संगम काल (Sangam Period)-
- संगम का शाब्दिक अर्थ संघ या परिषद होता है।
- भारत में पहली शताब्दी से लेकर तीसरी शताब्दी के काल को संगम काल कहा जाता है।
- भारत में संगमों का आयोजन पाण्ड्य शासकों के द्वारा किया गया था।
- भारत में तमिल साहित्य के संकलन व सरंक्षण के लिए संगमों का आयोजन किया गया था।
- किसी भी तमिल साहित्य को प्रकाशित करने से पहले उन्हें संगम से अनुमति लेनी पड़ती थी।
- भारत में पाणड्य शासकों के द्वारा तीन संगमों का आयोजन किया गया था। जैसे-
- 1. प्रथम संगम
- 2. द्वितीय संगम
- 3. तृतीय संगम
1. प्रथम संगम-
- भारत में प्रथम संगम का अध्यक्ष अगस्त्य ऋषि था।
- प्रथम संगम का आयोजन मदुरै या मदुरई में हुआ था।
- मदुरै या मदुरई भारत के तमिल नाडु राज्य के मदुरई जिले में स्थित एक नगर का नाम है।
- प्रथम संगम को संरक्षण पाणड्य शासकों के द्वारा प्रदान किया गया था।
- भारत में प्रथम संगम की एक भी पुस्तक नहीं मिलती है।
- वैदिक संस्कृत को दक्षिण भारत में सबसे पहले फैलाने का श्रेय अगस्त्य ऋषि तथा कौंडिन्य ब्राह्मण को दिया जाता है।
2. द्वितीय संगम-
- भारत में द्वितीय संगम का पहला अध्यक्ष अगस्त्य ऋषि था।
- भारत में द्वितीय संगम का दूसरा अध्यक्ष तोलक्कापियर था अर्थात् द्वितीय संगम की अध्यक्षता पहले अगस्त्य ऋषि ने की थी बाद में तोलक्कापियर ने की थी।
- द्वितीय संगम का आयोजन कपाटपुरम् (कपाट पुरम) में हुआ था।
- द्वितीय संगम को संरक्षण पाण्ड्य शासकों के द्वारा प्रदान किया गया था।
- द्वितीय संगम में तोल्काप्पियम नामक पुस्तक लिखी गई थी।
- तोल्काप्पियम नामक पुस्तक तोलक्कापियर (टोल्कपियार) के द्वारा लिखी गई थी।
- तोल्काप्पियम पुस्तक का विषय तमिल व्याकरण है।
- भारत में तमिल व्याकरण की पहली पुस्तक तोल्काप्पियम है।
- भारत में संस्कृत व्याकरण की पहली पुस्तक पाणिनी की अष्टाध्यायी है।
3. तृतीय संगम-
- भारत में तृतीय संगम का अध्यक्ष नक्कीरर था।
- भारत में तृतीय संगम या तीसरे संगम का आयोजन उत्तरी मदुरै में हुआ था।
- मदुरै भारत के तमिलनाडु राज्य के मदुरई जिले में स्थित है।
- तृतीय संगम को संरक्षण पाण्ड्य शासकों के द्वारा प्रदान किया गया था।
- तृतीय संगम के दौरान लिखी गई पुस्तकें-
- (I) शिलप्पादिकारम
- (II) ऐतुतोके या इत्थुतोकै
- (III) पतुपातु या पत्थुप्पात्तु
- (IV) मणिमेखलै
- (V) जीवक चिंतामणि
- (VI) कुरुल या कुरल या तिरुक्कुरल
(II) शिलप्पादिकारम या सिलापाथिकाराम (Cilappatikaram)-
- शिलप्पादिकारम को तमिल साहित्य का प्रथम महाकाव्य माना जाता है।
- शिलप्पादिकारम पुस्तक इलांगो आदिगल के द्वारा लिखी गई है।
- इलांगो आदिगल चोल वंश के शासक सेन गुट्टुवन (शेंगुट्टुवन) का भाई है।
- शिलप्पादिकारम पुस्तक को नूपुर की कहानी भी कहते है क्योंकि शिलप्पादिकारम का शाब्दिक अर्थ "नूपुर (पायल) की कहानी" है।
- शिलप्पादिकारम पुस्तक महिला प्रधान पुस्तक है।
- शिलप्पादिकारम पुस्तक में कोवलन ओर कण्णगी की कहानी है अर्थात् शिलप्पादिकारम पुस्तक के नायक कोवलन तथा नायिका कण्णगी है।
- शिलप्पादिकारण एक तमिल महाकाव्य है।
- कण्णगी या कन्नगी कोवलन की पत्नी थी।
- शिलप्पादिकारण को तमिल साहित्य का प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है।
- कण्णगी (कन्नगी) के सम्मान में तमिलनाडु एवं श्रीलंका में पत्नी पूजा की जाती है। अर्थात् कन्नगी या कण्णगी पूजा की जाती है।
- कन्नगी या कण्णगी पूजा की शुरुआत चोल वंश के शासक सेन गुट्टुवन (शेंगुट्टुवन) के द्वारा की गई थी।
- कन्नगी या कण्णगी को एक आदर्श पत्नी के रूप में पूजा जाता है।
- कन्नगी या कण्णगी एक तमिल महिला थी।
(II) ऐतुतोके या इत्थुतोकै-
- ऐतुतोके या एतुत्तौके पुस्तक में 8 भजनों या आठ ग्रंथों का संकलन है।
- ऐतुतोके या एतुत्तौके पुस्तक में संकलित आठ ग्रंथ जैसे- नण्णिनै, कुरुन्थोकै, पुरुनानरु, अहनानरु, परिपादल, एनकुरुनूर, पदित्रप्पत्तु, कलिथौके।
(III) पतुपातु या पत्थुप्पात्तु-
- पतुपातु पुस्तक तीसरे संगम के 10 भजनों या कविताओं का संकलन है।
- पत्तुप्पातु या पतुपातु पुस्तक में संकलित 10 भजन या कविताएं जैसे- तिरुमुरुकात्रुप्पदै, मलैपदुकदाम, मुल्लैप्पातु, पत्तिनप्पालै, नेडनलवाडै, करुन्जिप्पातु, सिरुपानात्रुप्पदै, मदुरैकांचि, पेरुम्पनत्रुप्पदै, पोरुनरात्रुप्पदै।
(IV) मणिमेखलै-
- मणिमेखलै पुस्तक सीतलै सत्तनार के द्वारा लिखी गई थी।
- मणि, कोवलन एवं माध्वी की बेटी थी।
- मणि ने बौद्ध धर्म अपना लिया था एवं साध्वी बन गयी थी।
(V) जीवक चिंतामणि-
- जीवक चिंतामणि पुस्तक तिरुतक्कदेवर के द्वारा लिखी गई पुस्तक है।
- तिरुतक्कदेवर एक जैन साधु था।
- जीवक चिंतामणि एक तमिल महाकाव्य है।
- जीवक चिंतामणि जैन धर्म से संबंधित है।
- जीवक चिंतामणि पुस्तक को विवाह ग्रंथ भी कहा जाता है।
- जीवक चिंतामणि पुस्तक को तमिल में मणनूल कहा जाता है।
- जीवक चोल वंश का राजकुमार था।
- जीवक चिंतामणि पुस्तक का नायक जीवक है।
- जीवक ने 8 विवाह किए एवं अंत में साधु बन गया था।
(VI) कुरुल या कुरल या तिरुक्कुरल-
- कुरुल या तिरुक्कुरल पुस्तक की रचना तिरुवल्लुवर के द्वारा की गई थी।
- तिरुक्कुरल पुस्तक को कुरल के रूप में भी जाना जाता है।
- संत तिरुवल्लुवर को वल्लुवर भी कहा जाता है।
- संत तिरुवल्लुवर एक तमिल कवि थे।
- संत तिरुवल्लुवर जाति से जुलाहा थे।
- तिरुवल्लुवर एक समाज सुधारक संत थे।
- प्रसिद्ध तमिल कवि तिरुवल्लुवर की 12 फीट ऊँची पत्थर से निर्मित मूर्ति हरिद्वार (उत्तराखंड) में स्थित है।
- हरिद्वार भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है।
संगम साहित्य-
- संगम साहित्य में जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म की जानकारी मिलती है।
- संगम काल के दौरान दक्षिण भारत में तीन राजवंशों चेर, चोल एवं पाण्ड्य वंंश का शासन था।
- संगम साहित्य से निम्नलिखित राजवंशों की जानकारी मिलती है। जैसे-
- 1. चेर वंश
- 2. चोल वंश
- 3. पाण्ड्य वंश
संगमकालीन व्यापार वाणिज्य-
- संगम काल में व्यापार वाणिज्य अच्छी अवस्था में था।
संगम काल के प्रमुख बंदरगाह-
- 1. तोंडी बंदरगाह या टोंडी बंदरगाह (रामनाथपुरम जिला, तमिलनाडु, भारत)
- 2. मुशिरी बंदरगाह
- 3. उरैयूर बंदरगाह
- 4. बन्दर बंदरगाह
- 5. अरिकामेडु बंदरगाह (पांडिचेरी, भारत)
- 6. पुहार बंदरगाह (नागापट्टनम जिला, तमिलनाडु, भारत)
- 7. शालीयूर बंदरगाह
- अरिकामेडु (पांडिचेरी) से रोमन सिक्के प्राप्त हुए है।
संगम काल की आयातित वस्तुएं-
- 1. सोना
- 2. चाँदी
- 3. घोड़े
- 4. शराब
- 5. काँच
- 6. जवाहरात
संगम काल की निर्यातित वस्तुएं-
- 1. भारतीय मसाले
- 2. सूती वस्त्र
- 3. लकड़ी
- 4. कछुए
- 5. हाथी दाँत
- संगम काल में रोमन साम्राज्य के साथ व्यापार होता था।
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