानंद (सत + चित + आनंद) है।
- शंकराचार्य ब्रह्म एवं जगत में सजातीय भेद, विजातीय भेद तथा स्वगत भेद को स्वीकार नहीं करते है।
- शंकराचार्य के अनुसार ब्रह्म सत्य व जगत मिथ्या है।
- शंकराचार्य के अनुसार माया के कारण हमें जगत का अहसास होता है।
(ब) रामानुजाचार्य-
- रामानुजाचार्य ने विशिष्ट अद्वैतवाद दर्शन का प्रतिपादन किया था।
- रामानुजाचार्य ने ब्रह्म तथा जगत में सजातीय भेद व विजातीय भेद को अस्वीकार किया है अर्थात् रामानुजाचार्य ने ब्रह्म तथा जगत में सजातीय भेद व विजातीय भेद का स्वीकार नहीं किया है।
- रामानुजाचार्य ने ब्रह्म तथा जगत में स्वगत भेद को स्वीकार किया है।
- रामानुजाचार्य ने भक्ति की अवधारणा पर बल दिया है।
(III) सांख्य दर्शन-
- सांख्य दर्शन आस्तिक दर्शन का ही भाग है अर्थात् सांख्य दर्शन एक आस्तिक दर्शन है।
- सांख्य दर्शन का संस्थापक कपिल मुनि था। अर्थात् सांख्य दर्शन का प्रवर्तक कपिल मुनि था
- कपिल मुनि को भगवान विष्णु का पंचम अवतार माना जाता है।
- सांख्य (साम + ख्य) दर्शन का शाब्दिक अर्थ सम्यक ज्ञान होता है।
- सांख्य दर्शन एक अनिश्वरवादी दर्शन है अर्थात् सांख्य दर्शन में ईश्वर को नहीं मानते है।
- सांख्य दर्शन एक द्वैतवादी दर्शन है।
- सांख्य दर्शन पुरुष और प्रकृति को मानता है अर्थात् सांख्य दर्शन के दो प्रकार है जैसे-
- (अ) पुरुष
- (ब) प्रकृति
- सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष तथा प्रकृति मिलकर जगत का निर्माण करते है।
- सांख्य दर्शन एक विकासवादी दर्शन है।
- सांख्य दर्शन योग दर्शन का जुड़वा दर्शन है।
(IV) योग दर्शन-
- योग दर्शन आस्तिक दर्शन का ही भाग है अर्थात् योग दर्शन एक आस्तिक दर्शन है।
- योग दर्शन का संस्थापक पतंजलि था।
- योग का शाब्दिक अर्थ जोड़ना है अर्थात् आत्मा का परमात्मा से मिलन है।
- भगवत गीता या भगवान श्री कृष्ण के अनुसार योग का अर्थ योग कर्मसु कौशलम् है अर्थात् कर्म में कुशलता लाना ही योग है।
- पतंजलि के अनुसार चित्तवृत्ति का निरोध ही योग है।
- चित = मन + बुद्धि + अहंकार
- योग दर्शन सांख्य दर्शन का जुड़वा दर्शन है।
- पतंजलि के अनुसार योग का अष्टांगिक मार्ग या पथ निम्नलिखित है-
- (1) यम
- (2) नियम
- (3) आसन
- (4) प्राणायाम
- (5) प्रत्याहार
- (6) धारणा
- (7) ध्यान
- (8) समाधि
(V) न्याय दर्शन-
- न्याय दर्शन आस्तिक दर्शन का ही भाग है अर्थात् न्याय दर्शन एक आस्तिक दर्शन है।
- न्याय दर्शन का संस्थापक गौतम ऋषि था।
- न्याय दर्शन को भारतीय दर्शन का तर्कशास्त्र कहा जाता है।
- न्याय दर्शन विचारों के अस्तित्व को स्वीकार करता है।
- न्याय दर्शन ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण देता है।
- न्याय दर्शन अपनी ज्ञान मीमांसा के लिए प्रसिद्ध है।
- न्याय दर्शन में ज्ञान प्राप्ती के चार साधन बताए गये है। जैसे-
- (1) प्रत्यक्ष- इन्द्रिय जनित ज्ञान
- (2) अनुमान
- (3) शब्द
- (4) उपमान
- न्याय दर्शन वैशेषिक दर्शन का जुड़वा दर्शन है।
(VI) वैशेषिक दर्शन-
- वैशेषिक दर्शन आस्तिक दर्शन का ही भाग है अर्थात् वैशेषिक दर्शन एक आस्तिक दर्शन है।
- वैशेषिक दर्शन या औलूक्य दर्शन का संस्थापक ऋषि कणाद या उलुक था।
- ऋषि कणाद को ही उलुक कहा जाता है।
- ऋषि कणाद ने कण का सिद्धांत दिया था इसीलिए ऋषि कणाद का नाम कणाद पड़ा था।
- वैशेषिक दर्शन को औलूक्य दर्शन भी कहा जाता है।
- वैशेषिक दर्शन का औलूक्य दर्शन नाम वैशेषिक दर्शन के संस्थापक उलुक के नाम पर पड़ा था।
- ऋषि कणाद ने परमाणुवाद का सिद्धांत दिया था।
- वैशेषिक दर्शन न्याय दर्शन का जुड़वा दर्शन है।
2. नास्तिक दर्शन (Unorthodox Philosophy)-
- नास्तिक दर्शन या नास्तिक दार्शनिक वेदों को नित्य और प्रामाणिक नहीं मानते है। अर्थात् वेदों को नित्य और प्रामाणिक मानने वाले दर्शन को नास्तिक दर्शन कहा जाता है।
- नास्तिक दर्शनों की संख्या तीन है। जैसे-
- (I) बौद्ध दर्शन
- (II) जैन दर्शन
- (III) चार्वाक दर्शन
(I) बौद्ध दर्शन-
- बौद्ध दर्शन नास्तिक दर्शन का ही भाग है अर्थात् बौद्ध दर्शन एक नास्तिक दर्शन है।
(II) जैन दर्शन-
- जैन दर्शन नास्तिक दर्शन का ही भाग है अर्थात् जैन दर्शन एक नास्तिक दर्शन है।
(III) चार्वाक दर्शन-
- चार्वाक दर्शन नास्तिक दर्शन का ही भाग है अर्थात् चार्वाक दर्शन एक नास्तिक दर्शन है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन का संस्थापक बृहस्पति था।
- चार्वाक दर्शन को लोकायत दर्शन भी कहा जाता है।
- बृहस्पति ने दानवों को दिग्भ्रमित करने हेतु चार्वाक या लोकायत दर्शन दिया था।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन अनीश्वरवादी दर्शन है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन में कर्मफल सिद्धांत व पुनर्जन्म को नहीं मानते है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन में आत्मा को नहीं मानते है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन में आत्मा को पान के उदाहरण के द्वारा समझाया गया है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन में चार तत्व जैसे- पृथ्वी, जल, अग्नि व वायु को मानते है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन में आकाश को नहीं मानते है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन में ज्ञान प्राप्ती का केवल एक साधन प्रत्यक्ष को मानते है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन में दो पुरुषार्थ अर्थ व काम को मानते है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन भौतिकवादी व सुखवादी दर्शन है।
- चार्वाक दर्शन या लोकायत दर्शन में खाओ पियो व विवाह करो में विश्वास करते है। जैसे-
यावम जीवेत सुखम जिवेत।
ऋणम कृत्वा घृतम पिवेत।।
अर्थ-
जैसे भी जियो, सुख से जियो।
उधार लेकर घी पियो।।
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