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मेवाड़ चित्रकला (Mewar Painting)

मेवाड़ चित्रकला (Mewar Painting)-

  • मेवाड़ राजस्थान की चित्रकला की जन्म भूमि है क्योंकि राजस्थान की चित्रकला की शुरुआत मेवाड़ से हुई है।

  • मेवाड़ चित्रकला की शुरुआत चावंड से मानी जाती है।

  • 1260 ई. में मेवाड़ के राजा तेजसिंह के शासन काल में आहड़ में जैनो के द्वारा "श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णि" (Shravak Pratikraman Sutra Churni) नामक पुस्तक लिखी गई थी।
  • 1423 ई. में मेवाड़ के राजा मोकल के शासन काल में देलवाड़ा में जैनो के द्वारा "सुपार्श्वनाथ चरितम्" (Suparshvanath Charitam) नामक पुस्तक लिखी गई थी।
  • मेवाड़ चित्रकला के भाग (Parts of Mewar Painting)-
  • 1. चावंड चित्रकला या उदयपुर चित्रकला (Chanwar Painting or Udaipur Painting)
  • 2. देवगढ़ चित्रकला (Deograh Painting)
  • 3. नाथद्वारा चित्रकला (Nathdwara Painting)


1. चावंड चित्रकला या उदयपुर चित्रकला (Chanwar Painting or Udaipur Painting)-

    • (I) महाराणा प्रताप (Pratap)
    • (II) अमर सिंह-I (Amar Singh-I)
    • (III) जगत सिंह-I (Jagat Singh-I)
    • (IV) जयसिंह (Jaisingh)
    • (V) संग्राम सिंह-II (Sangram Singh-II)
    • (VI) चावंड या उदयपुर चित्रकला की विशेषताएं (Features of Chanwar or Udaipur Painting)
    • (VII) चावंड या उदयपुर चित्रकला के मुख्य चित्रकार (Main Painters of Chanwar or Udaipur Painting)


                (I) महाराणा प्रताप (Pratap)-

                • चांवड से मेवाड़ चित्रकला का स्वतंत्र विकास प्रारम्भ हुआ था।
                • 1592 ई. में मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के शासन काल में नासिरुद्दीन ने "ढोला-मारू" (Dhola-Maru) का चित्र बनाया था।
                • नासिरुद्दीन के द्वारा बनाये गये ढोला-मारू के चित्र को वर्तमान में दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय (Museum) में रखा गया है।


                (II) अमर सिंह-I (Amar Singh-I)-

                • 1605 ई. में मेवाड़ के राजा अमर सिंह-I के शासन काल में नासिरुद्दीन ने "रागमाला" (Ragmala) का चित्रण किया था।
                • इसी समय "बारहमासा" (Barahmasa) का भी चित्रण किया गया था।
                • रागमाला = 6 राग व 36 रागिनियों के आधार पर जो चित्र बनाये जाते हैं उन्हें रागमाला कहते हैं।

                • बारहमासा = 12 महिनों के आधार पर जो चित्र बनाये जाते हैं उन्हें बारहमासा कहते हैं।


                (III) जगत सिंह-I (Jagat Singh-I)-

                • मेवाड़ में जगत सिंह-I का शासन काल मेवाड़ चित्रकला का स्वर्ण काल था।
                • जगत सिंह-I ने चित्रकला विभाग की स्थापना की थी जिसे "चितेरो री ओबरी" (Chitero Ri Obari) कहा जाता है।
                • चितेरो री ओबरी को "तस्वीरा रो कारखानो" (Tasveera Ro Karkhano) भी कहा जाता है।
                • ओबरी = कमरा
                • चितेरे = पेंटर
                • मेवाड़ के राजा जगत सिंह-I के शासन काल में साहिबदीन ने "रागमाला" का चित्रण किया था।
                • जगत सिंह-I के शासन काल में साहिबदीन ने मेवाड़ महाराणाओं के व्यक्तिगत चित्र बनाये थे।
                • जगत सिंह-I के शासन काल में मनोहर भी एक प्रमुख चित्रकार था।
                • जगत सिंह-I के शासन काल में प्रमुख चित्रकार-
                • (A) साहिबदीन
                • (B) मनोहर


                (IV) जयसिंह (Jaisingh)-

                • मेवाड़ के राजा जयसिंह के शासन काल में लघु चित्रों का चित्रण अधिक किया गया था।


                (V) संग्राम सिंह-II (Sangram Singh-II)-

                • मेवाड़ के राजा संग्राम सिंह-II के शासन काल में अलग-अलग विषय से संबंधित चित्र बनाये गये थे। जैसे-

                • निम्नलिखित पुस्तकों पर चित्र बनाये गये थे।
                • (A) गीत गोविन्द (Geet Govind)
                • (B) बिहारी सतसई (Bihari Satsai)
                • (C) कलीला-दमना (Kalila Damana)
                • (D) मुल्ला दो प्याजा के लतीफे (Mulla Do Pyaja Ke Latife)
                • कलीला-दमना नामक पुस्तक पंचतंत्र नामक पुस्तक का अरबी भाषा में अनुवाद है।
                • गुप्त काल में विष्णु शर्मा के द्वारा पंचतंत्र नामक पुस्तक लिखी गई थी।

                • पंचतंत्र नामक पुस्तक भारत की अब तक की सबसे अधिक बीकने वाली पुस्तक है।


                (VI) चावंड या उदयपुर चित्रकला की विशेषताएं (Features of Chavand or Udaipur Painting)-

                • चावंड या उदयपुर चित्रकला में लाल व पीले रंग का अधिक प्रयोग किया जाता था।
                • चावंड या उदयपुर चित्रकला में अटपटी पगड़ियों का चित्रण किया जाता था।
                • चावंड या उदयपुर चित्रकला में कदम्ब के पेड़ का चित्रण किया जाता था।
                • चावंड या उदयपुर चित्रकला में शिकार के दृश्यों में 3D प्रभाव देखने को मिलता है।


                (VII) चावंड या उदयपुर चित्रकला के मुख्य चित्रकार (Main Painters of Chavand or Udaipur Painting)-

                • (A) नानाराम (Nanaram)- नानाराम ने महाराणा उदय सिंह के शासन काल में पारिजात अवतरण का चित्र बनाया था।
                • (B) नूरुद्दीन (Nooruddin)- नूरुद्दीन ने महाराणा जगसिंह-II का चित्र बनाया था।
                • (C) गंगाराम (Gangaram)
                • (D) कृपाराम (Kriparam)
                • (E) जगन्नाथ (Jagannath)


                2. देवगढ़ चित्रकला (Deogarh Painting)-

                • देवगढ़ नामक स्थान राजस्थान के राजसमंद जिले में स्थित है।
                • देवगढ़ ठिकाना मेवाड़ का 16वां व अंतिम प्रथम श्रेणी ठिकाना था।
                • 1680 ई. में मेवाड़ के राजा महाराणा जयसिंह ने द्वारिकादास चूंडावत को देवगढ़ ठिकाना दिया था।
                • द्वारिकादास चूंडावत देवगढ़ का सामंत था।
                • द्वारिकादास चूंडावत के शासन काल में देवगढ़ चित्रकला प्रारम्भ हुई।
                • श्रीधर अंधारे ने देवगढ़ चित्रकला को महत्व प्रदान किया।


                देवगढ़ चित्रकला की विशेषताएं (Features of Deogarh Painting)-

                • देवगढ़ चित्रकला मेवाड़, मारवाड़ व ढूँढाड़ चित्रकलाओं का मिश्रण है।
                • देवगढ़ चित्रकला में पीले रंग का अधिक प्रयोग किया जाता था।
                • देवगढ़ चित्रकला में भित्ति चित्र अधिक बनाये गये थे। जैसे-
                • (A) मोती महल (Moti Mahal)
                • (B) अजारा की ओबरी (Ajara Ki Obaro)


                देवगढ़ चित्रकला के मुख्य चित्रकार (Main Painters of Deogarh Painting)-

                • (A) कंवला (Kanwala)
                • (B) चोखा (Chokha)
                • (C) बगता (Bagata)
                • (D) नगा (Naga)
                • (E) हरचन्द (Harchand)


                3. नाथद्वारा चित्रकला (Nathdwara Painting)-

                • मेवाड़ के राजा महाराणा राजसिंह के शासन काल में नाथद्वारा चित्रकला प्रारम्भ हुई।
                • भगवान श्री कृष्ण के मंदिरों (विल्लभ सम्प्रदाय) में दिवारों पर तथा कपड़े के पर्दे पर चित्र बनाये गये थे जिन्हें पिछवाई कहा जाता है।
                • भगवान श्री कृष्ण के मंदिर वल्लभ सम्प्रदाय के है।


                नाथद्वारा चित्रकला की विशेषताएं (Features of Nathwara Painting)-

                • नाथद्वारा चित्रकला में हल्के हरे व पीले रंग का प्रयोग किया जाता था।
                • नाथद्वारा चित्रकला में गायों का चित्रण अधिक किया जाता था।
                • नाथद्वारा चित्रकला में केले के पेड़ों का अधिक चित्रण किया जाता था।
                • नाथद्वारा चित्रकला में आसमान में देवताओं का चित्रण किया जाता था।


                नाथद्वारा चित्रकला के मुख्य चित्रकार (Main Painters of Nathdwara Painting)-

                • (A) रामचन्द्र (Ram Chandra)
                • (B) रामलिंग (Ramling)
                • (C) चतुर्भुज (Chaturbhuj)
                • (D) चम्पालाल (Champalal)
                • (E) घासीराम (Ghasiram)
                • (F) उदयराम (Udairam)
                • (G) कमला (Kamala)
                • (H) इलायची (Ilaichi)


                मेवाड़ चित्रकला पर रिसर्च (Research on Mewar Painting)-

                • निम्नलिखित ने मेवाड़ चित्रकला पर रिसर्च की थी।-
                • (I) श्रीधर अंधारे
                • (II) मोतीचन्द

                • (III) R.K. वशिष्ठ


                "चौरपंचाशिका शैली"-

                • बेसिल गे तथा डगलस गैरेट के अनुसार मेवाड़ "चौरपंचाशिका शैली" का उद्गम स्थल था।


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