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खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing)

खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing)-

    • 1. खाद्य प्रसंस्करण का अर्थ (Meaning of Food Processing)
    • 2. खाद्य प्रसंस्करण का वर्गीकरण (Classification of Food Processing)
    • 3. भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की संभावनाएं तथा तेजी से बढ़ने के कारण (Potential and reasons for the rapid growth of the food processing sector in India)

    • 4. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लाभ (Advantages of Food Processing Industries)
    • 5. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के सामने प्रमुख समस्याएं (Major problems before food processing industries)
    • 6. सरकार के द्वारा किए गए प्रयास (Efforts made by the government)
    • 7. गुणवत्ता परीक्षण हेतु सरकार के उपाय (Government Measures for Quality Testing)
    • 8. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की अवस्थिति या स्थान निर्धारण के कारक (Location Factors of Food Processing Industry)
    • 9. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की पूर्ववर्ती (ऊर्ध्वमुखी) एवं अग्रवर्ती (अधोमुखी) आवश्यकताएं (Upstream and Downstream Requirements of Food Processing)
    • 10. आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन (Supply Chain Management)


    1. खाद्य प्रसंस्करण का अर्थ (Meaning of Food Processing)-

    • मूल रूप से प्राप्त कृषि एवं पशु उत्पादों को मानक उपभोग के अनुरुप बनाना खाद्य प्रसंस्करण कहलाता है। अथवा खाद्य प्रसंस्करण से तात्पर्य खाद्य एवं पेय उद्योग द्वारा प्राथमिक कृषि उत्पादों, पौधों एवं पशुओं से जुड़ी सामग्रियों जैसे- अनाज, मांस, दूध आदि को उपभोक्ताओं के उपभोग योग्य बनाने से है।


    2. खाद्य प्रसंस्करण का वर्गीकरण (Classification of Food Processing)-

    • खाद्य प्रसंस्करण का वर्गीकरण तीन श्रेणियों में किया गया है। जैसे-
    • (I) प्राथमिक खाद्य प्रसंस्करण (Primary Food Processing)
    • (II) माध्यमिक खाद्य प्रसंस्करण (Secondary Food Processing)
    • (III) तृतीयक खाद्य प्रसंस्करण (Tertiary Food Processing)


    (I) प्राथमिक खाद्य प्रसंस्करण (Primary Food Processing)-

    • प्राथमिक खाद्य प्रसंस्करण के अंतर्गत कच्चे कृषि एवं पशु उत्पादों में आंशिक परिवर्तन करके उन्हें मानव के उपभोग के अनुकूल (Suitable) बनाया जाता है।
    • सामान्यतः प्राथमिक खाद्य प्रसंस्करण के लिए सफाई (Cleaning), ग्रेडिंग (Grading), छंटाई (Sorting), पैकिंग (Packing) आदि का सहारा लिया जाता है।
    • प्राथमिक खाद्य प्रसंस्करण में उत्पाद के भौतिक रूप (Physical Form) में परिवर्तन नहीं होता है और मूल्य संवर्धन (Value Addition) भी नाम मात्र का होता है।


    (II) माध्यमिक खाद्य प्रसंस्करण (Secondary Food Processing)-

    • माध्यमिक खाय प्रसंस्करण के अंतर्गत कच्चे कृषि एवं पशु उत्पादों को इस प्रकार रूपांरित किया जाता है या बदला जाता है कि इनकी मूल भौतिक विशेषताओं (Original Physical Characteristics) में बदलाव आ जाता है।
    • सामान्यतः माध्यमिक खाद्य प्रसंस्करण में श्रम के अलावा मशीन (Machines), बिजली (Electricity) व पूंजी (Capital) का इस्तेमाल होता है। इससे वैल्यू एडिशन (Value Addition) बहुत हो जाता है। जैसे- गेहूं को आटे में बदलना (Turning wheat inti flour), आलू का चिप्स बनाना। (Making potato chips)


    (III) तृतीयक खाद्य प्रसंस्करण (Tertiary Food Processing)-

    • तृतीयक खाद्य प्रसंस्करण में कृषि एवं पशु उत्पादों को तुरंत खाने की स्थिति में लाया जाता है। जैसे- शीतल पेय (Soft Drinks), सॉस (Sauces), अचार (Pickles), दही (Curd) आदि।

    • तृतीयक खाद्य प्रसंस्करण में सर्वाधिक वैल्यू एडिशन (Value Addition) होता है।


    3. भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की संभावनाएं तथा तेजी से बढ़ने के कारण (Potential and reasons for the rapid growth of the food processing sector in India)-

    • भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग लगभग 150 बिलियन डॉलर का अनुमानित है।
    • भारत का खाद्य प्रसंस्करण उद्योग पिछले 5 वर्षों में लगभग 8.3% की वृद्धि दर से बढ़ रहा है।
    • खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में असीम संभावनाएं है और भविष्य में भारत एक बड़ा आपूर्तिकर्ता बन सकता है क्योंकि-
    • (I) भारत अनेक कृषि उत्पादों तथा बागवानी वस्तुओं के उत्पादन में विश्व में शीर्ष स्थान प्राप्त है। जैसे- दूध (Milk), आम (Mango), पपीता (Papaya), केला (Banana), अमरुद (Guava), अदरक (Ginger), चना (Gram), भैंस (Buffalo), मांस (Meat) उत्पादन में भारत प्रथम स्थान पर है। इसी तरह चावल (Rice), गेहूँ (Wheat), आलू (Potato), लहसुन (Garlic), सूखे प्याज (Dried Onion), काजू (Cashew), मूंगफली (Groundnut), मटर (Peas), कद्दू (Pumpkin), लौकी (Gourd), गाय का दूध (Cow's Milk) और गन्ना (Sugarcane) उत्पादन के मामले में भारत दूसरे स्थान पर है।
    • (II) भारत में कृषि जलवायु दशाओं में विविधता (Diversity) पाई जाती है। इससे ज्यादा तथा विविध प्रकार का कच्चा माल प्राप्त हो जाता है जो खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास के लिए अधिक उत्तम आधार प्रस्तुत करता है।
    • (III) भारत में कुल व्यय का बहुत बड़ा भाग खाद्य पदार्थों पर होना तथा लोग खानपान के शौकीन होना।
    • (IV) तीव्र शहरीकरण (Rapid Urbanization), बढ़ती साक्षरता (Increasing Literacy), बढ़ती हुई प्रति व्यक्ति आय (Rising Per Capita Income)
    • (V) बदलती हुई जीवन शैली (Lifestyle) तथा कार्य संबंधी व्यस्तता।
    • (VI) श्रम शक्ति में महिला श्रमिकों की हिस्सेदारी बढ़ना।
    • (VII) आक्रामक मार्केटिंग (Aggressive Marketing)
    • (VIII) भारत में दूरदर्शन (Television) की संस्कृति व सूचना प्रौद्योगिकी (Information Technology) का विकास तेजी से हो रहा है।
    • (IX) विदेशी निवेश (Foreign Investment) की 100% अनुमति होना, इससे खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र की अधोसंरचना, विपणन तथा वितरण संख्या बहुत विकसित हो गई है।
    • (X) सस्ता क्षम तथा सस्ते कच्चे उत्पाद की उपलब्धता। 


    4. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लाभ (Advantages of Food Processing Industries)-

    • (I) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग कृषि (Agriculture) एवं विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) के मध्य सेतु बनकर भारतीय नागरिकों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करेगा और देश भर में स्वास्थ्यकारी (Healthy) एवं वहनीय (Affordable) भोजन की आपूर्ति करेगा। जिससे कुपोषण (Malnutrition) की समस्या को दूर किया जा सकता है।
    • (II) भंडारण सुविधाओं के अभाव के कारण जो खाद्य उत्पाद बर्बाद हो जाता है वह रुकेगा।
    • (III) निर्यात में भूमिका के कारण विदेशी मुद्रा (Foreign Exchange) का अर्जन भी बहुत होता है।
    • (IV) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ेगा जिससे कृषि उत्पादन और ज्यादा बढ़ेगा।
    • (V) किसानों की आय बढ़ने से कृषि कार्य लाभ का सौदा साबित होने लगेगा।
    • (VI) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की रोजगार सृजन में भी महत्वपूर्ण भूमिका है। विनिर्माण क्षेत्र में उत्पन्न रोजगार का लगभग 12.2% भाग खाद्य प्रसंस्करण से संबंधित है।
    • (VII) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से जीडीपी वृद्धि दर (GDP Growth Rate) बढ़ेगी।
    • (VIII) खाद्य प्रसंस्करण उद्योग से गरीबी तथा बेरोजगारी में कमी आयोगी।


    5. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के सामने प्रमुख समस्याएं (Major problems before food processing industries)-

    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के सामने मुख्यतः निम्न समस्याएं है।
    • (I) प्रशिक्षण का अभाव। (Lack of training)
    • (II) ऋण की व्यवस्था का अभाव। (Inefficient credit system)
    • (III) अविकसित आधारभूत संरचना का होना। (Underdeveloped infrastructure)
    • (IV) बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा विशेषकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों से (Increasing competition especially from MNCs)
    • (V) उत्पादों के विकास में नवाचार की कमी (Lack of innovation in the development of products)
    • (VI) गुणवत्ता एवं सुरक्षा मानकों पर पर्याप्त ध्यान न देना। (Inadequate attention to quality and safety standards)
    • (VII) विश्वसनीय जाँच सुविधाओं का अभाव होना। (Lack of reliable testing facilities)
    • (VIII) बैकवर्ड एवं फॉरवर्ड लिंकेज की समस्या। (Problem of backward and forward linkage)


    6. सरकार के द्वारा किए गए प्रयास (Efforts made by the government)-

    • खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार के द्वारा निम्नलिखित प्रयास किए गए।

    • इसके अलावा सरकार ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों हेतु प्रशिक्षण देने के लिए भी संस्थानों की स्थापना की है।
    • इन प्रशिक्षण संस्थानों में सबसे महत्वपूर्ण संस्था "राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान" (NIFTEM) है।
    • इसके अलावा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के उत्पादों के निर्यात के लिए दो नोडल एजेंसी (Nodal Agencies) बनाई गई है। जैसे-
    • (I) कृषि एं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA)
    • (II) समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA)


    (I) कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA)-

    • APEDA Full Form = Agriculture and Processed Food Products Export Development Authority
    • APEDA का पूरा नाम = कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण
    • दिसंबर 1985 में कानून बनाकर कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) की स्थापना 13 फरवरी 1986 को दिल्ली में की गई थी।
    • कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (APEDA) कृषि संबंधित प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात प्रवर्तक संस्था है।


    (II) समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA)-

    • MPEDA Full Form = Marin Products Export Development Authority
    • MPEDA का पूरा नाम = समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण
    • समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA) की स्थापना सन् 1972 में कोच्चि, केरल में की गई थी।
    • समुद्री उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (MPEDA) समुद्री उत्पाद निर्यात प्रवर्तक संस्था है। जो अलग-अलग प्रकार के प्रसंस्कृत उत्पादों (Processed Products) के निर्यात में मदद करती है।


    राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM)-

    • NIFTEM Full Form = National Institute of Food Technology Entrepreneurship and Management
    • NIFTEM का पूरा नाम = राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान
    • राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM) की स्थापना सन् 2006 में की गई थी।
    • राष्ट्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी उद्यमशीलता एवं प्रबंधन संस्थान (NIFTEM) सोनीपत, हरियाणा में स्थित है।


    7. गुणवत्ता परीक्षण हेतु सरकार के उपाय (Government Measures for Quality Testing)-

    • (I) खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 (The Food Safety and Standard Act, 2006)


    (I) खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 (The Food Safety and Standard Act, 2006)-

    • सन् 2006 में खाद्य सुरक्षा एवं मानक निर्धारण हेतु "खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006" (The Food Safety and Standard Act, 2006) बनाया गया था। ताकि खाद्य एवं खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में मानकों का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
    • खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006 (The Food Safety and Standard Act, 2006) के तहत 1 अगस्त, 2011 को "भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण" (FSSAI) का गठन किया गया।
    • FSSAI Full Form = Food Safety and Standards Authority of India
    • FSSAI का पूरा नाम = भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण


    8. खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की अवस्थिति या स्थान निर्धारण के कारक (Location Factors of Food Processing Industry)-

      • (I) कच्चे माल की उपलब्धता (Availability of Raw Materials)
      • (II) बाजार (Market)
      • (III) लागत (Cost)


          (I) कच्चे माल की उपलब्धता (Availability of Raw Materials)-

          • कच्चे माल की उपलब्धता के लिए यह जरूरी है कि खाद्य प्रसंस्करण उद्योग ऐसी जगह स्थापित किए जाएं जहाँ कच्चा माल निकटतम दूरी पर व्यापक उपलब्ध हो।


          (II) बाजार (Market)-

          • यदि प्रसंस्कृत उत्पाद शीघ्र नष्ट होने वाला है तो खाद्य प्रसंस्करण औद्योगिक इकाइयों की अवस्थिति में बाजार निर्णायक भूमिका निभाता है। जैसे- बेकरी उद्योग (Bakery Industry), डेयरी उद्योग (Dairy Industry)


          (III) लागत (Cost)-

          • खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए लागत जैसे- सस्ता श्रम (Cheap Labour), सस्ती जमीन (Cheap Land) आदि की उपलब्धता शहरों की तुलना में गाँव में बेहतर होती है।
          • यदि गाँवों में विद्युत (Electricity), परिवहन सुविधा (Transport Facilities), बैंकिंग (Banking), भंडारण (Storage), कोल्ड स्टोरेज (Cold Storage) भी प्राप्त हो जाए तो खाद्य प्रसंस्करण उद्योग गाँव में लगाए जाएंगे।
          • किन्तु गाँवों में इन सुविधाओं का अभाव, अकुशल श्रमिक, बाजार से दूरी के कारण खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का विकास कम ही हुआ है।


          9. खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की पूर्ववर्ती (ऊर्ध्वमुखी) एवं अग्रवर्ती (अधोमुखी) आवश्यकताएं (Upstream and Downstream Requirements of Food Processing)-

          • (I) ऊर्ध्वमुखी या पूर्ववर्ती आवश्यकताएं (Upstream Requirements)

          • (II) अधोमुखी या अग्रवर्ती आवश्यकताएं (Downstream Requirements)


          (I) ऊर्ध्वमुखी या पूर्ववर्ती आवश्यकताएं  (Upstream Requirements)-

          • अर्थ- खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों की पूर्ववर्ती (ऊर्ध्वमुकी) आवश्यकता का तात्पर्य खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति को सुनिश्चित करने से है।
          • अतः कच्चे माल की खोज तथा उसे प्राप्त करना तथा कच्चे माल की आपूर्तिकर्ता द्वारा इसे प्रसंस्करण करने वाली कंपनी तक पहुंचाना जरूरी होता है।


          प्रमुख ऊर्ध्वमुखी या पूर्ववर्ती आवश्यकताएं निम्नलिखित है। (Following are the major upstream requirements)-

          • कच्चे माल तक पहुँच (Access to raw materials)
          • किसानों को कच्चे माल को पहुचाने के लिए अच्छा प्रशिक्षण देना। (To provide good training to the farmers for this)
          • कच्चे माल जैसे अनाज, फल, सब्जियां, मांस, मछली आदि के लिए उचित भंडारण सुविधाओं का विकास करना। (Develop proper storage facilities for raw materials like cereals, fruits, vegetables, meat, fish etc.)
          • बेहतर परिवहन सुविधाओं का विकास करना (Developing better transport facilities)
          • उत्पादों की गुणवत्ता परीक्षण सुविधाएं विकसित करना। (To develop quality testing facilities of the products)
          • पूरे वर्ष भर कच्चे माल की उपलब्धता सुनिश्चित कराना। (To ensure availability of raw material throughout the year)


          (II) अधोमुखी या अग्रवर्ती आवश्यकताएं (Downstream Requirements)-

          • अर्थ- अधोमुखी आवश्यकताओं के तहत खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों में संग्रहित कच्चे माल को प्रसंस्कृत किया जाता है। और फिर तैयार माल के रूप में उसे अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचाने की कोशिश की जाती है। अर्थात् प्रसंस्कृत उत्पाद को बेचना होता है।


          प्रमुख अधोमुखी या अग्रवर्ती आवश्यकताएं निम्नलिखित है। (Following are the major Downstream requirements))-

          • आधुनिक प्रसंस्करण एवं उत्पादन तकनीक। (Moderna processing and production technology)
          • गुणवत्ता परीक्षण सुविधाएं। (Quality testing facilities)
          • तैयार उत्पाद को भंडारण गृहों में भंडारित किया जाना। (To store the finished product in warehouses)
          • खाद्य पदार्थों की डिब्बाबंदी (Packaging of foods)
          • परिवहन सुविधाओं के माध्यम से वितरण एजेंसियों अर्थात् थोक व खुदरा विक्रेताओं तक पहुंचाना और थोक व खुदरा विक्रेताओं के माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचाना।


          10. आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन (Supply Chain Management)-

          • आपूर्ति श्रृंखला कारोबार में संलग्न उन लोगों का नेटवर्क है जो खाद्य पदार्थों के सामूहिक रूप से संग्रहण (Collection), भंडारण (Storage), प्रसंस्करण (Processing), वितरण (Distribution) और विपणन (Marketing) हेतु जिम्मेदार होते हैं।

          • इसलिए आपूर्ति श्रृंखला में अवसंरचना (Infrastructure), भंडारण सुविधा (Warehousing facilities), कोल्ड स्टोरेज सुविधा (Cold Storage Facilities), परिवहन के साधनों की उपयोगिता और विपणन ढांचे (Marketing Infrastructure) की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।


          आपूर्ति श्रृंखला का महत्व (Importance of Supply Chain)-

          • आपूर्ति श्रृंखला के प्रबंधन से खाद्यान्नों की पर्याप्त मात्रा में निरंतरता युक्त आपूर्ति सुनिश्चित करना संभव हो जाता है।
          • इससे बेहतर गुणवत्ता वाले उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित हो जाती है।
          • प्रसंस्करणकर्ताओं, निर्यातकों, खुदरा कारोबारियों और उपभोक्ताओं की मांगों को भी पूरा करना संभव हो जाता है।


          आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन के समक्ष मौजूदा चुनौतियां (Challenges faced by supply chain management)-

          • आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा चुनौतियां होती है।
          • गाँवों में उपलब्ध अवसंरचना अपर्याप्त और निम्न गुणवत्ता युक्त होती है।
          • जिन लोगों के ऊपर कच्चे माल की आपूर्ति की जिम्मेदारी होती है उनके पास कौशल (Skill), ज्ञान (Knowledge), पूंजी की अनुपलब्धता, सूचनाओं का अभाव, आधारभूत सुविधाओं की वंचना होती है उन्हें कच्चे माल की कीमत कम मिलती है जिससे वे ज्यादा सुधार भी नहीं कर पाते हैं।


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